राम प्रसाद बिस्मिल पर निबंध / Essay on Ram Prasad Bismil in Hindi

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राम प्रसाद बिस्मिल पर निबंध / Essay on Ram Prasad Bismil in Hindi

राम प्रसाद बिस्मिल पर निबंध / Essay on Ram Prasad Bismil in Hindi

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                      राम प्रसाद बिस्मिल पर निबंध

Table of contents

1.जन्म

2.दादाजी का प्रभावी व्यक्तित्व

3.पिता जी का प्रभावी व्यक्तित्व एवं आर्यसमाज का 4.जीवन पर गहरा प्रभाव

5.गुरु स्वामी सोम देव से उनका गहरा नाता

6.क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत 

7.बाल गंगाधर तिलक से मुलाक़ात और सक्रिय 8.राजनैतिक जीवन की शुरुआत

9.मैनपुरी षड्यंत्र

10.अज्ञातवास के बाद का समय

11.हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन

12.काकोरी षड्यंत्र

13.काकोरी केस, फैसला एवं फांसी 

14.बिस्मिल जी की रचनाएँ 

15.उपसंहार


नमस्कार मित्रों स्वागत है आपका हमारे एक और नये आर्टिकल पर। आज की पोस्ट में हम आपको महान क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल पर निबंध हिंदी में (Essay on Ram Prasad Bismil in Hindi) के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे एवं इस निबंध से संबंधित सभी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर पर भी परिचर्चा करेंगे। ये सभी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर एनसीईआरटी पैटर्न पर आधारित हैं।  तो इस पोस्ट को आप लोग पूरा पढ़िए। अगर पोस्ट अच्छी लगे तो अपने दोस्तों में भी शेयर करिए।


राम प्रसाद बिस्मिल पर हिंदी में निबंध


जन्म 

बिस्मिल जी का जन्म परतंत्र देश के शाहजहांपुर जो कि उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में आता हैं, में सन 1897 को हुआ। इनका जन्म दिवस 11 जून को मनाया जाता हैं। यह एक प्रतिष्ठित परिवार से थे। उनके परिवार से ही उन्हें देशभक्ति का भाव मिला था।


दादाजी का प्रभावी व्यक्तित्व :

इनके दादाजी का नाम नारायण लाल था वे देशभक्ति विचार धारा से प्रेरित थे, दादा जी के जीवन से बिस्मिल जी के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा और उन्होने भी देशभक्ति का मार्ग चुना।


पिता जी का प्रभावी व्यक्तित्व एवं आर्यसमाज का जीवन पर गहरा प्रभाव :

बिस्मिल जी के पिता, मुरलीधर ने पढ़ाई लिखाई के महत्व को बहुत समझा था क्यूंकि शुरुवाती दिनों में परिवार की आर्थिक हालत सहज नहीं थी। विवाह के बाद इन्होने सरकारी नौकरी की। पिता जी शिक्षा को लेकर बहुत गंभीर थे, इसलिये बिस्मिल जी अक्सर उनकी डाट खाया करते थे। पिता ने ही बिस्मिल को हिन्दी सिखाई एवं मौलवी ने उर्दू का ज्ञान दिया था। बिस्मिल जी का मन शुरुवात में बहुत विचलित रहता था, पढ़ाई लिखाई में उनका ध्यान नहीं था। भाषा का ज्ञान अच्छा होने के कारण उन्हें उपन्यास पढ़ने में रुचि थी.


