रसखान जी का जीवन परिचय||raskhan ji ka jivan Parichay

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रसखान जी का जीवन परिचय||raskhan ji ka jivan Parichay

रसखान जी का जीवन परिचय||raskhan ji ka jivan Parichay

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रसखान जी का जीवन परिचय||raskhan ji ka jivan Parichay


जीवन परिचय  (Jivan Parichay)

रसखान

संक्षिप्त परिचय



        नाम

रसखान (मूल नाम-    सैयद इब्राहिम)

      जन्म

    1533 ई०

    जन्म स्थान

  दिल्ली

        मृत्यु

  1618 ई०

  मृत्यु का स्थान

    ब्रज

        भक्ति

  कृष्ण भक्ति

          गुरु

गोस्वामी विट्ठलदास जी

    उपलब्धि

'रसखान' संज्ञा की उपाधि

    कृतियां

'सुजान रसखान', 'प्रेम वाटिका'

      भाषा

    ब्रज

साहित्य में योगदान

कृष्ण भक्ति का काव्य में अत्यंत मार्मिक चित्रण।

          रस

    भक्ति, श्रृंगार


रसखान कौन थे?

रसखान कृष्ण भक्त कवि तिरस्कार रीतिकाल के कवियों में सबसे प्रसिद्ध कृष्ण भक्त कवि थे उन्हें रस का खान कहा जाता था। रसखान का पूरा नाम सैयद इब्राहिम रसखान था। उनकी अधिकतम रचनाएं कृष्ण के श्रृंगार और भक्ति में होती थी। उनकी रचनाओं में भक्ति और श्रृंगार रस दोनों कूट-कूट कर भरे होते थे। 


जीवन परिचय:- हिंदी साहित्य और बृज-भाषा प्रेमी कृष्णभक्त मुसलमान कवियों में रसखान अग्रगण्य हैं। विद्वानों द्वारा इनका मूल नाम सैयद इब्राहिम माना जाता है। इनका जन्म 1533 ईस्वी में दिल्ली में हुआ माना जाता है। इनका जीवन वृत्त अभी भी अंधकार में है अर्थात् विद्वानों के बीच इनके जन्म के संबंध में अभी भी मतभेद हैं। इनके द्वारा रचित ग्रंथ प्रेम वाटिका से प्राप्त संकेत के आधार पर इनका संबंध दिल्ली राजवंश से माना जाता है। रसखान रात दिन श्री कृष्ण भक्ति में तल्लीन रहते थे।

इन्होंने गोवर्धन धाम अर्थात् गोकुल में जाकर अपना जीवन श्री कृष्ण के भजन कीर्तन में लगा दिया। ऐसा कहा जाता है कि इनकी कृष्ण भक्ति से प्रभावित होकर गोस्वामी विट्ठलनाथ जी ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया। इन्होंने गोस्वामी विट्ठलनाथ जी से बल्लभ संप्रदाय के अंतर्गत पुष्टिमार्ग की दीक्षा ली थी।

            

       वैष्णव धर्म में दीक्षा लेने पर इनका लौकिक प्रेम अलौकिक प्रेम में बदल गया और रसखान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त बन गए। ऐसी मान्यता है कि 'प्रेम वाटिका' (1614 ई०) इनकी अंतिम काव्य कृति है। संभवत: इस रचना के कुछ वर्ष बाद 1618 ई० में इनकी मृत्यु हो गई।


साहित्यिक परिचय:- रसखान ने श्रीकृष्ण की भक्ति में पूर्ण रुप से अनुरक्त होकर अपने काव्य का सृजन किया। अरबी और फारसी भाषा पर इनकी बहुत अच्छी पकड़ थी। काव्य और पिंगलशास्त्र का भी इन्होंने गहन अध्ययन किया। वे अत्यंत भावुक प्रवृत्ति के थे। संयोग और वियोग दोनों पक्षों की अभिव्यक्ति इनके काव्य में देखने को मिलती है। कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम ने ही इन्हें कवि के रूप में पहचान दिलाई। इन्होंने पूर्णरूपेण समर्पित होकर कृष्ण के बाल रूप एवं यौवन के मोहक रूपों पर अनेक कविताएं लिखी हैं। काव्य में जितने भी सौन्दर्य, गुण होते हैं, उनका प्रयोग इन्होंने अपनी कविताओं में किया है। सरसता, सरलता एवं माधुर्य इनके काव्य की विशेषताएं हैं।


कृतियां (रचनाएं):- रसखान द्वारा रचित दो ही रचनाएं उपलब्ध है-


1. सुजान रसखान- इसमें कवित्व, दोहा, सोरठा और सवैये हैं, यह 139 शब्दों का संग्रह है। यह भक्ति और प्रेम विषय पर मुक्त काव्य है।


2. प्रेमवाटिका- इसमें केवल 25 दोहे हैं। इस रचना में प्रेम रस का पूर्ण परिपाक हुआ है। रसखान की समग्र रचनाएं कृष्ण भक्ति एवं बृज प्रेम में लिप्त हैं।


