CBSE Board class 10th Science chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current notes in hindi

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CBSE Board class 10th Science chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current notes in hindi

CBSE Board class 10th Science chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current notes in hindi



कक्षा 10वी विज्ञान अध्याय 13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव ncert notes




विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव Magnetic Effects of Electric Current




Important Points



#.एक विशेष गुण वाला पदार्थ जो लोहे तथा निकिल को आकर्षित करता है और जिसकी कोई निश्चित आकृति भी नहीं होती, चुम्बक कहलाता है।



#. किसी चुम्बक के द्वारा लोहे के टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करने के को गुण चुम्बकत्व कहते हैं।


#.किसी चुम्बक के चारों ओर का वह क्षेत्र, जिसमें चुम्बक के प्रभाव (चुम्बकीय सुई विक्षेपित हो जाए) का अनुभव किया जा सके। 



#. किसी चुम्बकीय क्षेत्र में चुम्बकीय रेखाएँ वे काल्पनिक रेखाएँ हैं जो उस स्थान में चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को अविरत प्रदर्शित करती है तथा इन रेखाओं के किसी बिन्दु पर खींची गयी स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर खींची गयी स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा प्रदर्शित करती है।


#.दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम के अनुसार, "यदि हम अपने दाएँ हाथ में विद्युत धारावाही चालक को इस प्रकार पकड़े कि अंगूठा विद्युत धारा की दिशा में हो व अँगुलियाँ तार पर लिपटी हों, तब लिपटी हुई अँगुलियों की दिशा चुम्बकीय बल रेखाओं की दिशा को प्रदर्शित करेंगी।”


#.विद्युतरोधी ताँबे के तार की बेलन की आकृति की पास-पास लिपटे अनेक फेरों वाली कुण्डली परिनालिका कहलाती है। 


#.लौह-चुम्बकीय पदार्थ से बनाए गए वे चुम्बक जो अल्प समय के लिए चुम्बकत्व धारण करते हैं, विद्युत चुम्बकत्व कहलाते हैं।


#.फ्लेमिंग के वाम- हस्त के नियमानुसार, "यदि हम अपने बाएँ हाथ के अंगूठे तथा उसके निकट वाली दोनों अँगुलियों को इस प्रकार फैलाते हैं कि तीनों एक-दूसरे के लम्बवत् रहें, तब यदि अंगूठे के पास वाली अँगुली (तर्जनी) चुम्बकीय क्षेत्र (B) की दिशा में तथा दूसरी अंगुली (मध्यमा) विद्युत धारा (I) की दिशा को दर्शाए तो अँगूठा चालक पर आरोपित बल (F) की दिशा को बताएगा।


#.विद्युत मोटर एक विद्युत यांत्रिक मशीन है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करती है अर्थात् इसे उपयुक्त विद्युत स्रोत से जोड़ने पर यह घूमने लगती है।


#.“जब किसी बन्द विद्युत परिपथ से सम्बन्धित चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो उस परिपथ में एक विद्युत वाहक बल (e.m.f.) उत्पन्न हो जाता है और परिपथ में इसी विद्युत वाहक बल के कारण विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है। यह विद्युत धारा केवल तब तक प्रवाहित होती है जब तक कि चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता रहता है। इस घटना को विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहते हैं।


#.फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम के अनुसार, "यदि दाएँ हाथ का अंगूठा उसके पास वाली तर्जनी अँगुली तथा मध्यमा अँगुली को परस्पर लम्बवत् इस प्रकार फैलाएँ कि तर्जनी अंगुली चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में तथा अँगूठा चालक की गति की दिशा में हो तब, मध्यमा अंगुली चालक की गति की दिशा में हो, तब मध्यमा अँगुली चालक में धारा की दिशा को दर्शाएँगी।


#.विद्युत जनित्र एक ऐसी युक्ति है जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है। इसके लिए यह फैराडे के वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर आधारित है।


#. हम अपने घरों में विद्युत शक्ति की आपूर्ति मुख्य तारों [अथवा मेंस (mains)] या विद्युत खम्भों के सहारे या भूमिगत केवलों से प्राप्त करते हैं। केवल के तीन पृथक् विद्युतरोधी तार होते हैं


(i) विद्युन्मय तार (या फेज तार या धनात्मक तार) 


(ii) उदासीन तार (या ऋणात्मक तार) तथा 

(iii) तार भू-सम्पर्क (अर्थ)


#.फ्यूज एक सुरक्षा युक्ति है जो किसी विद्युत परिपथ की 'शॉर्ट सर्किट' अथवा 'ओवरलोड' परिस्थितियों में सुरक्षा करती है।




वैद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव


जब किसी चालक तार में वैद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो उसके चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इस घटना को वैद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव कहते हैं।


नोट गतिमान आवेश के कारण चुम्बकीय क्षेत्र निर्मित होता है।


चुम्बकीय क्षेत्र


किसी चुम्बक के चारों ओर का वह क्षेत्र, जिसमें उस चुम्बक के प्रभाव का अनुभव किया जा सकता है, उसे चुम्बकीय क्षेत्र कहते हैं। यह एक सदिश राशि है तथा

इसका मात्रक टेस्ला अथवा वेबर / मीटर होता है।


चुम्बकीय बल रेखाएँ


 किसी चुम्बकीय क्षेत्र में चुम्बकीय बल रेखाएँ वे काल्पनिक रेखाएँ हैं, जो उस स्थान में चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को अविरत प्रदर्शित करती हैं तथा इन रेखाओं के किसी बिन्दु पर खींची गई स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करती है।


छड़ चुम्बक के परित: क्षेत्र रेखाएँ


यदि चुम्बक के समीपस्थ लोहे के बुरादे को रखा जाता है, तो लोहे का बुरादा चित्रानुसार व्यवस्थित हो जाता है।




