रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध(Rani Lakshmi Bai Essay In Hindi)

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रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध(Rani Lakshmi Bai Essay In Hindi)

रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध(Rani Lakshmi Bai Essay In Hindi)


हेलो दोस्तों तो आज इस आर्टिकल में आपको रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय या निबंध सभी जानकारी आप लोगों को इस आर्टिकल के माध्यम से दी जाएगी तो आप लोगों को आर्टिकल पूरा पढ़ना है और अपने दोस्तों में भी ज्यादा से ज्यादा शेयर करें अगर अच्छा लगे आर्टिकल तो आप लोग कमेंट जरूर करें।


रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध(Rani Lakshmi Bai Essay In Hindi)


रानी लक्ष्मीबाई ऐसी वीरांगना थी जिन्होंने अपने साहस से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपनी जान तक निछावर कर दी थी। और आज भी उनकी वीरगाथा नौजवानों के दिलों में देशभक्ति की भावना पैदा करती है। और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। हम यहां पर रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध शेयर कर रहे हैं इस निबंध पर रानी लक्ष्मीबाई के संदर्भ सहित सभी माहिती को आपके साथ शेयर किया जाएगा। ये निबंध सभी कक्षाओं के लिए विद्यार्थियों के लिए मददगार ।



👉केशव प्रसाद मौर्य का जीवन परिचय


प्रस्तावना


झांसी की रानी लक्ष्मीबाई वह योद्धा थी जिसने अपने देश के आजादी के लिए अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाई और उनसे लड़ाई लड़ी। जिसमें उन्होंने अपने देश के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। जो आगे चलकर अपने देश के हर एक नागरिक के अंदर आजादी की चिंगारी बन गई और अपने देश के हर एक स्त्री के लिए प्रेरणा बन गई । जिनका नाम इतिहास के पन्नों में लिख गया।

जिसकी वजह से रानी लक्ष्मीबाई को लोग आज भी याद करते हैं। जिन्होंने पहली बार अंग्रेजो के खिलाफ अपने देश में हो रही गुलामी को खत्म करने के लिए स्वतंत्र संग्राम किया था।


सिहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,

   बूढ़े भारत में आई फिर से नई जवानी थी,

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।


चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,

    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वोह झांसी वाली रानी थी।।


कानपुर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,

लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,

नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी,

बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी,।

वीर शिवाजी की गाथाएं उसकी याद जवानी थी,

   बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।


लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,

नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,

सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।

महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,

     बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।


   हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झांसी में,

. ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झांसी में,

राजमहल में बजी बधाई खुशियां छाई झांसी में,

चित्रा ने अर्जुन को पाया शिव से मिली भवानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।


उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,

किंतु काल गति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,

तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियां कब भाई,

रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

    निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।


अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,

  व्यापारी बन दया चाहता था जब वह भारत आया,

डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,

  राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।



रानी लक्ष्मी बाई का जन्म व शिक्षा


रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी के बरेली नगर में हुआ था। इनका बचपन का नाम मणिकर्णिका तांबे था। इन के नाम पर एक फिल्म की भी रिलीज हुई थी हालांकि मणिकर्णिका को मनु बाई के नाम से पुकारा जाता था उनके पिता एक महाराष्ट्र के ब्राह्मण थे परंतु माता भागीरथी बाइई संस्कारी और धर्म से विश्वास रखने वाली है घरेलू महिला थी। रानी लक्ष्मीबाई की शिक्षा मंकी पिक्चर द्वारा ही संपूर्ण की गई थी क्योंकि उस समय बेटियों की शिक्षा पर ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था।

इसी के साथ हुआ एक वीर योद्धा थी उन्हें तरह-तरह की निशानेबाजी, घेराबंदी, युद्ध की शिक्षा, सैनी शिक्षा, घुड़सवारी, तिरंदाजी, आत्मरक्षा इत्यादि की भी शिक्षा दी गई थी वह अस्त्र-शस्त्र में बहुत ही निपुण थी और बाद में एक साहसी योद्धा की तरह उन्होंने खुद को सबके सामने प्रस्तुत किया था


रानी लक्ष्मीबाई का विवाह

रानी लक्ष्मीबाई का विवाह 14 साल की छोटी सी उम्र में हो गया था। उनका विवाह झांसी के महाराज गंगाधर राव नेवलकर से हुआ था। विवाह के बाद उनका नाम मनु भाई से बदलकर लक्ष्मीबाई रखा गया था।

