Class 10th Science Chapter 14 sources of energy || ऊर्जा के स्रोत ncert notes

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Class 10th Science Chapter 14 sources of energy || ऊर्जा के स्रोत ncert notes

Class 10th Science Chapter 14 sources of energy || ऊर्जा के स्रोत ncert notes


Class 10th Science Chapter 14 sources of energy || ऊर्जा के स्रोत ncert notes



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कक्षा 10वी विज्ञान अध्याय 14 ऊर्जा के स्त्रोत download pdf


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ऊर्जा के स्त्रोत


(Sources of Energy)



महत्वपूर्ण परिभाषा



#. दैनिक जीवन में कार्य करने के लिए हम ऊर्जा के भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग करते हैं।



#. ऊर्जा के वे स्रोत जिन्हें काफी लम्बे समय से प्रयोग में लाया जा रहा हो, ऊर्जा के पारम्परिक स्रोत कहलाते हैं।


#.वे ईंधन जिनका निर्माण सजीव प्राणियों के अवशेषों से करोड़ों वर्षों की जैविक क्रिया के बाद होता है, जीवाश्मी ईंधन कहलाते है।


 #.कोयला जीवाश्मी ईंधन का एक रूप है जो वनस्पतियों के कारण बनता है। इसको बनने में लाखों वर्ष लगते हैं।


#.LPG, प्रोपेन, ब्यूटेन, आइसो-ब्यूटेन आदि हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण है।


#. प्राकृतिक गैस कई गैसों का मिश्रण होती है जिसमें मुख्यतया मीथेन होती है।



#. गिरते हुए या बहते हुए जल की ऊर्जा से जो विद्युत उत्पन्न होती है, उसे जल विद्युत कहते हैं। 


#.वैकल्पिक अथवा गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत वे ऊर्जा स्रोत हैं जिनके भण्डार असीमित होते हैं वे अप्रचालित होने के कारण हमारी ऊर्जा की आवश्यकता को एक निश्चित सीमा तक ही पूरा कर पा रहे हैं।


#.सूर्य ऊर्जा का एक विशाल स्रोत है। इसकी अनुमानित आयु 4.6 x 10⁹ साल है और यह लगभग 5 x 10⁹ सालों तक ऊर्जा विकिरित करता रहेगा।


#.ऐसी युक्तियाँ जिनमें सूर्य से प्राप्त ऊर्जा का अधिकांश भाग संगृहित किया जाता है, सौर तापन उपकरण कहलाते हैं।


 #.सोलर कुकर भोजन पकाने का एक बर्तन है जिसमें सौर ऊर्जा का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है।


#. सौर ऊर्जा द्वारा ठण्डे जल को गरम करने के संयन्त्र को सौर जल हीटर कहते हैं।


#. ऊर्जा रूपान्तरण की युक्तियाँ जो प्रकाश-वैद्युत प्रभाव द्वारा सूर्य के प्रकाश को विद्युत शक्ति में बदलने के योग्य हैं, सोलर सेल कहलाते हैं। पास-पास सटे अनेक सोलर सेलों के समूह को सोलर पैनल कहते हैं।


#. पृथ्वी की सतह के अन्दर दबी हुई ऊष्मा अर्थात् ऊष्मीय ऊर्जा को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं।


#. नाभिकीय विखण्डन वह प्रक्रिया है जिसमें एक भारी नाभिक एक न्यूट्रॉन को ग्रहण करके लगभग समान द्रव्यमान के दो हल्के नाभिकों में टूट जाता है। संलयन कहलाती है।


#. जब दो या अधिक हल्के नाभिक तीव्र वेग से गति करते हुए आपस में संयुक्त होकर एक भारी नाभिक बनाएँ, तब यह प्रक्रिया नाभिकीय संलयन कहलाती हैं


मानव की उत्पत्ति के समय से ही ऊर्जा का विभिन्न रूपों में उपयोग होता रहा है। 



 ऊर्जा संरक्षण के नियम के अनुसार, विश्व की कुल ऊर्जा नियत है। ऊर्जा को केवल एक प्रारूप से दूसरे प्रारूप में रूपांतरित किया जाता है।


वह स्रोत जो सरलता से नियत दर पर, लम्बे समय तक ऊर्जा प्रदान कर सके ऊर्जा का स्रोत कहलाता है।


उत्तम ऊर्जा स्रोत


किसी उत्तम ऊर्जा स्रोत में निम्न विशेषताएँ होनी चाहिए 


(i) प्रति एकांक आयतन अथवा प्रति एकांक द्रव्यमान अधिक कार्य करने में सक्षमहोना चाहिए।


(ii) सरलता से सुलभ हो सके।


(iii) भंडारण व परिवहन में आसान हो।


(iv) कीमत बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए।


ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत


ऊर्जा के वे स्रोत, जो प्रकृति द्वारा प्रदत्त हैं तथा जिनका निर्माण अधिक समय में हुआ है, पारंपरिक स्रोत कहलाते हैं। प्रकृति में ये स्रोत सीमित और अनवीकरणीय होते हैं, जैसे- कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, विखंडित पदार्थ, आदि।


जीवाश्म ईंधन


लाखों वर्ष पूर्व पृथ्वी की सतह के अन्दर दबे पेड़-पौधे तथा जीव-जन्तु, जो उच्च ताप तथा दाब के कारण सतह के अन्दर जीवाश्म ईंधन के रूप में परिवर्तित हो गए, जीवाश्म ईंधन कहलाते हैं। जीवाश्म ईंधन के जलने पर CO₂, SO₂, NO₂, उत्पन्न होती हैं, जो वर्षा के समय जल में मिलकर अम्लीय वर्षा उत्पन्न करती हैं।


कोयला


यह कार्बन तथा कार्बन के अन्य तत्वों (हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, सल्फर, आदि) के साथ बनाए गए यौगिकों का मिश्रण है। यह ऊर्जा का वृहद् स्रोत है। इसका उपयोग घरों तथा उद्योगों में ईंधन के रूप में होता है।


पेट्रोलियम


यह काले रंग का एक विशेष गंध वाला अपरिष्कृत (Crude) तेल है, जो हाइड्रोकार्बनों का सम्मिश्रण होता है। इसमें पानी, लवण तथा पृथ्वी के कण के अतिरिक्त ऑक्सीजन, नाइट्रोजन तथा गंधक यौगिक भी मिश्रित होते हैं। इसका उपयोग मुख्य रूप से वाहनों में किया जाता है।


प्राकृतिक गैस


प्राकृतिक गैस एक महत्त्वपूर्ण स्वच्छ ऊर्जा संसाधन है। यह मुख्यतः मेथेन (CH₄) और कुछ मात्रा में एथेन (C₂H₆) और प्रोपेन (C₃H₈) से बनी होती है।


