मदर टेरेसा जयंती पर निबंध// Essay on Mother Teresa in Hindi
मदर टेरेसा जयंती पर निबंधनमस्कार दोस्तों, इस आर्टिकल में हम आपको मदर टेरेसा के जन्मदिन पर आर्टिकल लिखना बताएंगे आपको इस आर्टिकल में मदर टेरेसा से संबंधित सभी प्रकार के निबंध 100 शब्दों में ,200 शब्दों में, 300 शब्दों में, 400 शब्दों में, 500 शब्दों में ,बताएंगे। इस निबंध को कक्षा 4,5, 6, 7, 8,9,10,11 और 12 के लिए या अपने किसी प्रोजेक्ट के लिए उपयोग कर सकते हैं यदि आपको किसी स्पीच के लिए टॉपिक essay on mother Teresa in Hindi मिला है तो आप इसलिए कोई स्पीच के लिए भी उपयोग कर सकते हैं, इसके साथी यदि आपको किसी निबंध प्रतियोगिता के लिए भी essay of mother Teresa in Hindi लिखना है तो आपको यह आर्टिकल पूरा बिल्कुल ध्यान से पढ़ना चाहिए।
मदर टेरेसा जयंती पर निबंध Essay on Mother Teresa in Hindi-
प्रस्तावना- मदर टेरेसा एक शांतिप्रिय महिला थी जिसने अपने संपूर्ण जीवन में लोगों को शांति और सौहार्द का पाठ पढ़ाया । उन्होंने शांति दूत बनकर खुद भी अपना सारा जीवन मानवता की सेवा और उनकी भलाई करने में लगा दिया। वे एक कैथोलिक धन थी। उन्होंने केवल 18 वर्ष की उम्र में नन बनना स्वीकार किया। टेरेसा विश्व प्रशंसनीय महिलाओं में से एक है वे प्रभु यीशु की अनुयायी थी और गरीबों की मसीहा। बचपन से ही मदर टेरेसा के मन में दूसरों के प्रति प्रेम दया का भाव था।
इसके बाद जब वे नन बनी तो उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानव सेवा में लगा दिया। उन्होंने मिशनरी आफ चैरिटी की स्थापना की जहां असहाय लोगों को आश्रय मिलता था, भोजन मिलता था। मदर टेरेसा यूं तो विदेश में जन्मी और पली बड़ी थी लेकिन उन्होंने बाद में भारत की नागरिकता प्राप्त कर ली। इसके बाद वह भारत में आकर रहने लगी। उन्होंने अपने कई संस्थान और आश्रम भारत में भी खोले और यहां भी लोगों के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव रखा। आज भी भारत में उनके प्रशंसक हैं जो उनके पूर्व में किए गए कार्यों की सराहना करते हैं।
मदर टेरेसा का जन्म -
मदर टेरेसा का असली नाम एग्नेश गोंझा बोयाजिजू
था। इनका जन्म 26 अगस्त सन् 1910 को मसेदोनिया के स्कोप्जे शहर में हुआ था। इनके पिता का नाम निकोला बोयाजू और माता का नाम द्रना बोयाजू था। मदर टेरेसा के पिता बहुत धार्मिक और यीशु के अनुयायी थे जब मदर टेरेसा केवल 8 वर्ष की थी तब उनके पिता का देहांत हो गया था।
इसके बाद उनकी माता ने आर्थिक संकटों से जूझते हुए मदर टेरेसा और उनके भाई बहन का भी पालन पोषण किया। उनकी माता उन्हें सदैव मिल बाटकर खाने और भाईचारे का पाठ पढ़ाती थी जो मदर टेरेसा ने काफी अच्छे से अपने जीवन में उतारा। टेरेसा अक्सर अपनी माता के साथ चर्च जाया करती थी इसके बाद उन्होंने अपना मन और जीवन यीशु को समर्पित कर दिया और 18 वर्ष की उम्र में ही नन बन गई थी। नन बनने के बाद टेरेसा कभी अपने घर नहीं लौटी वे समाज हित के कार्यों में लग गई।
मदर टेरेसा का जीवन परिचय
मदर टेरेसा का जीवन परिचय-
मदर टेरेसा को एक ऐसी महिला के रूप में जाना जाता है जिन्होंने संपूर्ण विश्व और मानव जाति को शांति का संदेश दिया। अपना घर छोड़ने के बाद मदर टेरेसा डबलिंग में रहने लगी। नन बनने की की ट्रेनिंग के दौरान सन 1929 में मदर टेरेसा अपने साथ की नन के साथ भारत आ गई। यहां दार्जिलिंग में इन्होंने मिशनरी स्कूल से अपनी शिक्षा प्राप्त की और नन के तौर पर प्रतिज्ञा ली।
