व्यवसायिक शिक्षा पर निबंध || Essay on vocational education in Hindi

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व्यवसायिक शिक्षा पर निबंध || Essay on vocational education in Hindi

व्यवसायिक शिक्षा पर निबंध || Essay on vocational education in Hindi

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व्यवसायिक शिक्षा पर निबंध || Essay on vocational education in Hindi

प्रस्तावना – शिक्षा के विविध आयामों में रोजी-रोटी व रोजगार का सर्वकालिक महत्व है। इसी दृष्टि से विभिन्न क्षेत्रों में व्यवसायिक पाठ्यक्रमों का संचालन देश के उत्कृष्ट संस्थानों द्वारा किया जा रहा है। युवाओं को अपने सुनहरे भविष्य के चयन व प्रोत्साहन के लिए विशेष परामर्श व दिशा-निर्देशन की आवश्यकता है।

ये दुनिया हुनरदार लोगों को ही पूछती है। पहले मां बाप अपने बच्चों को डॉक्टर इंजीनियर बनाना ही पसंद करते थे, क्योंकि केवल इसी क्षेत्र में रोजगार के अवसर सुनिश्चित हुआ करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। प्रशिक्षण और कुशलता हमारे कैरियर रूपी ट्रेन का इंजन है, जिसके बिना हमारी जिंदगी की गाड़ी चल ही नहीं सकती, इसलिए अगर जीवन में आगे बढ़ना है, सफल होना है स्किल्ड तो होना ही पड़ेगा।


व्यवसायिक शिक्षा का अर्थ –


व्यवसायिक शिक्षा को अंग्रेजी में vocational education कहते हैं। शिक्षा को व्यवसाय के साथ जोड़ना ही व्यवसायिक शिक्षा कहलाती है। यह शिक्षा आधुनिक युग की नई मांग है। 'व्यवसायिक-शिक्षा' अथवा 'शिक्षा का व्यवसायीकरण' का अर्थ क्या है क्या? सामान्य शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक जीवन के लिए उपयोगी शिल्पों एवं व्यवसाय का ज्ञान प्राप्त करना 'शिक्षा का व्यवसायीकरण' है।


व्यवसायिक शिक्षा के महत्व को ध्यान में रखते हुए इसे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 (NCF 2005) में भी सम्मिलित किया गया है। वर्तमान में उसी शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का स्थान दिया जाता है जो छात्रों को जीविकोपार्जन करने योग्य बनाए। शिक्षा के क्षेत्र में व्यवसायिक शिक्षा को जोड़ने का प्रथम प्रयास कोठारी आयोग 1964 ने किया। इस आयोग ने सरकार को माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण का सुझाव दिया। व्यवसायिक शिक्षा छात्रों को व्यवसाय चुनने एवं व्यवसाय संबंधित योग्यता प्राप्त कराने का अवसर प्रदान करती है।


व्यावसायिक शिक्षा की आवश्यकता – 


व्यवसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण राष्ट्र के शिक्षा संबंधी प्रयास का एक महत्वपूर्ण तत्व है। राष्ट्र के बदलते परिप्रेक्ष्य में व्यवसायिक शिक्षा और अधिक प्रभावी ढंग से अपनी भूमिका निभा सके तथा भारत की बड़ी जनसंख्या/विशाल जनसमूह इसका लाभ उठा सकें, उसके लिए व्यवसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण के महत्वपूर्ण तत्वों को पुनः परिभाषित करने की अत्यधिक आवश्यकता है, जिससे वह इसे और अधिक सुविधापूर्ण, समकालीन, प्रासंगिक सम्मिलित और सृजनात्मक बना सकें। सरकार व्यवसायिक शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका से भली-भांति अवगत है, इसीलिए सरकार इस क्षेत्र में पहले से ही बहुत-से महत्वपूर्ण प्रयास कर रही है। इस समय भारत स्कूल पर आधारित व्यवसायिक शिक्षा एक केंद्रीय प्रवर्तित योजना में शामिल है जिस पर 1988 में विचार विमर्श किया गया और जिसका उद्देश्य उच्चतर सैक्षिक शिक्षा का विकल्प प्रदान करना था। एनआईओएस के व्यवसायिक शिक्षा कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था के विकास के लिए व्यवस्थित और अव्यवस्थित दोनों क्षेत्रों के लिए कुशल और मध्यमवर्गीय जनशक्ति की आवश्यकता को पूरा करना है। बाजार की मांग और शिक्षार्थियों की आवश्यकता के अनुसार व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रमों का क्षेत्र पिछले वर्षों में बढ़ता रहा है। एनआईओएस के वर्तमान व्यवसायिक शिक्षा पाठ्यक्रम शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों से संबंधित हैं।


