महात्मा गांधी पर संस्कृत निबंध | Sanskrit essay on Mahatma Gandhi
महात्मा गांधी पर निबंध संस्कृत में | Mahatma Gandhi Per nibandh Sanskrit Mein
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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर संक्षिप्त निबंध
अस्माकं देश: वैदेशिकानां शासकानाम् आधिपत्ये स्थितः चिरकालं परतन्त्रम् अतिष्ठत् । राष्ट्रभक्ताः नेतारः देशस्य स्वतंत्रतायै प्रयत्नम् अकुर्वन देशं च स्वतंत्रम् अकारयन् । तेषु महात्मा गान्धी मूर्धन्यः आसीत् ।
अस्य जन्म गुर्जर प्रदेशे पोरबन्दर नामके स्थाने अभवत् । अयं विदेशे विधि शिक्षां प्राप्य स्वदेशे प्राड्विवाक-कर्म कर्तुम् आरभत अयं शीघ्रमेव अन्वभवत् यत् वैदेशिकानां शासने स्थिताः भारतीयाः निरन्तरम् अपमानिताः उपेक्षिताश्च भवन्ति । एतेन भृशं पीडितः अयं देशस्य स्वतंत्रतायै संकल्पम् अकरोत् । देशस्य जनान् संघटितान् कृत्वा अहिंसात्मकं स्वतंत्रतान्दोलनम् अचालयत् । एतदर्थम् अयं बहुभिः सहयोगिभिः सह बहुवारं कारागारं
प्रेषितः बहुशः पीडितश्च परं सत्यसंकल्पोऽयं महात्मा अगस्त मासस्य पञ्चदशे दिनाङ्के 1947 वर्षे देशं स्वतंत्रम् अकारयत् । अतः एवं अयं राष्ट्रपिता इति उच्यते । अहिंसा सत्यापरिग्रहाः अस्य जीवन सिद्धान्ता आसन् येषां पालनम् अयं सदा अकरोत् । अद्य अयं महात्मा अस्माकं मध्ये नास्ति परं देशवासिभ्यः सदा प्रेरणां ददाति ।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर विस्तृत निबंध
महात्मा गान्धिः भारतस्य राष्ट्रपिता कथ्यते । विश्ववन्द्यस्य प्रातःस्मरणीयस्यास्य महात्मनो जन्म काठियावाड़प्रदेश पोरबन्दरनामके स्थले एकोनसप्तत्यधिकाष्टादशशततमे खिस्तीयवर्षे अभवत् । अस्य पूर्ण नाम मोहनदासकर्मचन्दगान्धिः इत्यस्ति ।
आबाल्यादेव अयं सत्यवादी आसीत् । अस्य विवाहः कस्तूरबानाम्न्या धार्मिकमहिलया बभूव । कुशाग्रबुद्धिरयं विधिशास्त्रस्योच्चशिक्षा प्राप्तुं विदेशं गतः, परन्तु तत्र तेन संयमपूर्वक मांसमदिरापरिहारः कृतः । एवम् आत्मशुद्धिपूर्वक प्रावीण्यं लब्ध्वा स्वदेशं प्रतिनिवृत्य पुनः वृत्त्यर्थम् अफ्रीकां गतः । तत्रत्यानां भारतीयानाम् आंग्लशासकैः कृतां दुर्दशामवलोक्य तस्य हृदयं द्रवीभूतं, तदर्थं च तेन न्याययुद्धं प्रारब्धं येन तत्रत्यानां भारतीयानां दशा किञ्चित् परिष्कृता ।
तदनु भारतं प्रतिनिवृत्य. आंग्लशासने भारतीयजनानां कष्टानि दृष्ट्वा तेन सर्वं जीवनं भारतीयस्वातन्त्र्ययुद्धाय आहुतम् । तेन हरिजनोद्धारेण अन्यैश्चोपायैः भारतीयजनेषु ऐक्यभावः सञ्चारितः यतः संघट्टनेन ऐक्येन च विना आंग्लशासनात् मुक्तिः असंभवा आसीत् । तेन सम्यक् ज्ञातं यत् महत्या आंग्लशासनशक्त्या अहिंसयैव योद्धुं शक्यते न हिसया। अतएव तेन अहिंसकैः असहयोगान्दोलनः आंग्लीया भारतशासनं त्यक्तुं विवशीकृताः । सः स्वयं सत्याचरणम् अकरोत् ।तेन भारतीयाः स्वदेशिवस्तूनां प्रयोगाय विदेशिवस्तूनां परित्यागाय च प्रतिबोधिताः । भारतीयतां भारतीयगौरवं च जनमानसे प्रतिबोधयितुं तेन संस्कृतज्ञानस्य महत्त्वं ख्यापित हिन्दीभाषायाः प्रयोगश्च प्रसारितः । सर्वधर्मसमभावः तस्यान्दोलनस्य मूलमासीत् । स्वातन्त्र्ययुद्धे सः अनेकवारं कारागारे निगृहीतः । सर्वं भारतीयं तस्य प्रियम् आसीत्, दरिद्राणां दुःखिनां विपन्नानां च कष्टेन तस्य हृदयं द्रवीभूतम्, तेषामुत्थानाय तेन महान् प्रयत्नो विहितः । ग्रामोन्नतिरेव भारतस्य उन्नतिरिति तेन सत्यं प्रतिपादितम् ।।
अष्टचत्वारिंशदधिकैकोनविंशतिशततमे खिस्तीयवर्षे जनवरीमासस्य त्रिशे दिवसे कस्यापि अविमृश्यकारिणः नाथूरामगोड्सेनाम्नो जनस्य गोलीप्रहारेण दिवंगतोऽयं महात्मा।
तस्य त्यागेन नीत्या च भारत स्वतन्त्रमभूत् । अद्यापि वयं तस्य नीतिमंनुसरन्त एव यदि भारतं निर्मातुं प्रयतामहे तदैव साफल्यं प्राप्स्यामः ।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर संक्षिप्त निबंध का हिंदी अर्थ
