पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी का जीवन परिचय कैसे लिखें? Biography of padum Lal Punnalal Bakshi
दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं कि पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जीवन परिचय आप कैसे लिखेंगे उनकी रचनाएं साहित्यिक परिचय और लास्ट में आपको इनसे संबंधित बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न देखने को मिलेंगे और उसका उत्तर भी दे रहे हैं आपको इस पोस्ट को पूरा पढ़ना है। पोस्ट पसंद आए तो अपने सभी दोस्तों के साथ भी शेयर करिएगा।
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जीवन परिचय, कवि परिचय एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएं एवं कृतियां, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी का जीवन परिचय कैसे लिखें? Biography of padum Lal Punnalal Bakshi |
जीवन परिचय
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
संक्षिप्त परिचय
जीवन परिचय:- पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जन्म सन 1894 ई० में जबलपुर के खैरागढ़ नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता पुन्नालाल बख्शी तथा बाबा उमराव बक्शी साहित्य प्रेमी और कवि थे। इनकी माता को भी साहित्य से प्रेम था। परिवार के साहित्यिक वातावरण के प्रभाव के कारण ये विद्यार्थी जीवन से ही कविताएं रचते थे। बी.ए. पास करते ही इन्होंने 'सरस्वती' में अपनी रचनाएं प्रकाशित करना प्रारंभ किया। बाद में 'सरस्वती' के अतिरिक्त अन्य पत्र-पत्रिकाओं में भी इनकी रचनाएं प्रकाशित होने लगी। इनकी कविताएं स्वच्छंदतावादी थीं, जिन पर अंग्रेजी कवि वर्ड्सवर्थ का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। बख्शी जी की प्रसिद्धि का मुख्य आधार आलोचना और निबंध लेखन है। साहित्य का यह महान साधक सन् 1971 ई० में परलोकबासी हो गया।
साहित्यिक परिचय:- बख्शी जी की गणना द्विवेदी युग के प्रमुख साहित्यकारों में होती है। बख्शी जी विशेष रूप से अपने ललित निबंधों के लिए स्मरण किए जाते हैं। ये एक विशेष शैली कार के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। इन्होंने जीवन, समाज, धर्म, संस्कृति और साहित्य आदि विषयों में उच्च कोटि के निबंध लिखे हैं। यत्र तत्र शिष्ट हास्य व्यंग के कारण इनके निबंध रोचक बन पड़े हैं। बक्शी जी ने 1920 ई० से 1927 ई० तक बड़ी कुशलता से सरस्वती का संपादन किया। कुछ वर्षों तक इन्होंने 'छाया' मासिक पत्रिका का भी संपादन बड़ी योग्यता से किया। इन्होंने स्वतंत्रतावादी काव्य एवं समीक्षात्मक कृतियों का सृजन किया। निबंधों, आलोचनाओं, कहानियों, कविताओं और अनुवादों में इनके गहन अध्ययन और व्यापक दृष्टिकोण की स्पष्ट छाप है।
बख्शी जी की कृतियों का विवरण इस प्रकार है-
निबंध संग्रह- 'प्रबंध पारिजात' , 'पंचपात्र' , 'पदमवन' , 'मकरंद बिंदु' , 'कुछ बिखरे पन्ने' आदि।
कहानी संग्रह- 'झलमला' , 'अंजलि' ।
आलोचना- 'विश्व साहित्य' , 'हिंदी साहित्य विमर्श' , 'साहित्य शिक्षा' , 'हिंदी उपन्यास साहित्य' , 'हिंदी कहानी साहित्य' ।
अनुवाद- 'प्रायश्चित' , 'उन्मुक्ति का बंधन' ।
काव्य-संग्रह- 'सतदल' , 'अश्रु दल' ।
भाषा शैली:- बख्शी जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है। भाषा में संस्कृत शब्दावली का अधिक प्रयोग है। उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। उनकी भाषा में विशेष प्रकार की स्वच्छंद गति के दर्शन होते हैं। इनकी शैली गंभीर, प्रभावोत्पादक, स्वाभाविक और स्पष्ट है। अपने लेखन में समीक्षात्मक, भावात्मक, विवेचनात्मक, व्यंग्यात्मक शैली को इन्होंने अपनाया है।
साहित्य में स्थान:- साहित्य जगत में साहित्यवाचस्पति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का प्रवेश सर्वप्रथम कवि रूप में हुआ था। कहा जाता है कवि व्यक्तित्व जितना सर्वोपरि होगा साहित्य के लिए उतना ही महत्वपूर्ण भी। बख्शी जी इस कसौटी पर खरे उतरते हैं। उनकी रचनाओं में उनका व्यक्तित्व स्पष्ट परिलक्षित होता है।
विवाह - सन 1913 ईस्वी में लक्ष्मी देवी के साथ उनका विवाह हो गया। 1916 में उन्होंने बीए की उपाधि प्राप्त की। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी बीए तक शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ साहित्य सेवा के क्षेत्र में आए और सरस्वती में लिखना प्रारंभ किया। इनका नाम द्विवेदी युग के प्रमुख साहित्यकारों में लिया जाता है।