व्यवसायिक शिक्षा का महत्व – 


यह स्थिति तब और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, जब बात गरीबों की आती है। उनके पास इतने पैसे नहीं होते कि वो अपनी शिक्षा पूरी कर सकें, इस स्थिति में रोजगार पाने का एकमात्र साधन केवल और केवल व्यवसायिक शिक्षा ही रह जाती है, जो बेहद कम खर्चे में लोगों को स्किल्ड कर रोजगार दिलाने में सहायक सिद्ध होती है।

अब इस क्षेत्र में भी आधुनिकता ने अपने पंख पसार लिए हैं। बहुत सारी कंपनियां भी प्रशिक्षित लोगों की तलाश में रहती हैं, विभिन्न जॉब वेबसाइटों में कुशल लोगों की रिक्रूटमेंट निकलती रहती है, जिसमें ऑनलाइन आवेदन मांगे जाते हैं। कुछ प्रोफेशनल वेबसाइट अब ऑनलाइन कोर्सेज भी कराती हैं। अब आप घर बैठे ही ऐसे कोर्सेज कर सकते हैं। आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं। सुदूर गांव में बैठे लोगों के लिए यह व्यवस्था किसी वरदान से कम नहीं।


रोजगार के नए आयाम –


पहले बड़े ही सीमित अवसर होते थे, रोजगार पाने के। कारर्पेंट्री, वेल्डिंग, ऑटो-मोबाइल जैसे क्षेत्रों तक ही सीमित थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। बहुत सारे नए-नए क्षेत्रों का विकास हो गया है, जैसे इवेंट, मैनेजमेंट, टूरिस्ट मैनेजमेंट, होटल मैनेजमेंट, कंप्यूटर नेटवर्क मैनेजमेंट इत्यादि ऐसे कुछ क्षेत्र हैं, जिसमें आप निपुण होकर बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। कुशल हाथ ही एक नए और बेहतर कल का रचयिता हो सकता है। जब हर हाथ में हुनर होगा, तभी हमारा देश विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा हो पाएगा।


भारत में व्यवसायिक शिक्षा की स्थिति – 


हमारा देश युवाओं का देश है। आज का परिदृश्य उठा के देखे तो बढ़ती हुई बेरोजगारी सर्वाधिक चिंता का विषय है। इसका निराकरण करना केवल सरकार की ही नहीं अपितु आम नागरिक का भी है, और केवल तभी संभव है आम आदमी स्किल्ड होकर रोजगार का सृजन करे। सवा सौ करोड़ की आबादी वाला हमारा देश और सभी के लिए रोजगार उगा पाना सरकार के लिए भी नामुमकिन है। बेरोजगारी का अंत तभी संभव है जब आम आदमी अपना उद्धम स्वयं सृजित करे और यह तभी हो सकता है जब हर हाथ हुनरमंद हो।


केवल 25% स्नातकों को ही जॉब मिल पाती हैं, क्योंकि बाकी के 75% प्रशिक्षित होते ही नहीं। देश में रोजगार के बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी है कि सभी को रोजगारोंन्मुख कौशल प्रदान करना। आज हमारे देश में कौशलबद्ध और विशेषज्ञ लोगों की मांग बढ़ रही है। वोकेशनल शिक्षा नौकरी पाने में जॉब सीकर्स की मदद करती है, साथ ही उन्हें उपयुक्त ट्रेनिंग और कौशल प्रदान करती है। भारत का आईटी सेक्टर अपने स्किल के कारण ही विश्व पटल के अकाश का ध्रुव तारा है।