जीवाश्म ईंधन के दोष


1. जीवाश्म ईंधन जलने पर वायु प्रदूषण उत्पन्न करता है। . इसके जलने पर अम्लीय ऑक्साइड उत्पन्न होते हैं जो अम्लीय वर्षा करके पीने  योग्य पानी तथा पृथ्वी के अन्य स्रोत को प्रभावित करते हैं।


2.जीवाश्म ईंधन के जलने पर CO, मुक्त होती है। जीवाश्म ईंधन पूर्णतया ज्वलित नहीं है, कुछ अवशेष रह जाते हैं।


 जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न प्रदूषण का नियंत्रण


जीवाश्म ईंधन के जलाने के कारण उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को कुछ सीमाओं तक दहन प्रक्रम की दक्षता में वृद्धि करके कम किया जा सकता है। इसी के साथ दहन के फलस्वरूप निकलने वाली हानिकारक गैसो तथा राख से बचने के लिए विविध तकनीकों का उपयोग किया जाता है।




तापीय विद्युत संयंत्र


विद्युत संयन्त्रों में प्रतिदिन विशाल मात्रा में जीवाश्मी ईंधन का दहन करके जल उबालकर भाप बनाई जाती है जो टरबाइनों को घुमाकर विद्युत उत्पन्न करती है। समान दूरियों तक कोयले तथा पेट्रोलियम के परिवहन की तुलना में विद्युत संचरण अधिक दक्ष होता है। यही कारण है कि बहुत से तापीय विद्युत संयन्त्र कोयले तथा तेल के क्षेत्रों के निकट स्थापित किए गए हैं जिससे परिवहन का खर्चा बच जाता है। इन संयन्त्रों को तापीय विद्युत संयन्त्र कहने का कारण यह है कि इन संयन्त्रों में ईंधन के दहन द्वारा ऊष्मीय ऊर्जा उत्पन्न की जाती है जिसे विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है।


जल विद्युत संयंत्र


ऊर्जा का एक अन्य पारंपरिक स्रोत बहते जल की गतिज ऊर्जा अथवा किसी ऊँचाई पर स्थित जल की स्थितिज ऊर्जा है। जल विद्युत संयन्त्रों में गिरते जल की स्थितिज ऊर्जा को विद्युत में रूपांतरित किया जाता है, जिससे अधिक विद्युत ऊर्जा प्राप्त होती है।


जल विद्युत उत्पादन का सिद्धान्त - जल विद्युत उत्पन्न करने के लिए नदियों के बहाव को रोककर बड़े जलाशयों पर ऊँचे-ऊँचे बाँध बनाए जाते हैं। इन जलाशयों में जल संचित होता रहता है। जल विद्युत संयन्त्रों में ऊँचाई से गिरते जल की स्थितिज ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में रूपांतरण होता है। बाँध के ऊपरी भाग से पाइपों द्वारा जल, बाँध के आधार के पास स्थापित टरबाइन के ब्लेडों पर मुक्त रूप से गिरता है। फलस्वरूप टरबाइन के ब्लेड घूर्णन गति करते हैं और जनित्र द्वारा विद्युत उत्पादन होता है।


जलीय विद्युत के लाभ


1.इससे वातावरण प्रदूषित नहीं होता।


2.नदियों के किनारे बने बाँध, बाढ़ को रोकने में सहायक होते हैं तथा खेतों की सिंचाई करने में भी सहयोग करते हैं।


जलीय विद्युत के दोष


#.इससे खेतों की उत्पादक क्षमता में कमी आ जाती है, जिससे फसलें भी प्रभावित होती हैं।


#.बाँधों का निर्माण पहाड़ी क्षेत्रों में ही किया जा सकता है। अतः इनके निर्माण का क्षेत्र सीमित होता है।


#.वह वनस्पति जो बाँध के समीप है, पानी में डूब जाती है तथा यह ग्रीन हाउस गैस मेथेन का निर्माण करने लगती है।


#.उपरोक्त कारणों से बाँधों के निर्माण में वहाँ की जनता विरोध करती है।


 उदाहरण - टिहरी बाँध योजना (गंगा नदी पर ), सरदार सरोवर बाँध योजना (नर्मदा नदी पर )


ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के उपयोग के लिए प्रौद्योगिकी में सुधार


1. जैव-मात्रा (बायोमास )


यह परंपरागत ऊर्जा का स्रोत है, लकड़ी, फसलों के अवशेष, गन्ने के छिलके, गाय के गोबर के उपले आदि को घरों तथा उद्योगों में ईंधन के रूप में उपयोग में लिया जाता है, जिसे जैव-मात्रा कहते हैं। जैव-मात्रा का उपयोग विद्युत के उत्पादन में भी किया जाता है। मेथेन (CH) गैस, वनस्पति तथा जानवरों के सड़ने के कारण बनती है।


2. चारकोल


लकड़ी को नियंत्रित हवा की उपस्थिति में जलाया जाता है, तो उसमें उपस्थित जल तथा वाष्पशील पदार्थ बाहर निकल जाते हैं तथा अवशेष के रूप में चारकोल रह जाता है। इसकी तापीय (या ऊष्मीय) क्षमता, लकड़ी से अधिक होती है तथा यह अपेक्षाकृत कम धुआँ उत्पन्न करता है।


3. पवन ऊर्जा


गतिशील वायु को पवन कहते हैं। वायु की तीव्र गति के कारण इसमें गतिज ऊर्जा होती है। इस ऊर्जा को पवन टरबाइन द्वारा प्राप्त किया जाता है। सूर्य द्वारा पृथ्वी की सतह पर असमान ऊष्मा उत्पन्न होने के कारण पृथ्वी की सतह पर दाब भिन्न स्थानों पर भिन्न हो जाता है। इस कारण पवन धाराएँ प्रवाहित होने लगती हैं। इस गतिज ऊर्जा का उपयोग निम्न कार्यों में किया जाता है


1.विद्युत उत्पादन में। 


2.पृथ्वी की सतह के अन्दर से पानी बाहर निकालने में।


3. अनाज पीसने की चक्कियों में।


पवन चक्की


पवन चक्की का उपयोग विद्युत उत्पादन में किया जाता है। पवन चक्की में ऊर्जा रूपान्तरण का क्रम निम्न होता है


पवन ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा विद्युत ऊर्जा पवन ऊर्जा के उपयोग की सीमाएँ


पवन ऊर्जा के उपयोग की सीमाएँ निम्नलिखित हैं इनको केवल उन्हीं स्थानों पर स्थापित किया जा सकता है, जहाँ पूरे साल वायु बहती रहती है। वायु की न्यूनतम गति 15 किमी / घंटा होनी चाहिए, जो सदैव नहीं होती। उत्पादित विद्युत को संग्रहित करने की सुविधा होनी चाहिए, जिससे वायु नहीं चलने की स्थिति में भी विद्युत उपलब्ध रहे।


