अशफाक उल्ला खां पर निबंध / Essay on Ashfaq Ullah Khan in hindi
अशफाक उल्ला खां पर निबंधTable of contents
1.अशफाक उल्ला खां पर निबंध (400 शब्द)
1.1 आरंभिक जीवन
1.2 काकोरी कांड: ऐसे लूटा था सरकारी खजाना
1.3 अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष
1.4 देश के लिए बलिदान
2.अशफाकउल्ला खान पर निबंध (700 शब्द)
2.1 परिचय
2.2 हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतीक
2.3 सच्ची दोस्ती की मिशाल
2.4 द हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की 2.5 स्थापना
2.6 काकोरी कांड
2.7 अशफाक की गिरफ्तारी
2.8 सर्वोच्च बलिदान
2.9 उपसंहार
नमस्कार मित्रों स्वागत है आपका हमारे एक और नये आर्टिकल पर। आज की पोस्ट में हम आपको अशफाक उल्ला खां पर निबंध हिंदी में (Essay on Ashfaq Ullah Khan in hindi) के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे एवं इस निबंध से संबंधित सभी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर पर भी परिचर्चा करेंगे। ये सभी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर एनसीईआरटी पैटर्न पर आधारित हैं। तो इस पोस्ट को आप लोग पूरा पढ़िए। अगर पोस्ट अच्छी लगे तो अपने दोस्तों में भी शेयर करिए।
अशफाक उल्ला खां पर निबंध
(400 शब्द)
आरंभिक जीवन- अशफाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर सन् 1900 में उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर जिले के 'शहीदगढ़' में हुआ था. पिता एक पठान परिवार से ताल्लुक रखते थे. परिवार के सभी लोग सरकारी नौकरी में थे, लेकिन अशफाक बचपन से ही देश के लिए कुछ करना चाहते थे. बता दें, बंगाल के क्रांतिकारियों का उनके जीवन पर बहुत प्रभाव था. स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ कविता भी लिखते थे, उन्हें घुड़सवारी, निशानेबाजी और तैराकी का भी शौक था.
काकोरी कांड: ऐसे लूटा था सरकारी खजाना
महात्मा गांधी का प्रभाव अशफाक उल्ला खां के जीवन पर शुरू से ही था, गांधीजी ने 'असहयोग आंदोलन' वापस ले लिया तो उनके मन को अत्यंत पीड़ा पहुंची. जिसके बाद रामप्रसाद बिस्मिल और चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व में 8 अगस्त, 1925 को क्रांतिकारियों की एक अहम बैठक हुई, जिसमें 9 अगस्त, 1925 को सहारनपुर- लखनऊ पैसेंजर ट्रेन काकोरी स्टेशन पर आने वाली ट्रेन को लूटने की योजना बनाई गई जिसमें सरकारी खजाना था.
क्रांतिकारी जिस धन को लूटना चाहते थे, दरअसल वह धन अंग्रेजों ने भारतीयों से ही हड़पा था. 9 अगस्त, 1925 को अशफाक उल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आज़ाद, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, सचिन्द्र बख्शी, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुन्द लाल और मन्मथ लाल गुप्त ने अपनी योजना को अंजाम देते हुए लखनऊ के नजदीक 'काकोरी' में ट्रेन से ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया. जिसके बाद इस घटना को काकोरी कांड से जाना जाता है.
अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष- इस घटना के दौरान सभी क्रांतिकारियों ने अपना नाम बदल दिया था. अशफाक उल्ला खां ने अपना नाम 'कुमारजी' रखा था. जैसे ही ब्रिटिश सरका को इस घटना के बारे में मालूम चला वह पागल हो गई थी. जिसके बाद कई निर्दोषों को पकड़कर जेलों में ठूंस दिया था.
इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने एक-एक कर सभी क्रांतिकारियों को पकड़ लिया था. लेकिन लेकिन चन्द्रशेखर आजाद और अशफाक उल्ला खां पुलिस के हाथ नहीं आए थे.