चुम्बकीय बल रेखाओं के गुण



(i) चुम्बकीय बल रेखाएँ सदैव चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से निकलती हैं तथा वक्र बनाती हुई चुम्बक के दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती हैं और चुम्बक के भीतर से होती हुई पुनः उत्तरी ध्रुव पर वापस आती हैं।


(ii) चुम्बक के बाहर इन बल रेखाओं की दिशा उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर तथा चुम्बक के अन्दर दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर होती है।


(iii) चुम्बकीय बल रेखाएँ बन्द वक्र के रूप में चलती हैं। 


(iv) चुम्बकीय बल रेखाएँ एक-दूसरे को कभी नहीं काटती, क्योंकि एक बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ सम्भव नहीं हैं।


(v) चुम्बक के ध्रुवों के समीप, जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र प्रबल होता है, वहाँ चुम्बकीय बल रेखाएँ पास-पास होती हैं तथा ध्रुव से दूर जाने पर चुम्बकीय क्षेत्र की प्रबलता घटती जाती है। अतः वहाँ चुम्बकीय बल रेखाएँ परस्पर दूर होती जाती हैं। 


(vi) एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में बल रेखाएँ परस्पर समान्तर व बराबर दूरियों पर होती हैं।


(vi) चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा, चुम्बकीय बल रेखा के किसी बिन्दु पर स्पर्श रेखा द्वारा प्रदर्शित करते हैं। किसी वैद्युत धारावाही चालक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र सर्वप्रथम ओरेस्टेड ने प्रयोगों के आधार पर यह पता लगाया कि जब किसी चालक में वैद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो उसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र धारावाही चालक की आकृति पर निर्भर करता है। विभिन्न स्थितियों में धारावाही चालक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र निम्न हैं


1. सीधे धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र – जब किसी सीधे धारावाही चालक में धारा प्रवाहित करते हैं, तो चालक के समीप प्रेक्षण बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। यह चुम्बकीय क्षेत्र चालक में प्रवाहित वैद्युत धारा के अनुक्रमानुपाती तथा प्रेक्षण बिन्दु की चालक से दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होता है।


चालक के समीपस्थ बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र का मान ज्यादा होता है तथा दूरी बढ़ने के साथ-साथ चुम्बकीय क्षेत्र का मान भी कम हो जाता है। अतः सीधे धारावाही चालक तार में धारा की दिशा ज्ञात होने पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा भैक्सवेल के दाएँ हाथ के अंगूठे के नियमानुसार ज्ञात करते हैं।



मैक्सवेल के दाएँ हाथ के अँगूठे का नियम – इस नियम के अनुसार, यदि दाएँ हाथ में एक सीधे धारावाही चालक को इस प्रकार पकड़ें कि अँगुलियाँ तार पर लिपटी हों व अंगूठा धारा की दिशा में हो, तो लिपटी हुई अँगुलियों की दिशा चुम्बकीय बल रेखाओं की दिशा को प्रदर्शित करेगी।


2. वैद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश (कुण्डली) के कारण चुम्बकीय क्षेत्र


किसी धारावाही पाश के कारण चुम्बकीय बल रेखाएँ चित्र द्वारा दर्शाई गई हैं। धारावाही वृत्ताकार पाश के प्रत्येक बिन्दु पर बने इसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र को प्रदर्शित करते हैं। पाश के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र सीधी रेखाओं द्वारा प्रदर्शित है। अतः किसी धारावाही वृत्ताकार कुण्डली द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र को निम्न प्रकार बढ़ाया जा सकता है





(i) फेरों की संख्या बढ़ाकर 


(ii) कुण्डली में धारा का मान बढ़ाकर


3. धारावाही परिनालिका में प्रवाहित वैद्युत धारा के कारण चुम्बकीय क्षेत्र


किसी कुचालक बेलनाकार पाइप के ऊपर उसकी लम्बाई के अनुदिश एकसमान रूप से वैद्युतरोधी ताँबे के तारों को लपेटकर बनाई गई बहुत अधिक फेरों की कुण्डली, परिनालिका कहलाती है।


यदि इस कुण्डली में किसी सेल द्वारा वैद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो यह एक दण्ड चुम्बक की भाँति व्यवहार करने लगती है। अर्थात् परिनालिका का एक सिरा उत्तरी ध्रुव व दूसरा सिरा दक्षिणी ध्रुव की तरह व्यवहार करता है।




#.परिनालिका के भीतर सभी बिन्दुओं पर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ समान्तर सरल रेखा के रूप में होती हैं अर्थात् परिनालिका के भीतर सभी बिन्दुओं पर चुम्बकीय क्षेत्र समान होता है।


#. धारावाही परिनालिका के अन्दर गर्म लोहे की छड़ रखने पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता बढ़ जाती है। 


#.धारावाही परिनालिका में धारा की दिशा बदलने पर परिनालिका की ध्रुवता बढ़ जाती है।






वैद्युत चुम्बक


परिनालिका के भीतर उत्पन्न प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग किसी चुम्बकीय पदार्थ, जैसे- नम्र लोहे को परिनालिका के भीतर रखकर चुम्बक बनाने में किया जाता है। इस प्रकार बने चुम्बक को वैद्युत चुम्बक कहते हैं अर्थात् वैद्युत चुम्बक, वैद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव पर कार्य करती है तथा इस चुम्बकीय प्रभाव का अस्तित्व परिनालिका में बहने वाली धारा तक ही रहता है। वैद्युत चुम्बक बनाने के लिए कच्चे लोहे का उपयोग किया जाता है।