कार्य क्षेत्र - 1911 में जबलपुर से निकलने वाली हितकारिणी में बख्शी की प्रथम कहानी तारिणी प्रकाशित हो चुकी थी। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने राजनांदगांव के स्टेट हाई स्कूल में सर्वप्रथम 1916 से 1919 तक संस्कृत शिक्षक के रूप में सेवा की। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने अपने साहित्यिक जीवन का शुभारंभ कवि के रूप में किया था। 1916 ईस्वी से लेकर लगभग 1925 ईस्वी तक इनकी स्वच्छंदतावादी प्रकृति के फुटकर कविताएं तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही। बाद में शतदल नाम से इनका एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हुआ। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी को वास्तविक ख्याति आलोचक तथा निबंधकार के रूप में मिली।
सरस्वती पत्रिका के संपादक -
सन 1920 में यह स्थिति के सहायक संपादक रूप में नियुक्त किए गए और 1 वर्ष के भीतर ही 1921 में वे सरस्वती के प्रधान संपादक बन गए जहां भी अपनी स्वेच्छा से त्यागपत्र देने तक 1925 तक इस पद पर बने रहे। सन 1929 से 1949 तक खैरागढ़ विक्टोरिया हाई स्कूल में अंग्रेजी शिक्षक के रूप में नियुक्त किए गए। तब सरस्वती हिंदी की एकमात्र ऐसी पत्रिका की जो हिंदी साहित्य की आमुख पत्रिका थी। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के संपादन में प्रारंभ से पत्रिका के संबंध में सभी विज्ञ पाठक जानते हैं। सन 1920 में द्विवेदी जी ने पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की संपादन क्षमता को नया आयाम देते हुए इन्हें सरस्वती का सह संपादक नियुक्त किया। फिर 1921 में वे सरस्वती के प्रधान संपादक बने यही वह समय था जब विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने हिंदी के स्तरीय साहित्य को संकलित कर सरस्वती का प्रकाशन प्रारंभ रखा।
प्रकाशित कृतियां -
बख्शी ग्रंथावली पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की रचनाओं की ग्रंथावली आठ खंडों में विभक्त हैं जो निम्नवत है।
बक्शी ग्रंथावली : ग्रंथावली एवं संक्षिप्त विवरण
बक्शी ग्रंथावली 1: कविताएं नाटक एकांकी उपन्यास
बख्शी ग्रंथावली 2: कथा साहित्य, बाल कथाएं
बख्शी ग्रंथावली 3: समीक्षात्मक निबंध
बख्शी ग्रंथावली 4: साहित्यिक निबंध
बख्शी ग्रंथावली 5: साहित्यिक सांस्कृतिक निबंध
बख्शी ग्रंथावली 6: संस्मरणात्मक निबंध
बक्शी ग्रंथावली 7: अन्य निबंध
बख्शी ग्रंथावली 8: अन्य निबंध संपादकीय डायरी
सम्मान -
1969 में सागर विश्वविद्यालय से द्वारिका प्रसाद मिश्र, तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा डॉ. लिट् उपाधि से विभूषित किया गया। इसके बाद उनका लगातार हर स्तर पर अनेक संगठनों द्वारा सम्मान होता रहा। उन्हें उपाधियों से विभूषित किया जाता मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन मध्यप्रदेश शासन आदि प्रमुख है। सन 1949 में उन्हें हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा साहित्य वाचस्पति से विभूषित किया गया।
उनका निधन सन 18 दिसंबर, 1971 को रायपुर के डी के अस्पताल में हो गया।
क्या लिखूं पाठ की व्याख्या ?
ड्यूटी के रेखांकित अंश की व्याख्या लेखक सी पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का कटाने की ढोलकी कर कर दो ही दूर बैठे किसी व्यक्ति को प्रसन्न इसलिए करती है क्योंकि वह अपने मन में कोलाहल से पुणे किसी घर के कोने में शादी के कारण लज्जा सील युवती की भी कल्पना करने लगता है। क्या लिखूं पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी का एक ललित निबंध है। जिसके विषय प्रतिपादन, प्रस्तुतीकरण एवं भाषा शैली में इनकी सभी विशेषताएं सन्नीविष्ट है। इस निबंध की उत्कृष्टता के दर्शन उस संबंधी रचना कौशल में होते हैं कोमा जिसके अंतर्गत लेखक ने 2 विषयों पर निबंध की विषय सामग्री करने आदि का संकेत ही नहीं किया है संक्षिप्त रूप में उन्हें प्रस्तुत भी कर दिया है।
बक्शी जी के अनुसार आज उनके लिए लेखक कार्य करना अनिवार्य है। उन्हें अंग्रेजी के प्रसिद्ध निबंधकार एजी गार्डिनर का कथन याद आ गया कि लिखने की एक विशेष मानसिक स्थिति होती है जब मन उस लेख के लिए उद्धत होता है। उस समय उसे विषय के बारे में ध्यान नहीं रहता है। जिस प्रकार हाइट को टांगने के लिए किसी भी खूटी का प्रयोग किया जा सकता है उसी प्रकार मन के भावों को किसी भी विषय पर प्रस्तुत किया जा सकता है। गार्डिनर साहब का कथन सर्वथा उपयुक्त है, परंतु लेखक बक्शी जी को लेखन कार्य के लिए कड़ा परिश्रम करना पड़ता है लेखक को नमिता दूर के ढोल सुहावने और अमिता ने समाज सुधार पर निबंध लिखने को दिया। जिस पर आदर्श निबंध लिखकर उन्हें निबंध रचना का रहस्य समझाना था। इसके लिए लेखक ने निबंध शास्त्र के कई आचार्य की रचनाएं देखी। एक विद्वान का कथन ताकि निबंध छोटा होना चाहिए क्योंकि यह बड़े की अपेक्षा अधिक अच्छा होता है। परंतु निबंध के दो अन्य सामग्री और शैली इसलिए लेखक को सामग्री एकत्र करने के लिए मनन करना होगा। लेखक के पास दूर के ढोल सुहावने पर निबंध लिखने के लिए पर्याप्त समय नहीं था। विद्वानों के अनुरूप किसी भी विषय पर निबंध लिखने से पहले उसकी रूपरेखा बना लेनी चाहिए जिससे लेखक कठिनाई का अनुभव करता है।
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