भाषा शैली:- इनकी कविता में जनसाधारण योग्य ब्रज भाषा का ही प्रयोग हुआ है। इनके काव्य में भाषा का स्वरूप अत्यंत सरल व सहज है। अनेक स्थानों पर प्रचलित मुहावरों का प्रयोग इनकी रचनाओं में मिलता है। दोहा, कवित्व और सवैया तीनों छंदों पर इनका पूर्ण अधिकार था। रसखान के सवैये आज भी कृष्ण भक्तों के लिए कंठहार बने हुए हैं। अलंकारों के प्रयोग से भाषा का सौंदर्य और भी बढ़ गया है। रसखान ने अपने काव्य में सरल और परिमार्जित शैली का प्रयोग किया है।


हिंदी साहित्य में स्थान:- कृष्णभक्ति कवियों में रसखान का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। वे अपने प्रेम की तन्मयता, भाव- विहृलता और आसक्ति के उल्लास के लिए जितने प्रसिद्ध हैं, उतने ही अपनी भाषा की मार्मिकता, शब्दों के चयन और व्यंजक शैली के लिए। उनका स्थान कृष्ण भक्त कवियों में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इनकी भक्ति ह्रदय की मुक्त साधना है और इनका श्रृंगार वर्णन भावुक हृदय की उन्मुक्त अभिव्यक्ति है। इनके काव्य इनके स्वच्छंद मन के सहज उद्गार हैं।


रसखान नाम कैसे पड़ा?


रसखान के नाम को लेकर भी अलग-अलग मत प्रचलित हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने अपनी रचनाओं में रसखान के दो नाम सैयद इब्राहिम और सुजान रसखान लिखे हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि उन्होंने अपनी रचनाओं में उपयोग करने के लिए अपना नाम रसखान रख लिया था। राजा महाराजाओं के समय अपने क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के कारण खां की उपाधि दी जाती है।


रसखान की मृत्यु


वर्ष 1628 में ब्रजभूमि में इनकी मृत्यु हुई। मथुरा जिले में महाबन में इनकी समाधि बनाई गई है।


रसखान की रचनाएं 


रसखान की रचनाएं मुख्य रूप से कृष्ण और प्रेम छवि में विभाजित हैं - 

खेलत फाग सुहाग बड़ी

संकर से सुर जाहि जपै

मोरपखा सिर ऊपर राखिहौ

आवत है वन ते मनमोहन

जा दिनते निरख्यौ नंद नंदन 

कान्ह भये बस बांसुरी के

सोहत है चँदवा सिर मोर को


रसखान की शिक्षा 


रसखान के कृष्ण भक्त कवि थे उन्होंने गोकुल में ही अपना जीवन कृष्ण के भक्ति में बिताया था पूर्णविराम वह कृष्ण का भजन करते हुए मथुरा में अपना सारा जीवन व्यतीत कर लिया करते थे। विद्वानों का कहना है कि रसखान के पिता जागीरदार ऐसा कहा जाता है कि वह एक अच्छे परिवार में जन्म लिए थे इसलिए उनकी शिक्षा भी अच्छे से हुई थी। रसखान अरबी हिंदी संस्कृत और फारसी भाषा के अच्छे विद्वान थे ऐसा कहा जाता है कि वह बहुत ही अच्छे कृष्ण भक्त थे एक बार गोस्वामी विट्ठलदास जी उनके इस कृष्ण भक्ति को देखकर बहुत प्रभावित हुए और उन्हें अपना शिष्य बनने के लिए उनसे कहा और उन्हें अपना शिष्य बना लिया गोस्वामी विट्ठलदास जी रसखान को बल्लभ संप्रदाय से शिक्षा प्रदान की। रसखान ने जब वैष्णव धर्म से शिक्षा प्राप्त कर लिया तो वह कृष्ण के अनन्य भक्त बन गए इसके बाद उसका ने अपना जीवन कृष्ण के भक्ति में ही बता दिया।


रसखान का मूल नाम क्या था?

रसखान का मूल नाम सैयद इब्राहिम था।


रसखान किस धारा के कवि हैं?

रसखान सगुण काव्य धारा के कवि है।


रसखान ने कृष्ण की कैसी छवि का वर्णन किया है?

रसखान ने कृष्ण की बाल छवि का वर्णन किया है।


श्री कृष्ण के प्रति रसखान की भक्ति किस प्रकार की है?

श्री कृष्ण के प्रति रसखान की भक्ति दास भक्ति के प्रकार की है।


रसखान का जन्म कब हुआ था?

रसखान के जन्म के संबंध में बहुत से विद्वानों का कई मतभेद है कुछ विद्वान इनका जन्म 1533 ईस्वी को मानते हैं तथा कुछ विद्वान 1548 ईसवी को इनका जन्म मानते हैं।




रसखान की मृत्यु कब हुई?

रसखान की मृत्यु 1618 ईसवी के लगभग हुई थी।


रसखान का जन्म कहां हुआ था ?

कुछ विद्वानों का मानना है कि रसखान का जन्म दिल्ली के आसपास हुआ था।


रसखान के गुरु का क्या नाम था?

रसखान के गुरु का नाम गोस्वामी विट्ठलदास जी था।




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