इसके बाद उन्हें कोलकाता शहर में गरीब बंगाली लड़कियों को पढ़ाने के लिए भेजा गया। कोलकाता में रहते हुए उन्होंने कई गरीब बच्चों को पढ़ाया जहां हर जगह गरीबी और भुखमरी फैली हुई थी। सन 1937 में मदर टेरेसा को मदर शब्द की उपाधि दे दी गई। इसके बाद इन्हें मदर टेरेसा के रूप में जाना जाने लगा। 1944 से लेकर 1948 तक उन्होंने संत मैरी स्कूल की प्रिंसिपल पद से इस्तीफा देने के बाद मदर टेरेसा ने पटना से नर्स की ट्रेनिंग ली। इसके बाद वे दोबारा कोलकाता लौटी और गरीब लोगों की सेवा में जुट गई।
अपनी आर्थिक तंगी के कारण उन्हें कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ा लेकिन वह रुकी नहीं और जन सेवा कार्यों में लगी रही। अपने कई प्रयासों के द्वारा 7 अक्टूबर 1950 को मदर टेरेसा को मिशनरी ऑफ चैरिटी खोलने की अनुमति मिल गई। इस संस्थान में गरीब, असहाय, लोगों की मदद की जाती थी। इस समय कोलकाता में भयंकर प्लेग और कुष्ठ रोगों की बीमारी फैली थी जिसके कारण लोग ऐसे रोगियों को समाज से बाहर कर देते थे। लेकिन उनकी मदद के लिए मदर टेरेसा आगे आती और उन्हें सहारा दिया। आज भी इन संस्थानों में गरीब लाचार और बीमार लोगों की सेवा की जाती है।
मदर टेरेसा नोबेल पुरस्कार-
मदर टेरेसा को उनके कार्यों के लिए कई बार सम्मानित किया गया। उन्होंने निर्मल हृदय और निर्मल शिशु भवन जैसे आश्रम खोलें जहां बीमार रोगियों की सेवा और अनाथ बच्चों का पालन पोषण किया जाता था। उन्हें भारत द्वारा सन 1962 में पदम श्री से सम्मानित किया गया इसके बाद उन्हें भारत द्वारा सबसे बड़े और सम्मानित रत्न भारत रत्न से नवाजा गया। वही साल साल 1985 में इन्हें अमेरिका में सरकार द्वारा मेडल ऑफ फ्रीडम अवार्ड मिला। इसके बाद मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें सरकार द्वारा गरीब और बीमार लोगों की मदद करने के लिए दिया गया था।
उपसंहार-
मदर टेरेसा एक समाज सेविका और मानवतावादी लोगों में जानी जाती थी। उन्होंने अपने जीवन काल में लोगों की सेवा करने हेतु 100 से अधिक आश्रम खोलें। वे खुद भी बेहद शांतिप्रिय महिला थी और लोगों को भी प्रेम और शांति का संदेश दिया करती थी।
वे आज भी कई लोगों की आदर्श हैं और उनके जीवन से प्रेरित होकर कई लोग मानव सेवा कार्यों में अपना योगदान देते हैं। उन्होंने गरीब, असहाय, बीमार दुखी और अनाथ बच्चों के लिए आश्रमों की स्थापना कर उन्हें आश्रय दिया। जहां उनके साथ कई और नन भी शामिल थी। अपनी लंबे समय से हो रही अस्वस्थता के कारण सन 1997, 5 सितंबर के दिन कोलकाता में मदर टेरेसा का निधन हो गया।
मदर टेरेसा पर 100 शब्दों में निबंध-
मदर टेरेसा एक महान महिला थी। जिन्होंने अपना सारा जीवन गरीब लोगों की सेवा में लगा दिया। उनका जन्म मेसेडोनिया में 26 अगस्त 1910 में हुआ। उनका जन्म का नाम एग्नेश गोंझा बोयाजिजू था। उन्होंने अपने जीवन में एक मां की तरह गरीब और जरूरतमंद लोगों के सेवा की तब से पूरी दुनिया उन्हें मदर टेरेसा के नाम से जानने लगी।
मदर टेरेसा एक' महिला एक मिशन के रूप में थी। जिन्होंने पूरी दुनिया बदलने के लिए बहुत बड़ा कदम उठाया। उन्होंने गरीब लोगों की खूब मदद की । उन्होंने कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों की भी मदद की। वह अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थी। उनके माता-पिता भी डैनी और परोपकारी थे। मदर टेरेसा को समाज सेवा की प्रेरणा उन्ही से मिली। उन्होंने 12 वर्ष की उम्र में ही नन बनने का फैसला किया और 18 वर्ष की उम्र होते ही वह कोलकाता की नन मिशनरी में शामिल हुई। बाद में उन्हें कोलकाता के एक हाई स्कूल में अध्यापिका का पद मिला। उन्होंने पूरी ईमानदारी के साथ अपना कार्य किया। उन्होंने अनाथ बच्चों के लिए और बीमार लोगों के लिए आश्रम की स्थापना की। अपना सारा जीवन जरूरतमंदों की सेवा में लगा दिया। वह हमेशा नीले बॉर्डर की सफेद साड़ी पहनती थी। वह ऐसा मानती थी कि, पुणे ईश्वर ने गरीब लोगों की सेवा करने के लिए धरती पर भेजा है। वह स्वयं को एक सेवक मानती थी।
