Class 10th Science Chapter 4 ncert notes / कार्बन और उसके यौगिक
Class 10th Science Chapter 4 ncert notes / कार्बन और उसके यौगिक
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यूपी बोर्ड कक्षा 10वी विज्ञान अध्याय 4 कार्बन तथा उसके यौगिक
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अध्याय 4 कार्बन तथा उसके यौगिक
बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक
प्रश्न 1. बकमिन्स्टर फुलेरीन एक अपररूप है।
(a) फॉस्फोरस का
(c) कार्बन का
(b) सल्फर का
(d) टिन का
उत्तर (c) बकमिन्स्टर फुलेरीन कार्बन का एक अपररूप है।
प्रश्न 2. प्रोपेन का रासायनिक सूत्र है
(a) CH₄
(b) C₃H₈
(c) C₄H₈
(d)C₂H₆
उत्तर (b) C₃H₈
प्रश्न 3. ऐल्काइन का सूत्र है
(a) C₃H₄
(b) C₃H₆
(c) C₄H₁₀
(d) C₂H₆
उत्तर (a) C₃H₄
प्रश्न 4. एथेन का आण्विक सूत्र C₂H₆है, इसमें
(a) 6 सहसंयोजक आबन्ध हैं
(b) 7 सहसंयोजक आबन्ध हैं
(c) 8 सहसंयोजक आबन्ध हैं
(d) 9 सहसंयोजक आबन्ध हैं
उत्तर (b) 7 सहसंयोजक आबंध हैं।
प्रश्न 5. C₂H₆का आई.यू.पी.ए.सी. नाम है।
(a) मेथेन
(b) एथेन
(c) एथाइन
(d) एथिलीन
उत्तर (b) एथेन
प्रश्न 6. एथिल ऐल्कोहॉल का आई.यू.पी.ए.सी. नाम है
(a) एथेनॉल
(b) मेथेनॉल
(d) एथेनोइक अम्ल
(c) ऐसीटिक अम्ल
उत्तर
(a) एथेनॉल
प्रश्न 7. ऐल्कोहॉलों के विहाइड्रोजनीकरण द्वारा प्राप्त होता है
(a) अम्ल
(b) एस्टर
(c) ऐल्डिहाइड
(d) ऐमीन
उत्तर (c) उत्प्रेरक की उपस्थिति में ऐल्कोहॉल के विहाइड्रोजनीकरण से कार्बोनिल यौगिक का निर्माण होता है।
प्रश्न 8. ब्यूटेनॉन चर्तु-कार्बन यौगिक है, जिसका प्रकार्यात्मक समूह है।
(a) कार्बोक्सिलिक अम्ल
(b) ऐल्डिहाइड
(C) कीटोन
(d) ऐल्कोहॉल
उत्तर (c) कीटोन
प्रश्न 9. दिए गए कार्बनिक यौगिकों में कीटोनिक प्रकार्यात्मक समूह वाला है
(a)CHCOOH
(b)CH₃COCH₃
(c) HCOOH
(d) CH₃CH₂OH
उत्तर (b) CH₃COCH₃
प्रश्न 10. ऐसीटोन का IUPAC नाम है।
(a) ब्यूटेनोन
(b) प्रापेनोन
(C) ब्यूटेनॉल
(d) प्रोपेनॉल
उत्तर (b) इसका IUPAC नाम प्रोपेनोन है।
प्रश्न 11. निम्नलिखित में से एल्डिहाइड है
(a) एथेनॉल
(b) एथेनल
(c) एथीन
(d) एथाइन
उत्तर
एथेनल
प्रश्न 13. ऐसीटिक अम्ल (CH₃COOH) का आई. यू.पी.ए.सी. नाम है
(a) एथेनॉल (c) मेथेनोइक अम्ल
(b) एथेनोइक अम्ल (d) प्रोपेनोइक अम्ल
उत्तर (b) एथेनोइक
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक
प्रश्न 1. प्रयोगशाला में सर्वप्रथम किस कार्बनिक यौगिक का निर्माण हुआ था?उसका नाम एवं सूत्र लिखिए। सम्बन्धित अभिक्रिया भी दीजिए।
उत्तर यूरिया (NH₂CONH₂) सर्वप्रथम निर्मित कार्बनिक यौगिक था, जो फ्रेडरिक व्होलर ने प्रयोगशाला में अमोनियम सायनेट को गर्म करके बनाया था।
