समास की परिभाषा भेद एवं उदाहरण//samas ki paribhasha bhed or udharan
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आज के लेख में आज आपको बताने वाले हैं समास का तात्पर्य समास परिभाषा भेद एवं उदाहरण के बारे में तो हमारी पोस्ट में अंत तक बने रहे।
समास दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द को समाज कहते हैं। जैसे रसोई के लिए घर से हम रसोईघर भी कर सकते हैं। संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं में समाज का बहुत याद में प्रयोग होता है।
समाज की परिभाषाएं
सामासिक शब्द
समाज के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहते हैं। समाज होने के बाद विरक्तियों के चिन्ह परसर्ग लुप्त हो जाते हैं। जैसे-राजपूत्र।
समास-विग्रह
सामासिक शब्दों के बीच संबंधों को स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है विग्रह के पश्चात सामासिक शब्दों का लोप हो जाता है जैसे- राज-पुत्र- राजा का पुत्र।
पूर्व पद और उत्तरपद
समाज में दो पद शब्द होते हैं। पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं। जैसे-गंगाजल इसमें गंगा पूर्वपद और जल उत्तरपद हैं।
समास के भेद
समाज के छ: भेद हैं:
अव्ययीभाव
तत्पुरुष
द्विगु
द्वन्द्व
बहुव्रीहि
कर्मधारय
अव्ययीभाव समास
जिस समास का पहला पद पूर्व पद प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कैसे हैं। जैसे-यथामति मती के अनुसार, आमरण मृत्यु कर इसमे यथा और अव्यय है।
कुछ अन्य उदाहरण
आजीवन - जीवन-भर
यथासामर्थ्य- सामर्थ्य के अनुसार
यथाशक्ति- शक्ति के अनुसार
यथाविधि- विधि के अनुसार
यथाक्रम- क्रम के अनुसार
भरपेट- पेट भरकर
हररोज- रोज-रोज
हाथों हाथ- हाथी हि हाथ में
रातोंरात- रात ही रात में
प्रतिदिन- प्रत्येक दिन
बेशक- शक के बिना
निडर - डर के बिना
निसंदेह- संदेह के बिना
प्रतिवर्ष - हर वर्ष
अव्ययी समाज की पहचान- इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है अर्थात समास लगाने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है इसके साथ विभक्ति चिन्ह भी नहीं लगता।
तत्पुरुष समास
जिस समाज का उत्तरपद प्रधान और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे- तुलसीदासकृत= तुलसीदास द्वारा कृत रचित
ज्ञातव्य- विग्रह में जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला समाज होता है।
व्यक्तियों के नाम अनुसार तत्पुरुष समास के छ: भेद है-
कर्म तत्पुरुष
करण तत्पुरुष
संप्रदान तत्पुरुष
अपादान तत्पुरुष
संबंध तत्पुरुष
अधिकरण तत्पुरुष
तत्पुरुष समास के प्रकार
नञ तत्पुरुष समास
जिस समाज में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समाज कहते हैं। जैसे-
समस्त पद समास विग्रह समस्त पद समास विग्रह
असभ्य न सभ्य अनंत न अंत
अनादि न आदि असंभव न संभव
कर्मधारय समास
जिस समाज का उत्तरपद प्रदान हो और पूर्वपद उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्म धारण समाज कहलाता है। जैसे-
समस्त पद समास-विग्रह समस्त पद समास-विग्रह
चंद्रमुखी चंद्र जैसा मुख कमलनयन कमल के समान नयन
देहलता देव रूपी लता दहीबड़ा दही में डूबा बडा
नीलकमल नीला कमल पितांबर पीला अंबर (वस्त्र)
सज्जन सत् (अच्छा) जन नरसिंह नरो में सिंह के समान
द्विगु समास
जिस समाज का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समाज कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है।जैसे-
समाज विग्रह समस्त पद
नवग्रह नवग्रह का समूह
दोपहर दो पहरों का समाहार
त्रिलोक तीनों लोगों का समाहार है
चौमासा चार मासों का समूह
नवरात्र नवरात्रों का समूह
शताब्दी सौ शब्दों वर्षों का समूह
द्वन्द्व समास
जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर `औरʼ, अथवा, या, एवं लगता है वह द्वन्द्व समास कहलाता है।जैसे-
समस्त पद समास विग्रह
पाप-पुण्य पाप और पुण्य
सीता-राम सीता और राम
ऊंच- नीच ऊँच और नीच
अन्न-जल अन्ना और जल
खरा-खोटा खरा और खोटा
बहुव्रीहि समास
जिस समास के दोनों पद अप्रधान हो और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।- जैसे
समस्त पद समास-विग्रह
दशानन दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण
नीलकंठ नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव
सुलोचना सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाथ की पत्नी
पीतांबर पीला है अंबर (वस्त्र) अर्थात् श्री कृष्ण
दुरात्मा बुरी आत्मा वाला (दुष्ट )
श्वेतांबर श्वेत हैं जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात सरस्वतीजी
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