सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय/Sumitra Nandan Pant ka Jivan prichay

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सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय/Sumitra Nandan Pant ka Jivan prichay

 सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय/Sumitra Nandan Pant ka Jivan prichay 


हिंदी साहित्य का भारतीय इतिहास में अमूल्य योगदान रहा है भारत भूमि पर ऐसे कई लेखक और कवि हुए हैं जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से समाज सुधार के कार्य किए जैसे जयशंकर प्रसाद महादेवी वर्मा सूर्यकांत त्रिपाठी निराला आदि आज हम आपको हिंदी भाषा के एक ऐसे कवि के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बिना हिंदी साहित्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती जिनका नाम है सुमित्रानंदन पंत आपको इस पोस्ट में इन का संक्षिप्त परिचय मिलेगा तो लोग इस पोस्ट में अंत तक जरूर पढ़ना है और अपने दोस्तों में भी शेयर करना और साथ ही आप लोगों को कमेंट करके बताना कि आप लोगों को पोस्ट कैसी लगी


सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय/Sumitra Nandan Pant ka Jivan prichay  


सुमित्रानंदन पंत संक्षिप्त जीवन परिचय


नाम- सुमित्रानंदन पंत मूल नाम गुसाई दत्त


जन्म -20 मई 1900


जन्म स्थान- कौसानी ग्राम

 

मृत्यु -28 दिसंबर 1977 


पिता का नाम -पंडित गंगा दत्त 


माता का नाम -सरस्वती देवी 


प्रारंभिक शिक्षा -कौसानी गांव 


उच्च शिक्षा -बनारस और इलाहाबाद अब प्रयागराज


भाषा ज्ञान -संस्कृत अंग्रेजी बांग्ला और हिंदी 


उपलब्धियां -1950 ईस्वी में ऑल इंडिया रेडियो के परम परामर्शदाता, साहित्य अकादमी पुरस्कार, सेवियत भूमि पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार पदम भूषण उपाधि 


काव्य धारा- छायावादी 


शैली -गीतात्मक


साहित्य में योगदान -काव्य में प्राकृतिक के कोमल भाव तथा मानवीय भागों का अत्यंत सूक्ष्म में वर्णन करने की यह  अद्वितीय है


पुरस्कार- पद्म विभूषण 1961 ज्ञानपीठ 1968 साहित्य अकादमी 


मुख्य कृतियां- पल्लव पीतांबरा एवं सत्य काम

जीवन परिचय- कविवर सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को अल्मोड़ा के निकट कौसानी ग्राम में हुआ था इनके पिता का नाम पंडित गंगादत्त था जन्म के 6 घंटे पश्चात ही इनकी माता का स्वर्गवास हो गया था अतः है इनका लालन-पालन पिता तथा दादी ने किया था इनकी प्रारंभिक शिक्षा को स्थानीय गांव में तथा उच्च शिक्षा का पहला चरण अल्मोड़ा में और बाद में बनारस के क्वींस कॉलेज से हुआ इनका काव्यगत सर्जन यहीं से प्रारंभ हुआ उन्होंने स्वयं ही अपना नाम गुसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया काशी में पंत जी का परिचय सरोजिनी नायडू तथा रविंद्र नाथ टैगोर के काम के साथ-साथ अंग्रेजी की रोमांटिक कविता से हुआ और यहीं पर इन्होंने कविता प्रतियोगिता से भाग लेकर प्रशंसा प्राप्त की! सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित होने पर इनकी रचनाओं ने कब मर्मज्ञो के हृदय में अपनी धाक जमा ली! वर्ष 1950 में यह ऑल इंडिया रेडियो के परामर्शदाता पद पर नियुक्त हुए और वर्ष 1957 तक यह प्रत्यक्ष रुप से रेडियो से संबंध रहे यह छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से एक थे उन्होंने वर्ष 1916-1977 तक साहित्य सेवा की| 28 दिसंबर 1977 को प्रकृति का यह सुकुमार कवि पंचतत्व में विलीन हो गया|


सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम गुसाईं दत्त रखा गया था लेकिन इनको अपना नाम पसंद नहीं था इसलिए उन्होंने बाद में अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया|


