जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय//Jai Shankar Prasad ka sankshipt jivan Parichay

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जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय//Jai Shankar Prasad ka sankshipt jivan Parichay

जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय//Jai Shankar Prasad ka sankshipt jivan Parichay

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, साहित्य में स्थान एवं भाषा शैली, साहित्य उपलब्धियां

जयशंकर प्रसाद


हेलो दोस्तों स्वागत है आज की नहीं पोस्ट में आज आपको बताने वाले हैं|


जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय//Jai Shankar Prasad ka sankshipt jivan Parichay
जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय//Jai Shankar Prasad ka sankshipt jivan Parichay

जीवन परिचय- छायावाद के प्रवर्तक एवं उन्नायक महाकवि जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के अत्यंत प्रतिष्ठित सुंघनी साहू के वैश्य परिवार में 1890 ई. में हुआ था।

माता पिता एवं बड़े भाई के देहावसान के कारण अल्पायु में ही प्रसाद जी को व्यवसाय एवं परिवार के समस्त उत्तरदायित्व को वहन करना पड़ा। घर पर ही अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला, उर्दू, फारसी, संस्कृत आदि भाषाओं का गहन अध्ययन किया। अपने पैतृक कार्य को करते हुए उन्होंने अपने भीतर काव्य-प्रेरणा को जीवित रखा। अत्यधिक विषम परिस्थितियों को जीवटता के साथ झेलते हुए यह युगस्रष्टा  साहित्यकार हिंदी के मंदिर में अपूर्व रचना सुमन अर्पित करता हुआ 14 नवंबर 1937 निष्प्राण हो गया।


साहित्यिक गतिविधियां

द्विवेदी युग से अपनी काव्य-रचना का प्रारंभ करने वाले महाकवि जयशंकरप्रसाद छायावादी काव्य के जन्मदाता एवं छायावादी युग के प्रवर्तक समझे जाते हैं। इनकी रचना कामायनी एक कालजयी कृति है, जिसमें छायावादी प्रवृत्तियों एवं विशेषताओं का समावेश हुआ है। अन्तर्मुखी कल्पना एवं सूक्ष्म अनुभूतियों को अभिव्यक्ति प्रसाद के काव्य की मुख्य विशेषता रही है।

प्रसाद छायावादी युग के सर्वश्रेष्ठ कवि रहे हैं। प्रेम और सौंदर्य इनके काव्य का प्रमुख विषय रहा है, किंतु इनका दृष्टिकोण इनमें से भी विशुद्ध मानवतावादी रही है। इन्होंने अपने काव्य में आध्यात्मिक आनंदवाद की प्रतिष्ठा की है। ये जीवन की चिरन्तन (अनिवार्य रूप से उत्पन्न होने वाली स्थाई) समस्याओं का मानवीय दृष्टिकोण पर आधारित समाधान ढूंढने के लिए प्रयत्नशील रहे हैं। इनका दृष्टिकोण था की इच्छा, ज्ञान एवं क्रिया का सामंजस्य ही उच्चस्तरीय मानवता का परिचायक है।

             प्रसाद आधुनिक हिंदी काव्य के सर्वश्रेष्ठ कवि थे। इन्होंने अपनी कविताओं में सूक्ष्म अनुभूतियों का रहस्यवादी चित्रण प्रारंभ किया और हिंदी काव्य-जगत में एक नवीन क्रांति उत्पन्न कर दी। इनकी इसी क्रांति ने एक नए युग का सूत्रपात किया, जिसे छायावादी युग के नाम से जाना जाता है। 

   जयशंकर प्रसाद के काव्य में प्रेम और सौंदर्य प्रमुख विषय रहा है, साथ ही इसका दृष्टिकोण मानवतावादी है। प्रसाद जी सर्वतोन्मुखी  प्रतिभासंपन्न व्यक्ति थे। प्रसाद जी ने कुल 67 रचनाएं प्रस्तुत की है।


कृतियां

इनकी प्रमुख काव्य कृतियों में चित्राधार, प्रेमपथिक, कानन-कुसुम, झरना, आंसू, लहर, कामयानी आदि शामिल है।


चार प्रबंधात्मक कविताएं- शेरसिंह का शस्त्र समर्पण, पेशोला की प्रतिध्वनि, प्रलय की छाया तथा अशोक की चिंता अत्यंत चर्चित रही।


नाटक - चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, जनमेजय का नागयज्ञ, राज्यश्री, अजातशत्रु, प्रायश्चित आदि।


उपन्यास - कंकाल, तितली एम इरावती ( पूर्ण रचना)