चुम्बकीय क्षेत्र में किसी वैद्युत धारावाही चालक पर बल – जब किसी l लम्बाई के वैद्युत धारावाही चालक को बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखा  जाता है, तो बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के कारण धारावाही चालक पर बल लगता है, जो चालक को विस्थापित करता है। अर्थात् चुम्बकीय बल, F = iBl sinθ


जहाँ, B= चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता  i= चालक में धारा l= चालक की लम्बाई तथा  θ= चालक की लम्बाई तथा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के बीच का कोण है। यदि धारावाही चालक, बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर (θ = 0°) रखा है, तो इस पर कोई बल नहीं लगता है। वैद्युत धारावाही चालक पर कार्यरत् बल, वैद्युत धारा की दिशा तथा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा पर निर्भर करता है। यदि धारावाही चालक, चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् (θ = 90°) रखा है, तो इस पर चुम्बकीय क्षेत्र के कारण कार्यरत बल का मान अधिकतम होता है।


इस प्रकार, चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान आवेश पर कार्यरत् बल, F=qvBsinθ जहाँ, θ गतिमान आवेश की दिशा तथा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के बीच का कोण है। 



 फ्लेमिंग के बाएँ हाथ का नियम


इस नियम के अनुसार, यदि बाएँ हाथ के अंगूठे तथा उसके पास वाली दोनों अंगुलियों को इस प्रकार फैलाया जाए कि तीनों एक-दूसरे के लम्बवत् रहे, तब इस स्थिति में यदि प्रथम अंगुली चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा को तथा बीच वाली अंगुली प्रवाहित धारा (i) की दिशा को प्रदर्शित करे, तो अंगूठा चालक पर लगने वाले बल

F की दिशा को प्रदर्शित करेगा। 



वैद्युत मोटर


यह एक ऐसी युक्ति है, जिसके द्वारा वैद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में बदला जाता है। इसमें एक कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में रखकर धारा प्रवाहित की जाती है, जिससे कुण्डली पर एक बल-युग्म कार्य करने लगता है। यह बल-युग्म कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाता है जिससे यान्त्रिक ऊर्जा प्राप्त होती है।


व्यापारिक वैद्युत मोटर


व्यापारिक वैद्युत मोटर में निम्न पुर्जों का उपयोग होता है


 (i) स्थायी चुम्बक के स्थान पर वैद्युत चुम्बक


(ii) वैद्युत धारावाही कुण्डली में चालक तारों के फेरों की संख्या बहुत अधिक होती है। 


(iii) वह नम्र लोहे की क्रोड जिस पर कुण्डली को लपेटा जाता है। यह कच्चे लोहे की क्रोड तथा कुण्डली का युग्म आर्मेचर कहलाता है, जिससे मोटर की शक्ति बढ़

जाती है।




वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण तथा प्रेरित वैद्युत वाहक बल


परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा वैद्युत वाहक बल अथवा वैद्युत धारा उत्पन्न होने की घटना को वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहते हैं तथा इस प्रकार उत्पन्न वैद्युत वाहक बल को प्रेरित वैद्युत वाहक बल कहते हैं। यदि कुण्डली का परिपथ बन्द होता है, तो कुण्डली में प्रेरित वैद्युत वाहक बल के कारण धारा प्रवाहित होती है, जिसे प्रेरित धारा कहते हैं।


चुम्बकीय फ्लक्स


किसी चुम्बकीय क्षेत्र में रखे पृष्ठ के अभिलम्बवत् गुजरने वाली चुम्बकीय बल रेखाओं की संख्या को उस पृष्ठ से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स कहते हैं।


अर्थात् चुम्बकीय फ्लक्स ∅ = BAcosθ जहाँ, θ= क्षेत्रफल सदिश व चुम्बकीय क्षेत्र के बीच का कोण है।


"फ्लेमिंग के दाएँ हाथ का नियम


फ्लेमिंग के दाएँ हाथ के नियम से प्रेरित वैद्युत धारा की दिशा ज्ञात की जाती है। इस नियमानुसार, यदि दाएँ हाथ का अंगूठा, उसके पास की तर्जनी अंगुली तथा मध्यमा अँगुली को परस्पर एक-दूसरे के लम्बवत् फैलाकर इस प्रकार रखें कि तर्जनी अंगुली चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में तथा अंगूठा चालक गति की दिशा में हो, तो मध्यमा अंगुली चालक में धारा की दिशा बताएगी।




दिष्ट धारा


वह वैद्युत धारा, जिसका परिमाण एवं दिशा समय के साथ नियत रहती है, उसे दिष्ट धारा कहते हैं। प्राथमिक सेलों, संचायक सेलों तथा दिष्ट धारा डायनेमो द्वारा दिष्ट धारा प्राप्त होती है।


प्रत्यावर्ती धारा


प्रत्यावर्ती वोल्टेज के कारण परिपथ में जो धारा बहती है, वह निरन्तर शून्य व अधिकतम मानों के बीच बदलती रहती है, कुण्डली के पहले आधे चक्कर में धारा एक दिशा में तथा दूसरे आधे चक्कर में विपरीत दिशा में बहती है। इस प्रकार की धारा को प्रत्यावर्ती धारा कहते हैं। प्रत्यावर्ती वैद्युत जनित्र अर्थात् प्रत्यावर्ती धारा डायनेमो द्वारा प्राप्त धारा प्रत्यावर्ती धारा ही होती है। 



आवृत्ति


एक सेकण्ड में प्रत्यावर्ती धारा द्वारा पूर्ण किए गए चक्रों की संख्या को आवृत्ति कहते हैं। भारत में प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति 50 हर्ट्ज है।



वैद्युत जनित्र या डायनेमो


वैद्युत जनित्र (डायनेमो) एक ऐसा यन्त्र है जो यान्त्रिक ऊर्जा को वैद्युत ऊर्जा में  बदलता है। यह फैराडे के वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है। 


डायनेमो दो प्रकार के होते हैं। 


(i)प्रत्यावर्ती धारा डायनेमो


(ii) दिष्ट धारा डायनेमो





बहुविकल्पीय प्रश्न     1 अंक


प्रश्न 1. निम्न में से कौन सा चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक नहीं है? 


