गुरु रविदास का जीवन परिचय 2022 Guru Ravidas Biography,Jayanti 2022 In Hindi
लोग रविदास जी के गाने, वचनों को आज भी उनके जन्म दिवस पर सुनते हैं। रविदास जी उत्तर प्रदेश पंजाब एवं महाराष्ट्र में सबसे अधिक फेमस और पूजनीय है।
गुरु रविदास का जीवन परिचय (Guru Ravidas Biography and history)
गुरु रविदास जी का जन्म वाराणसी के पास सीर गोवर्धन गांव में हुआ था। उनकी माता कलसा देवी एवं पिता संतोख दास जी थे। रविदास जी के जन्म पर सबकी अपनी-अपनी राय है, कुछ लोगों का मानना है इनका जन्म 1376-77 के आस पास हुआ था, कुछ कहते हैं। 1399 CE कुछ दस्तावेजों के अनुसार रविदास जी ने 1450 से 1520 के बीच अपना जीवन धरती में बिताया था। इनके जन्म स्थान को अब 'श्री गुरु रविदास जन्म स्थान' कहा जाता है।
रविदास जी के पिता राजा नगर राज्य में सरपंच हुआ करते थे। इनका जूते बनाने और सुधारने का काम हुआ करता था। रविदास जी की पिता मरे हुए जानवरों की खाल निकाल कर उससे चमड़ा बनाते और फिर उसकी चप्पल बनाते थे।
रविदास जी बचपन से ही बहुत बहादुर और भगवान् को बहुत मानने वाले थे। रविदास जी को बचपन से ही उच्च कुल वालो की हीन भावना का शिकार होना पड़ा था, वे लोग हमेशा इस बालक के मन में उसके उच्च कुल के न होने की बात डालते रहते थे। रविदास जी ने समाज को बदलने के लिए अपनी कलम का सहारा लिया वह अपनी रचनाओं के द्वारा जीवन के बारे में लोगों को समझाते लोगों को शिक्षा देते कि इंसान को बिना किसी भेदभाव के अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना चाहिए।
रविदास जी की शिक्षा (Sant Ravidas education) –
बचपन में रविदास जी अपने गुरु पंडित शारदा नंद की पाठशाला में शिक्षा लेने जाया करते थे। कुछ समय बाद ऊंची जाति वाले ने उनका पाठशाला में आना बंद करवा दिया था। पंडित शारदानंद जी ने रविदास जी की प्रतिभा को जान लिया था, वह समाज की उच्च नीच बातों को नहीं मानते थे, उनका मानना था कि रविदास भगवान द्वारा भेजा हुआ एक बच्चा है। जिसके बाद पंडित शारदानंद जी ने रविदास जी को अपनी पर्सनल पाठशाला में शिक्षा देना शुरू कर दिया। वे एक बहुत प्रतिभाशाली और होनहार छात्र थे, उनके गुरु जितना उन्हें पढ़ाते थे, उससे ज्यादा वे अपनी समझ से शिक्षा ग्रहण कर लेते थे। पंडित शारदानंद जी रविदास जी से बहुत प्रभावित रहते थे, उनके आचरण और प्रतिभा को देखते सोचा करते थे, कि रविदास एक अच्छा अध्यात्मिक गुरु और महान समाज सुधारक बनेगा।
रविदास जी के साथ पाठशाला में पंडित शारदानंद जी का बेटा भी पढ़ता था, वे दोनों अच्छे मित्र थे। एक बार वे दोनों छुपन छुपाई का खेल रहे थे, 1-2 बार खेलने के बाद रात हो गई जिससे उन लोगों ने अगले दिन खेलने की बात कही दूसरे दिन सुबह रविदास जी खेलने पहुंचते हैं, लेकिन वह मित्र नहीं आता है। तब वो उसके घर जाते हैं, वहां जाकर पता चलता है कि रात को उसके मित्र की मृत्यु हो गई है। ये सुन रविदास सुन्न पड़ जाते हैं, तब उनके गुरु शारदानंद जी उन्हें मृत मित्र के पास ले जाते हैं रविदास जी को बचपन से ही अलौकिक शक्तियां मिली हुई थी, वे अपने मित्र से कहते हैं कि यह सोने का समय नहीं है, उठो और मेरे साथ खेलो। यह सुनते ही उनका मृत्यु दोस्त खड़ा हो जाता है। यह देख वहां मौजूद हर कोई अचंभित हो जाते हैं।
संत रविदास का आगे का जीवन (Sant Ravidas life history) –
रविदास जी जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं, भगवान राम के उसके प्रति उनकी भक्ति बढ़ती जाती है। वह हमेशा राम, रघुनाथ, राजाराम, चंद्र, कृष्ण, हरी, गोविंद आदि शब्द उपयोग करते थे, जिससे उनकी धार्मिक होने का प्रमाण मिलता था।