 वैकल्पिक अथवा गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत


आधुनिक समय मशीनीकरण का समय है, जिसमें निरंतर ऊर्जा की माँग बढ़ रही है। तथा परंपरागत ऊर्जा स्रोतों की सीमित मात्रा कम होती जा रही है। अतः आवश्यक ऊर्जा की पूर्ति के लिए ऊर्जा के गैर-परंपरागत स्रोतों को खोजने की आवश्यकता है। कुछ गैर-परंपरागत ऊर्जा के स्रोत निम्न हैं


सौर ऊर्जा


सूर्य की विकिरण से प्राप्त ऊर्जा सौर ऊर्जा कहलाती है, जिससे ऊष्मा तथा प्रकाश प्राप्त होता है। सूर्य की सतह के अन्दर नाभिकीय संलयन के द्वारा इस ऊर्जा का. उत्पादन ऊष्मा तथा प्रकाश के रूप में होता है।


सौर ऊर्जा के लाभ


#.इससे प्रदूषण नहीं होता है तथा यह मूल्य रहित है।


#.यह हमारे देश में (ग्रीष्म देशों की भाँति ) प्रचुर मात्रा में उपलब्ध सौर ऊर्जा के व्यवहारिक उपयोग निम्न हैं


#. सौर कुकर द्वारा खाना बनाने में। कपड़े तथा अनाज सुखाने में।


सौर ऊर्जा की सीमाएँ


यह पूरे समय समान मात्रा में सभी स्थानों पर उपलब्ध नहीं होती है। रात्रि में उपलब्ध नहीं होती है तथा आकाश में बादल होने पर भी उपलब्ध नहीं होती है।


सौर ऊर्जा युक्तियाँ


वे युक्तियाँ जिनके प्रचालन के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग होता है, सौर ऊर्जा युक्तियाँ कहलाती हैं, जैसे-सौर कुकर, सौर पैनल, सौर सैल, आदि।


(i) सौर कुकर इस युक्ति में सूर्य की ऊर्जा का उपयोग करके खाना पकाया जाता है। इसमें एक पृथक्कृत धातु का बक्सा या लकड़ी का बक्सा होता है, जिसको अन्दर से काला पेंट कर दिया जाता है, जिससे यह अधिकतम सूर्य के विकिरणों का अवशोषण कर सके। इस बॉक्स के ऊपर एक काँच की पतली आवरण होती है, जो हरितगृह प्रभाव का कार्य करती हैं। बॉक्स में एक समतल दर्पण को परावर्तक के रूप में लगा दिया जाता है।


(ii) सौर सेल यह सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने की युक्ति है। ये सेल अर्द्धचालकों, जैसे-सिलिकन, जर्मेनियम तथा गेलियम से बने होते हैं। इन सेलों को फोटोवोल्टिक सेल भी कहते हैं। सौर सेल बनाने के लिए सिलिकन है।


अर्द्धचालक का उपयोग किया जाता है। यह वातावरण के अनुकूल है तथा कोई प्रदूषण उत्पन्न नहीं करता है। इसको बनाने की प्रक्रिया बहुत महँगी होती है।


 (d) सौर पैनल जब बहुत सारे सौर सेलों को एक क्रम में संयोजित कर दिया जाता है, तो यह संयोजन सौर पैनल कहलाता है। इससे प्राप्त विद्युत वाहक बल का मान अधिक होता है तथा धारा का मान भी अधिक प्राप्त होता है। यह व्यवस्था सौर पैनल कहलाती है। सौर सेल पैनल को झुकी हुई छत पर लगाया जाता है. जिससे अधिकतम सूर्य का प्रकाश इस पर आपत्ति हो सके।


समुद्रों से ऊर्जा


समुद्र एक नवीकरणीय ऊर्जा का स्रोत है। समुद्र से प्राप्त ऊर्जा के अनेक प्रारूप हैं। जिनका वर्णन निम्नलिखित हैं


1. ज्वारीय ऊर्जा


चन्द्रमा के आकर्षण के कारण समुद्र की सतह ऊपर व नीचे होती रहती है। इस प्रकार समुद्र की सतह पर तरंगे उत्पन्न हो जाती हैं। यही तरंगें ज्वारीय तरंगें कहलाती हैं। इन तरंगों के ऊपर नीचे जाने में जो ऊर्जा उत्पन्न होती है वही ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा कहलाती है।


2. तरंग ऊर्जा


तेज हवा के कारण समुद्र की सतह पर पानी में तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं। इन तरंगों में अत्यधिक गतिज ऊर्जा होती है। इस ऊर्जा का उपयोग, अनेक युक्तियों में; जैसे-जनित्र की टरबाइन के घूर्णन में तथा विद्युत के उत्पादन में किया जाता है।


3. महासागरीय तापीय ऊर्जा समुद्रों अथवा महासागरों के पृष्ठ का जल, सूर्य द्वारा तप्त हो जाता है, जबकि इनके गहराई वाले भाग का जल अपेक्षाकृत ठंडा होता है। ताप में इस अंतर का उपयोग सागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण विद्युत संयन्त्र (Ocean Thermal Energy Conversion Plant या OTEC विद्युत संयन्त्र) में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। OTEC विद्युत संयन्त्र केवल तभी प्रचालित होते हैं, जब महासागर के पृष्ठ पर जल का ताप तथा 2 किमी तक की गहराई पर जल के ताप में 20°C का अंतर हो। पृष्ठ के तप्त जल का उपयोग अमोनिया जैसे- वाष्पशील द्रवों को उबालने में किया जाता है। 


4. भूतापीय ऊर्जा


भौमकीय परिवर्तनों के कारण भूपर्पटी में गहराइयों पर तप्त क्षेत्रों में पिघली चट्टानें ऊपर धकेल दी जाती हैं जो कुछ क्षेत्रों में एकत्र हो जाती हैं। इन क्षेत्रों को तप्त स्थल कहते हैं। जब भूमिगत जल इन तप्त स्थलों के संपर्क में आता है, तो भाप उत्पन्न होती है। कभी-कभी इस तप्त जल को पृथ्वी के पृष्ठ से बाहर निकलने के लिए निकास मार्ग मिल जाता है। इन निकास मार्गों को गरम चश्मा अथवा ऊष्ण स्रोत कहते हैं। कभी-कभी यह भाप चट्टानों के बीच में फँस जाती है, जहाँ इसका दाब अत्यधिक हो जाता है। तप्त स्थलों तक पाइप डालकर इस भाप को बाहर निकाल लिया जाता है। उच्च दाब पर निकली यह माप विद्युत जनित्र की टरबाइन को घुमाती है, जिससे विद्युत उत्पादन करते हैं।