(a) वेबर / मी²     (c) गॉस


(b) टेस्ला           (d) न्यूटन / ऐम्पियर²


उत्तर (d) चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक न्यूटन /ऐम्पियर² नहीं है।



 प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन किसी लंबे वैद्युत धारावाही तार के निकट चुम्बकीय क्षेत्र का सही वर्णन करता है?


(a) चुम्बकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ तार के लंबवत् होती हैं 


(b) चुम्बकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ तार के समांतर होती हैं


(c) चुम्बकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ अक्षीय होती हैं, जिनका उद्भव, तार से होता है


(d) चुम्बकीय क्षेत्र की संकेंद्री क्षेत्र रेखाओं का केंद्र तार होता है। 



उत्तर (d) चुम्बकीय क्षेत्र की संकेंद्री क्षेत्र रेखाओं का केंद्र तार होता है।


प्रश्न 3. परिवर्तनशील चुम्बकीय क्षेत्र के कारण किसी चालक में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा की दिशा का आंकलन निम्नलिखित नियम से किया जा सकता है


(a) दाएँ हाथ के अंगूठे का नियम 


(b) ओम का नियम


(c) फ्लेमिंग के बाएँ हाथ का नियम


(d) फ्लेमिंग के दाएँ हाथ का नियम 


उत्तर (d) प्रेरित वैद्युत धारा की दिशा का आंकलन फ्लेमिंग के दाएँ हाथ के नियम द्वारा किया जाता है। 



प्रश्न 4. स्थिर चुम्बकीय क्षेत्र में ध्रुवों के बीच किसी वैद्युत धारावाही चालक पर लगने वाले बल की दिशा ज्ञात करने के लिए उपयुक्त नियम है 


(a) मैक्सवेल कॉर्क स्क्रू नियम 


(b) फ्लेमिंग के दाएँ हाथ का नियम


(c) फ्लेमिंग के बाएँ हाथ का नियम 


(d) ओम का नियम


उत्तर (c) स्थिर चुम्बकीय क्षेत्र में ध्रुवों के बीच किसी वैद्युत धारावाही चालक पर लगने वाले बल की दिशा ज्ञात करने के लिए उपयुक्त नियम फ्लेमिंग के बाएँ हाथ का नियम है।


प्रश्न 5. वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण की परिघटना 


(a) किसी वस्तु को आवेशित करने की प्रक्रिया है.


(b) किसी कुंडली में वैद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करने की प्रक्रिया है 


(c) कुंडली तथा चुम्बक के बीच आपेक्षिक गति के कारण कुंडली में प्रेरित वैद्युत धारा उत्पन्न करना है


(d) किसी वैद्युत मोटर की कुंडली को घूर्णन कराने की प्रक्रिया हैं।


 उत्तर (c) कुंडली तथा चुम्बक के बीच आपेक्षिक गति के कारण कुंडली में प्रेरित वैद्युत धारा उत्पन्न करना है।


प्रश्न 6. वैद्युत धारा उत्पन्न करने की युक्ति है।


(a) जनित्र।          (C) अमीटर


(b) गैल्वेनोमीटर      (d) मीटर



उत्तर (a) जनित्र, वैद्युत धारा उत्पन्न करने की युक्ति है।




प्रश्न 7. डायनेमो परिवर्तित करता है


(a) रासायनिक ऊर्जा को वैद्युत ऊर्जा में


(b) ध्वनि ऊर्जा को चुम्बकीय ऊर्जा में


(c) यान्त्रिक ऊर्जा को वैद्युत ऊर्जा में 


(d) यान्त्रिक ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में


उत्तर (c) वैद्युत जनित्र (डायनेमो) एक ऐसा यन्त्र है, जो यान्त्रिक ऊर्जा को वैद्युत ऊर्जा में बदलता है।


प्रश्न 8. किसी AC जनित्र तथा DC जनित्र में एक मूलभूत अंतर यह है कि


(a) AC जनित्र में वैद्युत चुम्बक होता है जबकि DC मोटर में स्थायी चुम्बक होता है 


(b) DC जनित्र उच्च वोल्टता का जनन करता है


(c) AC जनित्र उच्च वोल्टता का जनन करता है


 (d) AC जनित्र में सर्पी वलय होते हैं जबकि DC जनित्र में दिकपरिवर्तक होता है


 उत्तर (d) AC जनित्र में सर्पी वलय होते हैं, जबकि DC जनित्र में दिकूपरिवर्तक होता है।


प्रश्न 9. डायनेमो उत्पन्न करता है


(a) आवेश               (c) वैद्युत क्षेत्र


(b) वैद्युत वाहक बल।  (d) चुम्बकीय क्षेत्र


उत्तर (b) डायनेमो, वैद्युत वाहक बल उत्पन्न करता है।


प्रश्न 10. निम्नलिखित प्रकथनों में कौन-सा सही है तथा कौन-सा गलत है? इसे प्रकथन के सामने अंकित कीजिए।



(a) वैद्युत मोटर यांत्रिक ऊर्जा को वैद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करता है 


(b) वैद्युत जनित्र वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है 


(C) किसी लंबी वृत्ताकार वैद्युत धारावाही कुंडली के केंद्र पर चुम्बकीय क्षेत्र समांतर सीधी क्षेत्र रेखाएँ होती हैं 


(d) हरे वैद्युतरोधन वाला तार प्रायः वैद्युतमय तार होता है


उत्तर (a) गलत


(b) सही


(c) सही


(d) गलत


          अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1. चुम्बकीय बल रेखाएँ किस रूप में प्राप्त होती हैं?