आज भी पूरे विश्व में उन्हें याद किया जाता है। मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा के लिए उन्हें सितंबर 1916 में संत की उपाधि से नवाजा गया। अपने महान कार्यों के लिए वह आज भी जानी जाती हैं।
मदर टेरेसा जयंती पर 200 शब्द पर निबंध-
मदर टेरेसा एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शख्सियत है जो अपने करुणा के लिए प्रसिद्ध है। जन्म के समय उनका नाम अंजेजे गोक्सहे बोजाक्सिउ रखा गया था। उनका जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कोप्जे, मेसेडोनिया में हुआ था। और 18 वर्ष की उम्र में, वह एक भिक्षुणी बिहार में शामिल होने के लिए आयरलैंड चली गई। 1929 में, 19 वर्ष की आयु में, मदर टेरेसा भारत के कोलकाता आ गई। वह समाज के वंचित और परित्यक्त सदस्यों की सहायता करना चाहती थी।
योगदान- जब मदर टेरेसा ने 1950 में मिशनरीज ऑफ फ चैरिटी की स्थापना की, तो उन्होंने गरीबों, विकलांगों, असहायों की सेवा करने की पहल की। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सेवा में बिताया। वह दुनिया भर में मानवतावादी उद्देश्य में अपने अद्वितीय योगदान के लिए जानी जाती हैं, जिसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि व्यक्तियों की उनके अंतिम दिनों में देखभाल की जाए और वह सम्मान के साथ इस ग्रह से बाहर निकले।
सम्मान - मदर टेरेसा को कुछ सबसे प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए। भारत में उन्हें 1962 में पदम श्री सम्मान दिया गया। 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाली पहले भारतीय बनी। 1980 में उन्हें देश का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान भारत रत्न भी दिया गया। कोलकाता की सेंट टेरेसा को 2016 में पोप फ्रांसिस द्वारा मरणोपरांत दिया गया था।
मदर टेरेसा ने अपने कार्यों से प्रेम और सद्भावना फैलाई। उन्होंने अपना सारा जीवन एक साधारण जीवन व्यतीत किया। उनके मन में अपने विश्वास के दृढ़ प्रतिबद्धता और यीशु मसीह के प्रति भावुक प्रेम था। मदर टेरेसा हर किसी के लिए दयालु होने और जरूरतमंद लोगों की देखभाल करने की प्रेरणा है।
मदर टेरेसा पर 300 शब्दों में निबंध (300 words essay on mother Teresa in Hindi)
मदर टेरेसा एक बहुत ही धार्मिक और प्रसिद्ध महिला थी जिन्हें 'गटर की संत' के नाम से जाना जाता है। दुनिया भर की महान हस्तियों में से एक है। उन्होंने भारतीय समाज के जरूरतमंद और गरीब लोगों को पूर्ण समर्पण और प्रेम की सेवा प्रदान करके एक सच्ची मां के रूप में अपना पूरा जीवन हमारे सामने प्रस्तुत किया था। उन्हें लोकप्रिय रूप से हमारे समय की संत या देवदूत या अंधेरे की दुनिया में एक प्रकाश स्तंभ के रूप में भी जाना जाता है।
उनका जन्म का नाम एग्नेश गोंझा बोजाक्सीहु था जो बाद में अपने महान कार्य और जीवन की उपलब्धियां के बाद मदर टेरेसा के नाम से प्रसिद्ध हुई। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कोप्जे , मेसेडोनिया में एक धार्मिक कैथोलिक परिवार में हुआ था। मदर टेरेसा ने कम उम्र में ही नन बनने का निर्णय ले लिया था। वह वर्ष 1928 में एक कान्वेंट में शामिल हो गई और फिर भारत (दार्जिलिंग और फिर कोलकाता) आ गई।
