किशोरावस्था (Adolescence) से आप क्या समझते हैं || किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तन

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किशोरावस्था (Adolescence) से आप क्या समझते हैं || किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तन

किशोरावस्था (Adolescence) से आप क्या समझते हैं || किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तन

नमस्कार दोस्तों, आज की इस पोस्ट में हम आपको किशोरावस्था से संबंधित सभी प्रश्नों की संपूर्ण जानकारी देंगे। दोस्तों अगर आपको किशोरावस्था के बारे में जानकारी नहीं है तो आपके लिए यह पोस्ट उपयोगी साबित हो सकती है। अगर आप किशोरावस्था के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप लोग इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़िएगा। पोस्ट पसंद आए तो अपने सभी दोस्तों को भी शेयर करिएगा।

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किशोरावस्था एडोलसेन्स नामक अंग्रेजी शब्द का हिंदी रूपांतरण है। जिसका अर्थ है परिचक्वता की ओर वरना इस समय बच्चे न छोटे बच्चों की श्रेणी में आते हैं और न ही बड़े या अपने शब्दों में कहे तो यह छोटे से बड़े बनने की प्रक्रिया की समयावधि से गुजरते हैं। किशोरावस्था 11 से 18 वर्ष के बीच की मानी जाती है।


किशोरावस्था एवं यौवनारंभ (Adolescence and puberty) - अपनी मां के गर्भ में आने के बाद शिशु में धीरे-धीरे वृद्धि होने लगती है। 10 या 11 वर्ष की आयु में एकाएक वृद्धि में तीव्रता आती है और साफ दिखाई देने लगती है। वृद्धि एक प्राकृतिक प्रक्रम है। शरीर में होने वाले परिवर्तन वृद्धि प्रक्रिया का एक भाग है। यह इस बात का संकेत है कि अब आप बच्चे नहीं रहे तथा युवावस्था में कदम रख रही हैं। बाल्यावस्था में तरह-तरह की क्रियाएं करके बालक अपने माता पिता, सगे-संबंधियों के मन को लुभाता है। इस अवस्था में छोटे बच्चों की ज़िद तथा तुतलाती बोली अच्छी लगती है। बचपन 10 वर्ष तक चलता है।

जीवनकाल की वह अवधि जब शरीर में ऐसे परिवर्तन होते हैं जिसके परिणामस्वरूप जनन परिपक्वता आती है किशोरावस्था कहलाती है। किशोरावस्था की आयु 11 वर्ष से प्रारंभ होकर 18 या 19 वर्ष की अवस्था तक होती है। यह अवस्था ऐसी होती है जब बच्चों पर पूर्ण निगरानी रखनी पड़ती है। उसमें बाहरी ज्ञान एवं अच्छाई-बुराई पैदा होती है, जो बच्चों के विकास में सहायक होती है। बच्चे अच्छी संगति में बैठकर अच्छी बातें सीखते हैं तथा बुरी बातें बुरे बच्चों के साथ खेलकर बैठकर घूमकर तथा अन्य प्रकार से सीखते है। इस अवस्था में बालक का बौद्धिक विकास होता है। किशोरों को टीनेजर्स भी कहा जाता है। लड़कियों में यह अवस्था लड़कों की अपेक्षा एक या दो वर्ष पूर्व हो जाती है।

व्यक्तियों में किशोरावस्था की अवधि भिन्न-भिन्न होती है। किशोरावस्था के समय मनुष्य पूर्ण लंबाई प्राप्त कर लेता है।

लंबाई की गणना (सेमी में) का सूत्र - 


  पूर्ण लंबाई = वर्तमान लंबाई सेसी/वर्तमान आयु में पूर्ण लंबाई का प्रतिशत × 100


यौवनावस्था में होने वाले परिवर्तन (Change in young age) - प्रारंभ में लड़कियां लड़कों की अपेक्षा अधिक तीव्रता से बढ़ती हैं। 18 वर्ष की आयु तक दोनों अपनी अधिकतम लंबाई प्राप्त कर लेते हैं। अलग-अलग व्यक्तियों की लंबाई में वृद्धि की दर भी भिन्न होती है। कुछ युवनारंभ में तीव्रता गति से बढ़ते हैं तथा बाद में है गति धीमी हो जाती है, जब की लंबाई बहुत कम बढ़ती है। शरीर के सभी अंग समान दर से वृद्धि नहीं करते हैं।


यौवनारंभ में होने वाले परिवर्तन (Change in the puberty) - लंबाई में एकाएक वृद्धि युवनारंभ के समय होने वाला सबसे अधिक दृष्टिगोचर परिवर्तन है। इस समय शरीर की लंबी अस्थियों की अर्थात हाथ-पैरों की अस्थियों की लंबाई में वृद्धि होती है तथा बालक लंबा हो जाता है।

नीचे एक सारणी में 8 वर्ष से 18 वर्ष के बीच के बालक एवं बालिकाओं की लंबाईयों का औसत प्रतिशत दिया गया है -

आयु पूर्ण लंबाई का प्रतिशत


(वर्षों में)

  लड़के

लड़कियां

    8

    72

    77

    9

    75

    81

  10

    78

    88

  11

    81

  91

  12

    84

  91

  13

    88

  95

  14

    92

  98

  15

    95

  99

  16

    98

  95

  17

    99

  100

  18

  100

  100


उपयुक्त सारणी का प्रयोग करके आप अपने मित्रों की लंबाईयों का अनुमान लगाइए। यह भी पता लगाइए कि कौन सबसे लंबा तथा कौन सबसे बौना हो सकता है?