उत्तर चुम्बकीय बल रेखाएँ उत्तरी ध्रुव से उत्पन्न होकर, दक्षिणी ध्रुव पर समाप्त होती हैं। चुम्बक के अन्दर बल रेखाओं की दिशा दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर होती है। अतः चुम्बकीय बल रेखाएँ बन्द वक्र के रूप में प्राप्त होती हैं।



प्रश्न 2. चुम्बक के निकट लाने पर दिक्सूचक की सुईं विक्षेपित क्यों हो जाती है?



उत्तर दिक्सूचक की सुई एक छोटा छड़ चुम्बक ही होती है। इसका एक उत्तरोमुखी ध्रुव या उत्तरी ध्रुव होता है तथा दूसरा दक्षिणोमुखी ध्रुव या दक्षिणी ध्रुव होता है। जब दिक्सूचक को किसी स्थान पर रखते हैं, तो इसका उत्तरी ध्रुव घूम कर उत्तर दिशा व दक्षिणी ध्रुव घूम कर दक्षिण दिशा की ओर जाकर स्थिर हो जाता है। इन दिशाओं की ओर संकेत करने हेतु सूईं विक्षेपित होती है।



प्रश्न 3. किसी कुंडली में वैद्युत धारा प्रेरित करने की विभिन्न विधियाँ स्पष्ट कीजिए।



उत्तर किसी कुंडली में वैद्युत धारा को निम्न विधियों द्वारा प्रेरित किया जा सकता है


(i) एक चुम्बक को कुंडली की ओर या उससे दूर ले जाकर अथवा कुंडली को चुम्बक की ओर या उससे दूर ले जाकर (चुम्बक तथा कुंडली में आपेक्षिक गति द्वारा)


(ii) कुंडली के पास रखी एक अन्य कुंडली में प्रवाहित वैद्युत धारा की मात्रा में परिवर्तन करके।



प्रश्न 4. धारा की दिशा बदलने पर परिनालिका की ध्रुवता पर क्या प्रभाव पड़ेगा?


उत्तर धारा की दिशा बदलने पर परिनालिका की ध्रुवता बढ़ जाती है।



 उत्तर धारावाही परिनालिका के अन्दर नर्म लोहे की छड़ रखने पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता बढ़ती है


  प्रश्न 5. धारावाही परिनालिका के अन्दर नर्म लोहे की छड़ रखने पर क्या प्रभाव पड़ेगा


उत्तर धारावाही परिनालिका के अन्दर नर्म लोहे की छड़ रखने पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता  बढ़ जाएगी।


 प्रश्न 6. धारावाही परिनालिका की अक्ष पर चुम्बकीय बल रेखाएँ कैसी होती हैं ? ध्रुवों के नाम लिखिए।


उत्तर धारावाही परिनालिका की अक्ष पर चुम्बकीय बल रेखाएँ परिनालिका की अक्ष के समान्तर होती हैं।


प्रश्न 7. निम्न चित्र में धारावाही परिनालिका के सिरों पर उसके चुम्बकीय ध्रुवों के नाम



उत्तर चित्र में बायाँ सिरा उत्तरी ध्रुव तथा दायाँ सिरा दक्षिणी ध्रुव होगा।


प्रश्न 8. यदि स्वतन्त्रतापूर्वक लटकी हुई परिनालिका में वैद्युत धारा की दिशा बदल दी जाए, तो क्या होता है? 



उत्तर वैद्युत धारा की दिशा बदल जाने पर परिनालिका 180° से घूम जाएगी।



प्रश्न 9. परिनालिका चुम्बक की भाँति कैसे व्यवहार करती है? क्या आप किसी छड़ चुम्बक की सहायता से किसी वैद्युत धारावाही परिनालिका के उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव का निर्धारण कर सकते हैं?




उत्तर जब एक परिनालिका में वैद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तब यह वैद्युत चुम्बक की भाँति व्यवहार करती है। इस स्थिति में परिनालिका का एक सिरा उत्तरी ध्रुव तथा दूसरा सिरा दक्षिणी ध्रुव की भाँति कार्य करता है। जब हम परिनालिका के एक सिरे के पास छड़ चुम्बक का उत्तरी ध्रुव लाते हैं, तो उसका व्यवहार उसके ध्रुवों का निर्धारण करता है। परिनालिका का जो सिरा छड़ चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को आकर्षित करता है वह दक्षिणी ध्रुव है तथा उससे दूसरी ओर का सिरा उत्तरी ध्रुव । 


प्रश्न 10. किसी चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित वैद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल कब अधिकतम होता है?


 उत्तर जब चालक को चुम्बकीय क्षेत्र के अभिलम्बवत् दिशा में रखा जाता है, तब चालक पर आरोपित बल, 


F = Bil sinθअतः sin θका मान अधिकतम होने पर F का मान भी अधिकतम होगा। sinθ


चालक पर आरोपित बल अधिकतम होता है, क्योंकि का अधिकतम मान 1 होने के लिए θ = 90° होना चाहिए अर्थात् चालक को चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के अभिलम्बवत् दिशा में रखा जाना आवश्यक है। 


प्रश्न 11. एक धारावाही तार किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गति करता है, परन्तु तार में प्रेरित वैद्युत वाहक बल उत्पन्न नहीं होता है। ऐसा किस दशा में सम्भव है?


उत्तर यदि धारावाही तार किसी चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर गति करता है, तब प्रेरित वैद्युत वाहक बल उत्पन्न नहीं होता है।



प्रश्न 12. फ्लेमिंग के दाएँ हाथ का नियम बताइए।


उत्तर इस नियमानुसार, यदि दाएँ हाथ का अंगूठा, उसके पास की तर्जनी अँगुली तथा मध्यमा अँगुली को परस्पर एक-दूसरे के लम्बवत् फैलाकर इस प्रकार रखें कि तर्जनी अंगुली चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में तथा अंगूठा चालक की गति की दिशा में हो, तो मध्यमा अंगुली चालक में धारा की दिशा बताएगी।


प्रश्न 13. डायनेमो क्या है?