कहानी संग्रह- प्रतिध्वनि, छाया, आकाशदीप, आंधी आदि।

निबंध संग्रह- काव्य और कला


काव्यगत विशेषताएं- 

भाव पक्ष

  1. सौंदर्य एवं प्रेम के कवि - प्रसाद जी के काव्य में श्रृंगार रस के संयोग एवं विप्रलम्भ, दोनों पक्षों का सफल चित्रण हुआ है। इनके नारी सौंदर्य के चित्र स्थूलता से मुक्त आन्तरिक्त सौंदर्य को प्रतिबिंबित करते हैं-

       "हृदय की अनुकृति बाह्म उदार

                     एक लम्बी काया उन्मुक्त।"

  1. दार्शनिकता- उपनिषदों के दार्शनिक ज्ञान के साथ बौद्ध दर्शन का समन्वित रूप भी इसके साहित्य में मिलता है।

  2. रस योजना- इनका मन संयोग श्रृंगार के साथ-साथ विप्रलम्ब श्रंगार के चित्रण में भी खूब रमा है। इनके वियोग वर्णन में एक अवर्णनीय रिक्तता एवं अवसाद ने उमड़कर सारे परिवेश को आप्लावित कर लिया है। इसके काव्य में शांति एवं करुण रस का सुंदर चित्रण हुआ है तथा कहीं-कहीं वीर रस का भी वर्णन मिलता है।

  3. प्रकृति चित्रण- इन्होंने प्रकृति के विविध रूपों का अत्यधिक ह्रदयग्राही चित्रण किया है। इनके यहां प्रकृति के रम्य चित्रों के साथ-साथ प्रलय का भीषण चित्र भी मिलता है। इसके काव्यों में प्रकृति के उद्दीपनरूप आदि के चित्र प्रचुर मात्रा में हैं।

  4. मानव की अंत प्रकृति का चित्रण- इनके काव्य में मानव मनोविज्ञान का विशेष स्थान है। मानवीय मनोवृत्तियों को उन्नत रूप देने वाली उदास भावनाएं महत्वपूर्ण है। इसी से रहस्यवाद का परिचय मिलता है। ये अपनी रचनाओं में शक्ति-संचय की प्रेरणा देते हैं।

  5. नारी की महत्ता-  प्रसाद जी ने नारी को दया, माया, ममता, त्याग, बलिदान, सेवा, समर्पण आदि से युक्त बताकर उसे साकार श्रद्धा का रूप प्रदान किया है। उन्होंने "नारी ! रूप तुम केवल श्रद्धा हो" कहकर नारी को सम्मानित किया है ‌।


कला पक्ष

  1. भाषा प्रसाद जी की प्रारंभिक रचनाएं ब्रजभाषा में है, परंतु शीघ्र ही वे खड़ीबोली के क्षेत्र में आ गए। उनकी खड़ीबोली उत्तरोत्तर परिष्कृत, संस्कृतनिष्ठ एवं साहित्यिक सौंदर्य से युक्त होती गई। अद्वितीय शब्द चयन किया गया है, जिसमें अर्थ की गंभीरता परिलक्षित होती है। इन्होंने भावानुकूल चित्रोपम शब्दों का प्रयोग किया‌। लाक्षणिकता एवं प्रतीकात्मक से युक्त प्रसाद जी की भाषा में अद्भुत नाद- सौंदर्य एवं धनात्मकता के गुण विद्यमान है। इन्होंने चित्रात्मक भाषा में संगीत में चित्र अंकित किए हैं।

  2. शैली प्रबंध काव्य कामायानी एवं मुक्तक (लहर,झरना आदि) दोनों रूपों में प्रसाद जी का समान अधिकार था इनकी रचना कामायानी एक कालजयी कृति है, जिसमें छायावादी प्रवृत्तियों एवं विशेषताओं का समावेश हुआ है।

  3. अलंकार एवं  छंद - सदृश्यमूलक अर्थालंकारों में इनकी व्रति अधिक रमी है। इन्होंने नवीन उपमानों का प्रयोग करके उन्हें नई भंगिमा प्रदान की। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि के साथ मानवीकरण, ध्वन्यर्थ-व्यंजना, विशेषता-विपर्यय जैसे आधुनिक अलंकारों का भी सुंदर उपयोग किया है।

हिंदी साहित्य में स्थान

प्रसाद जी भाव और शिल्प दोनों दृष्टियों से हिंदी के युग प्रवर्तक कवि के रूप में जाने जाते हैं। भाव और कला, अनुभूति और अभिव्यक्ति, वस्तु और शिल्प आदि सभी क्षेत्रों में प्रसाद जी ने युगांतरकारी परिवर्तन किए हैं। डॉ. राजेश्वर प्रसाद चतुर्वेदी ने हिंदी साहित्य में उनके योगदान का उल्लेख करते हुए लिखा है-  वे छायावादी काव्य के जनक और पोषक होने के साथ ही आधुनिक काव्यधारा का गौरवमई प्रतिनिधित्व करते हैं।




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