कभी-कभी किशोर के हाथ-पैर शरीर के दूसरे अंगों की अपेक्षा बड़े दिखाई देते हैं। परंतु शीघ्र ही दूसरे भाग भी वृद्धि कर शारीरिक अनुपात को संतुलित कर देते हैं, फलत: शरीर सुडौल हो जाता है। शरीर की लंबाई माता-पिता के जीन पर निर्भर करती हैं। पेशियों, अस्थियां एवं शरीर के अन्य भागों की सही ढंग से वृद्धि हेतु पर्याप्त पोषण ग्रहण करना सहायक रहता है।


स्वर में परिवर्तन (Change in voice) - जब बच्चे युवनावस्था में पहुंचते हैं, तो कुछ बच्चों की आवाज में मधुरता तथा कुछ बच्चों में कड़क आवाज होती है। साधारण-सी बात करने में ऐसा लगता है कि वह आपस में लड़ रही हों, जबकि ऐसा नहीं होता है। युवनारंभ में स्वरयंत्र लैरिन्कस में वृद्धि का प्रारंभ होता है। लड़कों का स्वरयंत्र विकसित होकर अपेक्षाकृत बड़ा हो जाता है। लड़कों में बढ़ता हुआ स्वरयंत्र गले के सामने की ओर सुस्पष्ट उभरे भाग के रूप में दिखाई देता है, जिसे एडॅम्स ऐपल कहते हैं। लड़कियों का स्वरयंत्र लड़कों की अपेक्षाकृत छोटा होता है और आवाज फटने या भर्राने लगती है। यह स्थिति कुछ दिनों अथवा कुछ सप्ताह तक बनी रह सकती है, जिसके बाद स्वर सामान्य हो जाता है।


शारीरिक आकृति में परिवर्तन (Changes in Body Shapes) - 

बच्चे जब कक्षाओं में अध्ययन करने के लिए जाते हैं तो बच्चों की आंखें, कमर, रंग-रूप, शरीर की बनावट, कंधे बड़े तथा छोटे होना, सुंदर तथा कुरूप बालक देखने को मिलते हैं। लड़कों तथा लड़कियों में परिवर्तन दिखाई देते हैं, कुछ छोटी आयु के बड़े दिखाई देते हैं। इसका कारण शरीर के हार्मोन्स की कमी या अधिकता होना है। जब बालक यौवनावस्था में पहुंचता है, तो उसके कंधे वृद्धि के कारण फैलकर चौड़े हो जाते हैं। लड़कियों में कमर का निचला हिस्सा चौड़ा हो जाता है। वृद्धि के कारण लड़कों में शारीरिक पेशियां लड़कियों की अपेक्षा सुस्पष्ट एवं गठी दिखाई देती है। अतः किशोरावस्था के समय लड़कों एवं लड़कियों में होने वाले परिवर्तन अलग-अलग होते हैं।


किशोरों की पोषण आवश्यकताएं (Nutrition Needs of the Adolescents) - किशोरावस्था में तीव्र वृद्धि तथा विकास की अवस्था के लिए भोजन में पाए जाने वाले विटामिन एवं पोषक-तत्व युक्त भोजन को ग्रहण करना चाहिए। आहार करते समय विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए। संतुलित आहार में कार्बोहाइड्रेट्स,प्रोटीन, वसा, विटामिन एवं खनिज का पर्याप्त मात्रा में समावेश होता है। हमारा भारतीय भोजन जिसमें चावल, रोटी, दाल एवं सब्जियां होती हैं, एक संतुलित आहार है। दूध अपने आप में संतुलित भोजन है। फल भी हमें पोषण देते हैं। शिशुओं को मां के दूध से संपूर्ण पोषण मिलता है जिसकी उन्हें जरूरत है।

   लौह (आयरन) तत्व रुधिर का निर्माण करता है तथा लौह प्रचुर खाद्य जैसे कि मांस, संतरा, पत्तेदार सब्जियां, गुण, आंवला आदि किशोर के लिए अच्छे खाद्य हैं। भोजन ऐसा होना चाहिए जिससे प्रोटीन तथा ऊर्जा प्राप्त होती है। इसमें वसा एवं शक्कर भी शामिल है, जो ऊर्जा प्रदान करते हैं। फल और सब्जियां खूब खानी चाहिए। कुछ बच्चे भोजन की जगह चिप्स के पैकेट अथवा डिब्बाबंद खाद्य-सामग्री स्वाद से खाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। भोजन के स्थान पर इन वस्तुओं को खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इन वस्तुओं में प्रोटीन तथा पोषक-तत्व भी उचित मात्रा में नहीं पाए जाते हैं। गोलगप्पे, टिक्की, तले हुए पकवान भी हमारे शरीर को हानि पहुंचाते हैं।


किशोरावस्था से संबंधित कुछ प्रश्न -


1. किशोरावस्था से आप क्या समझते हो?