व्यवसायिक शिक्षा की समस्या –


व्यवसायिक शिक्षा की कई समस्या हमें देखने को मिलती हैं जैसे अनुचित दृष्टिकोण की समस्या हमारे देश में इस शिक्षा के प्रति लोगों का दृष्टिकोण उचित नहीं है। यहां मानसिक श्रम की अपेक्षा शारीरिक श्रम को हेय दृष्टि से देखा जाता है।


1. शिक्षा में अनुपयुक्त माध्यम की समस्या – व्यवसायिक एवं तकनीकी शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी है। इससे छात्रों को विषय समझने में कठिनाई होती है।


2. संकीर्ण पाठ्यक्रम की समस्या – इस तरह के विद्यालय का पाठ्यक्रम संकीर्ण होता है। ऐसी शिक्षा ग्रहण करने वाले व्यक्तियों के दृष्टिकोण प्रायः भौतिकवादी हो जाता है और वे समाज की विभिन्न रुचियों, प्रवृत्तियों तथा आवश्यकताओं को नहीं समझ पाते हैं। 


3. विद्यालयों का अभाव – स्वतंत्र भारत में अनेक तकनीकी एवं व्यवसायिक शिक्षा संस्थान स्थापित किए जा चुके हैं। फिर भी व्यापक मांग की अपेक्षा उनकी संख्या कम है। शिक्षा प्राप्त नवयुवक तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने में विशेष रूप से इच्छुक होते हैं, किंतु विद्यालयों की कमी के कारण उन्हें प्रवेश नहीं मिल पाता है।


4. प्रशिक्षित अध्यापकों का अभाव – तकनीकी शिक्षा संस्थाओं के लिए सुयोग्य प्रशिक्षित अध्यापक नहीं मिल पा रहे हैं जिससे इस शिक्षा के विस्तार-कार्य को काफी धक्का पहुंच रहा है। तकनीकी शिक्षा में जिन विद्यार्थियों को अच्छे अंक प्राप्त होते हैं, वे आर्थिक कारणों से अन्य संस्थाओं में चले जाते हैं। जिसके कारण औसत मान के विद्यार्थी ही शिक्षकीय पेशा को अपनाते हैं।


5. प्रायोगिक शिक्षा की उपेक्षा – तकनीकी शिक्षा में प्रयोगों का विशेष महत्व है, किंतु विद्यालयों में सैद्धांतिक शिक्षा पर ही विशेष बल दिया जाता है। तकनीकी विषयों को श्यामपट्ट (ब्लैक बोर्ड) पर ही समझा दिया जाता है। प्रायोगिक शिक्षा के अभाव में विद्यार्थी विषय को अच्छी तरह नहीं समझ पाते और शिक्षा समाप्ति के पश्चात उन्हें व्यावहारिक क्षेत्र में काफी परेशानी उठानी पड़ती है। व्यवसायिक एवं तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य की सुविधाओं का अभाव है।


व्यवसायिक शिक्षा की समस्याओं का समाधान –

व्यवसायिक शिक्षा की समस्याओं के समाधान के लिए प्रमुख सुझाव इस प्रकार हैं-


1. दृष्टिकोण में परिवर्तन (Change in attitude) – शारीरिक श्रम के प्रति जनता का दृष्टिकोण बदलना आवश्यक है। इसके लिए सरकार एवं समाज संस्थाओं का कर्तव्य है कि वे जनता को शारीरिक श्रम के महत्व से अवगत कराएं।


2. पर्याप्त संख्या में विद्यालयों की स्थापना (Increase in the number of vocational schools) – सरकार को विभिन्न स्तर की व्यवसायिक शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करनी चाहिए। जिससे कि व्यवसायिक शिक्षा की महत्वता को लोग जान सके।