ऊष्मा NH₄CNO → NH₂CONH₂यूरिया
अमोनियम सायनेट
प्रश्न . जैव शक्ति सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर फ्रांसीसी वैज्ञानिक बर्जीलियस के समय तक वैज्ञानिक जैव जगत से प्राप्त यौगिकों में से किसी भी यौगिक को प्रयोगशाला में संश्लेषित करने में असमर्थ थे। इस कारण यह धारणा बन गई कि जैव जगत से प्राप्त होने वाले यौगिकों का निर्माण प्रयोगशाला में नहीं किया जा सकता है। बर्जीलियस ने इस धारणा पर आधारित जैव शक्ति सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इस सिद्धान्त के अनुसार, जैव जगत से प्राप्त होने वाले यौगिकों के निर्माण में जैव शक्ति की उपस्थिति आवश्यक है। इस सिद्धान्त का मुख्य आधार यह था कि कार्बनिक यौगिकों का निर्माण केवल जीव-जन्तुओं और पेड़-पौधों द्वारा प्रकृति में ही सम्भव था
प्रश्न 3. निम्न का सामान्य गुण तथा संरचना बताइए।
(i) हीरा (ii) ग्रेफाइट
उत्तर (i) हीरा यह रंगहीन, पारदर्शी, अत्यधिक कठोर तथा उच्च अपवर्तन गुणांक (Refractive index) के कारण अत्यंत चमकीला है। हीरा प्रकृति में उपलब्ध पदार्थों में सबसे कठोर है। यह मुक्त इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति के कारण विद्युत का कुचालक है, परन्तु इसका गलनांक तथा ऊष्मीय चालकता अत्यधिक होती है।
संरचना हीरे की संरचना में प्रत्येक कार्बन परमाणु एक नियमित चतुष्फलक (Regular tetrahedron) के कोनों पर स्थित चार अन्य कार्बन परमाणुओं से सहसंयोजी आबन्ध द्वारा जुड़ा होता है। वास्तव में, हीरे की संरचना में कार्बन परमाणुओं की अति विशाल संख्या, प्रबल सहसंयोजक आबन्धों के द्वारा दृढ़ त्रि-आयामी संरचना के रूप में रहती है। अर्थात् हीरे की संरचना में प्रत्येक कार्बन परमाणु के सभी 4 संयोजक इलेक्ट्रॉन आबन्ध बनाने में प्रयुक्त हो जाते हैं, जिससे हमें हीरे की दृढ़ चतुष्फलकीय संरचना (Tetrahedral) प्राप्त होती है। अनेक चतुष्फलकीय संरचनाएँ मिलकर हीरे की दृढ़-त्रिविम व्यवस्था देते हैं, जिससे इसका गलनांक अत्यंत उच्च पाया जाता है।
(ii) ग्रेफाइट यह काले-भूरे रंग का अपारदर्शी पदार्थ है। यह हीरे से हल्का, मुलायम एवं स्पर्श करने पर चिकना होने की अनुभूति देता है। मुक्त इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण यह विद्युत का अच्छा सुचालक है। परन्तु ऊष्मा का कुचालक है।