रविदास जी मीरा बाई के धार्मिक गुरु हुआ करते थे। मीराबाई राजस्थान के राजा की बेटी और चित्तौड़ की रानी थी। वे रविदास जी की शिक्षा से बहुत अधिक प्रभावित थी और वे उनकी एक बड़ी अनुयायी बन गई थी। मीराबाई ने अपने गुरु के सम्मान में कुछ पंक्तियां भी लिखी थी, जैसे – गुरु मिलाया रविदास जी..' मीरा बाई अपने मां-बाप की इकलौती संतान थी बचपन में इनकी माता के देहांत के बाद इनके दादा दुदा जी ने इनको संभाला था। दुदा रविदास जी के बड़े अनुयाई थे, मीराबाई अपने दादाजी के साथ हमेशा रविदास जी से मिलती रहती थी। जहां भी उनकी शिक्षा से बहुत प्रभावित हुई। शादी के बाद मीराबाई ने अपने परिवार की रजामंदी से रवीदास जी को अपना गुरु बना लिया था।
मीराबाई अपनी रचनाओं में लिखती है, उन्हें कई बार मृत्यु से उनके गुरु रविदास जी ने बचाया था।
रविदास जी सामाजिक काम (sant ravidas his teachings) –
लोगों का कहना है, भगवान् ने धर्म की रक्षा के लिए रविदास जी को धरती में भेजा था क्योंकि इस समय आप बहुत बढ़ गया था, लोग धर्म के नाम पर जाते, रंगभेद करते थे। रविदास जी ने बहादुरी से सभी भेदभाव का सामना किया और विश्वास एवं जाति की सच्ची परिभाषा लोगों को समझाई। वे लोगों को समझाते थे कि इंसान जाति, धर्म या भगवान् पर विश्वास के द्वारा नहीं जाना जाता है, बल्कि वो अपने कर्मों के द्वारा पहचाना जाता है। रविदास जी ने समाज में फैले छुआछूत के प्रचलन को भी खत्म करने के बहुत प्रयास किये। उस समय नीची जाति वालों को बहुत नकारा जाता था। उनका मंदिर में पूजा करना स्कूल में पढ़ाई करना गांव में दिन के समय निकलना पूरी तरह वर्जित था, यहां तक कि उन्हें गांव में पक्के मकान की जगह कच्चे झोपड़े में ही रहने को मजबूर किया जाता था, समाज की यह दुर्दशा देख रविदास जी ने समाज से छुआछूत भेदभाव को दूर करने की ठानी और समाज के लोगों को सही संदेश देना शुरू किया।
रविदास जी लोगों को संदेश देते थे कि 'भगवान् ने इंसान को बनाया है, न की इंसान ने भगवान् को इसका मतलब है, हर इंसान भगवान् द्वारा बनाया गया है और सबको धरती में समान अधिकार है। संत गुरु रविदास जी सार्वभौमिक भाईचारे और सहिष्णुता के बारे में लोगों को विभिन्न शिक्षायें दिया करते थे।
रविदास जी द्वारा लिखे गए पद, धार्मिक गाने एवं अन्य रचनाओं सिख शास्त्र 'गुरु गोविंद ग्रंथ साहिब' में शामिल किया गया है। पांचवें में सिख गुरु 'अर्जुन देव' ने इसे ग्रंथ में शामिल किया था। गुरु रविदास जी की शिक्षाओं के अनुयायियों को रविदास्सीया' पंथ' कहते हैं।
रविदास जी का स्वभाव –
रविदास जी को उनकी जाति वाले भी आगे बढ़ने से रोकते थे शूद्र लोग रविदास जी को ब्राह्मण की तरह तिलक लगाने, कपड़े एवं जनेऊ पहनने से रोकते थे। गुरु रविदास जी इन सभी बात का खंडन करते थे, और कहते थे सभी इंसान को धरती पर समान अधिकार है, वह अपनी मर्जी जो चाहे कर सकता है। उन्होंने हर वो चीज जो नीची जाति के लिए माना थी, करना शुरू कर दिया जैसे जनेऊ धोती पहनना तिलक लगाना आदि ब्राह्मण लोग उनकी इस गतिविधियों के सख्त खिलाफ थे। उन लोगों ने वहां के राजा से रविदास जी के खिलाफ शिकायत कर दी थी। रविदास जी सभी ब्राह्मण लोगों को बड़े प्यार और आराम से इसका जवाब देते थे। उन्होंने राजा के सामने कहा कि शुद्ध के पास भी लाल खून है दिल है उन्हें बाकियों की तरह समान अधिकार है।