3. विद्यालयों में पढ़ाने के लिए शिक्षकों का प्रोत्साहन (Encouragement to the Teachers for teaching in vocational schools) – तकनीकी विद्यालयों में पढ़ाने के लिए शिक्षकों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इस शिक्षा के अभाव की समस्या तभी हल की जा सकती है, जब सरकार इन विद्यालयों के शिक्षकों के वेतन में सुधार लाकर उनकी समस्याओं का समाधान करें। इन्हें सुधारने से शिक्षकों को प्रोत्साहन मिलेगा।


4. पाठ्यचर्या में सामान्य शिक्षा का स्थान (General education in curriculum) –

व्यवसायिक एवं तकनीकी शिक्षा के पाठ्यक्रम में सामान्य शिक्षा को भी उचित स्थान देना चाहिए। पाठ्यचर्या का जीवन के साथ सामंजस्य होना आवश्यक है।


5. राष्ट्रीय भाषा एवं मातृभाषा शिक्षा का माध्यम (National language or mother tongue is the medium of the instruction) – हिंदी को व्यवसायिक एवं तकनीकी शिक्षा का माध्यम बनाया जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि हिंदी भाषा में समस्त व्यवसायिक पुस्तकों का अनुवाद कराया जाए।


विविध क्षेत्र –


यह बड़ा ही वृहद क्षेत्र है। इसे कई वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है; जैसे वाणिज्य, गृह विज्ञान, पर्ययन एवं आतिथ्य विभाग, स्वास्थ्य एवं पराचिकित्सकीय, अभियांत्रिकी कृषि व अन्य। यह विविध प्रोग्रामों जैसे निफ्ट, रोल्टा, मेड, डब्लू-डब्लू, आई, एनएचएम, आईटी जैसी संस्थाएं युवाओं को नए-नए प्रोफेशनल स्किल्स को सिखा कर उनका जीवन उन्नत कर रहे हैं।


इसी के अंतर्गत माननीय प्रधानमंत्री जी ने युवाओं के बेहतर भविष्य निर्माण के लिए प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का शुभारंभ किया। इसका लक्ष्य बड़े पैमाने पर उद्योगों के अनुसार रोजगार संबंधी कौशल का सृजन करना है।


व्यवसायिक शिक्षा हेतु भारत सरकार के प्रयास – 

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व्यवसायिक शिक्षा पर निबंध || Essay on vocational education in Hindi

भारत सरकार की माध्यमिक शिक्षा की दूरदर्शिता से संबंधित व्यापक संभावना और सुलभता के क्षेत्र वाली इस योजना के लिए यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि माध्यमिक स्तर पर अच्छी गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रत्येक बच्चे को उपलब्ध, सुलभ और उसकी पहुंच में हो। इस संदर्भ में आरएमएसए सहित सभी पांच योजनाओं ने विशिष्ट ग्रेडो और आयु स्तरों पर व्यापक आयु वर्ग में लक्षित मध्यस्थता से सहायता की है। चारों योजनाओं पर आरएमएसए के मार्गदर्शी सिद्धांतों और उद्देश्यों के मान-चित्रण से प्राप्त निष्कर्ष दर्शाते हैं कि आरएमएसए के समग्र उद्देश्य की पूर्ति में ये सभी योगदान करते हैं। तथापि, आरएमएसए हालांकी, इस समय मुख्य रूप से सुलभता, साम्यता और समानता पर फोकस करता है, आईटीसी और व्यावहारिक शिक्षा जैसी योजनाओं का उद्देश्य शिक्षा की प्रासंगिकता में सुधार करना है।


