बिपिन चंद्र पाल पर निबंध / Essay on Bipin Chandra Pal in hindi

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बिपिन चंद्र पाल पर निबंध / Essay on Bipin Chandra Pal in hindi

बिपिन चंद्र पाल पर निबंध / Essay on Bipin Chandra Pal in hindi

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                       बिपिन चंद्र पाल पर निबंध

Table of contents

1.परिचय

2.प्रारंभिक जीवन

3.सामाजिक कुरीतियों के विरोधी

4.शिक्षा

5.स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

6.महान क्रांतिकारी नेता

7.रचना एवं संपादन

8.मृत्यु

9.उपसंहार

10.FAQs


नमस्कार मित्रों स्वागत है आपका हमारे एक और नये आर्टिकल पर। आज की पोस्ट में हम आपको महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, प्रसिद्ध लेखक एवं दार्शनिक बिपिन चंद्र पाल पर हिंदी में निबंध (Essay on Bipin Chandra Pal in hindi) के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे एवं इस निबंध से संबंधित सभी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर पर भी परिचर्चा करेंगे। ये सभी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर एनसीईआरटी पैटर्न पर आधारित हैं। तो इस पोस्ट को आप लोग पूरा पढ़िए। अगर पोस्ट अच्छी लगे तो अपने दोस्तों में भी शेयर करिए।


परिचय: बिपिन चंद्र पाल भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी थे। भारत की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले हमेशा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन करते रहे। बिपिन चंद्र पाल एक राष्ट्रवादी नेता होने के साथ-साथ इतिहास की प्रसिद्ध तिकड़ी लाल-बाल-पाल की तिकड़ी में से एक थे।


बिपिन चंद्र पाल ने भारत के प्रत्येक नागरिक में अपनी क्रांतिकारी विचारधारा को जगाने का प्रयास किया ताकि अधिक से अधिक लोग ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन कर सकें। इसके अलावा बिपिन चंद्र पाल की गिनती राजनेता, पत्रकार, शिक्षक और प्रसिद्ध वक्ता के रूप में भी होती है। उन्होंने अपना पूरा जीवन भारत की आजादी के लिए लड़ा और अपना तन मन देश को समर्पित कर दिया। उन्हीं के कारण हमें आजादी मिली, इसलिए उनका नाम भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।


प्रारंभिक जीवन- भारत की क्रांतिकारी विचारधारा के जनक बिपिन चंद्र पाल का जन्म 7 नवंबर 1858 को हबीबगंज जिले के पोइल नामक गांव में हुआ था।  आज यह जिला बांग्लादेश में है। उनके पिता का नाम रामचंद्र पाल था जो एक फारसी विद्वान और छोटे जमींदार थे।


बिपिन चंद्र पाल बहुत कम उम्र में ब्राह्मण समाज में शामिल हो गए। उसके बाद 1876 में शिवनाथ शास्त्री नामक व्यक्ति ने उन्हें ब्राह्मण समाज में शिक्षा दी।


सामाजिक कुरीतियों के विरोधी -उस समय भारत में अनेक प्रकार की कुरीतियाँ और सामाजिक विषमताएँ थीं, जिनका उन्होंने पुरजोर विरोध किया। बचपन से ही वे जातिगत भेदभाव के प्रति काफी आक्रामक थे और उन्होंने इसका खुलकर विरोध किया।  इसके चलते उन्होंने अपने जीवनकाल में ही एक विधवा महिला से विवाह कर लिया। इसके चलते उन्हें अपने परिवार वालों से नाता तोड़ना पड़ा।


उनके बारे में कहा जाता है कि वह एक बार जो फैसला कर लेते हैं, उस पर हमेशा अडिग रहते हैं। उन पर कितना भी सामाजिक या पारिवारिक दबाव क्यों न हो, उन्होंने कभी अपने फैसले नहीं बदले और उनसे समझौता नहीं किया।


शिक्षा: बिपिन चंद्र पाल ने स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के लिए कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया।  लेकिन किसी वजह से उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और इसके बाद एक स्कूल में बतौर हेडमास्टर काम करने लगे। इसके अलावा उन्होंने कोलकाता के एक पुस्तकालय में लाइब्रेरियन के रूप में भी काम किया।


यहीं उनकी मुलाकात शिवनाथ शास्त्री, एस.एन.  बनर्जी, और बी.के. जैसे क्रांतिकारी नेताओं के साथ हुई। इसके बाद, उन्होंने एक लाइब्रेरियन के रूप में अपना काम छोड़ दिया और सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया जहाँ उनकी मुलाकात बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और अरबिंदो घोष से हुई। और यहीं से उन्होंने भारत की आजादी के लिए आंदोलन करना शुरू कर दिया।


स्वतंत्रता संग्राम में योगदान- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बिपिन चंद्र पाल की भूमिका आपने इतिहास में लाल पाल और बाल के बारे में पढ़ा होगा लाल का मतलब लाला लाजपत राय और पाल का मतलब विपिन चंद्र पाल और बाल का मतलब बाल गंगाधर तिलक होता है। इन तीनों ने मिलकर भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन करना शुरू कर दिया और भारत में हुए स्वदेशी आंदोलन में इन्होंने मुख्य भूमिका निभाई।