नाभिकीय ऊर्जा


परमाणु के नाभिक में संग्रहित ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा कहलाती है। यह ऊर्जा नाभिकीय अभिक्रियाओं में मुक्त होती है। नाभिकीय ऊर्जा की सबसे मुख्य कमी या हानि यह है, कि इसके उत्सर्जन में रेडियोएक्टिव पदार्थों का अभिक्रिया के बाद उत्पन्न होना। इन रेडियोएक्टिव पदार्थों को नियंत्रित अथवा समाप्त करना अत्यधिक कठिन होता है। नाभिकीय अभिक्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं


1. नाभिकीय विखंडन


जब किसी भारी नाभिक पर मन्दगामी न्यूट्रॉन की बौछार करते हैं, तो इसका विभाजन दो हल्के नामिकों में हो जाता है। इस अभिक्रिया में बहुत अधिक ऊर्जा मुक्त होती है। यह अभिक्रिया नाभिकीय विखंडन कहलाती है। यह विखंडन धीमी गति के न्यूट्रॉनों को उस पदार्थ के नामिक से टकराने पर होता है। इस सिद्धान्त के आधार पर नाभिकीय संयन्त्र विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करते हैं।


2. नाभिकीय संलयन


जब दो या दो से अधिक हल्के नामिक किसी अभिक्रिया में संलयित होकर एक भारी नामिक बनाते हैं, तो इस अभिक्रिया में बहुत अधिक ऊर्जा उत्सर्जित होती है। इस • ऊर्जा पर नियन्त्रण नहीं किया जा सकता है। यही अभिक्रिया नाभिकीय संलयन कहलाती है। 


हाइड्रोजन बम


हाइड्रोजन बम ताप नाभिकीय अभिक्रिया' पर आधारित होता है। हाइड्रोजन बम के कोड में यूरेनियम अथवा प्लूटोनियम के विखंडन पर आधारित किसी नाभिकीय बम को रख देते हैं। यह नाभिकीय बम ऐसे पदार्थ में अंतःस्थापित किया जाता है जिनमें ड्यूटीरियम तथा लीथियम होते हैं। जब इस नाभिकीय बम (जो विखंडन पर आधारित है) को अधिविस्फोटित करते हैं, तो इस पदार्थ का ताप कुछ ही माइक्रोसेकंड में 10 K तक बढ़ जाता है। यह अति उच्च ताप हल्के नामिकों को संलयित होने के लिए पर्याप्त ऊर्जा उत्पन्न कर देता है जिसके फलस्वरूप अंति विशाल परिमाण की ऊर्जा मुक्त होती है।


परमाणु ऊर्जा उत्पादन में मुख्य खतरें निम्न हैं


1.प्रयुक्त ईंधन का रख-रखाव


2.नाभिकीय अवशेषों का उचित रख-रखाव न हो पाना


3.नाभिकीय विकिरणों का लीक होने का भय


नोट नाभिकीय अभिक्रिया के पश्चात् शेष पदार्थ, नाभिकीय अपशिष्ट कहलाता है।


जिससे  विकिरण उत्पन्न होते हैं।


पर्यावरण विषयक सरोकार


किसी भी ऊर्जा को प्राप्त करने पर वातावरण को क्षति पहुँचती है तथा वातावरण का संतुलन भी बिगड़ जाता है। जीवाश्म ईंधन की तुलना में वैकल्पिक स्रोतों से क्षति कम होती है।


ऊर्जा की बढ़ती खपत के पर्यावरण पर निम्न प्रभाव होंगे




#. जीवाश्म ईंधन को जलाने पर अम्लीय वर्षा की सम्भावनाएँ बढ़ेगी जिससे पेड़-पौधे, फसलें और खेती की भूमि प्रभावित होगी। पानी में रहने वाले जीव-जन्तुओं पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।


 #.जीवाश्म ईंधन के जलने पर हरित गृह प्रभाव की CO₂ गैस की मात्रा वातावरण में बढ़ जाएगी। नाभिकीय विद्युत तापीय घरों के निर्माण से वातावरण में रेडियोएक्टिवता की मात्रा बढ़ती जा रही है।


ऊर्जा स्रोतों की समाप्ति


जीवाश्म ईंधन स्रोत समाप्ति की ओर अग्रसर है। अतः नवीकरणीय स्रोतों की ओर अधिकतम ध्यान देना होगा तथा ऐसे ऊर्जा स्रोत का चयन करना होगा, जो सरलता से उपलब्ध हो व ऊर्जा निष्कर्षण की लागत, ऊर्जा स्रोत के उपयोग की उपलब्ध प्रौद्योगिकी की दक्षता जैसे कारकों पर निर्भर करता हो।


बहुविकल्पीय 1 अंक



प्रश्न 1. जीवाश्म ईंधन है


(a) पेड़-पौधे


(c) कोयला एवं पेट्रोलियम


(b) जीव-जन्तु 


(d) कोयला



उत्तर (c) कोयला एवं पेट्रोलियम जीवाश्म ईंधन है।


 प्रश्न 2. निम्नलिखित में कौन ऊर्जा का अनवीकरणीय स्रोत है?


(a) लकड़ी


(b) सूर्य 


(C) जीवाश्मी ईंधन


(d) पवन




उत्तर (c) जीवाश्मी ईंधन ऊर्जा का अनवीकरणीय स्रोत है।


प्रश्न 3. जीवाश्म ऊर्जा का स्रोत है।


(a) पवन ऊर्जा


 (b) सौर ऊर्जा


 (c)कोयला


 (d) जल विद्युत


 उत्तर (c) जीवाश्म ऊर्जा का स्रोत कोयला है।





प्रश्न 4. अम्लीय वर्षा होने का कारण यह है कि


 (a) सूर्य वायुमण्डल की ऊपरी परतों को तप्त करना आरम्भ करता है.


(b) जीवाश्मी ईंधनों के जलने पर वायुमण्डल में कार्बन, नाइट्रोजन व सल्फर के ऑक्साइड मुक्त होते हैं।


(c) बादलों के घर्षण के कारण विद्युत आवेश उत्पन्न होते हैं


 (d) पृथ्वी के वायुमण्डल में अम्ल होते हैं


उत्तर (b) जीवाश्मी ईंधनों के जलने पर वायुमण्डल में कार्बन, नाइट्रोजन व सल्फर के ऑक्साइड मुक्त होते हैं, जिससे अम्लीय वर्षा होती है।


प्रश्न 5. तापीय विद्युत संयन्त्र में उपयोग होने वाला ईंधन है।


(a) जल


(b) यूरेनियम


(C) जैव-मात्रा


(d) जीवाश्मी ईंधन


उत्तर (d) तापीय विद्युत संयन्त्र में जीवाश्मी ईंधन, ईंधन के रूप में उपयोग होता है।


प्रश्न 6. जल विद्युत संयन्त्र में ऊर्जा विद्युत में रूपान्तरित हो जाती है ।


 (a) संचित जल की स्थितिज


(b) संचित जल की गतिज ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है 


(C) जल से विद्युत निष्कर्ष की जाती है।


(d) विद्युत प्राप्त करने के लिए जल को भाप में रूपान्तरित किया जाता है


 उत्तर (a) जल विद्युत संयन्त्र में संचित जल की स्थितिज ऊर्जा विद्युत में रूपान्तरित होती है।


प्रश्न 7. निम्नलिखित में से कौन-सा जैव मात्रा ऊर्जा स्रोत का उदाहरण नहीं है?