रविदास जी ने भरी सभा में सबके सामने अपनी छाती को चीर दिया और चार युग सतयुग, त्रेता, द्वापर, और कलयुग की तरह चार युग के लिए क्रमशः सोना, चांदी तांबा, और कपास के जनेऊ बना दिया। राजा सहित वहां मौजूद सभी लोग बहुत शर्मसार और चकित हुए और उनके पैर छूकर गुरु जी को सम्मानित किया। राजा को अपनी बचकानी हरकत पर बहुत पछतावा हुआ उन्होंने गुरु से माफी मांगी। संत रविदास जी ने सभी को माफ कर दिया और कहा जनेऊ पहनने से किसी को भगवान् नहीं मिल जाते हैं। उन्होंने कहा कि केवल आप सभी लोगों को वास्तविकता और सच्चाई को देखने के लिए इस गतिविधि में शामिल किया गया है। उन्होंने जनेऊ उतारकर राजा को दे दिया, और इसके बाद उन्होंने कभी भी ना जनेऊ पहना तिलक लगाया।
रविदास जी के पिता की मौत के बाद उन्होंने अपने पड़ोसियों से मदद मांगी। ताकि वे गंगा के तट पर अपने पिता का अंतिम संस्कार कर सके ब्राह्मण इसके खिलाफ थे, क्योंकि वह गंगा जी में स्नान किया करते थे, और शूद्र का अंतिम संस्कार उसमें होने से वह प्रदूषित हो जाती। उस समय गुरुजी बहुत दुखी और असहाय महसूस कर रहे थे, लेकिन इस घड़ी में भी उन्होंने अपना संयम नहीं खोया और भगवान से अपने पिता की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने लगे। फिर वहां एक बहुत बड़ा तूफान आया, नदी का पानी विपरीत दिशा में बहने लगता है। फिर अचानक पानी की एक बड़ी लहर मृत शरीर के पास आई और अपने में सारे अवशेषों को अवशोषित कर लिया कहते हैं तभी से गंगा नदी विपरीत दिशा में बह रही है।
रविदास जी की मृत्यु (Sant Ravidas Death) –
गुरु रविदास जी की सच्चाई, मानवता, भगवान् के प्रति प्रेम, सद्भावना देख, दिन पे दिन उनके अनुयाई बढ़ते जा रहे थे। दूसरी तरफ कुछ ब्राह्मण उनको मारने की योजना बना रहे थे। रविदास जी के कुछ विरोधियों ने एक सभा का आयोजन किया, उन्होंने गांव से दूर आयोजित की और उसमें गुरु जी को आमंत्रित किया। गुरुजी उन लोगों की इस चाल को पहले ही समझ जाते हैं। गुरु जी वहां जाकर सभा का शुभारंभ करते हैं। गलती से गुरुजी की जगह उन लोगों का साथी ही भल्ला नाथ मारा जाता है। गुरु जी थोड़ी देर बाद जब अपने कक्ष में शंख बजाते हैं। तो सब अचंभित हो जाते हैं। अपने साथी को मरा देख वे बहुत दुखी होते हैं, और दुखी मन से गुरु जी के पास जाते हैं।
रविदास जी के अनुयाईयों का मानना है कि रविदास जी 120 या 126 वर्ष बाद अपने आप शरीर को त्याग देते हैं। लोगों के अनुसार 1540AD में वाराणसी में उन्होंने अंतिम सांस ली थी।
रविदास जयंती 2022 में कब है? (Guru Ravidas jayanti 2022 Date) –
रविदास जयंती को माघ महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। रविदास्सिया समुदाय के लिए इस दिन वार्षिक उत्सव होता है। वाराणसी में इनकी जन्म स्थान श्री गुरु रविदास जन्म अस्थान' में विशेष कार्यक्रम आयोजित होते हैं जहां लाखों की संख्या में रविदास जी के भक्त वहां पहुंचते हैं।
इस साल रविदास जी की जयंती 16 फरवरी 2022, में मनाई जाएगी, जो उनका 663 वा जन्मदिवस होगा। सिख समुदाय द्वारा जगह-जगह नगर कीर्तन का आयोजन किया जाता है। स्पेशल आरती की जाती है। मंदिर गुरु द्वारा में रविदास जी के गाने दोहे बजाये जाते हैं। कुछ अनुयाई इस दिन पवित्र नदी में स्नान करते हैं, और फिर रविदास की फोटो या प्रतिमा की पूजा करते हैं। रविदास जयंती मनाने का उद्देश्य यही है, कि गुरु रविदास जी की शिक्षा को याद किया जा सके, उनके द्वारा दी गई भाईचारे, शांति किसी को सीख को दुनिया वाले एक बार फिर अपना सकें।
रविदास स्मारक (Sant Ravidas smarak park)
वाराणसी में रविदास जी की याद में बहुत से स्मारक बनाये गए है। रविदास पार्क, रविदास घाट रविदास नगर, रविदास मेमोरियल गेट आदि।
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