बिपिन चंद्र पाल ने अपना पूरा जीवन देश की रक्षा के लिए देश को समर्पित कर दिया। भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका अतुलनीय है। उनके द्वारा किए गए इस योगदान को देश भूल नहीं सकता।  इसके अलावा उन्होंने 1887 के आर्म्स एक्ट की कड़ी निंदा की। बिपिन चंद्र पाल ने साल 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन किया। इसके अलावा उन्होंने अंग्रेजों द्वारा भारत के खिलाफ बनाई गई दमनकारी नीतियों का भी खुलकर विरोध किया। इसके अलावा उन्होंने इस दौरान कई सभाओं को भी संबोधित किया। वर्ष 1907 में उन्होंने अपनी पत्रिका वंदे मातरम के माध्यम से अंग्रेजी विरोधी जनमत तैयार किया। इसके चलते उन पर देशद्रोह का मुकदमा दायर किया गया और उन्हें जेल जाना पड़ा। वहां से छूटते ही उन्होंने अपना आंदोलन तेज कर दिया। सरकार के दमन के दौरान बिपिन चंद्र पाल इंग्लैंड चले गए, जहाँ उन्होंने वर्ष 1908 में स्वराज पत्रिका की स्थापना की।


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Essay on Bipin Chandra Pal

महान क्रांतिकारी नेता- इसके जरिए उन्होंने अपने क्रांतिकारी विचारों को जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश की। लेकिन जब इस पर प्रतिबंध लगा तो वे भारत लौट आए और यहां उन्होंने हिंदू रिव्यू पेपर शुरू किया। लेकिन 1909 में कर्जन वाइली की हत्या के मद्देनजर राजनीतिक नतीजों ने प्रकाशन के पतन का कारण बना। और इस वजह से भारत के महान क्रांतिकारी नेता बिपिन चंद्र पाल लंदन चले गए और वहां काफी परेशानी में रहे। तत्पश्चात, उन्होंने उग्रवादी दौर और राष्ट्रवाद से दूर हटकर महान संघीय विचार के रूप में स्वतंत्र राष्ट्रों का एक संघ बनाया। स्वराज का मुद्दा उठाने वाले बिपिन चंद्र पाल जी महात्मा गांधी और उनके विचारों के घोर विरोधी थे। इसी कारण उन्होंने असहयोग आन्दोलन का भी बहिष्कार किया।


इसी समय, गांधीजी की उनकी आलोचना गांधीजी के भारत आगमन के साथ शुरू हुई। यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1921 के अधिवेशन में स्पष्ट रूप से देखा गया था जहाँ उन्होंने राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन को संबोधित करते हुए कहा था कि गांधी की विचारधारा तार्किक नहीं बल्कि जादू पर आधारित है।


पाल ने 1920 में स्वेच्छा से राजनीति से संन्यास ले लिया। हालांकि, वे जीवन भर राष्ट्रीय समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त करते रहे। साथ ही उनकी क्रांतिकारी विचारधारा के कारण ब्रिटिश सरकार भी उनसे डरती थी।


रचना एवं संपादन- बिपिन चंद्र पाल ने अपने जीवनकाल में निम्न प्रकार के कार्यों का संपादन किया।  जिनका विवरण इस प्रकार है-


आगंतुक, बंगाल पब्लिक ओपिनियन,  लाहौर ट्रिब्यून,  नया भारत,  द इंडिपेंडेंट, इंडिया, वन्दे मातरम, स्वराज, 

द हिंदू रिव्यू, डेमोक्रेट, बंगाली।


रचनाएँ: भारतीय राष्ट्रवाद, नाक और साम्राज्य, स्वराज और वर्तमान स्थिति,  सुधार का आधार, भारत की आत्मा, नई आत्मा, हिंदू धर्म में अध्ययन, रानी विक्टोरिया - जीवनी


मृत्यु: बिपिन चंद्र पाल की मृत्यु 20 मई 1932 को कोलकाता में हुई थी।


उपसंहार: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बिपिन चंद्र पाल का योगदान अतुलनीय है। उन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। ऐसा महान व्यक्तित्व हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। हम सभी को बिपिन चंद्र पाल के पदचिन्हों पर चलने का प्रयास करना चाहिए।


उन्होंने अपनी क्रांतिकारी विचारधारा से उस समय के युवाओं में उत्साह का संचार किया, जिसके फलस्वरूप हमारा देश अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुआ। ऐसे महापुरुष को हम नमन करते हैं।


FAQs


1.बिपिन चंद्र पाल कौन थे?

उत्तर- बिपिन चंद्र पाल भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी थे। भारत की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले बिपिन चंद्र पाल हमेशा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन करते रहे।


2. बिपिन चंद्र पाल का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर- बिपिन चंद्र पाल का जन्म 7 नवंबर 1858 को हबीबगंज जिले के पोइल नामक गांव में हुआ था, वर्तमान में यह जिला बांग्लादेश में है।


3.बिपिन चंद्र पाल के माता-पिता का क्या नाम था?

उत्तर-उनके पिता का नाम रामचंद्र पाल था जो एक फारसी विद्वान और छोटे जमींदार थे।


 4.बिपिन चंद्र पाल की मृत्यु कब और कहां हुई?

 उत्तर-बिपिन चंद्र पाल का निधन 20 मई 1932 को कोलकाता में हुआ था।


5. महारानी विक्टोरिया की जीवनी किसने लिखी है?

उत्तर-बिपिन चंद्र पाल ने महारानी विक्टोरिया की जीवनी लिखी थी।


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