संरचना ग्रेफाइट में कार्बन के परमाणु षट्कोणीय वलयों (Hexagonal rings) के रूप में पाए जाते हैं। ग्रेफाइट की परतों में, प्रत्येक कार्बन परमाणु तीन अन्य कार्बन परमाणुओं से सहसंयोजक आबन्धों द्वारा जुड़ा होता है, जिससे समतल षट्कोणीय वलय प्राप्त होता है। ग्रेफाइट के क्रिस्टल में कार्बन परमाणुओं की विभिन्न परतें काफी दूर-दूर होने के कारण ऊपर-नीचे की परतों में स्थित कार्बन परमाणुओं के बीच प्रबल सहसंयोजक आबन्ध नहीं बन पाते। ग्रेफाइट के क्रिस्टल में प्रत्येक कार्बन परमाणु के चार संयोजक इलेक्ट्रॉनों में से केवल तीन संयोजक इलेक्ट्रॉन आबन्ध बनाने में प्रयुक्त होते हैं तथा प्रत्येक कार्बन परमाणु का एक एक संयोजी इलेक्ट्रॉन स्वतंत्र रहता है। स्वतंत्र इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण ग्रेफाइट विद्युत का सुचालक हो जाता है। चूंकि ग्रेफाइट की विभिन्न परते दुर्बल बलों द्वारा जुड़ी है, इसलिए वे आसानी से एक दूसरे के ऊपर फिसल सकती है।
प्रश्न 4. एक ही तत्व के विभिन्न परमाणुओं का शृंखलन का गुण कैटीनेशन कहलाता है। कार्बन व सिलिकॉन दोनों तत्वों द्वारा शृंखलन प्रदर्शित होता है। इन दोनों तत्वों के शृंखलन गुण की परस्पर तुलना कारण सहित कीजिए।
उत्तर कार्बन यौगिकों में जिस सीमा तक श्रृंखलन का गुण पाया जाता है, वह किसी और तत्व में नहीं मिलता। सिलिकॉन हाइड्रोजन के साथ यौगिक बनाते हैं, जिसमें सात या आठ परमाणुओं तक की शृंखला हो सकती है, लेकिन ये यौगिक अति अभिक्रियाशील होते हैं। जबकि C-C बन्ध अत्यन्त प्रबल होते हैं, अत: यह स्थायी होता है
फलस्वरूप अनेक कार्बन परमाणुओं के साथ आपस में जुड़े हुए अनेक यौगिक प्राप्त होते हैं। कार्बन की चतुः सहसंयोजकता होती है, अन्य तत्वों के साथ कार्बन द्वारा बनाए गए आबन्ध अत्यन्त प्रबल होते हैं, इसका कारण कार्बन का छोटा आकार है जबकि बड़ा परमाणु होने के कारण सिलिकॉन द्वारा बनाए गए आबन्ध कार्बन आबन्ध की तुलना में दुर्बल होते हैं।
प्रश्न 5. जब साबुन को जल में डाला जाता है, तो मिसेल का निर्माण होता है, क्यों? क्या एथेनॉल जैसे दूसरे विलायकों में भी मिसेल का निर्माण होगा?
उत्तर साबुन का अणु दो सिरे वाला होता है-जलरागी (आयनिक भाग) तथा जलविरागी (हाइड्रोकार्बन भाग)। जब साबुन जल की सतह पर होता है, तब इसके अणु अपने को इस प्रकार व्यवस्थित कर लेते हैं कि इसका आयनिक भाग जल के अंदर होता है और हाइड्रोकार्बन भाग जल के बाहर होता है।
जब साबुन को जल में घोला जाता है तथा उसमें मैला कपड़ा भी रगड़ा जाता है, तब तैलीय धूल के कण हाइड्रोकार्बन भाग से तथा जल के अणु आयनिक भाग से जुड़ जाते हैं। अब ये सभी साबुन के अणुओं के आयनिक (ऋणात्मक) भाग बाहर की ओर तथा हाइड्रोकार्बन भाग भीतर की ओर व्यवस्थित होकर मिसेल बनाते हैं। इसका कारण यह है कि साबुन के आयनिक भागों में परस्पर आयन-आयन प्रतिकर्षण होता है।
