नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध || Essay on Subhash Chandra Bose in Hindi

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध || Essay on Subhash Chandra Bose in Hindi

नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध || Essay on Subhash Chandra Bose in Hindi

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध || Essay on Subhash Chandra Bose in Hindi

"भारत मां के वीर सपूत की बस इतनी अमर कहानी है,

हिंदी की शान के खातिर उसकी जान हुई बलिदानी है।"


देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व लुटा देने वाले लोगों में से एक सुभाष चंद्र बोस हैं, जिन्हें हम नेता जी के नाम से जानते हैं। नेताजी नेतृत्व करने में श्रेष्ठ वक्ता थे। नेता जी ने देश की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

आज भी हमारे मन "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा" "दिल्ली चलो" तथा "जय हिंद" जैसे नारे आते हैं, जो नेता जी द्वारा गुलाम भारत में दिए गए थे। नेताजी निडर महान क्रांतिकारी थे।


नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक बहादुर नायक थे। वह एक महान व्यक्ति और बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत के इतिहास में स्वतंत्रता संघर्ष के लिए दिया गया उनका महान योगदान अविस्मरणीय है। वो वास्तव में भारत के एक सच्चे बहादुर हीरो थे जिन्होंने अपनी मातृभूमि के खातिर अपना घर और आराम त्याग दिया था।

वो हमेशा से अहिंसा पर कम ही भरोसा करते थे और ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता पाने के लिए उन्होंने सैन्य विद्रोह का रास्ता चुना।


सुभाष चंद्र बोस का शुरुआती जीवन -


उनका जन्म एक समृद्ध हिंदू परिवार में 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। उनके पिता जानकीनाथ बोस थे जो एक सफल बरिस्टर थे और मां प्रभावती देवी एक ग्रहणी थी। वह एक हिंदू कायस्थ परिवार से आते थे। वह कुल मिलाकर 14 भाई बहन थे। सुभाष चंद्र बोस नौवीं संतान थे। उन्हें उनके बड़े भाई शरद चंद्र से बहुत लगाव था। वह उनके माता-पिता की दो संतान थे। सुभाष चंद्र बोस उन्हें प्रेम से मेजदा कहते थे।


सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा -


सुभाष चंद्र बोस ने 1909 में कटक के प्रोटेस्टेड स्कूल से अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की व इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने रेवेनशा कॉलेजिएट विद्यालय में दाखिला लिया।

वहां के प्रधानाध्यापक बेनीमाधव दास का उनके जीवन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा। उन्हें पढ़ने का बहुत शौक था। 15 वर्ष की आयु में ही उन्होंने विवेकानंद साहित्य का पूर्ण अध्ययन कर लिया।

सन् 1915 में उन्होंने द्वितीय श्रेणी से इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1916 में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में b.a. ऑनर्स में दाखिला ले लिया।

जहां शिक्षकों व विद्यार्थियों के बीच कुछ आंदोलन हो गए। जिसमें छात्रों का नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस ने किया। जिसकी वजह से उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। उसके बाद उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज में दाखिला लिया। नेताजी 49वीं बंगाल रेजीमेंट में भर्ती होने के लिए गए। लेकिन उनकी आंखों में कुछ समस्या की वजह से उन्हें निकाल दिया गया।

उन्होंने आर्मी में भर्ती होने का इतना अधिक शौक था कि उसके बाद उन्होंने टेरिटोरियल आर्मी की भर्ती परीक्षा दी जिसे उन्होंने उत्तीर्ण कर लिया। उसके बाद उन्हें फोर्ट विलियम सेनालय में रंगरूट में दाखिला मिल गया।

उन्होंने अपनी बीए ऑनर्स की डिग्री 1919 में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। पिता की इच्छा पर उन्होंने आईएएस की तैयारी के लिए 15 सितंबर को इंग्लैंड चले गए।

एक बार उन्हें ब्रिटिश प्रिंसिपल्स के ऊपर हमले में शामिल होने के कारण कोलकाता प्रेसीडेंसी कॉलेज से निकाल दिया गया था।

उन्होंने प्रतिभाशाली ढंग से आईएएस की परीक्षा को पास किया था लेकिन उसको छोड़कर भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई से जुड़ने के लिए 1921 में असहयोग आंदोलन से जुड़ गए।


सुभाष चंद्र बोस जयंती क्यों मनाई जाती है -

भारत देश को आजाद होने में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अहम योगदान है। उन्होंने अपने क्रांतिकारी कार्यों के तहत भारत में आजादी के ज्वलंत नेतृत्व की भावना को बनाए रखा था। उनके द्वारा बनाए गई आजाद हिंद फौज ने देश के विभिन्न हिस्सों को अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त कराने का महत्वपूर्ण प्रयास किया था। अपने बेहतरीन कूटनीति के द्वारा उन्होंने यूरोप के कई देशों से संपर्क करके उनसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग देने का प्रस्ताव रखा था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, लाला लाजपत राय, भगत सिंह, चंद्र शेखर आजाद आदि जैसे प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे। भले ही देश की आजादी के लिए उन्होंने हिंसा का मार्ग चुना था, लेकिन उनके कार्यों का भारत की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान है। यही कारण है कि भारत की आजादी में उनके बहुमूल्य योगदान को देखते हुए 23 जनवरी को उनके जन्मदिन पर सुभाष चंद्र बोस जयंती को पूरे देश भर में उत्साह और देश भक्ति संग मनाया जाता है।


