गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय एवं रचनाएं || Biography of Tulsidas in Hindi
(जीवनकाल : सन् 1532 1623 ईसवी)
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गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय एवं रचनाएं || Biography of Tulsidas in Hindi |
जीवन परिचय - राम भक्ति शाखा के कवियों में गोस्वामी तुलसीदास सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। इनका प्रमुख ग्रंथ 'श्रीरामचरितमानस' भारत में ही नहीं, वरन् संपूर्ण विश्व में विख्यात है।
लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन से संबंधित प्रमाणित सामग्री अभी तक नहीं प्राप्त हो सकी है। डॉ नगेंद्र द्वारा लिखित 'हिंदी साहित्य का इतिहास' में इनके संदर्भ में जो प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं, वे इस प्रकार हैं- बेनीमाधव प्रणीत 'मूल गोसाईंचरित' तथा महात्मा रघुवरदास रचित 'तुलसीचरित' में तुलसीदास जी का जन्म संवत् 1554 वि० (सन् 1497 ई०) दिया गया है। बेनीमाधवदास की रचना में गोस्वामी जी की जन्म-तिथि श्रावण शुक्ल सप्तमी का भी उल्लेख है।
इस संबंध में निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है-
पन्द्रह सौ चौवन बिसै, कालिंदी के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धर्यो सरीर।।
'शिवसिंह सरोज' में इनका जन्म संवत 1583 वि० (सन् 1526 ईसवी) बताया गया है। पंडित रामगुलाम द्विवेदी ने इनका जन्म संवत् 1589 वि० (सन् 1532 ईसवी) स्वीकार किया है। सर जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा भी इसी जन्म संवत् को मान्यता दी गई है। निष्कर्ष रूप में जनश्रुतियों एवं सर्वमान्य तथ्यों के अनुसार इनका जन्म संवत् 1589 वि० (सन् 1532 ई०) माना जाता है।
इनके जन्म स्थान के संबंध में भी पर्याप्त मतभेद हैं। 'तुलसी चरित' में इनका जन्म स्थान राजापुर बताया गया है, जो उत्तर प्रदेश के बांदा जिले का एक गांव है। कुछ विद्वान तुलसीदास द्वारा रचित पंक्ति "मैं पुनि निज गुरु सन सुनि,कथा सो सूकरखेत" के आधार पर इनका जन्म स्थल उत्तर प्रदेश स्थित एटा जिले के 'सोरो' नामक स्थान को मानते हैं, जबकि कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि 'सूकरखेत' को भ्रमवश 'सोरो' मान लिया गया है। वस्तुतः यह स्थान आजमगढ़ में स्थित है। इन तीनों मतों में इनके जन्म स्थान को राजापुर मानने वाला मत ही सर्वाधिक उपयुक्त समझा जाता है।
जनश्रुतियों के आधार पर यह माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी देवी था। कहा जाता है कि इनके माता-पिता ने इन्हें बाल्यकाल में ही त्याग दिया था। इनका पालन-पोषण प्रसिद्ध संत बाबा नरहरिदास ने किया और इन्हें ज्ञान एवं भक्ति की शिक्षा प्रदान की। इनका विवाह एक ब्राह्मण कन्या रत्नावली से हुआ था। कहा जाता है कि ये अपनी रूपवति पत्नी के प्रति अत्यधिक आसक्त थे। इस पर इनकी पत्नी ने एक बार इनकी भर्त्सना की, जिससे ये प्रभु भक्ति की ओर उन्मुख हो गए। संवत् 1680 (सन् 1623 ई०) में काशी में इनका निधन हो गया।