उत्तर- जार्सिल्ड के अनुसार, "किशोरावस्था वह अवस्था है जिससे मनुष्य बाल्यावस्था से परिपक्वता की ओर बढ़ता है।" स्टैनले हॉल के अनुसार, "किशोरावस्था बड़े संघर्ष, तनाव, तूफान तथा विरोध की अवस्था है।"


2. बाल्यावस्था और किशोरावस्था का अर्थ क्या है?

उत्तर- किशोरावस्था को बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था का संधि काल कहा जाता है। किशोरावस्था बाल्यावस्था के समाप्त होने अर्थात 13 वर्ष की आयु से शुरू हो जाती है। किशोरावस्था को तूफान और संवेगों की अवस्था भी कहा जाता है। किशोरावस्था में बालक मूल्यों, आदर्शों और संवेगों में संघर्ष का अनुभव करता है।


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3. किशोरावस्था की प्रमुख विशेषताएं क्या है?

उत्तर- किशोरावस्था की प्रमुख विशेषताएं निम्न है-

(i) शारीरिक परिवर्तन - शारीरिक परिवर्तन शैशावस्था की भांति तीव्र गति से होते हैं।


(ii) मानसिक तथा बौद्धिक विकास - इस अवस्था में मानसिक विकास भी तीव्र गति से होता है तथा चरम बिंदु पर पहुंच जाता है।


(iii) कल्पना की बहुलता - दिवा स्वप्न किशोरों को प्रेरणा देते हैं तथा इस आधार पर वे रचनात्मक कार्य करते हैं।


4. किशोरावस्था के कितने प्रकार होते हैं?

उत्तर- कुछ मनोवैज्ञानिकों ने किशोरावस्था को दो भागों में विभाजित किया है-

(i)पूर्व किशोरावस्था 12 से 16 वर्ष की आयु तक।

(ii) उत्तरकिशोरावस्था 17 से 19 वर्ष की आयु तक।


5. बालक की अवस्था कितनी होती है?

उत्तर- बालक में विकास अचानक ही नहीं होता है। हम सभी में होने वाला यह विकास कुछ अवस्थाओं से होकर गुजरता है। बाल विकास की तीन मुख अवस्थाएं मानी गई हैं - शैशवावस्था, बाल्यावस्था और किशोरावस्था।


6. किशोरावस्था को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?

उत्तर- किशोरावस्था को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-


(i) शारीरिक बनावट और स्वास्थ्य - जिन बालकों का शरीर सुसंगठित और सुंदर होता है, उन्हें अपने समूह और समाज में अच्छा स्थान प्राप्त होता है।


(ii) पड़ोस और विद्यालय - बालक का सामाजिक विकास किस प्रकार का होगा, उसके पड़ोस और स्कूल से भी निर्धारित होता है।


7. किशोरावस्था में विकास कार्य क्या है?

उत्तर- इन्हें किशोरावस्था के विकासात्मक कार्य कहते हैं। शिशु अवस्था वा बचपन के दौरान, उदाहरण के लिए, विकासात्मक कार्यों में ठोस आहार को लेने का अभ्यास, मनोवैज्ञानिक स्थिरता प्राप्त करना तथा सामाजिक व शारीरिक वास्तविकताओं की सामान्य अवधारणाओं का सृजन करना शामिल होता है।


8. किशोरावस्था व्यक्ति के जीवन की कौन सी अवस्था है?

उत्तर- किशोरवय बालक व बालिकाओं की अवस्था 12 से 18 वर्ष के बीच होती हैं, विकास एवं वृद्धि की विभिन्न अवस्थाओं में किशोरावस्था अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। किशोरावस्था जीवन का वसंत काल मानी जाती है इस अवस्था में बालक न तो बच्चा और न ही पौढ़ होता है, जीवन की इस अवस्था को तूफान, तनाव एवं संघर्ष की अवस्था कहा जाता है।


9. किशोरावस्था का जनक कौन है?

उत्तर- किशोरावस्था में 'कल्पना की बहुलता' रहती है। इसलिए इस अवस्था को कहते हैं।

(i)तूफान व तनाव की अवस्था

(ii) कामुकता की अवस्था

(iii) गोल्डन ऐज

(iv)फेंटेसी की अवस्था

किशोरावस्था का पिता कहा जाता है।


10. किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है कैसे?

उत्तर- किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है। "किशोरावस्था तनाव, दबाव तथा संघर्ष की अवस्था है।" उपयुक्त कथन स्टैनले हॉल का है। किशोरावस्था व्यक्तित्व के विकास की सबसे जटिल अवस्था है। यह शब्द लैटिन भाषा के Adolcescence' से विकसित हुआ है।


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