शिक्षा के व्यवसायीकरण हेतु वित्तीय सहायता – 


माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण की योजना शैक्षिक अवसरों की विविधता प्रदान करती है ताकि व्यक्तिगत नियोज्यता में वृद्धि हो, कुशल जनशक्ति की मांग और पूर्ति के बीच अंतर को कम किया जाए और जो उच्चतर शिक्षा पाने के इच्छुक हों, उन्हें विकल्प प्रदान किया जा सके। +2 स्तर पर माध्यमिक शिक्षा का व्यवसायीकरण सन् 1988 से कार्यान्वित किया जा रहा है जबकि संशोधित योजना 1992-93 से प्रचालन में है। यह योजना राज्यों को प्रशासनिक ढांचे स्थापित करने, क्षेत्रवार व्यवसायिक सर्वेक्षण करने, पाठ्यचर्या, पाठ्य-पुस्तकें, अभ्यास-पुस्तिकाएं, पाठ्यचर्या गाइडें, प्रशिक्षण मैन्युअल तैयार करने, शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने, अनुसंधान और विकास के लिए तकनीकी सहायता प्रणाली सुदृढ़ करने, प्रशिक्षण और मूल्यांकन इत्यादि के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त, यह एनजीओ और स्वैच्छिक संगठनों की अल्पावधि पाठ्यक्रमों के लिए विशिष्ट नवाचारी परियोजनाओं के कार्यान्वयन हेतु भी वित्तीय सहायता प्रदान करती है।


व्यवसायिक शिक्षा का उद्देश्य –


1. इस शिक्षा का आधार मनोवैज्ञानिक होना चाहिए – यह बालक की रूचि, प्रवृत्ति एवं व्यक्तित्व को ध्यान में रखते हुए शिक्षा योजना में शिक्षक एवं पुस्तक के स्थान पर बालक को विशेष महत्व दिया जाना चाहिए।


2. स्थाई ज्ञान की प्राप्ति – इस शिक्षा प्रणाली में प्रत्येक कार्य को वैज्ञानिक ढंग से सिखाया जाता है। विभिन्न क्रियाओं में सक्रिय भाग लेने तथा क्रियाओं के रुचि के अनुकूल होने से इससे प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है।


3. व्यक्ति को आर्थिक दृष्टि से स्वावलंबन एवं आत्मनिर्भर बनाना – इस शिक्षा प्रणाली में स्वावलंबन एवं आत्मनिर्भरता के सिद्धांत को अपनाया जाता है।


4. सर्वागीण विकास – यह शिक्षा बालक के सर्वागीण विकास पर बल देता है।


5. जीवन से संबंधित – यह शिक्षा जीवन से संबंधित है। यह शिक्षा परिवार, श्रम तथा कार्य से संबंधित है।


व्यावसायिक शिक्षा की विशेषता —


1. इस शिक्षा का आधार मनोवैज्ञानिक है। यह बालक की रूचि, प्रवृत्ति एवं व्यक्तित्व का ध्यान रखती है। इस शिक्षा योजना में शिक्षक एवं पुस्तक के स्थान पर बालक को विशेष महत्व दिया जाता है।

2. यह शिक्षा जीवन से संबंधित है। यह शिक्षा परिवार, श्रम तथा कार्य से संबंधित है।

3. इस शिक्षा का आधार व्यक्तित्व का विकास करना है।

4. व्यवसायिक शिक्षा एक विशिष्ट शिक्षा है।

5. व्यवसायिक शिक्षा का रूप स्थिर नहीं रहता है। समय की गति एवं सभ्यता के विकास के साथ इसके रूप में परिवर्तन आता है।

6. यह शिक्षा एक व्यावहारिक शिक्षा है। यह शिक्षा केवल पुस्तकीय ज्ञान न प्रदान कर जीवन के हर क्षेत्र के लिए उपयोगी होती है। यही व्यवसायिक शिक्षा की विशेषता है।


उपसंहार – व्यवसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण राष्ट्र के शिक्षा संबंधी प्रयास का मुख्य प्रयास है। राष्ट्र के बदलते परिप्रेक्ष्य में व्यवसायिक शिक्षा और अधिक प्रभावी ढंग से अपनी भूमिका निभा सके और भारत का जन-समूह इसका लाभ उठा सकें, इसके लिए व्यवसायिक शिक्षा के तत्वों को पुनः परिभाषित करने की अत्यधिक आवश्यकता है। इसलिए इस योजना में अब तक 9619 स्कूलों में 21000 सेक्शनों की अवसंरचना +2 स्तर पर 10 लॉक छात्रों का क्षमता निर्माण किया जा चुका है। व्यवसायिक शिक्षा योजना के कार्यान्वयन के लिए अब तक ₹755 करोड़ का अनुदान जारी किया जा चुका है।


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