 अथवा यान्त्रिक ऊर्जा को वैद्युत ऊर्जा में बदलने वाले यन्त्र का नाम लिखिए। 


उत्तर डायनेमो एक ऐसा यन्त्र है, जो यान्त्रिक ऊर्जा को वैद्युत ऊर्जा में बदलता है। इसका कार्य फैराडे के वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर निर्भर है।



प्रश्न 14. मान लीजिए आप किसी चैम्बर में अपनी पीठ को किसी दीवार से लगा कर बैठे हैं। कोई इलेक्ट्रॉन पुंज आपके पीछे की दीवार से सामने वाली दीवार की ओर क्षैतिजतः गमन करते हुए किसी प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा आपके दाईं ओर विक्षेपित हो जाता है। चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?


 उत्तर फ्लेमिंग के वामहस्त नियम के अनुसार, चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा नीचे की ओर अभिलम्बवत होगी।



           लघु उत्तरीय प्रश्न 4 अंक


प्रश्न 1. चुम्बकीय बल रेखाओं से क्या तात्पर्य है? इनके प्रमुख गुणों का उल्लेख कीजिए ।


अथना चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के गुणों की सूची बनाइए। 


उत्तर किसी चुम्बकीय क्षेत्र में चुम्बकीय बल रेखाएँ वे काल्पनिक रेखाएँ हैं, जो उस स्थान में चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को अविरत प्रदर्शित करती हैं तथा इन रेखाओं के किसी बिन्दु पर खींची गई स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा प्रदर्शित करती है।



 प्रश्न 2. दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद क्यों नहीं करती हैं? छड़ चुम्बक के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ खींचिए।


उत्तर यदि चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद करेंगी, तो एक ही बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ होंगी, जोकि असम्भव है। इस कारण दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करती हैं।





प्रश्न 3. मेज के तल में पड़े तार के वृत्ताकार पाश पर विचार कीजिए। मान लीजिए इस पाश में दक्षिणावर्त वैद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम को लागू करके पाश के भीतर तथा बाहर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात कीजिए।



उत्तर वैद्युत धारावाही पाश के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ निम्न हैं




चित्रानुसार, वृत्ताकार पाश का प्रत्येक भाग अपनी संकेंद्रित बल रेखाएँ निर्मित करता है। दक्षिण अंगुष्ठ नियम के अनुसार, वृत्ताकार पाश के भीतर की ओर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा मेज के तल के नीचे की ओर अभिलम्बवत् होती है, जबकि पाश के बाहरी भाग में क्षेत्र की दिशा मेज के तल के ऊपर की ओर अभिलम्बवत् होती है। 




प्रश्न 4. धारावाही परिनालिका की चुम्बकीय बल रेखाओं को आरेख बनाकर दर्शाइए। परिनालिका के अन्दर नर्म लोहे की छड़ रखने पर क्या प्रभाव होगा? 


उत्तर -  धारावाही परिनालिका की चुम्बकीय बल रेखाएँ


किसी परिनालिका में धारा प्रवाहित करने के लिए इसके दोनों सिरों के बीच कुंजी (K), धारा नियन्त्रक (Rh) तथा बैटरी श्रेणीक्रम में चित्रानुसार जोड़ दिए जाते हैं।


जब कुँजी को बन्द कर देते हैं, तो परिनालिका में धारा प्रवाहित होने लगती है, परिनालिका के प्रत्येक फेरे में धारा की दिशा एक ही होती है। परिनालिका द्वारा उत्पन्न क्षेत्र इन वृत्ताकार कुण्डलियों से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का परिणामी बल क्षेत्र होता है। परिनालिका का वह सिरा जिससे होकर बल रेखाएँ अन्दर की ओर जाती हैं, दक्षिणी चुम्बकीय ध्रुव (S) की तरह व्यवहार करता है तथा दूसरा सिरा जिससे बल रेखाएँ बाहर निकलती हैं, उत्तरी ध्रुव (N) की तरह व्यवहार करता है। 


परिनालिका के अक्ष पर बल रेखाएँ अक्ष के समान्तर तथा बहुत पास-पास होती हैं। इसका अर्थ है कि परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र प्रबल व एकसमान प्राप्त होता है। किन्तु इसके सिरों के पास चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता कम होती है। परिनालिका के बाहर चुम्बकीय क्षेत्र बिल्कुल वैसा ही होता है जैसा कि परिनालिका के अक्ष के अनुदिश रखे एक दण्ड चुम्बक के कारण। परिनालिका के अन्दर नर्म लोहे की छड़ रखने से परिनालिका द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र काफी बढ़ जाता है। 


प्रश्न 5. चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान आवेश पर लगने वाला बल किन बातों पर निर्भर करता है? इस बल के लिए आवश्यक सूत्र लिखिए। 


उत्तर चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान आवेश पर लगने वाला बल, निम्न कारकों पर निर्भर करता है


(ii) आवेश की चाल पर


(i) आवेश g पर q (iii) चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता B पर (iv) 0 तथा B के मध्य कोण θ पर गतिमान आवेश पर लगने वाला बल निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त किया जाता है


F = quB sinθ



प्रश्न 6. चुम्बकीय बल की दिशा ज्ञात करने के नियम का उल्लेख कीजिए । 


अथवा फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम का सचित्र वर्णन कीजिए। 