(a) लकड़ी


(b) गोबर गैस


(c) नाभिकीय ऊर्जा


(d) कोयला


उत्तर (c) नाभिकीय ऊर्जा; 


प्रश्न 8. गर्म जल प्राप्त करने के लिए हम सौर जल तापक का उपयोग किस दिन नहीं कर सकते ?



(a) धूप वाले दिन


(b) बादलों वाले दिन


(c) गर्म वाले दिन


(d) पवनों (वायु) वाले दिन


उत्तर (b) बादलों वाले दिन; क्योंकि बादलों वाले दिन सौर विकिरण की उपलब्धता सीमित (निम्नतम) होगी तथा सौर जल तापक कार्य नहीं करेगा।


प्रश्न 9. जितने ऊर्जा स्रोत हम उपयोग में लाते हैं, उनमें से अधिकांश सौर ऊर्जा को निरूपित करते हैं। निम्नलिखित में से कौन-सा स्रोत अंततः सौर ऊर्जा से व्युत्पन्न नहीं है?


(a) भूतापीय ऊर्जा


(b) पवन ऊर्जा


(c) नाभिकीय ऊर्जा


(d) जैव-मात्रा


उत्तर (c) केवल नाभिकीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा का उपयोग नहीं करती है, बल्कि नाभिकीय अभिक्रियाओं के फलस्वरूप नाभिकीय ऊर्जा का उत्पादन होता है।


प्रश्न10. महासागरीय तापीय ऊर्जा का कारण हैं



 (a) महासागर में तरंगों द्वारा संचित ऊर्जा


(b) महासागरों में विभिन्न स्तरों पर ताप में अन्तर


(C) महासागरों में विभिन्न स्तरों पर दाब में अन्तर


(d) महासागर में उत्पन्न ज्वार


उत्तर (b) महासागरीय तापीय ऊर्जा का कारण, महासागरों में विभिन्न स्तरों पर ताप में अन्तर होता है।


अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1. ऊर्जा के आदर्श स्रोत के क्या गुण होते हैं? अथवा ऊर्जा का उत्तम स्रोत किसे कहते हैं?



उत्तर – ऊर्जा के आदर्श स्रोत के गुण निम्न हैं।


(i) यह प्रति एकांक द्रव्यमान/आयतन बहुत अधिक मात्रा में कार्य करता है।


(ii) यह सरलता से उपलब्ध होता है। 


(iii) इसका परिवहन व भण्डारण सरल होता है।


(iv) यह हानिकारक अवशेष उत्पन्न नहीं करता अर्थात् पर्यावरण की दृष्टि से इसका उपयोग सुरक्षित है।


 (v) इसकी कीमत या लागत मूल्य कम होता है।



प्रश्न 2. किन्हीं दो परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के नाम लिखिए। 


उत्तर कोयला तथा पेट्रोलियम



प्रश्न 3. जीवाश्म ईंधन के जलने से किस प्रकार जल प्रदूषण होता है? स्पष्ट कीजिए। 


उत्तर – जीवाश्म ईंधन के जलने पर निम्न गैसे जैसे- CO₂  ,O₂, NO₂, इत्यादि उत्पन्न होती है, जो वर्षा होने पर जल में मिल जाती है तथा अम्लीय वर्षा उत्पन्न करती है। 


प्रश्न 4, ऊर्जा स्रोत के रूप में जीवाश्मी ईंधनों तथा सूर्य की तुलना कीजिए और उनमें अंतर लिखिए। 


उत्तर


जीवाश्मी ईंधन तथा सूर्य में अन्तर




जीवाश्मी ईंधन

सूर्य

यह अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है तथा समाप्य भी


यह अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है तथा समाप्य भी।

इनके दहन से पर्यावरण का प्रदूषण होता है।


यह प्रदूषण रहित ऊर्जा स्रोत है केवल युक्तियों के संयोजन में कम-से-कम प्रदूषण हो सकता है। 


यह महँगा परन्तु सामान्यतया उपयोग किया जाने वाला स्रोत हैं।

यह निशुल्क उपलब्ध स्रोत है, परन्तु उपयोग किया जाने वाला इसकी ऊर्जा को उपयोग कर सकने वाली युक्तियों का संयोजन काफी खर्चीला है।





प्रश्न 5. कोयला तथा पेट्रोलियम जैसे प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग की आवश्यकता क्यों है?


उत्तर – कोयला तथा पेट्रोलियम जीवाश्मी ईंधन हैं, जिनकी पृथ्वी पर सीमित मात्रा है, जितनी तेजी से हम इनका उपयोग कर रहे हैं, उतनी ही तेजी से ये पृथ्वी से समाप्त हो जाएँगे। अतः भावी पीढ़ियों के लिए इनकी उपलब्धता बनी रहे,


इसके लिए इन प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग आवश्यक है। 



प्रश्न 6. तापीय विद्युत संयन्त्रों को कोयले अथवा तेल के भंडारों के समीप क्यों स्थापित किया जाता है?


 उत्तर – तापीय विद्युत संयन्त्र कोयले तथा तेल को ईंधन के रूप में प्रयुक्त करते हैं।


अतः कोयले व तेल के भंडार के समीप होने पर परिवहन का खर्चा बच जाता है?



