महाकवि भूषण का जीवन परिचय || Mahakavi Bhushan ka Jivan Parichay - UP Board live

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महाकवि भूषण का जीवन परिचय || Mahakavi Bhushan ka Jivan Parichay - UP Board live

महाकवि भूषण का जीवन परिचय || Mahakavi Bhushan ka Jivan Parichay - UP Board live 



 महाकवि भूषण

(जीवनकाल : सन 1613-1715 ई०)


जीवन परिचय - वीर रस के सर्वश्रेष्ठ कवि भूषण का जन्म संवत् 1670 (सन् 1613 ई०) में कानपुर के तिकवांपुर ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित रत्नाकर त्रिपाठी था। 


जन्म

1613 तिकवांपुर जिला कानपुर

मृत्यु

संवत् 1705

पिता का नाम

रत्नाकर त्रिपाठी

वर्ण्य विषय

शिवाजी तथा छत्रसाल के वीरता पूर्ण कार्यों का वर्णन

भाषा

ब्रजभाषा जिसमें अरबी फारसी तुर्की बुंदेलखंडी और खड़ी बोली के शब्द मिले हुए हैं।

शैली 

वीर रस की ओजपूर्ण शैली

ग्रंथ

शिवराज भूषण, शिवाबावनी, छत्रसाल-दशक 

रस

प्रधानता वीर, भयानक, वीभत्स, रौद्र,और श्रंगार भी है।

छंद 

कवित्त सवैया

अलंकार

प्राय: सभी अलंकार हैं।


हिंदी के रस सिद्ध कवि चिंतामणि त्रिपाठी और मतिराम इनके भाई थे। इनके वास्तविक नाम के विषय में अभी तक भी ठीक-ठाक पता नहीं चल पाया है। चित्रकूट के राजा रुद्र ने इनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर इन्हें 'भूषण' नाम से प्रसिद्ध हुए। शनै: शनै: लोगों ने इनके वास्तविक नाम को छोड़ दिया और इन्हें 'भूषण' नाम से ही संबोधित किया जाने लगा। बाद में ये शिवाजी के दरबार में चले गए और जीवन के अंतिम दिनों तक वहीं रहे। इनके दूसरे आश्रय दाता महाराज छत्रसाल थे। इन्होंने अपने काव्य में इन्हीं दोनों की वीरता और पराक्रम का गुणगान किया है। कहते हैं कि भूषण से प्रभावित होकर ही महाराज छत्रसाल ने  एक बार इनकी पालकी में कंधा लगाया था। शिवाजी ने इन्हें बहुत-सा धन और मान देकर समय-समय पर कृतार्थ किया था। छत्रसाल और शिवाजी के इन्हीं गुणों से प्रभावित होकर भूषण ने कहा था -


शिवा को सराहौं कै सराहौं छत्रसाल को।


निरंतर वीर रस पूर्ण रचनाएं करते हुए कविवर भूषण का देहावसान संवत् 1772 (सन् 1715 ई०) के लगभग हुआ।


साहित्यिक परिचय - रीतिकालीन युग की श्रंगारिक प्रवृत्ति का तिरस्कार कर वीर रस के काव्य का सृजन करने वाले रीतिकालीन कवि भूषण का नाम वीर रस के कवियों में प्रसिद्ध है। यद्यपि कविवर भूषण अपने युग (रीतिकालीन युग) की लक्षण-ग्रंथ परंपरा एवं अन्य प्रवृत्तियों से सर्वथा मुक्त नहीं थे और इनके काव्य में भी रस, छंद, अलंकार आदि का प्रयोग शास्त्रीय रूप में हुआ है, तथापि इन्होंने तत्कालीन विलासितापूर्ण श्रंगारिकता को त्यागकर राष्ट्रप्रेम और वीरोचित भावों से युक्त काव्य की रचना की। जातीय एवं राष्ट्रीय भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति एवं अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने वाले लोकनायकों-शिवाजी एवं छत्रसाल के वीरोचित गुणों का प्रकाशन इनके काव्य का प्रमुख विषय रहा है। अपने काव्यों में वीर रस एवं राष्ट्रीय भाव की विशिष्ट तथा सशक्त अभिव्यक्ति देने के कारण कविवर भूषण को हिंदी-साहित्य का 'सर्वप्रथम राष्ट्रकवि' माना जाता है।


कृतियां - भूषण द्वारा रचित तीन ग्रंथ हैं- शिवराज भूषण, शिवाबावनी, छत्रसाल-दशक। ये तीनों वीर रस के ग्रंथ हैं। इनमें शिवाजी एवं छत्रसाल के शौर्य तथा पराक्रम का वर्णन है।


काव्यगत विशेषताएं


(अ) भावपक्ष


वीर रस के कवियों में भूषण का नाम अग्रगण्य है। इन्होने महाराज छत्रसाल और शिवाजी की वीरता का अनेक प्रकार से वर्णन किया है। शिवाजी की चतुरंगिणी सेना (पैदल, घुड़सवार, हाथी-सवार तथा रथ-सवार) के प्रस्थान और रण कौशल के वर्णन में भूषण को बहुत सफलता मिली है-


साजि चतुरंग सैन अंग मै उमंग धारि,

सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।


शत्रु-पक्ष की व्याकुलता, दीनता और खीझ का भी भूषण ने अत्यंत हृदयस्पर्शी चित्रण किया है। औरंगजेब के अत्याचार भी इनकी दृष्टि से छिपे नहीं रहे। शिवाजी के साथ-साथ इन्होंने छत्रसाल की तलवार का भी सशक्त रूप में वर्णन किया है। भूषण का काव्य राष्ट्रीय भावना पर आधारित है। साथ ही भूषण ने अपने युग के संघर्ष का अपनी रचनाओं में प्रभावशाली वर्णन किया है।


भूषण ने वीर रस के सहयोगी रसों के रूप में भयानक और रौद्र रस की सुंदर व्यंजना की है। इसके अतिरिक्त बीभत्स, करूण एवं श्रंगार रसों के वर्णन भी यत्र-तत्र मिलते हैं।


शिवाजी के क्रोध का वर्णन करते हुए कवि ने रौद्र रस का सुंदर रूप प्रस्तुत किया है-


सबन के ऊपर ही ठाढ़ो रहिबो के जोग,

ताहि खरो कियो छह हजारन के नियरे।

जानि गैर मिसिल गुसीले गुस्सा धारि उर,

कीन्हों न सलाम न‌ वचन बोले सियरे।।













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