उत्तर फ्लेमिंग के नियमानुसार, यदि बाएँ हाथ के अँगूठे, संकेत अँगुली तथा मध्यमा अँगुली को इस प्रकार फैलाएँ कि वे परस्पर लम्बवत् हो और संकेत अँगुली चुम्बकीय क्षेत्र (B) की दिशा को तथा मध्यमा अंगुली धारा (I) की दिशा को व्यक्त करे, तब अंगूठा चालक पर लगने वाले बल (F) की दिशा को व्यक्त करता है।


प्रश्न 7. दक्षिण हस्त अँगूठे के नियम में, हमारे विचार से छड़ AB का विस्थापन किस प्रकार प्रभावित होगा, यदि 


(i) छड़ AB में प्रवाहित वैद्युत धारा में वृद्धि हो जाए



(ii) अधिक प्रबल नाल चुम्बक प्रयोग किया जाए और 


(iii) छड़ AB की लंबाई में वृद्धि कर दी जाए?


उत्तर (i) छड़ AB में प्रवाहित वैद्युत धारा में वृद्धि करने पर चालक पर आरोपित बल में भी वृद्धि हो जाती है, अतः विस्थापन पहले की अपेक्षा अधिक होगा।


(ii) अधिक प्रबल नाल चुम्बक का प्रयोग करने पर, चुम्बकीय क्षेत्र अधिक प्रबल होगा। इसके कारण चालक पर अधिक मात्रा में बल आरोपित होगा व विस्थापन भी अधिक होगा।


(iii) चालक का विस्थापन इसकी लंबाई के अनुक्रमानुपाती होता है, अतः छड़ AB की लंबाई में वृद्धि करने पर इसके विस्थापन में भी वृद्धि होमी



प्रश्न 9. वैद्युत मोटर व वैद्युत जनित्र के बीच क्या अन्तर है? 


उत्तर वैद्युत मोटर व वैद्युत जनित्र के बीच निम्न अन्तर हैं।



वैद्युत मोटर

वैद्युत जनित्र

यह यान्त्रिक ऊर्जा को वैद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है।

यह वैद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करता है।


कुण्डली को बाह्य स्रोत द्वारा धारा दी जाती है।

कुण्डली, चुम्बकीय क्षेत्र में घूर्णन करती है।

कुण्डली में वैद्युत द्वारा प्रवाहित करने पर कुण्डली में एक बलयुग्म कार्य करता है।


कुण्डली के चुम्बकीय क्षेत्र में घूर्णन करने से चुम्बकीय फ्लक्स के मान में परिवर्तन होता है


यह फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के पर नियम पर कार्य करता है।

यह फ्लेमिंग के दाएं हाथ के पर नियम पर कार्य करता है।





विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 7 अंक


प्रश्न 1. वैद्युत मोटर का कार्यकारी सिद्धान्त क्या है? इसकी रचना एवं कार्यविधि चित्र बनाकर, स्पष्ट व्याख्या कीजिए।


अथवा वैद्युत मोटर का नामांकित आरेख खींचिए। इसका सिद्धान्त तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। वैद्युत मोटर में विभक्त वलय का क्या महत्त्व है? 


अथवा वैद्युत मोटर के सिद्धान्त, संरचना और कार्यविधि का सचित्र वर्णन कीजिए।



अथवा वैद्युत मोटर का नामांकित चित्र बनाइए तथा इसकी कार्यविधि समझाइए। इसका उपयोग किस प्रकार के ऊर्जा रूपान्तरण में होता है? 


अथवा उपयुक्त चित्र द्वारा एक वैद्युत मोटर की कार्यविधि समझाइए एवं इसकी उपयोगिता बताइए। 




 उत्तर वैद्युत मोटर वैद्युत मोटर एक ऐसा यन्त्र है, जो वैद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में बदलता है।


सिद्धान्त वैद्युत मोटर का सिद्धान्त इस तथ्य पर आधारित है कि जब किसी कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में रखकर उसमें वैद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो कुण्डली पर एक बलयुग्म कार्य करने लगता है, जो कुण्डली को उसके अक्ष पर घुमाने का प्रयास करता है। यदि कुण्डली अपने अक्ष पर घूमने के लिए स्वतन्त्र हो, तो वह घूमने लगती है।


संरचना वैद्युत मोटर के चार मुख्य भाग हैं।



(i) क्षेत्र चुम्बक यह एक शक्तिशाली स्थायी चुम्बक होती है, जिसके ध्रुव खण्ड N व S होते हैं।


(ii) आर्मेचर यह ताँबे के तार के अनेक फेरों वाली एक आयताकार कुण्डली ABCD होती है, जो कच्चे लोहे की क्रोड पर ताँबे के तार के पृथक्कित फेरे लपेटकर बनाई जाती है। यह चुम्बक के ध्रुवों NS के बीच घूमती है। 



(iii) विभक्त वलय ये दो अर्द्धवृत्ताकार वलयों अथवा दो खण्डों में विभक्त एक वलय के रूप में होते हैं। आर्मेचर की कुण्डली के सिरे इन दो अलग-अलग वलयों L व M से जुड़े होते हैं। ये वलय आर्मेचर के ध्रुव दण्ड से जुड़े होते हैं। 


(iv) ब्रुश विभक्त वलय L व M कार्बन धातु की बनी दो पत्तियों b1व b2 को स्पर्श करते इन्हें ब्रुश कहते हैं। इन ब्रुशों का सम्बन्ध दो संयोजक पेंचों से करके इनके बीच एक बैटरी लगा देते हैं। एक ब्रुश से वैद्युत धारा कुण्डली में प्रवेश करती है तथा दूसरे ब्रुश से वैद्युत धारा बाहर