प्रश्न 7. एक जल विद्युत संयन्त्र में किस ऊर्जा का रूपान्तरण होता है


उत्तर जल विद्युत उत्पादन के लिए एक जल विद्युत संयन्त्र में अधिक ऊँचाई से गिरते हुए जल की स्थितिज ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरित किया जाता है, जिससे अधिक विद्युत ऊर्जा प्राप्त होती है।




प्रश्न 8. नदियों पर बाँध बनाकर जल-विद्युत उत्पादन के दो लाभ तथा दो हानियाँ लिखिए।




उत्तर


 लाभ


(i) सिंचाई के लिए जल उपलब्ध होता है। 


(ii) बाढ़ नियन्त्रण में सहायता मिलती है।



हानि


 (i) बाँध बनाने से बहुत-सी भूमि जलमग्न हो जाती है तथा बाँध के क्षेत्र में आने वाले गाँवों से लोगों को पलायन करना पड़ता है।


 (ii) नदी के जल-प्रवाह क्षेत्र से पर्यावरण तथा फसलों की उत्पादकता प्रभावित होती है।




प्रश्न 9. जैव-मात्रा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 


उत्तर यह परम्परागत ऊर्जा का स्रोत है, लकड़ी, फसलों के अवशेष, गन्ने के छिलके, गाय के गोबर के उपले, आदि को घरों तथा उद्योगों में ईंधन के रूप में उपयोग में लिया जाता है, जिसे जैव-मात्रा कहते हैं। जैव-मात्रा का उपयोग विद्युत के उत्पादन में भी किया जाता है।


 मेथेन (CH₄)वनस्पति तथा जानवरों के सड़ने के कारण बनती है।


प्रश्न 10. लकड़ी का कोयला किस प्रकार तैयार किया जाता है? घरेलू ईंधन में लकड़ी की अपेक्षा कोयले के उपयोग का एक लाभ लिखिए।


उत्तर यह कार्बन तथा कार्बन के अन्य तत्वों (हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन सल्फर, आदि) के साथ बनाए गए यौगिकों का मिश्रण है। कोयला, हवा की अनुपस्थिति में लकड़ियों को जलाकर प्राप्त किया जाता है। कोयले की ऊष्मीय क्षमता या कैलोरिक मान, लकड़ी की तुलना में अधिक होता है। यह ऊर्जा का वृहद् स्रोत है। इसका उपयोग घरों तथा उद्योगों में ईंधन के रूप में होता है। 


प्रश्न 11. वायु में किस प्रकार की ऊर्जा होती है तथा इस ऊर्जा को किस युक्ति द्वारा प्राप्त किया जाता है?


 उत्तर – वायु में निहित ऊर्जा, पवन ऊर्जा कहलाती है। यह वायु की गति के कारण होती है। अतः यह गतिज ऊर्जा होती है। इस ऊर्जा को पवन टरबाइन द्वारा प्राप्त किया जाता है।



प्रश्न 12. दैनिक जीवन में सौर ऊर्जा का किन दो कार्यों के लिए आप उपयोग करते हैं? उन उपयोगों के नाम लिखिए। 


उत्तर – सौर ऊर्जा का उपयोग निम्न दो कार्यों के लिए किया जाता है


 (i) सौर कुकर द्वारा खाना बनाने में।


 (ii) कपड़े तथा अनाज सुखाने में।



प्रश्न 13. सौर कुकर का आंतरिक भाग काला क्यों कर दिया जाता है? 


उत्तर सौर कुकर के आंतरिक भाग पर काला पेंट कर दिया जाता है, जिससे यह कुकर के अन्दर आने वाले सभी विकिरणों को अवशोषित कर लेता है। इस कारण सौर कुकर के आंतरिक भाग का तापक्रम बढ़ जाता है।


प्रश्न 14. सौर कुकर का कौन-सा भाग हरितगृह प्रभाव के लिए उत्तरदायी है?


उत्तर सौर कुकर में प्रयुक्त काँच की सीट हरितगृह प्रभाव के लिए उत्तरदायी है,क्योंकि यह बक्से में सूर्य के विकिरण द्वारा उत्पन्न ऊष्मा को बक्से से बाहर नहीं जाने देती तथा हरित गृह प्रभाव उत्पन्न करती है।



प्रश्न 15. सौर कुकर के लिए कौन-सा दर्पण-अवतल, उत्तल अथवा समतल सर्वाधिक उपयुक्त होता है? क्यों?



उत्तर सौर कुकर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त दर्पण अवतल दर्पण होता है, क्योंकि यह एक अभिसारी दर्पण है, जो सूर्य की किरणों को एक बिन्दु पर फोकसित

करता है, जिससे शीघ्र ही सौर कुकर का ताप बढ़ जाता है।


 प्रश्न 16. उन दो ऊर्जाओं के नाम लिखिए जो सौर ऊर्जा को महासागर प्रदर्शित करती हैं।


उत्तर ऊर्जा के प्रकार निम्न हैं 


(i) ज्वारीय ऊर्जा


 (ii) महासागरीय तापीय ऊर्जा



प्रश्न 17. ऊर्जा के दो वैकल्पिक स्रोतों के नाम लिखिए। 


उत्तर सौर ऊर्जा तथा नाभिकीय ऊर्जा।



प्रश्न 18. महासागरीय तापीय ऊर्जा के क्या कारण हैं?


उत्तर महासागर में भिन्न स्तरों पर तापमान में भिन्नता, महासागर की सबसे ऊपरी सतह का जल सूर्य से विकिरण द्वारा ऊष्मा पाकर गर्म हो जाता है, जबकि निम्न स्तरों पर जल का ताप अपेक्षाकृत कम होता है। इस ताप में अंतर का उपयोग, महासागरीय तापीय ऊर्जा संयन्त्रों द्वारा विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने में किया जाता है।



प्रश्न 19. भूतापीय ऊर्जा क्या होती है?


 उत्तर भूपर्पटी में उपस्थित तप्त स्थलों से भूतापीय ऊर्जा प्राप्त होती है। तप्त स्थलो के संपर्क में आने वाला भूमिगत जल भाप में परिवर्तित हो जाता है। जब यह भाष चट्टानों में फंस जाती है, तो इसका दाब बढ़ जाता है, जिसे पाइपों द्वारा निकाल लिया जाता है। उच्च दाब पर निकली इस भाप की शक्ति से विद्युत जनित्र के टरबाइन को घुमा कर विद्युत उत्पादन किया जाता है, यही भूतापीय ऊर्जा कहलाती है।



प्रश्न 20. नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया की परिभाषा दीजिए।


उत्तर जब किसी भारी नाभिक पर मन्द गामी न्यूट्रॉन की बौछार करते हैं, तो इसका  विभाजन दो हल्के नाभिकों में हो जाता है। इस अभिक्रिया में बहुत अधिक ऊर्जा मुक्त होती है। यह अभिक्रिया नाभिकीय विखंडन कहलाती है।


 प्रश्न 21. ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों के नाम लिखिए एवं नाभिकीय ऊर्जा के महत्त्व का संक्षिप्त विवरण दीजिए।


उत्तर - ऊर्जा के निम्न स्रोत हैं


(i) परम्परागत स्त्रोत जीवाश्म ईंधन, तापीय विद्युत संयन्त्र, जल विद्युत संयन्त्र, कोयला, पेट्रोलियम, जैव गैस, पवन ऊर्जा, आदि। 


(ii) अपरम्परागत स्रोत सौर ऊर्जा, सौर पेनल, सौर सेल, समुद्री ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा, आदि। नाभिकीय ऊर्जा का महत्त्व निम्नलिखित हैं।


(i) जीवाश्मी ईंधन से प्राप्त ऊर्जा की तुलना में यूरेनियम के विखण्डन से बहुत अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है। जिसका उपयोग विद्युत उत्पादन के लिए नाभिकीय संयन्त्रों में किया जाता है।


(ii) जहाँ अन्य परम्परागत ऊर्जा स्त्रोत अतिशीघ्र समाप्त हो जाने वाले है; वहीं नाभिकीय ऊर्जा बहुत लम्बे समय तक हमारी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है।




प्रश्न 22. नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन में सबसे मुख्य समस्या क्या है?


