गद्यांश और पद्यांश आधारित प्रश्नों के उत्तर कैसे लिखें//gaddhyansh aur paddhyansh aadharit prashno ke Uttar
Class 12 Hindi up board |
प्रश्न- गद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
धरती माता की कोख में जो अमूल्य निधियाँ भरी हैं जिनके कारण वह वसुंधरा कहलाती है उससे कौन परिचित न होना चाहेगा? लाखों-करोड़ों वर्षों से अनेक प्रकार की धातुओं को पृथिवी के गर्भ में पोषण मिला है। दिन-रात बहने वाली नदियों ने पहाड़ों को पीस-पीसकर अगणित प्रकार की मिट्टियों से पृथिवी की देह को सजाया है। हमारे भावी आर्थिक अभ्युदय के लिए इन सबकी जाँच-पड़ताल अत्यन्त आवश्यकहै। पृथिवी की गोद में जन्म लेने वाले जड़-पत्थर कुशल शिल्पियों से सँवारे जाने पर अत्यन्त सौन्दर्य के प्रतीक बन जाते हैं। नाना भाँति के अनगढ़ नग विन्ध्य की नदियों के प्रवाह में सूर्य की धूप से चिलकते रहते हैं, उनको जब चतुर कारीगर पहलदार कटाव पर लाते हैं तब उनके प्रत्येक घाट से नयी शोभा और सुन्दरता फूट पड़ती है। वे अनमोल हो जाते हैं। देश के नर-नारियों के रूप-मंडन और सौन्दर्य प्रसाधन में इन छोटे पत्थरों का भी सदा से कितना भाग रहा है; अतएव हमें उनका ज्ञान होना भी आवश्यक है।
(2019)
(I) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(II) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(III) दिन-रात बहने वाली नदियों ने किस प्रकार से पृथिवी की देह को सजाया है?
(iv) पृथिवी की गोद में जन्म लेने वाले जड़-पत्थर कैसे सौन्दर्य के प्रतीक बन जाते हैं?
(v) लेखक ने हमें किनके योगदान के बारे में बताते हुए उनसे परिचित होने की प्रेरणा दी है?
(vi) धरती को वसुन्धरा क्यों कहते हैं?
(vii) पृथिवी की देह को किसने सजाया है?
(viii) आर्थिक विकास के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर-(i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी अध्येतापाठ्य पुस्तक के 'गद्य-भाग' में संकलित एवं भारतीय संस्कृति के डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा लिखित 'राष्ट्र का स्वरूप' शीर्षक निबन्ध से अवतरित है।
अथवा
•पाठ का नाम- राष्ट्र का स्वरूप
• लेखक का नाम-वासुदेवशरण अग्रवाल।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या- विद्वान लेखक ने कहा है कि धरती माता की कोख में अमूल्य रत्न भरे पड़े हैं। इन्हीं रत्नों के कारण पृथ्वी का एक नाम वसुन्धरा (वसुओं = रत्नों को धारण करने वाली) भी है। बहुमूल्य रत्न, धातुएँ व खनिज पदार्थ, अन्न, फल, जल और इसी प्रकार की असंख्य अनमोल वस्तुओं, जिन्हें भूमि अपने आँचल में छिपाये रहती है, से हमारा प्रगाढ़ परिचय होना ही चाहिए।
(ii) दिन-रात बहने वाली नदियों ने पहाड़ों को पीस-पीसकर अगणित प्रकार की मिट्टियों से पृथिवी की देह को सजाया है।
(iv) पृथिवी की गोद में जन्म लेने वाले जड़-पत्थर कुशल शिल्पियों के सँवारे जाने पर अत्यन्त सौन्दर्य के प्रतीक बन जाते हैं।
(v) लेखक ने हमें छोटे-छोटे पत्थरों के योगदान के बारे में बताते हुए उन अमूल्य निधियों से परिचित होने के बात कही है।
(vi) धरती को 'वसुन्धरा' इसलिए कहते हैं, क्योंकि पृथ्वी स्वयं में विभिन्न प्रकार के अनेक मूल्यवान रत्नों अथवा कीमती एवं उपयोगी वस्तुओं को धारण किए हुए है।
(vii) पृथिवी की देह को दिन-रात बहने वाली नदियों ने पहाड़ों को पीस-पीसकर असंख्य प्रकार की मिट्टियों से सजाया है।
(vii) हमारे भावी आर्थिक विकास के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि पृथ्वी में छिपी समस्त निधियों, धातुओं और पृथ्वी पर पाई जाने वाली अनेक प्रकार की मिट्टियों को सही प्रकार से परीक्षण करके उनकी उपयोगिता के बारे में जानकारी प्राप्त की जाए।
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प्रश्न- पद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए?