बिस्मिल अपनी कम आयु से ही आर्य समाज से प्रेरित हो उठे और आर्यसमाज का अनुकरण करने लगे। इन्हे आर्य समाज के प्रति प्रेरणा एक पुस्तक "सत्यार्थ प्रकाश" पढ़कर मिली, जिसे स्वामी दयानन्द सरस्वती ने लिखा था। उस समय वे रोजाना आर्यसमाज मंदिर में जाया करते थे, जिसका उनके जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ा और उन्होने ब्रह्मचर्य को अपना लिया, लेकिन पिता मुरलीधर को यह पसंद नहीं था क्यूंकि वे सनातन धर्म को मानते थे। पुत्र के ऐसे भाव को देख पिता ने उन्हे घर से बाहर जाने कह दिया। बिस्मिल जी भी हठी थे उन्होने अपना घर त्याग दिया।


गुरु स्वामी सोम देव से उनका गहरा नाता :

आर्यसमाज से जुड़ने के कारण उनकी मित्रता स्वामी सोम देव से हुई। सोम देव जी शाहजहाँपुर के आर्यसमाज मंदिर में ही रहते थे। बिस्मिल जी ने इन्हें अपना गुरु माना और इनके मार्गदर्शन में ही बिस्मिल के मन में देश के लिये कर गुजरने का भाव जागा। स्वामी सोम देव ने इन्हें सही दिशा एवं मार्गदर्शन दिया।


क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत 

उस दौरान लाहोर षड्यंत्र केस पर सुनवाई हुई, जिसमे परमानंद को फाँसी की सजा दी गई, जिसका बिस्मिल के जीवन पर गहरा आघात हुआ और उन्होने एक कविता 'मेरा जन्म' लिखी और ऐलान किया कि वे इस बेरहम अँग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ेंगे। उन्होने अपनी इस मन व्यथा को सोम देव जी से कहा और आगे का मार्गदर्शन देने कहा। सोम देव जी ने उन्हे राजनीति का ज्ञान दिया और इस तरह बिस्मिल जी ने क्रांतिकारी जीवन में कदम रखा।


बाल गंगाधर तिलक से मुलाक़ात और सक्रिय राजनैतिक जीवन की शुरुआत :

1916 में बिस्मिल की मुलाकात बाल गंगाधर तिलक से हुई। वे उस समय लखनऊ काँग्रेस बैठक के लिये वहाँ आए हुये थे। उस समय बिस्मिल जी के तन- मन में केवल एक ही लक्ष्य था, देश की सेवा। उन्हे इस मुलाक़ात से यह अवसर मिला और उन्हें भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के गुप्त विभाग का सदस्य बना लिया गया, लेकिन इस विभाग के पास धन की बहुत कमी थी, इसलिये बिस्मिल जी ने पुस्तक का प्रकाशन किया और उसकी बिक्री से धन जुटाया। बिस्मिल ने उस वक़्त "अमेरिका को आजादी कैसे मिली" का हिन्दी रूपान्तरण लिखा था, जिस पर कुछ समय बाद अँग्रेजी हुकूमत ने प्रतिबंध लगा दिया था। यहाँ से सक्रिय तौर पर बिस्मिल जी का जीवन क्रांतिकारी के रूप से शुरू हो चुका था


मैनपुरी षड्यंत्र :

इतिहास में बिस्मिल जी का नाम मैनपुरी षड्यंत्र से काफी जुड़ा देखा गया हैं। एक क्रांतिकारी संगठन का गठन किया गया जिसे "मातृवेदी" का नाम दिया गया। बिस्मिल जी इस संगठन मुख्य सदस्य थे। 28 जनवरी 1918 बिस्मिल ने पार्टी के लिये फंड एकत्र करने एवं युवाओं को जोड़ने के उद्देश्य से एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसका नाम "देशवासियों के लिये संदेश" था। साथ ही उनके द्वारा रचित एक कविता "मैनपुरी की प्रतिज्ञा", को देश में बांटा जा रहा था। तब ही पुलिस को इस गोपनीय कार्य की भनक लग गई और उन्होने इस षड्यंत्र के पीछे के लोगो को पकड़ना शुरू कर दिया। यह कार्य मेनीपुरी के आस- पास के इलाकों से शुरू किया गया। साथ ही उत्तर प्रदेश में बिस्मिल के संदेश लिखी पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया।