देश के लिए बलिदान - 26 सितंबर 1925 के दिन हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल 40 क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया, उनके खिलाफ राजद्रोह करने, सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने और मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया गया. बाद में राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई. जबकि 16 अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम चार साल की सजा से लेकर अधिकतम काला पानी यानी कि आजीवन कारावास की सजा दी गई.
Essay on Ashfaq Ullah Khan in hindi
अशफाकउल्ला खान पर निबंध
(700 शब्द)
परिचय - महान स्वतंत्रता सेनानी अशफाकउल्ला खान का जन्म 1900 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। वह शफीकुल्लाह खान के पुत्र थे। वे महान क्रांतिकारी और देश की आजादी के लिए बलिदान देने वाले शहीद थे। भारत के इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। अशफाकउल्ला उस क्रांतिकारी समूह के सदस्य थे जिसके नेता रामप्रसाद बिस्मिल थे। वह रामप्रसाद बिस्मिल के सबसे अच्छे दोस्त थे, जो शाहजहाँपुर के भी थे।
हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतीक - रामप्रसाद आर्यसमाजी थे और अशफाक एक धर्मनिष्ठ मुसलमान थे लेकिन उनका उद्देश्य एक ही था कि अपनी मातृभूमि को विदेशी शासन के बंधनों से मुक्त कराना। वे अपने कार्य के प्रति इतने समर्पित थे कि उन्होंने विदेशियों के सामने झुकने के बजाय फाँसी पर चढ़ना ही बेहतर समझा।
सच्ची दोस्ती की मिशाल- अशफाक और बिस्मिल की दोस्ती इतनी गहरी थी कि एक बार अशफाक बीमार पड़ गए और उन्हें तेज बुखार हो गया और तेज बुखार में वे राम का उच्चारण कर रहे थे। राम, मेरे राम। अशफाक के माता-पिता ने सोचा कि अशफाक पर कुछ बुरी आत्माएं हावी हैं क्योंकि वह हिंदू भगवान राम का नाम जप रहा था। उनके माता-पिता ने एक पड़ोसी को फोन किया जिसने उन्हें बताया कि अशफाक हिंदू भगवान राम का नाम नहीं ले रहे हैं, लेकिन वास्तव में अशफाक अपने सबसे अच्छे दोस्त राम प्रसाद बिस्मिल को याद कर रहे थे। जिन्हें वह राम कहकर संबोधित करते थे। बिस्मिल को बुलाया गया और फिर अशफाक ने राम बोलना बंद कर दिया। दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया।
द हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना- सचिंद्र नाथ सान्याल, राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्ला के साथ मिलकर द हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की। एसोसिएशन ने 1925 में क्रांतिकारी नामक एक घोषणापत्र प्रकाशित किया।
काकोरी कांड- रामप्रसाद और अशफाकउल्ला दोनों ने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए धन प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रसिद्ध काकोरी ट्रेन डकैती की कल्पना की। 9 अगस्त, 1925 को शाहजहाँपुर से लखनऊ जाने वाली ट्रेन काकोरी आ रही थी, अशफाक अपने मित्रों सचिन्द्र बख्शी और राजेन्द्र लहरी के साथ द्वितीय श्रेणी के डिब्बे में सवार हुए।