साहित्यिक परिचय - महाकवि तुलसीदास एक उत्कृष्ट कवि ही नहीं, महान लोकनायक और तत्कालीन समाज के दिशा निर्देशक भी थे। इनके द्वारा रचित महाकाव्य 'श्रीरामचरितमानस' ; भाषा, भाव, उद्देश्य, कथावस्तु, चरित्र चित्रण तथा संवाद की दृष्टि से हिंदी साहित्य का एक अद्भुत ग्रंथ है। इसमें तुलसी के कवि, भक्त एवं लोकनायक रूप का चरम उत्कर्ष दृष्टिगोचर होता है। 'श्रीरामचरितमानस' में तुलसी ने व्यक्ति, परिवार, समाज, राज्य, राजा, प्रशासन, मित्रता, दांपत्य एवं भ्रातृत्व आदि का जो आदर्श प्रस्तुत किया है, वह संपूर्ण विश्व के मानव समाज का पथ-प्रदर्शन करता रहा है। 'विनयपत्रिका' ग्रंथ में ईश्वर के प्रति इनके भक्त ह्रदय का समर्पण दिखाई देता है। इसमें एक भक्त के रूप में तुलसी ईश्वर के प्रति दैन्यभाव से अपनी व्यथा-कथा कहते हैं।
गोस्वामी तुलसीदास की काव्य-प्रतिभा का सबसे विशिष्ट पक्ष यह है कि ये समन्वयवादी थे। इन्होंने 'श्रीरामचरितमानस' में राम को शिव का और शिव को राम का भक्त प्रदर्शित कर वैष्णव एवं शैव संप्रदायों में समन्वय के भाव को अभिव्यक्त किया। निषाद एवं शबरी के प्रति राम के व्यवहार का चित्रण कर समाज की जातिवाद पर आधारित भावना की निस्सारता (महत्वहीनता) को प्रकट किया और ज्ञान एवं भक्ति में समन्वय स्थापित किया।
कृतियां - 'श्रीरामचरितमानस', 'विनयपत्रिका', 'कवितावली', 'गीतावली', 'श्रीकृष्ण गीतावली', 'दोहावली', 'जानकी-मंगल', 'पार्वती-मंगल', 'वैराग्य-संदीपनी' तथा बरवै रामायण आदि।
काव्यगत विशेषताएं
(अ) भावपक्ष
महाकवि तुलसी ने अपनी अधिकांश कृतियों में श्री राम के अनुपम गुणों का गान किया है। शील, शक्ति और सौंदर्य के भंडार मर्यादा पुरुषोत्तम राम इनके इष्टदेव हैं। तुलसी अपना संपूर्ण जीवन उन्हीं के गुणगान में लगा देना चाहते हैं।
तुलसी की भक्ति दास्य भाव की है। इन्होंने स्वयं को श्रीराम का दास और श्रीराम को अपना स्वामी माना है। ये राम को बहुत बड़ा और स्वयं को दीन-हीन व महापतित मानते हैं। अपने उद्धार के लिए ये प्रभु भक्ति की याचना करते हैं। यथा -
मांगत तुलसीदास कर जोरे।बसहु राम सिय मानस मोरे।।
तुलसी ने समग्र ग्रंथों की रचना 'स्वान्तः सुखाय' अर्थात् अपने अंत:करण के सुख के लिए की है। इन्होंने लिखा है-
स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा।
तुलसीदास की समन्वय भावना के साधक हैं। इन्होंने सगुण-निर्गुण, ज्ञान-भक्ति, शैव-वैष्णव और विभिन्न मतों व संप्रदायों में समन्वय स्थापित किया। निर्गुण और सगुण को एक माना है। यथा-
अगुनहिं सगुनहिं नहिं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुध वेदा।।
तुलसी के काव्य में विभिन्न रसों का सुंदर परिपाक हुआ है। यद्यपि इनके काव्य में शांत रस प्रमुख है, तथापि श्रंगार रस की अद्भुत छटा भी दर्शनीय है। श्री राम और सीता के सौंदर्य, मिलन तथा विरह के प्रसंगों में भंगार का उत्कृष्ट रूप उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त करूण, रौद्र, बीभत्स,भयानक, वीर, अद्भुत एवं हास्य रसों का भी प्रयोग किया गया है। इस प्रकार तुलसी का काव्य सभी रसों का अद्भुत संगम है।