जब पुलिस बिस्मिल को पकड़ने गई तो वे पुस्तकों को बिना बेंचे ही वहाँ से फरार हो गये। उसके बाद बिस्मिल ने दिल्ली एवं आगरा के बीच पुस्तकों को बेचने का सोचा, तब पुलिस को इसकी जानकारी मिल गई और पुलिस ने गोलियाँ चलना शुरू कर दी। बचने के लिये बिस्मिल यमुना नदी में कूद गये। पुलिस को लगा कि बिस्मिल पुलिस फ़ाइरिंग में मारे गये हैं।


अज्ञातवास के समय बिस्मिल द्वारा किये गये कार्य: बिस्मिल जी ने अपने इस अज्ञात वास में लेखन का कार्य किया और अपने एवं दूसरों के द्वारा रचित कविताओं का संग्रह किया, जिन्हे उन्होने "मन की लहर" के नाम से संग्रहित कर प्रकाशित किया। उनके द्वारा लिखी कविताओं का लोगों के मन पर काफी प्रभाव पड़ता था, इसलिए उन्होने ने इसी को प्रेरित करने का जरिया बनाया। इसी अज्ञातवास के समय बिस्मिल जी ने कई कृतियों का हिन्दी रूपान्तरण किया और उन्हे "सुशीलमाला " के नाम से प्रकाशित किया गया।


अज्ञातवास के बाद का समय : 

1920 में जब मैनपुरी षड्यंत्र के आरोपी सभी सदस्य रिहा कर दिये गये। तब बिस्मिल अपने स्थान शाहजहाँपुर वापस आ गये। वहाँ उन्होने अधिकारियों के सामने यह स्पष्ट किया कि वे अब किसी भी क्रांतिकारी गतिविधियों का हिस्सा नहीं बनेंगे। इस बयान को स्थानीय भाषा में दर्ज भी किया गया। और अंग्रेज़ो के लिए वे एक आम नागरिक की तरह जीवन जीने लगे ।


बिस्मिल एवं गांधी जी उसके बाद भी 1921 में बिस्मिल जी ने अहमदाबाद कॉंग्रेस में हिस्सा लिया। जहां उन्हें प्रेम कृष्ण खन्ना और क्रांतिकारी अशफाकुल्ला खान के साथ काम करने का मौका मिला । इन्होने मौलाना हसरत मोहन के साथ कॉंग्रेस में एक सक्रिय भूमिका का निर्वाह किया और पूर्ण स्वराज स्वराज के उपलक्ष में हुई काँग्रेस मीटिंग में अपना मत दृढ़ता से रखा लेकिन मोहनदास करमचंद गांधी युवाओं के इस उत्साह से प्रभावित नहीं थे और उन्होने समर्थन नहीं दिया, जिस कारण बिस्मिल अपने घर लौट आये और वहाँ उन्होने असहयोग आंदोलन को व्यापक बनाने के लिये युवाओं को एकत्र करना प्रारम्भ किया। इस कार्य में उनकी कविताओं और देश भक्ति भाषणों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके शब्दो का असर युवाओं की मानसिकता पर बहुत अधिक था जिस कारण वे ब्रिटिश सरकार के एक बड़े शत्रु बन चुके थे।


फरवरी 1922 में किसानों के आंदोलन में ब्रिटिश पुलिस ने किसानों की हत्या की थी। आंदोलनकारियों ने चोरी चोरा नामक पुलिस स्टेशन पर हमला कर दिया था जिसमें 21 पुलिस कर्मी जिंदा जला दिये गये थे जिसे चोरी चोरा आंदोलन के नाम से जाना जाता हैं। इस घटना के कारण गांधी जी ने बिना तथ्य जाने एवं बिना बातचीत किये असहयोग आंदोलन पर रोक लगा दी, जिसके कारण बिस्मिल एवं उनके साथी गांधी जी ने काफी असंतुष्ट थे और उन्होने गया सेशन में गांधी जी का विरोध किया लेकिन गांधी जी ने अपना फैसला नहीं बदला और इस कारण तात्कालिक अध्यक्ष चितरंजन दास ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वर्ष 1923 में समृद्ध सदस्यों ने एक नयी स्वराज पार्टी का गठन किया जिसका नेत्रत्व मोतीलाल नेहरू एवं चितरंजन दास ने किया और युवाओं ने भी एक क्रांतिकारी पार्टी का गठन किया जिसका नेत्रत्व राम प्रसाद बिस्मिल ने किया।


हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन : 

वर्ष 1923 में लाला हर दयाल से परामर्श लेकर बिस्मिल जी इलाहाबाद गये, जहां उन्होने सच्चिंद्र नाथ सान्याल और बंगाल क्रांतिकारी डॉ जदुगोपाल मुखर्जी के सहयोग से इस नयी क्रांतिकारी पार्टी का प्रारूप तैयार किया। मूलभूत नियमों एवं उद्देश्यों को यैलो पेपर पर टाइप किया गया और 3 अक्टूबर 1924 को कानपुर में, सचिंद्र नाथ सान्याल की अध्यक्षता में संवैधानिक समिति की बैठक बुलाई गई। इस बैठक में संगठन का नाम हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन रखा गया. साथ ही सभी के बीच कार्यों को आपसी सहमति से बांटा गया।इस मीटिंग में बिस्मिल को शाहजहांपुर जिले का आयोजक बनाया गया और शस्त्र विभाग भी सौंपा गया। इसके साथ उन्हे संयुक्त प्रांत (आगरा और औध) के आयोजक की ज़िम्मेदारी भी दी गई।


काकोरी षड्यंत्र :

संगठन को चलाने के लिये धन की आवश्यक्ता होती थी। इसी उद्देश्य से क्रांतिकारी अंग्रेज़ो का धन लूटने की योजना बनाते थे, इनमें से एक था काकोरी षड्यंत्र। यह घटना 9 अगस्त 1925 को काकोरी में हुई थी। काकोरी लखनऊ के पास उत्तर प्रदेश का हिस्सा था। उस दिन शजहांपुर- लखनऊ एक्स्प्रेस को काकोरी में रोक दिया गया। इस ट्रेन में रेलविभाग द्वारा धन भेजा जा रहा था • जिसे लूटने का षड्यंत्र राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक़ उल्लाह खान, चन्द्रशेखर आज़ाद, राजेन्द्र लाहिड़ी, सचीन्द्र सान्याल, मन्मथनाथ गुप्त आदि क्रांतिवीरों ने बनाया था। इस प्रक्रिया में जर्मन की बनी सेमी ऑटोमैटिक पिस्तोल का उपयोग किया गया। इस लूट का मुख्य काम राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक़ उल्लाह खान एवं मन्मथनाथ गुप्त ने किया ।


काकोरी केस, फैसला एवं फांसी 

ब्रिटिश सरकार द्वारा काकोरी केस चलाया गया। इस घटना में 40 लोगो को गिरफ्तार किया गया जिनमें से केवल 10 ही थे जिनका इस घटना से संबंध था बाकी बचे लोगो को बिना कारण ही गिरफ़्तार कर लिया गया। इस केस में जगत नारायण मुल्ला को एक गवाह के रूप में पेश किया गया और डॉ हरकरन नाथ मिश्रा और डॉ मोहन लाल सक्सेना को डीफेंस काउंसलर नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत, चंद्र भानु गुप्ता और कृष्ण शंकर हजेला ने इस केस की पैरवी की। यह केस 18 महीनों तक चला। माफी के लिए भी अपील की गई लेकिन अंत में फैसले में आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई गई और इस तरह 19 दिसंबर 1927 को बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई। इनके साथ अशफाकुल्ला खान, रोशन सिंह और राजेंद्र नाथ, रोशन सिंह को भी फांसी की सजा सुनाई गई। फांसी के बाद बिस्मिल का शरीर उनके परिवारजनो को अंतिम संस्कार के लिये सौंप दिया गया, उनके पार्थिव शरीर का अंतिम क्रियाकरम राप्ती नदी के तट पर किया गया और बाद में इस जगह का नाम राजघाट के नाम से मशहूर हुआ।