विवाह के कुछ समय पश्चात उनको पुत्र की प्राप्ति हुई परंतु दुर्भाग्यवश उनके पुत्र की मृत्यु 4 माह में हो गई थी. उसके पश्चात महाराजा गंगाधर को भी विकराल बीमारी हो गई थी जिसके चलते 21 नवंबर 18 सो 53 में दुनिया छोड़कर चले गए थे वह रानी लक्ष्मी बाई के जीवन का सबसे कठिन समय था।


 रानी लक्ष्मीबाई का संघर्ष

रानी लक्ष्मी बाई के उत्तराधिकारी को लेकर ब्रिटिश शासकों ने बहुत विरोध किया था, क्योंकि राजा की मौत के बाद खुद के पुत्र को ही अधिकारी बनाया जा सकता है। नहीं तो उसका राज्य ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में मिला लिया जाता था। इसके लिए रानी लक्ष्मीबाई को काफी संघर्ष करना पड़ा था।


झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का कथन में झांसी नहीं दूंगी

7 मार्च 1857 को रानी लक्ष्मीबाई का राज्य झांसी को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी थी। लेकिन बाद में रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश शासकों के आदेश का उल्लंघन करते हुए कहा कि मैं झांसी नहीं दूंगी।


झांसी की रानी ने अपना राज्य बचाने के लिए विद्रोह करने के मकसद से एक सेना तैयार कि उनकी सेना में महिलाएं भी शामिल थी और लगभग 1400 सैनिक भी थे।


रानी लक्ष्मी बाई के साथ तात्या टोपे, नवाब वाजिद अली, शाह की बेगम हजरत, मुहल सम्राट, बहादुरशाह, नाना साहब के वकील अजीमुल्ला शहागढ़ के राजा, अंतिम मुगल सम्राट की बेगम जीनत महल, समेत कई लोग शामिल थे।


1857 के स्वतंत्रता संग्राम में लक्ष्मीबाई की भूमिका

23 मार्च 1858 को अंग्रेजों ने फिर से झांसी पर कब्जा करने के उद्देश्य से हमला किया। जिसके बाद लक्ष्मीबाई की सेना ने काफी बहादुरी से अंग्रेजों का सामना किया। यह लड़ाई तकरीबन 7 दिन चली इसके पश्चात भी रानी लक्ष्मीबाई ने हार नहीं मानी और अपने दत्तक पुत्र आनंद राव उर्फ दामोदर राव को अपनी पीठ पर कसकर पूरी बहादुरी के साथ अंग्रेजों का डटकर सामना किया। इस लड़ाई में लक्ष्मीबाई का घोड़ा भी वीरगति को प्राप्त हो गया जिसके बाद रानी लक्ष्मीबाई ने खुद को अंग्रेजों से किसी तरह से बचाने की कोशिश की परंतु इस बार अंग्रेजों ने झांसी पर कब्जा कर लिया था।


तात्या टोपे का साथ झांसी की रानी लक्ष्मीबाई

17 जून 1818 की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने जीवन की आखिरी लड़ाई लड़ी इस लड़ाई में उन्होंने ग्वालियर के पूर्व क्षेत्र का मोर्चा संभाला इसके वजह से लड़ाई में रानी लक्ष्मीबाई बुरी तरह से घायल हो गई और वीरगति को प्राप्त हो गई।


रानी लक्ष्मीबाई की कुछ बातें जो हमें प्रेरणा देती हैं

रानी लक्ष्मीबाई ने बताया कि महिला किसी से कम नहीं होती है। अगर वह प्रयास करें तो अपने हक के लिए लड़ सकती हैं। जब अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में उनका किसी ने साथ नहीं दिया, तब उन्होंने नई तरीके से अपनी सेना का गठन किया है अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करने करके अपने प्राणों की आहुति देने वाली महारानी लक्ष्मीबाई का नाम सर्वोपरि माना जाता है। रानी लक्ष्मीबाई घुड़सवारी में निपुण थी, उन्होंने अपने ही महल में घुड़सवारी के लिए जगह बना लिए रखी थी। रानी लक्ष्मीबाई का सबसे बड़ा गुण या था कि वह किसी भी नारी को अबला नहीं मानती थी, बल्कि सबला मानती थी। इसलिए उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ नारियों की एक सेना का गठन किया था।


रानी लक्ष्मीबाई ने तमाम संघर्षों का सामना करते हुए अपनी जिंदगी की आखरी सांस तक अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपने साहस और पराक्रम का बहुत ही सुंदर दृश्य इतिहास के पन्नों पर लिख दिया पुलिस स्टाफ रानी लक्ष्मी बाई जैसी साहसी वीरांगनाओं के जन्म से भारत भूमि धन्य हो गई और हमें रानी लक्ष्मीबाई पर गर्व है।















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