ये कोलॉइड के रूप में रहते हैं तथा अवक्षेपित नहीं होते। वहीं, एथेनॉल अथवा दूसरे ऐसे विलायकों में साबुन के दोनों सिरे पूर्णतया घुल जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि एथेनॉल ध्रुवीय सहसंयोजी यौगिक है। अत: एथेनॉल जैसे दूसरे विलायकों में मिसेल का निर्माण नहीं होगा।
कार्बन के अपररूप एवं उनके गुण
कार्बन की सर्वतोमुखी प्रकृति क्या होती है
हीरा, ग्रेफाइट तथा फुलेरीन पर संचिप्त टिप्पणी
यदि कोई तत्व, विभिन्न भौतिक रूपों में पाया जाता है, तो वे, उस तत्व के अपररूप कहलाते हैं। कार्बन के तीन प्रमुख अपररूप निम्नलिखित हैं
हीरा
यह रंगहीन, पारदर्शी, अत्यधिक कठोर तथा उच्च अपवर्तन गुणांक के कारण अत्यन्त चमकीला है। हीरा प्रकृति में उपलब्ध पदार्थों में सबसे कठोर है। यह विद्युत का कुचालक है, परन्तु इसका गलनांक तथा ऊष्मीय चालकता अत्यधिक होती है।
ग्रेफाइट
यह काले-भूरे रंग का अपारदर्शी पदार्थ है। यह हीरे से हल्का, मुलायम एवं स्पर्श करने पर चिकना होने की अनुभूति देता है। यह विद्युत का अच्छा सुचालक है, परन्तु ऊष्मा का कुचालक है। ग्रेफाइट सर्वाधिक स्थायी अपररूप है।
फुलेरीन
C₆₀ का नाम बकमिंस्टरफुलेरीन (Buckminster fullerence) या बकी बॉल (Bucky Ball) C₆₀ की संरचना फुटबॉल जैसी होने के कारण रखा गया है। गोलाकार अणुओं के रूप में परस्पर जुड़े 60 कार्बन परमाणुओं के गुच्छों युक्त कार्बन (फुलेरीन) का अपररूप है। बकमिंस्टरफुलेरीन के अणु में 60 कार्बन परमाणु, षट्भुजीय और पंजभुजीय वलयों में व्यवस्थित होते हैं। C₆₀ सर्वाधिक क्रियाशील अपररूप है।
कार्बन की सर्वतोमुखी प्रकृति
अनुमान के अनुसार, कार्बन के लगभग तीन मिलियन यौगिक वर्तमान में ज्ञात हैं। कार्बन द्वारा इतनी अधिक संख्या में यौगिकों का बनाना निम्नलिखित कारकों के कारण है
(i) शृंखलन यह कार्बन परमाणु में एक अद्वितीय गुण है, जिसके द्वारा कार्बन परमाणु परस्पर जुड़कर कार्बन परमाणुओं की विभिन्न प्रकार की लम्बी-लम्बी श्रृंखलाएँ बना सकते हैं। कार्बन का यह गुण श्रृंखलन कहलाता है।
(ii) चतुः संयोजी कार्बन कार्बन की संयोजकता चार होने के कारण, यह कार्बन के अतिरिक्त अन्य परमाणुओं जैसे-हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, हैलोजन (जैसे क्लोरीन) या सल्फर आदि के साथ सहसंयोजी आबन्ध बना सकता है, जिसके परिणामस्वरूप हमें कार्बन के असंख्य यौगिक प्राप्त होते हैं।
(iii) बहु आबन्ध बनाने की प्रवृत्ति अपने छोटे आकार के कारण कार्बन में सहसंयोजन द्वारा बहु-आबन्ध (द्वि-तथा त्रि-आबन्ध) बनाने की प्रवृत्ति अत्यधिक पायी जाती है। कार्बन विभिन्न यौगिकों में स्वयं से, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन तथा सल्फर आदि के साथ अनेक स्थायी यौगिक बनाता है।
प्रश्न.हाइड्रोजनीकरण क्या है? इसका औद्योगिक अनुप्रयोग क्या है?