एक बार जब वह अपनी यात्रा से लौट रही थी, तो कोलकाता की एक झुग्गी बस्ती में लोगों की उदासी देखकर उन्हें झटका लगा और उनका दिल टूट गया। उसे घटना ने उनके मन को बहुत परेशान कर दिया और कई रातों की नींद हराम कर दी। वह झुग्गी बस्ती में लोगों की तकलीफें काम करने के लिए कुछ उपाय सोचने लगी। वह अपने सामाजिक प्रतिबंधों से अच्छी तरह परिचित थी इसलिए उसने कुछ मार्गदर्शन और दिशा पाने के लिए भगवान से प्रार्थना की।
अंततः 10 सितंबर 1937 को दार्जिलिंग जाते समय उन्हें भगवान से एक संदेश (कॉन्वेंट छोड़ने और जरूरतमंद लोगों की सेवा करने का) मिला। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और गरीब लोगों की सेवा करना शुरू कर दिया। उन्होंने नील बॉर्डर वाली सफेद साड़ी की एक साधारण पोशाक पहनने का फैसला किया । जल्द ही, गरीब समुदाय के पीड़ित लोगों को सहायता प्रदान करने के लिए युवा लड़कियां उनके समूह में शामिल होने लगी। उन्होंने बहनों का एक समर्पित सम ऊ बनाने की योजना बनाई जो किसी भी परिस्थिति में गरीबों की सेवा के लिए हमेशा तैयार रहे। समर्पित बहनों का समूह बाद में "मिशनरीज का चैरिटी" के नाम से जाना गया।
मदर टेरेसा पर 500 शब्दों में निबंध (500 Words essay on mother Teresa in Hindi)-
विश्व के इतिहास में अनेक मानवतावादी हैं। अचानक मदर टेरेसा लोगों की उसे भीड़ में खड़ी हो गई। वह एक महान क्षमता वाली महिला है। जो अपना पूरा जीवन गरीबों और जरूरतमंद लोगों की सेवा में बिताती हैं। हालांकि वह भारतीय नहीं थी। फिर भी वह भारत के लोगों की मदद करने के लिए भारत आई थी। सबसे बढ़कर, मदर टेरेसा पर इस निबंध में हम उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे।
मदर टेरेसा उनका वास्तविक नाम नहीं था लेकिन नन बनने के बाद उन्हें सेंट टेरेसा नाम चर्च से यह नाम मिला। जन्म से, वह एक इसाई और ईश्वर की महान आस्तिक थी। और इसी वजह से वह नन बना चाहती थी।
मदर टेरेसा की यात्रा की शुरुआत-
उनका जन्म एक कैथोलिक ईसाई परिवार में हुआ था। इसलिए वह ईश्वर और मानवता में एक बड़ी आस्था रखती थी। हालांकि वह अपना अधिकांश जीवन चर्च में बिताती थी लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि वह एक दिन नन बनेगी। डबलिन में अपना काम पूरा करने के बाद जब वह भारत के कोलकाता आई तो उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। लगातार 15 वर्षों तक उन्हें बच्चों को पढ़ने में आनंद आया।
स्कूली बच्चों को पढ़ने के साथ-साथ उन्होंने उसे क्षेत्र के गरीब बच्चों को पढ़ने के लिए भी कड़ी मेहनत की। उन्होंने अपनी मानवता की यात्रा एक ओपन एयर स्कूल खोलकर शुरू की, जहां उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। वर्षों तक उन्होंने बिना किसी धन के अकेले काम किया लेकिन फिर भी छात्रों को पढ़ना जारी रखा।
उनकी मिशनरी-
गरीबों को पढ़ाने और जरूरतमंद लोगों की मदद करने के इस महान कार्य के लिए वह एक स्थाई स्थान चाहती है। यह स्थान उनके मुख्यालय और एक ऐसी जगह के रूप में काम करेगा जहां गरीब और बेघर लोग आश्रय ले सकेंगे।
इसलिए, चर्च और लोगों की मदद से, उन्होंने मिशनरी की स्थापना, जहां गरीब और बेघर लोग शांति से रह सकते हैं और जीवन यापन कर सकते हैं। बाद में, वह अपने एनजीओ के माध्यम से भारत और विदेशी देशों में कई स्कूल, घर, औषधालय और अस्पताल खोलने में सफल रही।
मदर टेरेसा की मृत्यु एवं स्मृति
