परिश्रम सफलता की कुंजी है पर निबंध || Essay on importance of hard work

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परिश्रम सफलता की कुंजी है पर निबंध || Essay on importance of hard work

परिश्रम सफलता की कुंजी है पर निबंध || Essay on importance of hard work

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परिश्रम सफलता की कुंजी
 या
परिश्रम का महत्व

रूपरेखा - प्रस्तावना, स्वावलंबी की विशेषताएं, स्वावलंबन के लाभ, स्वावलंबियों के उदाहरण, स्वावलंबन की शिक्षा, उपसंहार।


1. प्रस्तावना - स्वावलंबन जीवन के लिए परमावश्यक है। यह प्रतिभावान मनुष्य का लक्षण है, उन्नति का मूल है, बड़प्पन का साधन है और सुखमय जीवन का स्रोत है। स्वावलंबन का अर्थ अपना सहारा या अपने ऊपर निर्भर होना है। स्वावलंबी व्यक्ति या राष्ट्र ही स्वतंत्र रह सकता है। जो देश या व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं के लिए दूसरों का मुंह ताकते हैं, वे स्वतंत्र नहीं रह सकते। यह शारीरिक तथा आध्यात्मिक उन्नति का साधन है। अंग्रेजी की एक प्रसिद्ध कहावत है- "God helps those who help themselves." अर्थात ईश्वर उन्हीं की सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। प्रसिद्ध कहावत 'बिना मरे स्वर्ग किसने देखा' भी सही अर्थों में स्वावलंबन की ही शिक्षा देती है।


2. स्वावलंबी की विशेषताएं - स्वावलंबी व्यक्ति स्वतंत्र होता है। उसका अपने पर अधिकार होता है। वह बड़े-बड़े धनिकों तथा शक्तिवानों की भी परवाह नहीं करता। तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास ने 'संतन कौ कहा सीकरी सो काम' कहकर अकबर का निमंत्रण ठुकरा दिया था। स्वावलंबी व्यक्ति सबके साथ विनम्रता का व्यवहार करके अपने गांव में संलग्न रहता है। उस पर चाहे कितनी भी विपत्ति क्यों ना आ जाए, किसी भी बाधा के सामने वह हार नहीं मानता तथा हमेशा अपने कार्य में सफल होता है। स्वावलंबी सरलता का व्यवहार करता है, किसी के साथ छल-कपट नहीं करता। उसमें त्याग, तपस्या और सेवाभाव होता है, लालच नहीं होता। वह स्वाभिमान की रक्षा के लिए बड़े-से-बड़े वैभव को तिनके के समान त्याग देता है। उसमें असीम उत्साह और आत्मविश्वास होता है।


3. स्वावलंबन के लाभ - स्वावलंबन का गुण प्रत्येक परिस्थिति में लाभकारी होता है। स्वावलंबी व्यक्ति आत्मविश्वास के कारण उन्नति कर सकता है। उसमे स्वयं काम करने एवं सोचने-विचारने की सामर्थ होती है। वह किसी भी काम को करने के लिए किसी के सहारे की प्रतीक्षा नहीं करता। वह अकेला ही कार्य करने के लिए आगे बढ़ता है। उसे अपना काम करने में सच्चा आनंद मिलता है। जिस प्रकार बैसाखी के सहारे चलने वाले व्यक्ति की बैसाखी छीन ली जाए तो उसका चलना बंद हो जाता है; उसी प्रकार जो व्यक्ति दूसरों के सहारे की आशा करता है, उसका मार्ग निश्चित है अवरुद्ध होता है।

नेपोलियन बोनापार्ट के कथनानुसार, 'असंभव शब्द मूर्खों के शब्दकोश में होता है।' विघ्न-बाधाएं स्वावलंबियों के मार्ग को अवरुद्ध नहीं कर पाती। महापुरुषों ने स्वावलंबन के कारण ही उन्नति की है। स्वावलंबी की सभी प्रशंसा करते हैं। उसे यश और गौरव की प्राप्ति होती है।

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4. स्वावलंबियों के उदाहरण - संसार के सभी महापुरुष स्वावलंबन के कारण ही महान बने हैं। छत्रपति शिवाजी ने थोड़े-से मराठों को एकत्र कर हिंदुओं की निराशा से रक्षा की थी। एक लकड़हारे का लड़का अब्राहम लिंकन स्वावलंबन से ही अमेरिका का राष्ट्रपति बना था। बेंजामिन फ्रेंकलिन ने स्वावलंबन का पाठ पढ़ा और विज्ञान के क्षेत्र में नाम कमाया। माइकल फैराडे प्रारंभ में जिल्दसाजी का कार्य किया करते थे, पर स्वावलंबन के बल पर ही वे संसार के महान् वैज्ञानिक बने। ईश्वरचंद्र विद्यासागर दीन ब्राह्मण की संतान थे, किंतु भारत में उन्होंने जो यश अर्जित किया, उसका रहस्य स्वावलंबन ही है। कवींद्र रवींद्र ने नदी के तट पर मात्र 10 विद्यार्थियों को बैठाकर ही शांति-निकेतन की स्थापना की थी। गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में स्वावलंबन के बल पर गोरे शासकों के अत्याचारों का दमन किया था। उन्होंने आत्मबल के द्वारा ही भारत को परतंत्रता के पाश से मुक्त कराया था। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 'आजाद हिंद फौज' का संगठन करके अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए थे।

5. स्वावलंबन की शिक्षा - स्वावलंबन का गुण वैसे तो किसी भी आयु में हो सकता है, परंतु बालकों में यह शीघ्र उत्पन्न किया जा सकता है। उन्हें ऐसी परिस्थिति में डालकर जहां कोई सहारा देने वाला न हो, स्वावलंबन का पाठ सिखाया जा सकता है। आजकल स्वावलंबन की विशेष आवश्यकता है। प्रकृति से भी हमें स्वावलंबन की शिक्षा मिलती है। पशु-पक्षियों के बच्चे जैसे ही चलने-फिरने लगते हैं, वे अपना रास्ता स्वयं खोज लेते हैं और अपना घर स्वयं बनाते हैं। हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है कि हम बात-बात में सरकार का मुंह ताकते हैं और आवश्यकता की पूर्ति न होने पर हम उसे दोषी तो ठहराते हैं, पर अपनी उन्नति के लिए स्वयं कुछ नहीं करते। किसी विचारक ने ठीक ही कहा है कि, "पतन से भी महत्वपूर्ण पतन यह है कि किसी को स्वयं पर ही भरोसा न हो।"


6. उपसंहार - इस प्रकार स्वावलंबन उन्नति की प्रथम सीढ़ी है। स्वावलंबन से जीवन भर शांति और संतोष प्राप्त होता है। इससे निडरता, परिश्रम और धैर्य आदि गुणों का विकास होता है। इसी से समाज और राष्ट्र की उन्नति होती है। स्वावलंबन पर सब प्रकार का वैभव निछावर किया जा सकता है। गुप्तजी ने कहा भी है -


'स्वावलंबन की एक झलक पर, निछावर है कुबेर का कोष।'


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