अथवा
वनस्पति तेल को घी में परिवर्तित करने के लिए सामान्यतः काम में आने वाली रासायनिक अभिक्रिया का नाम दीजिए। सम्बन्धित अभिक्रिया को विस्तार में समझाइए
उत्तर हाइड्रोजनीकरण असंतृप्त हाइड्रोकार्बनों (ऐल्कीन/ऐल्काइन) के साथ हाइड्रोजन की योग अभिक्रिया को हाइड्रोजनीकरण (Hydrogenation) कहते हैं। यह अभिक्रिया निकेल (Ni), पैलेडियम (Pd) आदि उत्प्रेरकों की उपस्थिति में होती है।
औद्योगिक अनुप्रयोग जब वनस्पति तेलों में निकेल (Ni) उत्प्रेरक की उपस्थिति में हाइड्रोजन गैस को उच्च ताप पर प्रवाहित किया जाता है, तब वनस्पति घी बनता है। यह प्रक्रिया तेलों का कठोरीकरण कहलाती है।
प्रश्न . सजातीय श्रेणी की परिभाषा दीजिए। इसे एक उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
अथवा सजातीय श्रेणी क्या है? उदाहरण के साथ समझाइए।
उत्तर जब कार्बनिक यौगिकों का सामान्य अणुसूत्र क्रियात्मक समूह समान हों तथा इन्हें अणुभार 14 के अन्तर से घटते हुए या बढ़ते हुए क्रम में व्यवस्थित किया जाए, तो एक श्रेणी का निर्माण होता है, इसे सजातीय श्रेणी कहते हैं।
उदाहरण CH₄(मेथेन), C₂H, (एथेन)
प्रश्न. सहसंयोजी यौगिकों के दो गुण बताइए।
उत्तर (i) अन्तरा-आण्विक बल के कम होने के कारण सहसंयोजी यौगिकों के क्वथनांक एवं गलनांक कम होते हैं।
(ii) सामान्यतः ये विद्युत के कुचालक होते है, क्योंकि परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी होती है तथा कोई आवेशित आयन उपलब्ध नहीं होता है।
प्रश्न . डिटर्जेन्ट के उपयोगों को उदाहरण द्वारा लिखिए।
उत्तर
डिटरजेन्ट के उपयोग
(i) अपमार्जकों का प्रयोग कठोर जल के साथ किया जाता है क्योंकि यह ऐल्काइल बेंजीन सल्फोनेट से निर्मित होता है।
(ii) अपमार्जकों का उपयोग घरों में बर्तनों व कपड़ों की सफाई के लिये किया जाता है।
ईंधन और जीवाश्म ईंधन किसे कहते हैं कितने प्रकार के होते होते हैं
ज्वाला किसे कहते हैं कितने प्रकार की होती है
ईंधन
वे पदार्थ, जो जलने पर प्रकाश एवं ऊष्मा देते हैं, ईंधन कहलाते हैं। जैसे-कार्बन, हाइड्रोकार्बन आदि।
जीवाश्म ईंधन
ये ईंधन, लम्बे समय पूर्व जो प्रागैतिहासिक पुराने पौधों तथा जन्तुओं (जीवाश्मों) के धरती में चट्टानों की परतों के नीचे दब गए थे, उनके विघटन से बनते हैं, जीवाश्म ईंधन कहलाते हैं।
कुछ प्रमुख जीवाश्म ईंधन निम्नलिखित हैं
1. कोयला
यह कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन के यौगिकों का जटिल मिश्रण है तथा इसमें कुछ मात्रा में मुक्त कार्बन के साथ नाइट्रोजन तथा सल्फर होते हैं। यह पौधों, फर्न तथा पेड़ों के विघटन से बनते हैं, जो लाखों वर्ष पूर्व पृथ्वी में दब गए थे।
2. पेट्रोलियम
प्रकृति में चट्टानों के नीचे दबा हुआ गाढ़ा, चिपचिपा, गहरे रंग वाला तथा विशिष्ट गन्ध वाला द्रव पाया जाता है। इस द्रव में C से C40-45 तक लम्बी श्रृंखला वाले ऐलिफैटिक यौगिक पाए जाते हैं इसलिए इसे पेट्रोलियम कहते हैं। ग्रीक भाषा में 'petra' का अर्थ चट्टान होता है तथा 'oleum' का अर्थ तेल होता है। ऐलिफैटिक हाइड्रोकार्बन पेट्रोलियम का मुख्य घटक है।
