मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस पर निबंध || Essay on Subhash Chandra Bose in Hindi

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मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस पर निबंध || Essay on Subhash Chandra Bose in Hindi

मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस पर निबंध || Essay on Subhash Chandra Bose in Hindi

नमस्कार दोस्तों, आज की इस पोस्ट में हम आपको नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन के बारे में संपूर्ण जानकारी बताएंगे।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम कौन-सा ऐसा भारतीय है जिसने न सुना हो। वे तो ऐसे नेता थे जिन्होंने भारत माता को पराधीनता के चंगुल से छुड़ाने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया है। वे ही मेरे सर्व प्रिय नेता थे। दोस्तों अगर आपके लिए यह पोस्ट उपयोगी साबित हो तो अपने सभी दोस्तों को भी शेयर करिएगा।
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                हमारा प्रिय नेता : सुभाष चंद्र बोस

रूपरेखा - प्रस्तावना, जन्म तथा परिचय, राजनीति में प्रवेश, कांग्रेस की अध्यक्षता, जर्मनी गमन, आजाद हिंद फौज का गठन, नेताजी का नारा, उपसंहार।


1. प्रस्तावना - नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम कौन-सा ऐसा भारतीय है जिसने न सुना हो। वे तो ऐसे नेता थे जिन्होंने भारत माता को पराधीनता के चंगुल से छुड़ाने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया है। वे ही मेरे सर्व प्रिय नेता थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के एक महान देशभक्त और बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थे। वो स्वदेशानुराग और जोशपूर्ण देशभक्ति के एक प्रतीक थे। हर भारतीय बच्चे को उनको और भारत की स्वतंत्रता के लिए किए गए उनके कार्यों के बारे में जरूर जानना चाहिए। इनका जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में एक हिंदू परिवार में हुआ था।


2.जन्म तथा परिचय - सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 ईसवी को उड़ीसा में कटक नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता उच्च कोटि के वकील थे। उनका नाम श्री जानकी दास था। उन्होंने कटक में ही प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की थी। उच्च शिक्षा प्रेसीडेंसी कॉलेज से प्राप्त करने के बाद ये आई.सी.एस. की परीक्षा भी इन्होंने विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की थी।

    ये चाहते तो आई.सी.एस. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सुख-सुविधा का जीवन गुजार सकते थे, पर इनके मन में तो देशभक्ति की भावना भरी हुई थी। इन्होंने सुख-सुविधा के जीवन को छोड़ देश को स्वतंत्र कराने के लिए त्याग और बलिदान का रास्ता चुना।


3.राजनीति में प्रवेश - सन् 1921 में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया। सुभाष चंद्र बोस ने भी इस आंदोलन में सक्रिय भाग लिया था। सन 1930 के नमक आंदोलन का नेतृत्व इन्होंने ही किया था।

भारत में जब प्रिंस ऑफ वेल्स आए तो उनके विरोध में प्रदर्शन किया। सरकार ने इनको इस प्रदर्शन में भाग लेने पर छः मास का कारावास का दंड दिया। कारावास से मुक्त होने पर उन्होंने बंगाल में बाढ़-पीड़ितों की सहायता के लिए दिन रात एक कर दिया। सरकार ने सुभाष चंद्र बोस को राजनीतिक गतिविधियों में तेजी से भाग लेने पर गिरफ्तार कर लिया और उन्हें मांडले जेल में भेज दिया।

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4. कांग्रेस की अध्यक्षता - सुभाष चंद्र बोस जनता में बहुत प्रिय हो गए। उन्हें हरपुरा में अखिल भारतीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया, किंतु उन्होंने गांधीजी और जवाहरलाल नेहरू इत्यादि नेताओं से सहयोग ना मिल पाने के कारण त्यागपत्र दे दिया।

कांग्रेस की नीतियों में उन्हें विश्वास नहीं रहा। इसलिए उन्होंने 'फॉरवर्ड' नामक स्थान की स्थापना की।


5. जर्मनी गमन - इनके उग्र विचारों से डरकर सरकार ने इनको घर पर ही नजरबंद कर दिया। इन्होंने भेष बदल लिया और जिलाउद्दीन नाम रखकर पेशावर होते हुए काबुल चले गए। काबुल से ये जर्मनी चले गए। हिटलर ने उन्हें सहायता का वचन दिया। इसके बाद वे जापान गए। जापान ने भी उन्हें सहायता का वचन दिया।


6. आजाद हिंद फौज का गठन - सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का गठन किया। यहां इन्होंने फौज का गठन करने के लिए चंदा इकट्ठा किया। लोगों ने तन, मन और धन से सुभाष चंद्र बोस की सहायता की। महिलाओं ने अपने मंगलसूत्र तक उनके चरणों में रख दिए।


7. नेताजी का नारा - नेता जी ने देशवासियों को ललकारते हुए कहा था - 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।' देश के दुर्भाग्य से जापान की हार हो गई और आजाद हिंद फौज के सैनिकों को गिरफ्तार कर लिया गया।

23 अगस्त सन् 1945 को विमान दुर्घटना में सुभाष चंद्र बोस का स्वर्गवास हो गया।


8. उपसंहार - सुभाष चंद्र बोस के निधन से भारत को अपार क्षति हुई। सुभाष चंद्र बोस जैसा वीर, निर्भीक, राष्ट्र नेता मरकर भी अमर हो जाता है। उनका आज भी भारतवासी बड़े आदर और श्रद्धा से नाम लेते हैं।


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