क्रांति का सूत्रपात -


सुभाष चंद्र बोस जी के मन में छात्र काल से ही क्रांति का सूत्रपात हो गया था। जब कॉलेज के समय में एक अंग्रेजी के अध्यापक ने हिंदी के छात्रों के खिलाफ नफरत भरे शब्दों का प्रयोग किया तो उन्होंने उसे थप्पड़ मार दिया, वहीं से उनके विचार क्रांतिकारी बन गए थे। असल में पक्के क्रांतिकारी रोलेट एक्ट और जलियांवाला बाग हत्याकांड से बने थे।


स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश -


स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ने के लिए दास बाबू के साथ काम करना चाहते थे। भारत आने के बाद रविंद्र नाथ टैगोर की सलाह पर वह सबसे पहले महात्मा गांधी जी से मिले।

गांधीजी ने उन्हें दास बाबू के साथ जुड़ने की सलाह दी। उस समय गांधी जी ने पूरे देश में असहयोग आंदोलन चला रखा था। दास बाबू बंगाल में इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। बहुत जल्द वह युवा नेता बन गए। स्वतंत्रता संग्राम में वह 11 बार जेल गए। उन्होंने जर्मनी में जाकर हिटलर तथा अन्य नेताओं से मिले। वहां उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना की। उसके बाद उन्होंने जापान की मदद से अंडमान निकोबार दीप समूह को आजाद करवा लिया।


अपनी राष्ट्रवादी क्रियाकलापों के लिए उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा लेकिन वो इससे न कभी थके और ना ही निराश हुए। नेता जी कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुने गए थे। लेकिन कुछ राजनीतिक मतभेदों के चलते गांधी जी के द्वारा उनका विरोध किया गया था।

वो पूर्वी एशिया की तरफ चले गए जहां भारत को एक स्वतंत्र देश बनाने के लिए उन्होंने अपनी "आजाद हिंद फौज" को तैयार किया। 


कांग्रेस से त्यागपत्र -


सुभाष चंद्र बोस क्रांतिकारी विचारधारा रखते थे इसलिए वह कांग्रेस के अहिंसापूर्ण आंदोलन में विश्वास नहीं रखते थे। इसलिए उन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया।

सुभाष चंद्र बोस अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध छोड़कर देश को स्वाधीन करना चाहते थे। उन्होंने देश में हिंदू मुस्लिम एकता के लिए फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। उनके तीव्र क्रांतिकारी विचारों और कार्यों से त्रस्त होकर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया। जेल में उन्होंने भूख हड़ताल कर दी। जिसकी वजह से देश में अशांति फैल गई थी, जिसके फलस्वरूप उनको उनके घर पर ही नजरबंद रखा गया था। सुभाष चंद्र बोस ने 26 जनवरी 1942 को पुलिस और जासूसों को चकमा दिया था।


सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु -


उनकी मृत्यु पर हमेशा से ही वाद-विवाद रहा है। आधिकारिक जानकारी के मुताबिक उनकी मृत्यु ताइहोकू नाम की जगह पर विमान दुर्घटनाग्रस्त में हो गई।

वह विमान 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया। जिसमें वह काफी अधिक जल गए। उन्हें ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में भर्ती किया गया।

ऐसा माना जाता है कि एक विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हो गई। जहां उसी रात को 9:00 बजे उनका देहांत हो गया। इसकी सूचना 23 अगस्त 1945 को टोक्यो रेडियो में दी गई। जहां बताया गया कि सैगोन में उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ है। जिसमें उनकी मृत्यु हो गई। इस दुखद घटना ने भारत के लोगों को अंदर से हिलाकर रख दिया। नेताजी का साहसिक कार्य आज भी लाखों भारतीय युवाओं को देश के लिए कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित करता है।


उपसंहार - 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। इस आजादी को देखने के लिए सुभाष चंद्र बोस इस दुनिया में नहीं थे। लेकिन उन्होंने ही देश को स्वतंत्र करवाने की नींव रखी।

वह अंग्रेजी राज में एक उच्च पद पर थे। लेकिन भारत को आजाद करवाने के लिए उन्होंने वह पद छोड़ दिया। उनके द्वारा दिया गया ''जय हिंद" का नारा आज हमारा राष्ट्रीय नारा है।

उन्होंने ही "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" का नारा भी दिया। भारत को आजाद करवाने में उनका योगदान अतुलनीय रहा है।


आज भी उनकी मृत्यु पर बहुत से लोग लड़ते हैं। वह भारत के एक सच्चे योद्धा थे। भारत उन्हें हमेशा याद रखेगा।


"देश प्रेम के खातिर नाम हुआ अमर,

नेताजी के त्याग और संघर्ष को शत शत मेरा नमन।"


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