हमारा देश विदेशी शासकों के आधिपत्य में लंबे समय तक स्वतंत्र रहा। देशभक्त नेताओं ने देश की आजादी के लिए प्रयास किए और देश को आजाद कराया। उनमें महात्मा गांधी सबसे प्रमुख थे।
उनका जन्म गुर्जर क्षेत्र में पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था। उन्होंने विदेश में कानून का अध्ययन किया और अपने देश में कानून का अभ्यास करना शुरू किया। उन्होंने जल्द ही पाया कि विदेशी शासन के तहत भारतीयों को लगातार अपमानित और उपेक्षित किया जाता था। इससे बहुत व्यथित होकर उन्होंने देश को मुक्त करने का संकल्प लिया। उन्होंने देश के लोगों को संगठित किया और एक अहिंसक स्वतंत्रता आंदोलन चलाया। इसके लिए उन्हें कई साथियों के साथ कई बार जेल भी जाना पड़ा
कई बार प्रताड़ित और सताए जाने के बावजूद इस महापुरुष ने सच्चे संकल्प के साथ अगस्त के पन्द्रहवें दिन देश को आजाद कराया इसलिए उन्हें राष्ट्रपिता कहा जाता है। अहिंसा और सच्चाई उनके जीवन सिद्धांत थे जिनका उन्होंने हमेशा पालन किया। आज यह महापुरुष हमारे बीच नहीं रहे लेकिन देश के लोगों को हमेशा प्रेरणा देते हैं।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर विस्तृत निबंध का हिंदी अर्थ
महात्मा गांधी को भारत राष्ट्र का पिता माना जाता है। आज प्रातः काल विश्व विख्यात महात्मा का जन्म काठियावाड़ राज्य के पोरबंदर नामक स्थान पर सन् 1718 ई. में हुआ था। उनका पूरा नाम मोहनदास कर्मचंद गांधी है।
वे बचपन से ही सच्चे इंसान थे। उन्होंने कस्तूरबा नाम की एक धार्मिक महिला से शादी की। यह तेज-तर्रार व्यक्ति कानून की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश गया, लेकिन वहां उसने मांस और शराब से खुद को रोक लिया। इस प्रकार, आत्म-शुद्धि के माध्यम से प्रवीणता प्राप्त करने के बाद, वह अपनी मातृभूमि लौट आया और कैरियर के लिए अफ्रीका वापस चला गया। ब्रिटिश शासकों द्वारा वहां भारतीयों की दुर्दशा देखकर उनका दिल पिघल गया और इसके लिए उन्होंने एक न्यायपूर्ण युद्ध शुरू किया जिससे वहां के भारतीयों की स्थिति में कुछ हद तक सुधार हुआ।
फिर भारत लौट रहे हैं। ब्रिटिश शासन के तहत भारतीय लोगों की पीड़ा को देखते हुए, उन्होंने अपना पूरा जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने हरिजनों और अन्य साधनों का उत्थान करके भारतीय लोगों में एकता की भावना पैदा की क्योंकि एकता और एकजुटता के बिना ब्रिटिश शासन से मुक्ति असंभव थी। वह अच्छी तरह जानते थे कि ब्रिटिश शासन की महान शक्ति से केवल अहिंसा से ही लड़ा जा सकता है, हिंसा से नहीं। इसीलिए अहिंसक असहयोग आंदोलन ने अंग्रेजों को भारत के शासन को छोड़ने के लिए मजबूर किया। उन्होंने स्वयं सत्याचरण का अभ्यास किया उन्होंने भारतीयों को अपने स्वयं के सामान का उपयोग करने और विदेशी वस्तुओं को त्यागने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने संस्कृत के ज्ञान के महत्व और भारतीयता और भारतीय गौरव को जन-जन तक पहुंचाने के लिए हिंदी के उपयोग को बढ़ावा दिया। उस आंदोलन के मूल में सभी धर्मों की समानता थी। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वे कई बार जेल गए। वे सभी भारतीयों से प्रेम करते थे, उनका हृदय ग़रीबों के कष्टों, कष्टों और कष्टों से पिघल गया और उन्होंने उनके उत्थान के लिए बहुत प्रयास किए। उन्होंने इस सत्य को सिद्ध किया कि गांवों की उन्नति ही भारत की उन्नति है।
इस महापुरुष का निधन जनवरी के तीसवें दिन 1948 ई. में नाथूराम गोडसे नाम के एक व्यक्ति द्वारा किया गया था, जिसकी एक लापरवाह व्यक्ति ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
उनके बलिदान और नीति से भारत स्वतंत्र हुआ आज भी अगर हम उनकी नीति पर चलते रहेंगे और भारत के निर्माण की कोशिश करेंगे तो हमें सफलता ही मिलेगी।
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