अशफाक की गिरफ्तारी- अशफाक ने देखा कि पैसों की थैलियों को गार्ड की वैन में ले जाया जा रहा है और लोहे की तिजोरी में डाला जा रहा है। अशफाक ने अकेले ही अपने दोस्तों सचिंद्र बख्शी, राजेंद्र लाहिड़ी और बिस्मिल के साथ लोहे की तिजोरी की कुंडी को तोड़ा, पैसे लिए और भाग गए। लगभग एक महीने तक किसी भी क्रांतिकारी को गिरफ्तार नहीं किया जा सका लेकिन ब्रिटिश सरकार अपराधियों को गिरफ्तार करने के लिए दृढ़ थी। 26 सितंबर 1925 को बिस्मिल को गिरफ्तार कर लिया गया और अशफाक फरार हो गये। किसी तरह वह दिल्ली पहुंचे जहां उनकी मुलाकात एक पठान दोस्त से हुई जो शाहजहांपुर का रहने वाला था। पठान पैसे के लालच में आ गया, जिसे अंग्रेजों ने अशफाक के सिर पर घोषित इनाम के बारे में बताया था। इसलिए उसने पुलिस को आवाज दी, जिसने अगली सुबह अशफाक को गिरफ्तार कर लिया।
जब अशफाक जेल में थे, पुलिस अधीक्षक जो एक मुस्लिम था अशफाक के पास आया और उनसे कहा, “अशफाक मैं भी मुसलमान हूं। यदि आप सरकारी गवाह बन जाते हैं और बिस्मिल के खिलाफ गवाही देते हैं तो मैं आपको रिहा कर सकता हूं। वह हिंदू है और भारत में हिंदुओं का शासन स्थापित करना चाहता है। आपको उससे अलग हो जाना चाहिए। अशफाक ने आग बबूला होकर जवाब दिया, 'मैं आपको चेतावनी देता हूं, ऐसे शब्द कभी मत बोलना रामप्रसाद मेरा भाई है। मैं अंग्रेजों के शासन में जीने के बजाय हिंदुओं के शासन में मरना पसंद करूंगा।
सर्वोच्च बलिदान- काकोरी ट्रेन डकैती मामले में अशफाक और बिस्मिल की रक्षा के लिए जवाहर लाल नेहरू और जीबी पंत की एक समिति बनाई गई थी, लेकिन न्याय की अदालत में क्रांतिकारियों को बचाने के उसके प्रयास विफल रहे। वायसराय से उनकी मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलने की अपील की गई। प्रिवी काउंसिल से संपर्क किया गया। लेकिन सारी कोशिशें बेकार गईं। अंग्रेज़ टस से मस नहीं हुए। अशफाकउल्ला, बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को मौत की सजा दी गई थी। अन्य को आजीवन कारावास की सजा दी गई। मौत की सजा के खिलाफ पूरे देश ने विरोध किया। 19 दिसंबर 1927 को फैजाबाद की एक जेल में अशफाकउल्ला खान को फांसी पर लटका दिया गया था।
उपसंहार - "शहीदों की चिताओं पर लगाएंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशान होगा"
1921 में जब गांधीजी ने असहयोग आंदोलन चलाया और लोगों से करों का भुगतान नहीं करने को कहा, तो अशफाक और बिस्मिल जैसे क्रांतिकारियों ने उस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और भारत को विदेशी शासन से मुक्त करने के गांधीजी के प्रयासों का पूरे दिल से समर्थन किया था।
FAQs
1.अशफाक उल्ला खां का जन्म कब एवं कहां हुआ था ?
उत्तर- अशफाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर सन् 1900 में उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर जिले के 'शहीदगढ़' में हुआ था
2.अशफाक उल्ला खां के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर- अशफाक उल्ला खां के पिता का नाम शफीकुल्लाह खान था।
3. अशफाक उल्ला खान के सच्चे दोस्त का क्या नाम था?
उत्तर- अशफाक उल्ला खान के सच्चे दोस्त का नाम रामप्रसाद बिस्मिल था।
4.काकोरी कांड के पीछे मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर- रामप्रसाद और अशफाकउल्ला दोनों ने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए धन प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रसिद्ध काकोरी ट्रेन डकैती की कल्पना की।
5. अशफाकउल्ला खान को फांसी कब दी गई?
उत्तर-19 दिसंबर 1927 को फैजाबाद की एक जेल में अशफाकउल्ला खान को फांसी पर लटका दिया गया था।
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