तुलसी के काव्य में दार्शनिक तत्वों की व्याख्या उत्तम रूप में की गई है। ब्रह्म, जीव, जगत और माया जैसे गूढ़ दार्शनिक पहलुओं पर कवि ने अपने विचार बड़े ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किए हैं।
(ब) कलापक्ष
भाषा - तुलसीदास की भाषा पर विचार करने से यह ज्ञात होता है कि इनकी भाषा सामर्थ्य अद्भुत है। भाषा प्रयोग में तुलसीदास की समता का कवि हिंदी साहित्य में दूसरा नहीं है। तुलसीदास की भाषा में विविधता और पूर्णता के दर्शन होते हैं-
तुलसीदास ने अपनी रामचरितमानस की भूमिका में लिखा है-
"स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा।
भाषा निबंध मति मंजुलमातनोति।।"
तुलसीदास के उक्त कथन में इनकी रामकथा के विभिन्न स्रोतों की ओर संकेत तो है ही, साथ ही इसमें तुलसीदास के भाषा ज्ञान का संकेत भी निहित है। इन्होंने 'श्रीरामचरितमानस' की रचना जिस भाषा में की है, वह अवधि है, किंतु इन्हें अन्य भाषाओं का भी ज्ञान था। इनकी 'कवितावली' में ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग हुआ है। इसी प्रकार श्री कृष्ण गीतावली की रचना भी ब्रजभाषा में हुई है। श्रीरामचरितमानस प्रधान रूप से अवधि की रचना होते हुए भी इसमें ब्रज का पुट भी प्राप्त होता है। साथ ही संस्कृत का प्रयोग भी इसमें हुआ है। इसके अतिरिक्त तुलसीदास को प्राकृतिक एवं अपभ्रंश का भी ज्ञान था। यद्यपि अवधि और ब्रजभाषा इन्हें परंपरा से प्राप्त हुई परंतु अवधी बोली को साहित्य के आसन पर प्रतिष्ठित करने में इनका योगदान सर्वोपरि है।
तुलसीदास संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे, अतः इनके साहित्य में तत्सम शब्दावली का प्रयोग प्रचुर परिमाण में हुआ है, किंतु तद्भव और देशज शब्दों का इनके काव्य में नितांत अभाव नहीं है। साथ ही विदेशी शब्दावली (अरबी फारसी इत्यादि के शब्दों) का तुलसीदास ने सर्वथा त्याग नहीं किया है। इनके काव्य में जहां तद्भव शब्दों; यथा-बांझ, अहेर, नैहर, गांठि इत्यादि का प्रयोग है, वहीं साहिब, गरीब, फौज इत्यादि अरबी शब्दों का खजाना, सहनाई, बाजार, दरबार इत्यादि फारसी शब्दों का भी प्रयोग तुलसीदास ने किया है। इन्होंने अपनी भाषा में मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग भी किया है।
शैली - शैली की दृष्टि से तुलसीदास जी के काव्य में विविधता के दर्शन होते हैं। तुलसी ने अपनी रचनाओं में सभी प्रचलित शैलियों का प्रयोग किया है। इनकी शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं- स्वाभाविकता, सरलता, सरसता और नाटकीयता। तुलसीदास के काव्य में जिन विविध शैलियों के दर्शन होते हैं, वे हैं-
दोहा चौपाई पद्धति - रामचरितमानस में प्रयुक्त।
कवित्त सवैया पद्धति - कवितावली में प्रयुक्त।
दोहा पद्धति - दोहावली में प्रयुक्त।
गेयपद शैली - विनय पत्रिका और गीतावली में प्रयुक्त।
स्रोत शैली - रामचरितमानस और विनय पत्रिका में प्रयुक्त।
लोकगीत शैली - रामलला नहछू और पार्वती मंगल में प्रयुक्त।
