परोपकार पर निबंध || Paropkar Per Nibandh
"परोपकार की भावना होती है निस्वार्थ
मनुष्य जीवन को करती है चरितार्थ"
परिचय - दूसरों पर किए जाने वाले उपकार को परोपकार कहते हैं। ऐसा उपकार जिसमें कोई अपना स्वार्थ ना हो वही परोपकार कहलाता है। परोपकार को सबसे बड़ा धर्म कहा गया है और करूणा, सेवा सब परोपकार के ही पर्यायवाची हैं। जब किसी व्यक्ति के अंदर करुणा का भाव होता है तो वो परोपकारी भी होता है।
परोपकार का अर्थ - किसी व्यक्ति की सेवा या उसे किसी भी प्रकार की मदद पहुंचाने की क्रिया को परोपकार कहते हैं। परोपकार शब्द का अर्थ है दूसरों का भला करना। अपनी चिंता किए बिना, शेष सभी (सामान्य- विशेष) के भले की बात सोचना, आवश्यकतानुसार तथा यथाशक्ति उनकी भलाई के उपाय करना ही परोपकार कहलाता है। परोपकार के लिए मनुष्य को कुछ-ना-कुछ त्याग करना पड़ता है।
यह गर्मी के मौसम में राहगीरों को मुफ्त में ठंडा पानी पिलाना भी हो सकता है या किसी गरीब की बेटी के विवाह में अपना योगदान देना भी हो सकता है। कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि किसी की मदद करना और उस मदद के बदले में किसी चीज की मांग ना करने को परोपकार कहते हैं।
मनुष्य जीवन का सार्थकता परोपकार - मनुष्य जीवन हमें दूसरों की मदद करने के लिए मिला है। हमारा जन्म सार्थक होगा जब बुद्धि, विवेक, कमाई या बल की सहायता से दूसरों की मदद करें। जरूरी नहीं कि जिसके पास पैसे हो या जो अमीर हो वही केवल दान दे सकता है। एक साधारण व्यक्ति भी किसी की मदद अपने बुद्धि के बल पर कर सकता है। जब कोई जरूरत मंद हमारे सामने हो तो हमसे जो भी बन पाए हमें उसके लिए करना चाहिए, चाहे वह एक जानवर ही क्यों ना हो।
परोपकार की महत्वता - जीवन में परोपकार का बहुत महत्व है। समाज में परोपकार से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता। ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रही है। परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता है, जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता है, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है। परोपकार एक उत्तम आदर्श का प्रतीक है। पर पीड़ा के समान कुछ भी अधम एवं मिष्कृष्ट नहीं है।
भारतीय संस्कृति में परोपकार - हमारी भारतीय संस्कृति में बच्चे को परोपकार की बातें बचपन से ही सिखाई जाती हैं। परोपकार की बातें हम अपने बुजुर्गों से सुनते आए हैं और यही नहीं इससे संबंधित कई कहानियां हमारे पौराणिक पुस्तकों में भी लिखे हुए हैं। हम यह गर्व से कह सकते हैं कि यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। हमारे शास्त्रों में परोपकार के महत्व को बड़ी अच्छी तरह दर्शाया गया है। हमें अपनी संस्कृति को भूलना नहीं चाहिए।
सबसे बड़ा धर्म परोपकार - आजकल के दौर में सब आगे बढ़ने की होड़ में इस कदर लगे हुए हैं कि परोपकार जैसे सबसे पुण्य काम को भूलते चले जा रहे हैं। इंसान मशीनों के जैसे काम करने लगा है और परोपकार, करुणा, उपकार जैसे शब्दों को जैसे भूल सा गया है। चाहे हम कितना भी धन कमा ले परंतु यदि हमारे अंदर परोपकार की भावना नहीं है तो सब व्यर्थ है। मनुष्य का
इस जीवन में अपना कुछ भी नहीं, वह अपने साथ यदि कुछ लाता है तो वे उसके अच्छे कर्म ही होते हैं।
परोपकारी महापुरुष - भारत को परोपकारी महात्माओं की दीर्घ परंपरा ने गौरवान्वित किया है। महर्षि दधीचि तथा महाराजा रंति देव के विषय में यह युक्ति देखिए-
क्षुधार्त रंति देव ने किया करस्थ थाल भी,
तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थि जाल भी।
शिवी राजा का उदाहरण भी कम उज्जवल नहीं, जिन्होंने एक पक्षी की रक्षार्थ अपना मांस ही नहीं, शरीर तक दान में दे दिया। परोपकारियों को इसकी चिंता नहीं होती कि संसार उनके विषय में क्या कह रहा है या कर रहा है। उनका स्वभाव ही परोपकारी होता है।
तुलसी संत सुअब तरु, फूल फलहिं पर हेत,
इतते ये पाहन हनत उतते वे फल देत।
निष्कर्ष - हमें खुद भी परोपकारी बनना चाहिए और बच्चों को हमेशा परोपकारी बनने की सीख देनी चाहिए। जब वे आपको इसका पालन करता देखेंगे वे खुद भी इसका पालन करेंगे। हमेशा परोपकार बनें और दूसरों को भी प्रेरित करें।
परोपकार पर निबंध 10 लाइन -
1. दूसरों के हित के लिए किया गया कार्य परोपकार है। अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर जनसामान्य के कल्याण के लिए किया गया कार्य परोपकार है। अपनी छोटी-छोटी समस्याओं एवं दुखों की परवाह ना करते हुए समूह की हित चिंता करना परोपकार है।
2. परोपकार के कार्यों से ही मनुष्य समाज में प्रशंसित एवं सम्मानित होता है। परोपकार यह लोक ही नहीं परलोक भी सुधारता है। ऐसे कार्य जो परहित को ध्यान में रखकर किए जाते हैं, वे मनुष्य को महान बनाते हैं। परोपकारी व्यक्ति हर युग में होते हैं। समाज इनका ऋणी होता है। मनुष्य ही नहीं, आने जीव समुदाय एवं जड़ वस्तु भी परोपकार की भावना से कार्य करते हैं।
3. वृक्ष अपना फल स्वयं नहीं खाता अर्थात् दूसरों के लिए उत्पन्न करता है। नदी कभी भी अपना जल इकट्ठा करके नहीं रखती। प्राणियों के हित के लिए हमेशा प्रवाहमान रहती है। इसी तरह, परमार्थ के कारण, परोपकार के हेतु साधु पुरुष जन्म ग्रहण करते हैं।
4. दुनिया में एक से बढ़कर एक परोपकारी मनुष्य हुए हैं। महर्षि दधीचि ने देवताओं के कल्याण हेतु अपना शरीर त्याग दिया और अपनी हड्डियां दान में दे दी। गिद्धराज जटायु ने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए रावण से सीता को छुड़ाने का प्रयत्न किया। सुकरात ने प्याले में भरा विष पी लिया।
5. भगवान कृष्ण ने आजीवन परोपकार की दृष्टि से अनेक कार्य किए। राम ने राक्षसों को मारकर विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा की। ईसा मसीह जनहितार्थ सूली पर चढ़ गए। परोपकारी व्यक्तियों के कारण ही सत्य, धर्म और संस्कृति की रक्षा हो सकी है।
6. जीवन में अनेक कार्य ऐसे हैं जो परोपकार की दृष्टि से किए जाते हैं। पहले धनी-मानी लोग कुएं खुदबाते थे, राहगीरों के लिए छायादार वृक्ष लगवाते थे। स्थान-स्थान पर धर्मशालाएं बनवाई जाती थीं ताकि यात्रियों को उतरने में सुविधा हो। आज भी लोग परोपकार के कार्यों में अपना योगदान देते हैं।
7. प्राकृतिक विपत्तियों में फंसे लोगों की मदद के लिए आगे आना परोपकार ही है। भयंकर लूं में लोगों के लिए पेयजल की व्यवस्था करना परोपकार ही है।
8. निरक्षरों को शिक्षित बनाना, पेड़ पौधे लगाना, आस पड़ोस को साफ सुथरा रखना, लोगों को भोजन कराना आदि कार्य परोपकार की श्रेणी में आते हैं। परंतु परोपकार किसी लाभ की प्राप्ति के उद्देश्य से नहीं करना चाहिए। उपकार करके प्रत्युपकार की आशा ना रखना ही सही मायने में परोपकार है।
9. आजकल परोपकारी व्यक्तियों की संख्या में कमी आ गई है। इसका कारण समाज में स्वार्थ भावना में वृद्धि है। यही कारण है कि सड़क पर पड़े घायल व्यक्ति की सहायता के लिए कोई आगे नहीं आना चाहता।
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