निकलती है।


 कार्यविधि जब बैटरी से कुण्डली में वैद्युत धारा प्रवाहित करते हैं, तो फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम से, कुण्डली की भुजाओं AB तथा CD पर बराबर परन्तु विपरीत दिशा में दो बल कार्य करने लगते हैं, ये दोनों बल एक बल-युग्म बनाते है, जिसके कारण कुण्डली वामावर्त दिशा में घूमने लगती है। कुण्डली के साथ इसके सिरों पर लगे विभक्त वलय भी घूमने लगते हैं। इन विभक्त वलयों की मदद से धारा की दिशा इस प्रकार रखी जाती है कि कुण्डली पर बल-युग्म लगातार एक ही दिशा में कार्य करे अर्थात् कुण्डली एक ही दिशा में घूमती रहे।



उपयोग वैद्युत मोटर का उपयोग बिजली के पंखे, जल-पम्प, गेहूं पीसने की चक्की एवं अनेक वैद्युत उपकरणों में होता है।



प्रश्न 2. प्रत्यावर्ती धारा जनित्र के सिद्धान्त, संरचना और कार्यविधि का सचित्र वर्णन कीजिए।


अथवा वैद्युत जनित्र किस सिद्धान्त पर कार्य करता है? नामांकित चित्र बनाकर इसकी कार्यविधि समझाइए।



उत्तर प्रत्यावर्ती धारा जनित्र यह यान्त्रिक ऊर्जा को प्रत्यावर्ती धारा के रूप में वैद्युत ऊर्जा में बदलता है।


सिद्धान्त वैद्युत जनित्र वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है। जब किसी चालक से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है, तो उसमें वैद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है, जिसे प्रेरित वैद्युत वाहक बल कहते हैं और यदि परिपथ बन्द है, तो उसमें वैद्युत धारा प्रवाह होने लगती है, जिसे प्रेरित वैद्युत धारा कहते हैं।




प्रश्न 3. वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण से आप क्या समझते हैं? फैराडे के वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण सम्बन्धी नियमों को लिखिए। वैद्युत जनित्र का सिद्धान्त लिखिए।




उत्तर वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण सम्बन्धी नियम


प्रथम नियम जब किसी कुण्डली से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स के मान में परिवर्तन होता है, तो कुण्डली में प्रेरित वैद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है। यदि परिपथ बन्द है, तो कुण्डली में प्रेरित धारा प्रवाहित होती है।


द्वितीय नियम वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण की प्रत्येक अवस्था में प्रेरित वैद्युत वाहक बल तथा प्रेरित धारा की दिशा इस प्रकार होती है कि वे उन कारणों का विरोध करते हैं, जिनके कारण उनकी उत्पत्ति हुई है। यह लेन्ज का नियम कहलाता है। लेन्ज का नियम ऊर्जा संरक्षण नियम पर आधारित होता है।



प्रश्न 4. डायनेमो क्या है? प्रत्यावर्ती धारा डायनेमो की संरचना तथा कार्यविधि का वर्णन कीजिए। 


अथवा प्रत्यावर्ती धारा जनित्र का स्वच्छ नामांकित चित्र खींचकर सिद्धान्त,  रचना एवं उसकी कार्यविधि का वर्णन कीजिए। 


 अथवा नामांकित आरेख खींचकर किसी वैद्युत डायनेमो का सिद्धान्त तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। इसमें बुशों का क्या कार्य है? 


उत्तर वह यन्त्र जो यान्त्रिक ऊर्जा को वैद्युत ऊर्जा में बदल देता है, वैद्युत जनित्र (डायनेमो) कहलाता है। यह वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर आधारित है। वैद्युत जनित्र में यान्त्रिक ऊर्जा का उपयोग चुम्बकीय क्षेत्र में रखे चालक को घूर्णी गति प्रदान करने में किया जाता है जिसके फलस्वरूप प्रेरित वैद्युत धारा उत्पन्न होती है।


वैद्युत जनित्र दो प्रकार के होते हैं


 (i) प्रत्यावर्ती धारा जनित्र


(ii) दिष्ट धारा जनित्र



प्रश्न 5. दिष्ट धारा वैद्युत जनित्र के सिद्धान्त एवं कार्यविधि का सचित्र वर्णन कीजिए।


उत्तर


दिष्ट धारा डायनेमो इसकी रचना प्रत्यावर्ती धारा डायनेमो के समान होती है। अन्तर केवल इतना है कि इसमें सर्पों वलयों के स्थान पर विभक्त वलयों

को उपयोग में लाते हैं।


 सिद्धान्त जब किसी बन्द कुण्डली को किसी शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र में तेजी से घुमाया जाता है, तो उसमें से होकर गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होता रहता है, जिसके कारण कुण्डली में वैद्युत वाहक बल तथा एक वैद्युत धारा प्रेरित हो जाती है। कुण्डली को घुमाने में किया गया कार्य ही कुण्डली में वैद्युत ऊर्जा के रूप में परिणत हो जाता है। संरचना दिष्ट धारा जनित्र में निम्नलिखित मुख्य भाग होते हैं



इसके मुख्य भाग निम्नलिखित हैं


 (i) क्षेत्र चुम्बक यह एक शक्तिशाली चुम्बक NS होता है। इसका कार्य शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करना है, जिसमें कुण्डली घूमती है। इसके द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की बल रेखाएँ N से Sकी ओर होती हैं।


(ii) आर्मेचर यह एक आयताकार कुण्डली a bed होती हैं, जो कच्चे लोहे के क्रोड पर पृथक्कित ताँबे के तार के बहुत से फेरों को लपेटकर बनाई जाती है। इसे आर्मेचर कुण्डली भी कहते हैं। इस कुण्डली को क्षेत्र के ध्रुव खण्डों NS शक्ति; जैसे-पेट्रोल इंजन अथवा जल-शक्ति आदि द्वारा तेजी के बीच बाह्य से घुमाया जाता है।



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