फ्रेन्केल दोष एवं शॉट्की दोष में अन्तर (frenkal aur schottky dosh mein antar)
फ्रेन्केल दोष एवं शॉट्की दोष क्या है? उदाहरण सहित समझाइए।
frenkal aur schottky dosh mein antar,sotki dos kya h,schottky dosh kya hai,schottky dosh kise kahate hain,schottky dosh ke udaharan,schottky dosh ke do udaharan,schottky dosh,schottky dosh ka paribhasha,फ्रेंकल दोष किसे कहते हैं,फ्रेंकल दोष का उदाहरण,फ्रेंकल दोष क्या है उदाहरण,फ्रेंकल दोष को समझाइए,फ्रेंकल दोष पर टिप्पणी
बिन्दु दोष
घटक कणों की सामान्य आवर्ती व्यवस्था में विचलन से उत्पन्न दोष बिन्दु दोष कहलाते हैं। ये निम्न दो प्रकार के होते हैं
(i) रससमीकरणमितीय दोष
इसके कारण क्रिस्टल में धनायनों व ऋणायनों का अनुपात परिवर्तित नहीं होता है। ये निम्न प्रकार के होते हैं
इसे भी पढ़ें लें 👇👇
कारक किसे कहते हैं परिभाषा,भेद,उदाहरण
इसे भी पढ़ें लें 👇👇
संज्ञा किसे कहते हैं परिभाषा,भेद,उदाहरण
इसे भी पढ़ें लें 👇👇
विशेषण किसे कहते हैं परिभाषा,भेद,उदाहरण
(a) शॉट्की दोष – वह दोष जो क्रिस्टल में धनायन तथा ऋणायन के समान संख्या में अपने स्थानों से लुप्त होने के कारण निर्मित रिक्त स्थानों के कारण होता है, शॉट्की दोष कहलाता है। इस प्रकार के दोष के उत्पन्न होने के लिए यह आवश्यक है, कि यौगिक उच्च आयनिक हो, उसकी समन्वय संख्या उच्च हो एवं धनायनों व ऋणायनों का आकार लगभग समान हो।
(b) रिक्तिका दोष – यदि क्रिस्टल जालक से अवयवी कण अपने नियमित स्थान (जालक बिन्दु) से बाहर निकल जाते हैं, तो उत्पन्न दोष को रिक्तिका दोष कहते हैं। इस दोष के कारण पदार्थ का घनत्व कम हो जाता है।साधारणतया पदार्थ को गर्म करने पर इस प्रकार के दोष उत्पन्न होते हैं। इस कारण इसे ऊष्मागतिकी दोष (Thermodynamic defect) नाम भी दिया गया है।
उदाहरण NaCl, KCI, CSCI, AgBr, आदि।
(c) फ्रेंकेल दोष – यह दोष भी साधारणतया आयनिक ठोसों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इसमें लघुत्तर आयन (साधारणतया धनायन) अपने वास्तविक स्थान से लुप्त होकर अन्तराकाश में चला जाता है, जिससे वास्तविक स्थान पर रिक्तिक दोष तथा नए स्थान पर अन्तराकाशी दोष उत्पन्न हो जाते हैं, अतः इसे विस्थापन दोष भी कहते हैं। यह ठोस के घनत्व को परिवर्तित नहीं करता है। यह दोष उन आयनिक यौगिकों द्वारा दर्शाया जाता है, जिनमें आयनों के आकार में अधिक अन्तर होता है।
उदाहरण – ZnS, AgCI, AgBr, Agl, आदि।
AgBr फ्रेंकेल और शॉट्की दोनों ही दोष दर्शाता है।
(d) अन्तराकाशी दोष – जब कुछ अवयवी कण (परमाणु अथवा अणु) अन्तराकाशी स्थल पर पाए जाते हैं, तब उत्पन्न दोष अन्तराकाशी दोष कहलाता है। यह दोष पदार्थ के घनत्व को बढ़ा देता है। आयनिक ठोसों में सदैव विद्युत उदासीनता बनी रहती है, अतः यह दोष दिखाई नहीं देता है। यह दोष अनआयनिक ठोसों में दिखाई देता है।
(ii) अरस-समीकरणमितीय दोष
इनमें धनायनों व ऋणायनों का अनुपात परिवर्तित हो जाता है। ये निम्न प्रकार के होते हैं
(a) धातु आधिक्य दोष – जब किसी क्षारीय हैलाइड, जैसे-NaCl को क्षार धातु की वाष्प में गर्म किया जाता है, तो सोडियम परमाणु क्रिस्टल की सतह पर जम जाते हैं। क्लोराइड आयन क्रिस्टल की सतह में से विसरित हो जाते हैं और Na परमाणुओं के साथ मिलकर NaCl देते हैं। ऐसा Na आयन प्राप्त करने के लिए Na परमाणु से इलेक्ट्रॉन मुक्त हो जाने से होता है। मुक्त इलेक्ट्रॉन क्रिस्टल के ऋणायनिक स्थान को अध्यासित कर लेता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों द्वारा भरी जाने वाली इन ऋणायनिक रिक्तिकाओं को F-केन्द्र कहते हैं। ये NaCl क्रिस्टलो को पीला रंग प्रदान करती हैं। यह रंग इन इलेक्ट्रॉनों द्वारा क्रिस्टल पर पड़ने वाले प्रकाश से ऊर्जा अवशोषित करके उत्तेजित होने के परिणामस्वरूप दिखाई पड़ता है। इससे क्रिस्टल में धातु (सोडियम) का आधिक्य हो जाता है, अतः इसे धातु आधिक्य दोष भी कहते हैं।
(b) धातु न्यूनता दोष – यह दोष परिवर्ती संयोजकता दर्शाने वाली धातुओं के यौगिकों,
जैसे- FeO, FeS, NiO द्वारा दर्शाया जाता है।
(c) अशुद्धि दोष – यह दोष किसी बाह्य (भिन्न प्रकार के) आयन की उपस्थिति के कारण होता है। उदाहरण NaCl में SrCl, की सूक्ष्म मात्रा मिलाने पर कुछ Sr आयन Na+ का स्थान ले लेते हैं, अतः उत्पन्न रिक्तियों की संख्या SrCl2 मात्रा (मोलों की संख्या) के बराबर होती है।
कक्षा 12 वीं अर्थशास्त्र प्री बोर्ड पेपर सम्पूर्ण हल
साहित्य समाज का दर्पण है पर निबंध
भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण संशोधन
एक टिप्पणी भेजें