ज्वाला
यह, वह स्थान है जहाँ ईंधन के जलने के समय गैसीय पदार्थों का दहन होता है। ऑक्सीजन की मात्रा व ईंधन के दहन के आधार पर, ज्वाला दो प्रकार की होती है।
(i) नीली या अदीप्त ज्वाला पर्याप्त ऑक्सीजन की उपस्थिति में ईंधन का पूर्ण दहन होता है, जिससे नीली ज्वाला उत्पन्न होती है, किन्तु प्रकाश उत्पन्न नहीं होता। उदाहरण गैस स्टोव में LPG का दहन।
(ii) पीली या दीप्त ज्वाला अपर्याप्त वायु की पूर्ति की स्थिति में ईंधन का अपूर्ण दहन होता है, जिसके कारण बिना जले कार्बन कणों का निर्माण होता है, जो पीले रंग का प्रकाश उत्पन्न करते हैं। उदाहरण मोम के वाष्प का जलना।
साबुन किसे कहते हैं इसके निर्माण तथा शोधन की विधि
अपमार्जक किसे कहते हैं परिभाषा उदाहरण सहित
साबुन तथा अपमार्जक किसे कहते हैं
साबुन तथा अपमार्जक
उच्च अणु भार वाले मोनो कार्बोक्सिलिक अम्लों के सोडियम तथा पोटैशियम लवण साबुन कहलाते हैं। लम्बी श्रृंखला वाले कार्बोक्सिलिक अम्लों के अमोनियम या सल्फोनेट लवण अपमार्जक कहलाते हैं। अपमार्जक की लम्बी हाइड्रोजन शृंखला का निर्माण तेल या वसा से न करके पेट्रोलियम से किया जाता है।
सफाई कार्य के लिए साबुन की अपेक्षा अपमार्जक अधिक प्रभावशाली होते हैं, क्योंकि अपमार्जक Ca²⁺एवं Mg²⁺आयनों के साथ अवक्षेप नहीं देते हैं जो जल की कठोरता के लिए उत्तरदायी होते हैं, जबकि साबुन इन आयनों के साथ अवक्षेप देते हैं। इन्हें साबुन-रहित साबुन भी कहा जाता है।
साबुन तथा अपमार्जक का निर्माण वसा अम्लों के ग्लिसरॉल एस्टरों को जलीय सोडियम हाइड्रॉक्साइड के साथ गर्म करने पर साबुन का निर्माण होता है। इस अभिक्रिया को साबुनीकरण (Saponification) कहते हैं।
वसा + सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) →साबुन + ग्लिसरॉल
(स्टिएरिक अम्ल का ग्लिसरॉल एस्टर)
साबुन के अणु की संरचना
रासायनिक रूप से साबुन के निम्न दो भाग होते हैं
(i) अध्रुवीय हाइड्रोकार्बन भाग यह भाग वसा में विलेय होता है। इसे जलविरोधी (Hydrophobic) अथवा वसा स्नेही (Lipophilic) भी कहते हैं।
(ii) ध्रुवीय हाइड्रोकार्बन भाग यह भाग जल में विलेय होता है। इसे जलस्नेही (Hydrophilic) अथवा वसाविरोधी (Lipophobic) भी कहते हैं।
साबुन की शोधन क्रिया (मिसेल निर्माण)
साबुन को जल में विलेय करने पर यह जल में कोलॉइडी निलंबन बनाता है, जिसमें साबुन के अणु परस्पर गुच्छे के रूप में एकत्रित होकर गोलाकार साबुन का मिसेल बनाते हैं।
मिसेल के रूप में साबुन अनेक वस्तुओं को (जैसे-वस्त्र, शरीर, पात्र आदि) स्वच्छ करने में सक्षम होता है, क्योंकि तैलीय मैल मिसेल के केंद्र में एकत्र हो जाते हैं। विलयन में मिसेल, कोलॉइड के रूप में बने रहते हैं तथा आयन-आयन विकर्षण के कारण अवक्षेपित नहीं होते। इस प्रकार, मिसेल में तैरते मैल को आसानी से हटाया जा सकता है। साबुन के मिसेल, अपने बड़े आकार के कारण प्रकाश को प्रकीर्णित कर सकते हैं। यही कारण है, कि साबुन का घोल बादल जैसा दिखता है।
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