साहित्यिक परिचय- सुमित्रानंदन पंत का छायावादी युग के महान कवियों में से एक माने जाते हैं 7 वर्ष की अल्पायु से ही उन्होंने कविताएं लिखना प्रारंभ कर दिया था वर्ष 1916 में इन्होंने गिरजे का घंटा नामक सर्वप्रथम रचना लिखी इलाहाबाद के म्योर कॉलेज में प्रवेश लेने के उपरांत इनकी साहित्यिक रुचि और भी अधिक विकसित हो गए वर्ष 1920 में इनकी रचनाएं उच्छ वास और ग्रंथि में प्रकाशित हुई इनके उपरांत वर्ष 1927 में इनकी वीणा और पल्लव नामक दो काव्य संग्रह प्रकाशित हुए इन्होंने रूपाभ नामक एक प्रगतिशील विचारों वाले पत्र का संपादन भी किया वर्ष 1942 में इनका संपर्क महर्षि अरविंद घोष से हुआ|

इन्हें कला और बूढ़ा चांद पर साहित्य अकादमी पुरस्कार लोकायतन पर सोवियत भूमि पुरस्कार और चिदंबरा पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला भारत सरकार ने पंत जी को पदम भूषण की उपाधि से अलंकृत किया


कृतियाँ रचनाएं - पंत जी की कृतियां निम्नलिखित हैं-

काव्य- वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, स्वर्ण, किरण, युगांत, युगवाणी, लोकायतन ,चिदंबरा|


नाटक -रजतरश्मि, शिल्पी, ज्योत्सना|


उपन्यास -हार 


पंत जी की अन्य रचनाएं हैं- पल्लविनी, आतिमा, युगपथ, ऋता, स्वर्ण किरण, उत्तरा ,कला और बूढ़ा चांद, शिल्पी, स्वर्ण धूलि आदि|


भाषा शैली- पंत जी की शैली अत्यंत सरस एवं मधुर हैं बांग्ला तथा अंग्रेजी भाषा से प्रभावित होने के कारण इन्होंने गीतात्मक शैली अपनाई | सरलता, मधुरता ,चित्रात्मक ता, कोमलता और संगीत आत्मकताखेल किस शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं|


हिंदी साहित्य में स्थान- पंत जी सौंदर्य के उपासक थे प्रकृति नारी और कलात्मक सौंदर्य की सुंदर अनुभूति के तीन मुख्य केंद्र है इनके काव्य जीवन का आरंभ प्रकृति चित्रण से हुआ इनके प्रक्रिया माननीय भावों के चित्र में कल्पना एवं भावों के सुकुमार कोमलता के दर्शन होते हैं इसी कारण इन्हें प्रकृति का सुकुमार एवं कोमल भावनाओं से युक्त कवि कहा जाता है पंत जी का संपूर्ण काव्य साहित्य चेतना का प्रतीक है जिसमें धर्म-दर्शन नैतिकता सामाजिकता भौतिकता अध्यात्मिकता सभी का समावेश है|


प्रारंभिक शिक्षा- इनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई थी 1918 में वे अपने भाई के साथ काशी आ गए और वहां क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे मैट्रिक उत्तीर्ण करने के बाद यह इलाहाबाद आ गये वहां पर इन्होंने कक्षा बारहवीं इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की 1919 में महात्मा गांधी के सत्याग्रह से प्रभावित होकर अपनी शिक्षा अधूरी छोड़ दी और स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हो गये हिंदी संस्कृत अंग्रेजी और बांग्ला का स्वाध्याय किया इनका प्रकृति से असीम लगाव था बचपन से ही सुंदर रचनाएं लिखा करते थे|


आर्थिक संकट और मार्क्सवाद से परिचय- कुछ वर्षों के बाद सुमित्रानंदन पंत को गौर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा कर्ज से जुटे हुए पिताजी का निधन हो गया कर्ज चुकाने के लिए जमीन और घर भी भेजना पड़ा इन परिस्थितियों में यह मार्क्सवाद की और उन्मुख हुए|


उत्तरोत्तर जीवन- सुमित्रानंदन पंत जी 1931 में कुंवर सुरेश सिंह के साथ काला कालाकाकर प्रतापगढ़ चले गए और अनेक वर्षों तक वही रहे 1938 में इन्होंने प्रगतिशील मानसिक पत्रिका का रुपाभ का संपादन किया श्री अरविंद आश्रम की यात्रा से इनमें आध्यात्मिक चेतना का विकास हुआ और उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का निश्चय किया|


विचारधारा- उनका संपूर्ण साहित्य सत्यम शिवम सुंदरम के आदर्शों से प्रभावित होते हुए भी समय के साथ निरंतर बदलता रहा जहां प्रारंभिक कविताओं ने प्रकृति और सुंदर के रमणीय क्षेत्र मिलते हैं वहीं दूसरे चरण की कविताओं में छायावाद की सोच में कल्पनाओं कोमल भावनाओं के ओर अंतिम चरण की की कविताओं में प्रगतिवाद और विचारशील उनकी सबसे बाद की कविताएं अरविंद दर्शन और मानव कल्याण की भावनाओं से प्रेरित हैं पंत परंपरावादी आलोचकों और प्रकृति वादी तथा प्रयोगवादी आलोचकों के सामने कभी नहीं झुके| कि उन्होंने अपनी कविताओं में पूर्ण मान्यताओं को नकारा नहीं उन्होंने अपने ऊपर लगने वाले आरोपों को नम्र अवज्ञा कविता के माध्यम से खारिज किया


सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख कृतियां 


कविता संग्रह /खंडकाव्य

उच्छवास

पल्लव

 वीणा

 ग्रंथ

 गुंजन 

 ग्राम्या


 युगांत

 युगांतर

 स्वर्ग किरण

 स्वर्णधूलि 

 कला और बूढ़ा चांद

 लोकायतन

 सत्य काम 

 मुक्ति यज्ञ 

 तारा पथ

 मानसी 

 युगवाणी

 उत्तरा

 रजत शेखर

 शिल्पी

 सौदर्य

 अंतिमा 

 पतझड़

 अवगुंठित 

 मेघनाथ वध 

 ज्योत्सना

चुनी गई रचनाओं के संग्रह-

 युगपत

 चिदंबरा

 पल्लविनी 

 स्वच्छंद


पुरस्कार और सम्मान-

चिदंबरा के लिए ज्ञानपीठ लोकायतन के लिए सोवियत नेहरू शांति पुरस्कार और हिंदी साहित्य की इस अनवरत सेवा के लिए उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया गया| सुमित्रानंदन पंत के नाम पर कौसानी में उनके पुराने घर को जिसमें वह बचपन में रहा करते थे सुमित्रानंदन पंत विधिका के नाम से एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया इसमें उनके व्यक्तिगत प्रयोग की वस्तुएं जैसे कपड़ों कविताएं की मूल पांडुलिपियों छायाचित्र और पुरस्कारों को प्रदर्शित किया गया इसमें एक पुस्तकालय भी है जिसमें उनकी व्यक्तिगत तथा उनसे संबंधित पुस्तकों का संग्रह है|


स्मृति विशेष- उत्तराखंड में कुमायूं की पहाड़ियों पर बने कौसानी गांव में जहां उनका बचपन बीता था वहां का उनका घर आज सुमित्रानंदन पंत साहित्य विधिका नामक संग्रहालय बन चुका है इस संग्रहालय में उनके कपड़े चश्मा कलम आदि व्यक्तिगत वस्तुएं सुरक्षित रखी गई हैं जहां पर वही उनका प्रयोग करते थे संग्रहालय में उनको मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रशस्ति पत्र हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा मिला साहित्य वाचस्पति का स्थिति पत्र भी मौजूद है साथ ही उनकी रचनाएं लोकायतन आस्था आदि कविता संग्रह की पांडुलिपियों भी स्वच्छ रखी है काला काम करके कुंवर सुरेश सिंह हरिवंश राय बच्चन से किए गए उनके पत्र व्यवहार की प्रतिलिपि भी यहां मौजूद है|


सुमित्रानंदन पंत का साहित्य में स्थान पंत जी सौंदर्य के उपासक थे प्रकृति नारी और कलात्मक सौंदर्य इनकी सुंदर अनुभूति के तीन मुख्य केंद्र है इनके काव्य जीवन का आरंभ प्रकृति चित्र से हुआ इनके प्रकृति एवं मानवीय भावों के चित्र में कल्पना एवं भावों की सुकुमार कोमलता के दर्शन होते हैं इसी कारण इन्हें प्रकृति का सुकुमार एवं कोमल भावनाओं से युक्त कभी कहा जाता है पंत जी का संपूर्ण काव्य साहित्य चेतना का प्रतीक है जिसमें धर्म-दर्शन नैतिकता सामाजिकता भौतिकता अध्यात्मिकता सभी का समावेश है|


सुमित्रानंदन पंत की भाषा शैली 

पंत जी की शैली अत्यंत सरस मधुर है बांग्ला तथा अंग्रेजी भाषा से प्रभावित होने के कारण इन्होंने गीतात्मक शैली अपनाई सरलता मधुरता चित्रात्मकता कोमलता और संगीतात्मकता इनकी शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं| 


तो दोस्तों यह था सुमित्रानंदन पंत का संक्षिप्त जीवन परिचय अगर आपको पसंद आया तो आप लोग कमेंट करके जरूर बताना और अपने दोस्तों में भी शेयर करें तो दोस्तों पोस्ट पढ़ने के लिए आप सभी का धन्यवाद


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