उत्तर नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन में सबसे मुख्य समस्या है, प्रयुक्त अथवा अपशिष्ट ईंधन का सुरक्षापूर्ण विधि से निपटारा होना। यदि इसके लिए असुरक्षित विधियाँ अपनाई जाती हैं, तो पर्यावरण प्रदूषण का खतरा तो बढ़ता ही है, साथ ही साथ किसी भी संभावित दुर्घटना द्वारा उत्पन्न नाभिकीय विकिरण से होने वाली अपार क्षति की संभावना भी रहती है। इसके अतिरिक्त नाभिकीय ईंधन की उपलब्धता भी कम है। [2]


प्रश्न 23. नाभिकीय संलयन को परिभाषित कीजिए।



उत्तर दो हल्के नाभिकों के परस्पर संयुक्त होकर एक भारी नाभिक बनाने को नाभिकीय संलयन कहते हैं। इस अभिक्रिया में बहुत अधिक ऊर्जा उत्सर्जित होती

है। इस ऊर्जा पर नियन्त्रण नहीं किया जा सकता है।


उदाहरण


H+H→ H + H + 4.0MeV (ऊर्जा) ड्यूटीरियम ड्यूटीरियम ट्राइटियम प्रोटियम की प्रक्रिया



प्रश्न 24. नाभिकीय अपशिष्ट क्या है? जीवित प्राणियों के लिए उसके क्या खतरे हैं?


उत्तर नाभिकीय अभिक्रिया के पश्चात् शेष पदार्थ, नाभिकीय अपशिष्ट कहलाता है। यह अपशिष्ट रेडियोधर्मी होता है। जिससे βγ विकिरण उत्पन्न होते हैं, जो चर्म कैंसर व अन्य आनुवंशिक दोष उत्पन्न करते हैं। 


प्रश्न 25. रॉकेट ईंधन के रूप में हाइड्रोजन का उपयोग किया जाता रहा है। क्या आप इसे CNG की तुलना में अधिक स्वच्छ मानते हैं? क्यों अथवा क्यों नहीं ?


उत्तर – हाँ, हाइड्रोजन को CNG की तुलना में अधिक स्वच्छ ईंधन माना जाना उचित है, क्योंकि हाइड्रोजन के दहन के पश्चात् केवल जल उत्पन्न होता है, जो प्रदूषण रहित है, जबकि CNG के दहन से कार्बन डाइऑक्साइड भी उत्पन्न होती है, जो अधिक मात्रा में होने पर ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनती है। 


प्रश्न 26. ऐसे दो ऊर्जा स्रोतों के नाम लिखिए, जिन्हें आप समाप्य मानते हैं। अपने चयन के लिए तर्क दीजिए। 



उत्तर – दो सामान्य ऊर्जा स्रोत निम्न हैं




(i) जीवाश्मी ईंधन कोयला तथा पेट्रोलियम का अधिक उपयोग, इनके निर्माण में लगने वाला करोड़ों वर्षों का समय तथा इनकी उपलब्ध सीमित मात्रा के कारण ये ईंधन समाप्य तथा अनवीकरणीय कहे जा सकते हैं।


(ii) नाभिकीय ईंधन यूरेनियम, थोरियम, प्लूटोनियम, आदि नाभिकीय ईंधन प्रकृति में सीमित मात्रा में उपलब्ध है अतः अनवीकरणीय तथा समाप्य ऊर्जा स्रोत हैं।



प्रश्न 27. ऊर्जा के गैर-परंपरागत स्रोतों के उत्पादन की आवश्यकता क्यों है? मुख्य दो कारण लिखिए।


 अथवा हम ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की खोज कर रहे हैं। इसके तीन कारण लिखिए।



उत्तर ऊर्जा के गैर-परंपरागत स्रोतों के उत्पादन की आवश्यकता दिनों-दिन बढ़ रही है। इसके मुख्य कारण निम्न हैं


 (i) औद्योगिकीकरण से उन्नत जीवन स्तर में मशीनों का अधिकाधिक उपयोग।


 (ii) प्रकृति में जीवाश्मी ईंधनों (कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस, आदि) के सीमित भंडारों का होना।


 (iii) जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से होने वाले प्रदूषण के कारण।



          लघु उत्तरीय प्रश्न  4 अंक


प्रश्न 1. ऊर्जा स्रोतों का वर्गीकरण निम्नलिखित वर्गों में किस आधार पर करेंगे?



(i) नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय (ii) समाप्य तथा अक्षय क्या (i) तथा (ii) के विकल्प समान हैं?


उत्तर 


(i) नवीकरणीय संसाधनों की पुन: पूर्ति कुछ ही समय पश्चात् पुनः चक्रण द्वारा हो जाती है, जबकि अनवीकरणीय संसाधनों का एक बार उपयोग होने के बाद उनका पुनः चक्रण नहीं होता। फिर से निर्माण में लगने वाला समय बहुत अधिक होने के कारण इनकी पुनः पूर्ति संभव नहीं है।


(ii) वे ऊर्जा स्रोत, जिनकी उपलब्धता प्रकृति में सीमित है तथा जिनके समाप्त हो जाने की संभावना है, समाप्य स्रोत कहलाते हैं, परंतु जो स्त्रोत प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं और जिनके समाप्त होने की सम्भावना ना हो, अक्षय स्रोत कहलाते हैं।


(i) तथा (ii) के विकल्प समान हैं, अर्थात् नवीकरणीय स्रोत ही अक्षय हैं। इसी प्रकार अनवीकरणीय स्रोत ही समाप्य हैं।



प्रश्न 2. जीवाश्म ईंधन की बढ़ती माँग ने पर्यावरण को नुकसान पहुँचाया है। इसके तीन दुष्प्रभाव लिखिए। जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करने के लिए तीन सुझाव दीजिए।


 अथवा जीवाश्मी ईंधन की क्या हानियाँ हैं?



उत्तर – जीवाश्म ईंधन को जलाने पर उत्पन्न दुष्प्रभाव निम्न हैं।


(i) जीवाश्म ईंधन जलने पर वायु प्रदूषण उत्पन्न करता है।


 (ii) इसके जलने पर अम्लीय ऑक्साइड उत्पन्न होते हैं, जो अम्लीय वर्षा करके पीने योग्य पानी तथा पृथ्वी के अन्य स्रोत को प्रभावित करते हैं।


 (iii) जीवाश्म ईंधन के जलने पर CO² मुक्त होती है।.