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बिस्मिल जी की रचनाएँ


बिस्मिल जी की रचनाएँ 

इन्हे बचपन से ही हिन्दी एवं उर्दू का ज्ञान मिला था, अतः इन्होनें दोनों भाषाओं में कविता लेखन किया। इनकी कवितायें इनके उपनाम 'बिस्मिल', 'राम' एवं अज्ञात से जानी जाती थी लेकिन इन सबमें वे 'बिस्मिल' नाम से सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुये। इनकी कविताओं में देशभक्ति का भाव होता था, जो आम इंसान में जोश भर देता था। भगतसिंह बिस्मिल की कविताओं के बहुत बड़े प्रशंसक थे।


1) बिस्मिल जी ब्रह्मचारी धर्म से प्रेरित थे और इन्होने शाहजहांपुर सेवा समिति के स्वयं सेवक बनकर ब्रह्मचर्य धर्म का प्रचार- प्रसार किया। लोगों का इस ओर ध्यान केन्द्रित करने के लिए उन्होनें "ए मैसेज टू माय कंट्रीमेन" नामक प्रपत्र प्रकाशित किया और सभी के बीच बांटा।


2) बिस्मिल जी ने कई बंगाली पुस्तकों का अनुवाद हिन्दी में किया जिनमें “द बोल्शेविक प्रोग्राम", "स्वदेशी रंग" शामिल हैं। एवं केथलीन को इंग्लिश से हिन्दी में अनुवादित किया गया। इनके रूपान्तरण को सुशीलमाला" के नाम से प्रकाशित किया गया।


3) बिस्मिल जी ने सरफरोशी की तमन्ना प्रसिद्ध रचना भी लिखी जिसके चार भाग प्रकाशित किए गये। . बिस्मिल ने अज्ञातवास के दौरान "क्रांति गीतांजलि" नामक पुस्तक लिखी, यह एक कविता संग्रह था लेकिन इसका प्रकाशन सन 1929 में किया गया, जब तक इनकी मृत्यु हो चुकी थी। इस पुस्तक पर भी 1931 में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंद लगा दिया गया था। उन्होने मन की लहर नामक कविता संग्रह भी लिखा जो देशभक्ति की भावनाओं से भरा हुआ हैं ।


उपसंहार

जेल में रहकर बिस्मिल ने कई क्रांतिवीरों के जीवन पर पुस्तकें लिखी, उन्होने आत्मकथा भी लिखी जिसे उन्होने अपनी फांसी के तीन दिन पहले तक लिखा। अपनी आत्मकथा की अंतिम पंक्तियों में उन्होने लिखा कि मेरे इस शरीर को 19 दिसंबर 1927 को सुबह साढ़े छः बजे फांसी देने की तारीख तय कर दी गई हैं अतः मुझे अपनी वाणी को यहीं विराम देना चाहिये ।


FAQs


1. राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म कब एवं कहां हुआ था?

उत्तर- रामप्रसाद बिस्मिल जी का जन्म परतंत्र देश के शाहजहांपुर जो कि उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में आता हैं, में सन 1897 को हुआ था।


2.राम प्रसाद बिस्मिल के पिता का क्या नाम था ?

उत्तर- राम प्रसाद बिस्मिल के पिता का नाम मुरलीधर था।


3.बिस्मिल जी ने किसे अपना गुरु माना ?

उत्तर-बिस्मिल जी ने सोम देव जी को अपना गुरु माना।


4.राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी कब दी गई ?

उत्तर- 19 दिसंबर 1927 को बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई।


5.राम प्रसाद बिस्मिल की प्रसिद्ध रचना कौन सी है ?

उत्तर- राम प्रसाद बिस्मिल की प्रसिद्ध रचना सरफरोशी की तमन्ना है।


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