ब्यापक ब्रह्म सबै थल पूरन है हमहूँ पहिचानती हैं। थल पै बिना नँदलाल बिहाल सदा 'हरिचंद' न ज्ञानहिं ठानती हैं । तुम ऊधौ यहँ कहियो उनसों हम और कछू नहिं जानती हैं। पिय प्यारे तिहारे निहारे बिना अँखियाँ दुखियाँ नहिं मानती हैं।
(2020)
(i) उपर्युक्त पद्यांश का शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
या उपर्युक्त पद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए |
(iii) गोपियाँ ब्रह्म के बारे में उद्धव से क्या कहती हैं?
(iv) 'प्यारे तिहारे निहारे' इन शब्दों में कौन-सा अलंकार है ?
(v) गोपियाँ उद्धव से श्रीकृष्ण को क्या सन्देश देने को कहती हैं?
(vi) गोपियाँ व्यापक ब्रह्म को किस रूप में मानती हैं? या कवि ने ब्रह्म का स्वरूप किस प्रकार व्यक्त किया है?
(vii) गोपियाँ सदैव किसके बिना 'बिहाल' रहती हैं?
या गोपिकाओं का दुःख क्या है?
(viii) इस पद्यांश में प्रयुक्त छन्द का नाम लिखिए।
(ix) गोपियाँ भली प्रकार किसके विषय में जानती हैं?
(x) सर्वव्यापक कौन है?
(xi) किसको छोड़कर किसे ज्ञान चर्चा रुचिकर नहीं लगती ?
(xii) गोपियों की दुःखिया आँखें क्या स्वीकार नहीं करतीं?
(xiii) गोपिकाएँ उद्धव से क्या निवेदन कर रही हैं?
उत्तर – (i) यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'काव्य-भाग' में संकलित एवं भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित 'प्रेम-माधुरी' शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है। अथवा
शीर्षक– प्रेम-माधुरी ।
कवि का नाम – भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या - गोपियाँ कहती हैं कि हम यह जानती हैं कि परमात्मा जल-थल आदि सभी जगह विद्यमान है; किन्तु श्रीकृष्ण के वियोग में हम सब व्याकुल रहती हैं और उन्हें छोड़कर हमें किसी भी प्रकार की ज्ञान- चर्चा रुचिकर नहीं लगती; अर्थात् हम तुम्हारे ज्ञानमार्ग को कोई महत्त्व नहीं देती हैं। हमारा हृदय श्रीकृष्ण के अलावा कहीं भी अनुरक्त नहीं है।
(iii) गोपियाँ ब्रह्म के बारे में उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव! हमें भी पता है कि ब्रह्म कण-कण में व्याप्त है।
(iv) "प्यारे तिहारे निहारे” इन शब्दों में रे' अक्षर की पुनरावृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है।
(v) गोपियाँ उद्धव के द्वारा श्रीकृष्ण को यह सन्देश देना चाहती हैं कि तुम्हारे दर्शन किए बिना हमारी आँखों को सन्तोष होने वाला नहीं है, इसलिए अतिशीघ्र हमें दर्शन दो।
(vi) गोपियाँ व्यापक ब्रह्म को सर्वव्यापक मानती हैं। उनके अनुसार ब्रह्म या परमात्मा जल-थल आदि सब जगह विद्यमान हैं।
(vii) गोपियाँ सदैव श्रीकृष्ण के वियोग में 'बिहाल'; अर्थात् व्याकुल/दुःखी रहती हैं।
(viii) इस पद्यांश में 'सवैया' छन्द का प्रयोग हुआ है।
(ix) गोपियाँ परमात्मा की सर्वव्यापकता के विषय में भली प्रकार जानती हैं।
(x) ब्रह्म या परमात्मा को सर्वव्यापक कहा गया है।
(xi) श्रीकृष्ण को छोड़कार गोपियों को किसी भी प्रकार की ज्ञान चर्चा - रुचिकर नहीं लगती है।
(xii) गोपियों की दुःखियाँ आँखें श्रीकृष्ण के दर्शनों के अतिरिक्त कुछ और स्वीकार नहीं करतीं।
(xiii) गोपिकाएँ उद्धव से निवेदन कर रही हैं कि “हे उद्धव! आप श्रीकृष्ण से जाकर यह कह देना कि हम गोपियाँ और कुछ नहीं जानतीं और हमारी ये दु:खिया आँखें श्रीकृष्ण के दर्शनों के अतिरिक्त कुछ और स्वीकार नहीं करतीं।"
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