तुलसीदास जी की शैली की एक विशेषता है-बिंब ग्रहण। भावों में आवेग के चित्रण में तुलसीदास जी ने इसी बिंबग्रहण शैली या शब्द-चित्र निर्माण शैली को अपनाया है।
तुलसीदास जी ने अनेक अलंकारों का प्रयोग अपने काव्य में किया है। तुलसीदास के काव्य में अनुप्रास अलंकार पर्याप्त परिमाण में प्रयुक्त हुआ है। रूपक और उत्प्रेक्षा तुलसी को प्रिय हैं, उपमा पर इनका विशेष अनुराग है। संदेह, दृष्टांत, उल्लेख, अर्थान्तरन्यास, अपहुति, विभावना, विशेषोक्ति प्रतीप, व्यतिरेक,रूपकातिशयोक्ति, श्लेष, भ्रांतिमान,अप्रस्तुत, प्रशंसा आदि के सुंदर प्रयोग तुलसीदास जी के काव्य में मिलते हैं। तुलसीदास जी ने चौपाई, दोहा, सोरठा, कवित्त,सवैया, बरवै, छप्पय आदि अनेक छंदों का प्रयोग किया है।
हिंदी-साहित्य में स्थान - वास्तव में तुलसी हिंदी साहित्य की महान विभूति हैं। इन्होंने राम भक्ति की मंदाकिनी प्रवाहित करके जन-जन का जीवन कृतार्थ कर दिया। इनके साहित्य में रामगुणगान, भक्ति-भावना, समन्वय, शिवम् की भावना आदि अनेक ऐसी विशेषताएं देखने को मिलती हैं, जो इन्हें महाकवि के आसन पर प्रतिष्ठित करती हैं।
People Also Asked -
प्रश्न- तुलसीदास का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-तुलसीदास का जन्म 13 अगस्त 1532 ईस्वी को हुआ था।
प्रश्न-तुलसीदास जी की मृत्यु कब हुई थी?
उत्तर-तुलसीदास जी की मृत्यु सन 1623 ईसवी में हुई थी पर फिर भी तुलसीदास जी के दोहे और उनकी रचनाएं आज भी हम सभी के बीच जीवित है।
प्रश्न- तुलसीदास जी के माता-पिता का क्या नाम था?
उत्तर-तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी देवी था।
प्रश्न- तुलसीदास कितने वर्ष तक जीवित रहे?
उत्तर-इनमें से कई का विचार था कि इनका जन्म विक्रम संवत के अनुसार वर्ष 1554 में हुआ था लेकिन कुछ का मानना है कि तुलसीदास का जन्म वर्ष 1532 ईस्वी में हुआ था। उन्होंने 126 साल तक अपना जीवन बिताया।
प्रश्न- तुलसीदास की भाषा क्या है?
उत्तर-तुलसीदास ने अवधी एवं ब्रजभाषा दोनों में काव्य रचना की। रामचरितमानस अवधि में लिखा विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली आदि में ब्रज भाषा का प्रयोग किया।
प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति कौन सी है?
उत्तर- तुलसीदास की भक्ति दास्य भाव यानी सेवक भाव से प्रेरित रही है। उन्होंने अपनी अधिकतर रचनाओं में स्वयं को अपने आराध्य का सेवक दास माना है। उनके आराध्य प्रभु श्रीराम रहे हैं। वह प्रभु श्री राम का दास बनकर स्वयं को प्रस्तुत करते हैं।
प्रश्न- तुलसीदास का बचपन कैसे बीता?
उत्तर- बाप ने किसी और अनिष्ट से बचने के लिए बालक को चुनिया नाम की एक दासी को सौंप दिया और स्वयं विरक्त हो गए। जब रामबोला साढ़े 5 वर्ष का हुआ तो चुनिया भी नहीं रही। वह गली-गली भटकता हुआ अनाथों की तरह जीवन जीने को विवश हो गया। इस तरह तुलसी का बचपन बड़े कष्टों में बीता।
प्रश्न- तुलसीदास जी के बचपन का क्या नाम था?
उत्तर- तुलसीदास जी के बचपन का नाम राम बोला था।
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