मदर टेरेसा लोगों के लिए आशा की देवदूत थी लेकिन मौत किसी को नहीं बख्शती। और यह रतन कोलकाता में लोगों की सेवा करते हुए स्वर्ग सिधार गया। साथ ही उनके निधन पर पूरे देश में उनकी याद में आंसू बहाए , मृत्यु से गरीब, जरूरतमंद, बेघर और कमजोर लोग फिर से अनाथ हो गए।
भारतीय लोगों द्वारा उनके सम्मान में कई स्मारक बनाए गए। इसके अलावा विदेशों में भी उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए कई स्मारक बनाए गए।
निष्कर्ष - हम यह सकते हैं कि शुरुआत में गरीब बच्चों को संभालना और पढ़ाना उनके लिए एक कठिन काम था। लेकिन वह है उन कठिनाइयों को बड़ी ही समझदारी से सम्भाल लेती थी। अपने सफ़र की शुरुआत में वह गरीब बच्चों को जमीन पर छड़ी से लिखकर पढ़ाती थी। लेकिन, वर्षों के संघर्ष के बाद वह अंततः स्वयंसेवकों और कुछ शिक्षकों की मदद से शिक्षक के लिए आवश्यक चीजों की व्यवस्था करने में सफल हो जाती है।
बाद में, उन्होंने गरीब लोगों को शांति से करने के लिए एक औषधालय की स्थापना की। अपने अच्छे कामों के कारण वह भारतीयों के दिल में बहुत सम्मान कमाती हैं।
मदर टेरेसा पर 10 वाक्य (10 Lines Essay on Mother Teresa)
1. मदर टेरेसा एक महान महिला और 'एक महिला, एक मिशन' के रूप में थी।
2. जिन्होंने दुनिया बदलने के लिए एक बड़ा कदम उठाया था।
3. उनका जन्म मेसेडोनिया में 26 अगस्त 1910 में एग्निस गोंझा बोयाजिजू के नाम से हुआ था।
4. उनके महान कार्य और जीवन में मिली उपलब्धियां के बाद विश्व उन्हें एक नए नाम मदर टेरेसा के रूप में जानने लगा।
5. उन्होंने एक मां की तरह अपना सारा जीवन गरीब और बीमार लोगों की सेवा में लगा दिया।
6. मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा के लिए सितंबर 2016 में 'संत' की उपाधि से नवाजा गया था।
7. 1928 में वह एक आश्रम से जुड़ गई और उसके बाद भारत आई।
8. वह हमेशा खुद को ईश्वर की समर्पित सेवा मानती थी।
9. जिसको धरती पर झोपड़पट्टी समाज के गरीब, असहाय और पीड़ित लोगों की सेवा के लिए भेजा गया था।
10. अपने महान कार्यों के लिए जल्दी वह गरीबों के बीच में मसीह के रूप में प्रसिद्ध हो गई।
मदर टेरेसा से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)-
प्रश्न.मदर टेरेसा ने दुनिया को कैसे बदला?
उत्तर - मदर टेरेसा ने अपने विभिन्न मानवीय प्रयासों से दुनिया को बदल दिया और सभी को दान का सही अर्थ दिखाया।
प्रश्न. मदर मदर टेरेसा ने समाज में कैसे योगदान दिया?
उत्तर - मदर टेरेसा ने अपना जीवन मानव जाति की सेवा के लिए समर्पित कर दिया और उन्होंने गरीबों और बीमार लोगों की मदद के लिए मिशनरीज ऑफ चैरिटी, एक रोमन कैथोलिक मंडली की स्थापना की।
प्रश्न. मदर टेरेसा क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर - उन्होंने भारत के दीन दुखियों की सेवा की थी, कुष्ठ रोगियों और नाथों की सेवा करने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी।
प्रश्न. मदर टेरेसा का क्या संदेश था?
उत्तर - मदर टेरेसा ने अपना जीवन गरीबों बेसहारा लोगों को समर्पित कर दिया था और वह दूसरे लोगों को भी प्यार और मदद का भी संदेश देती थी।
प्रश्न. मदर टेरेसा का निक नेम क्या था?
उत्तर - दुनिया में उन्हें मदर टेरेसा के नाम से जाना जाता है लेकिन उनका वास्तविक नाम एग्नेश गोंझा बोयाजिजू था।
प्रश्न. मदर टेरेसा को नोबेल पुरस्कार क्यों दिया गया?
उत्तर - विश्व भर में पहले उनके मिशनरी के कार्यों की वजह से वह गरीबों और सहयोग की सहायता करने के लिए 17 अक्टूबर 1979 को नोबेल पुरस्कार दिया गया था।
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