मूल अधिकार एवं राज्य के नीति निर्देशक तत्व में अंतर।Difference Between Fundamental Rights and Directive principles

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मूल अधिकार एवं राज्य के नीति निर्देशक तत्व में अंतर।Difference Between Fundamental Rights and Directive principles

मूल अधिकार एवं राज्य के नीति निर्देशक तत्व में अंतर।Difference Between Fundamental Rights and Directive principles


Mul Adhikar AVN Rajya ke Niti nirdeshak Tatv Mein antar// मूल अधिकार एवं राज्य के नीति निर्देशक तत्व में अंतर


किसी भी देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक विधान होना चाय के जिसका सही से उपयोग।


मूल अधिकार एवं राज्य के नीति निर्देशक तत्व में अंतर।Difference Between Fundamental Rights and Directive principles


जिसमें उस राज्य के सभी मूल अधिकार एवं कर्तव्य का अक्षर से वर्णन किया गया हो नागरिकों को हर संभव मदद एवं उनके उत्थान के लिए कार्य किया गया हो। इन्हें सबको बातें को ध्यान में रखते हुए आज हम भारतीय संविधान के बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक मूल अधिकार एवं राज्य के नीति निर्देशक तत्व में अंतर आपको बताएंगे आशा करती हूं कि यह टॉपिक आप सभी लोगों को बहुत ही पसंद आएगा और हर पेपर के लिए महत्वपूर्ण टॉपिक है तो आप लोग इस आर्टिकल को जरूर पढ़ें और अपने दोस्तों में भी ज्यादा शेयर करें।


मूल अधिकार एवं राज्य के नीति निर्देशक तत्व में अंतर।


हम आप को इस बात से अवगत करा दें कि अगर आप को मौलिक अधिकार एवं राज्य में निर्देशक तत्व के बीच का अंतर जाना है तो आप को इस बात को सर्वप्रथम समझना होगा कि मूल अधिकार किसे कहते हैं? तथा यह संविधान में कितने रूपों में वर्णित है। इसके अंतर्गत कौन कौन से अनुच्छेद आते हैं? है तथा राज्य नीति निर्देशक तत्व के बारे में भी आप को समझना होगा और इनसे संबंधित अनुच्छेदों को पढ़ना और जाना होगा।


मूल अधिकार


संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक मूल अधिकारों का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। इस संबंध में भारतीय संविधान निर्माता अमेरिकी संविधान में वर्णित अधिकार पत्र 1791 ईस्वी से प्रभावित है। मूल अधिकारों का तात्पर्य राजनीतिक लोकतंत्र के आदर्शों की उन्नति से है। यह अधिकार देश में लोग व्यवस्था बनाए रखने एवं राज्य के कठोर नियमों के विरुद्ध नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करता है।


संविधान के भाग 3 को भारत का मैग्नाकार्टा कहा जाता है मूल अधिकार भारतीय संविधान की एक प्रमुख विशेषता है किंतु इससे संविधान द्वारा परिभाषित नहीं किया गया।



अनुच्छेद 12- राज्य की भाषा 


अनुच्छेद 13- मूल्य मूल अधिकारों से असंगत तथा अल्पी करण करने वाली विधियां


अनुच्छेद- 14-18 समानता का अधिकार 


अनुच्छेद- 19-22 स्वतंत्रता का अधिकार


अनुच्छेद- 23-24 शोषण के विरुद्ध


अनुच्छेद- 25-28 धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार


अनुच्छेद -29-30 संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार


अनुच्छेद- 32 संवैधानिक उपचारों का अधिकार


डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने अनुच्छेद 32 को संविधान की आत्मा कहा था।


राज्य के नीति निर्देशक तत्व-


भारतीय संविधान राज्य की शासन व्यवस्था को लोकतांत्रिक स्वरूप प्रदान करने के लिए नीति निर्देशक तत्व Directive principales of state policy का प्रावधान किया गया है। राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों को भारतीय संविधान में शामिल किए जाने का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक प्रजातंत्र को स्थापित करना है। यह उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना में सहायक है जैसा कि संविधान निर्माता भारत को भविष्य में देखना चाहते थे।


राज्य के नीति निर्देशक तत्व भारतीय संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36 लेगा अनुच्छेद 51 तक वर्णित किया गया है। राज्य के नीति निर्देशक तत्व शीर्षक से यह स्पष्ट हो जाता की नीति एवं कानून को प्रभावी बनाते समय राज इन तत्वों को ध्यान में रखकर बनाएगा।


Difference Between fundamental Rights and Directive Principle| मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निदेशक तत्व में अंतर


मूल अधिकार

(Fundamental Rights)

नीति निर्देशक तत्व (Directive Principales of State Policy

यह अपने मूल प्रकृति में नकारात्मक है क्योंकि यह राज्य को कुछ मामलों पर कार्य करने से प्रतिबंधित करते हैं।

यह अपनी मूल प्रकृति में सकारात्मक है क्योंकि राज्य को कुछ मामलों पर  इनकी आवश्यकता होती है।

यह न्याय चित होते हैं इनके हनन पर न्यायालय द्वारा इन्हें लागू करवाया जा सकता है।

यह गैर न्यायोचित होते हैं इन्हें कानूनी रूप से न्यायालय द्वारा लागू नहीं कराया जा सकता है।

इनका उद्देश्य देश में लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था स्थापित करना है।

इनका उद्देश देश में सामाजिक एवं आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना है।

यह व्यक्तिगत कल्याण को प्रोत्साहन देते हैं इस प्रकार यह स्वता व्यक्तित्व होते हैं

यह समुदाय के कल्याण को प्रोत्साहित करते हैं इस प्रकार यह समाजवादी होते हैं

यह कानूनी रूप से मान्य है

इन्हें नैतिक एवं राजनीतिक मान्यता प्राप्त है

इनको लागू करने के लिए विधान की आवश्यकता नहीं होती है। स्वतः  लागू हो जाते हैं

इन्हें लागू करने के लिए विधान की आवश्यकता होती है स्वता लागू नहीं हो सकते हैं।

न्यायालय इस बात के लिए बाध्य है कि किसी भी मूल अधिकार के हनन की विधि को गैर संवैधानिक एवं अवैध घोषित करें।

निदेशक तत्वों का उल्लंघन करने वाली किसी विधि को न्यायालय असंवैधानिक और अवैध घोषित नहीं कर सकता। यद्यपि विधि की वैधता को इस आधार पर सही ठहराया जा सकता है कि इन्हें निदेशक तत्व को प्रभावित करने के लिए लागू किया गया था।



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