(iv) जीवाश्म ईंधन पूर्णतया ज्वलित नहीं है, कुछ अवशेष रह जाते है। 


जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करने के लिए तीन सुझाव निम्न हैं


(i) CNG, LPG, इत्यादि साफ ईंधनों का उपयोग।


 (ii) निजी (प्राइवेट) वाहन के स्थान पर स्थानीय लोकल वाहन का प्रयोग।


 (iii) ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत का अधिक से अधिक उपयोग करनाथ)


प्रश्न 3. जल विद्युत संयन्त्र तथा जल विद्युत उत्पादन का सिद्धान्त के बारे में बताइए तथा जलीय विद्युत धारा के लाभ भी बताइए।


 उत्तर 


जल विद्युत संयन्त्र ऊर्जा का एक अन्य पारंपरिक स्रोत बहते जल की गतिज ऊर्जा अथवा किसी ऊँचाई पर स्थित जल की स्थितिज ऊर्जा है। जल विद्युत संयन्त्रों में गिरते जल की स्थितिज ऊर्जा को विद्युत में रूपांतरित किया जाता है चूंकि ऐसे जल प्रपातो की संख्या बहुत कम है, जिनका उपयोग स्थितिज ऊर्जा के स्रोत के रूप में किया जा सके, अतः जल विद्युत संयन्त्रों को बाँधों से संबद्ध किया गया है।


जल विद्युत उत्पादन का सिद्धान्त जल विद्युत उत्पन्न करने के लिए नदियों के बहाव को रोककर बड़े जलाशयों (कृत्रिम झीलों) में जल एकत्र करने के लिए ऊँचे-ऊंचे बाँध बनाए जाते हैं। इन जलाशयों में जल संचित होता रहता है जिसके फलस्वरूप इनमें भरे जल का तल ऊँचा हो जाता है। जल विद्युत संयन्त्रों में ऊंचाई, से गिरते जल की स्थितिज ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में रूपांतरण होता है। बाँध के ऊपरी भाग से पाइपों द्वारा जल, बाँध के आधार के पास स्थापित टरबाइन के ब्लेडों पर मुक्त रूप से गिरता है फलस्वरूप टरबाइन के ब्लेड घूर्णन गति करते हैं और जनित्र द्वारा विद्युत उत्पादन होता है।





जलीय विद्युत धारा के लाभ


जलीय विद्युत धारा के लाभ निम्नलिखित हैं इससे वातावरण प्रदूषित नहीं होता।।


1. बहता हुआ जल बिना किसी मूल्य के प्राप्त होता है।


 2.जल एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है, जो कभी समाप्त नहीं होगा। अतः जब-जब वर्षा होती है, बाँध के संग्राहक स्वतः ही जल से भर जाते हैं। नदियों के किनारे बने बाँध, बाढ़ को रोकने में सहायक होते हैं तथा खेतों की सिंचाई करने में भी सहयोग करते हैं।



प्रश्न 4. विद्युत उत्पादन में तापीय विद्युत संयन्त्र तथा जल विद्युत संयन्त्र में मुख्य अन्तर क्या है? दो बाँध परियोजनाएँ जिनका लोगों द्वारा विस्थापितों को पुनर्वास तथा वातावरण को पहुँचने वाली क्षति के आधार पर विरोध हुआ, उनके नाम लिखिए। 



उत्तर तापीय विद्युत संयन्त्र तथा जल विद्युत संयन्त्र में मुख्य अन्तर निम्न हैं




तापीय विद्युत संयन्त्र

जल विद्युत संयन्त्र

तापीय विद्युत संयन्त्र में जीवाश्म ईंधन को जला कर विद्युत उत्पादित की जाती है।

जल विद्युत संयन्त्र में जल का प्रवाह करके विद्युत उत्पादित की जाती है।

इसमें रासायनिक ऊर्जा का रूपांतरण विद्युत ऊर्जा में होता है।


इसमें पानी में संग्रहित स्थितिज ऊर्जा का रूपांतरण विद्युत ऊर्जा में होता है।

जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण वातावरण प्रदूषित होता है।

इसमें जल के प्रवाह को रोकने पर जल के जीव जैसे मछली तथा अन्य जीव प्रभावित होते हैं।


जहाँ जीवाश्म ईंधन की उपलब्धता अधिक है, वहीं संयन्त्र की स्थापना है। सुगम होती है।


इसको बनाने में खर्चा अधिक आता है।




दो बाँध परियोजनाएँ जहाँ विस्थापितों द्वारा विरोध हुआ है, निम्न हैं


 (i) टिहरी बाँध (उत्तराखण्ड)


(ii) सरदार सरोवर बाँध (गुजरात)




प्रश्न 5. जैव मात्रा तथा ऊर्जा स्रोत के रूप में जल वैद्युत की तुलना कीजिए और अंतर लिखिए। 


उत्तर


जैव मात्रा

जल वैद्युत


यह नवीकरणीय स्रोत है।

यह भी नवीकरणीय स्रोत है।

जैव मात्रा में बायोगैस संयन्त्र में जैव गैस बनाई जाती है।

जल वैद्युत का उत्पादन नदियों पर बने बाँधों में किया जाता है।

इसके उत्पादन के समय बची हुई स्लरी, कृषि के लिए एक उपयोगी खाद है


बाँधों के निर्माण से विद्युत उत्पादन  साथ-साथ बाढ़ से भी सुरक्षा होती हैं



बायोगैस संयन्त्र के निर्माण में आय खर्च भी कम है तथा अन्य खर्च भी कम है।

यह भी कम खर्चीला स्रोत है। खर्च का मुख्य भाग बाँध के निर्माण तथा सप्लाई की व्यवस्था में होता है।


बायोगैस उत्पादन में जैव मात्रा के उपयोग हो जाने से प्रदूषण नियंत्रण में सहायता मिलती है। साथ ही इसके दहन से हानिकारक अवशेष (CO₂) अतिरिक्त) उत्पन्न नहीं होते।

जल वैद्युत के उपयोग से कोई हानिकारक अवशेष उत्पन्न नहीं होता। इससे वैद्युत शक्ति आपूर्ति में सहायता मिलती है।







प्रश्न 6. ऊर्जा के पारम्परिक स्रोत पर टिप्पणी लिखिए। 


उत्तर ऊर्जा के परम्परागत स्रोत ये स्रोत प्रकृति द्वारा प्रदत्त है। जैसे- जीवाश्म ईंधन, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विखंडनीय पदार्थ।



ऊर्जा के प्रमुख परम्परागत स्रोत निम्न हैं


(i) जीवाश्म ईंधन लाखों वर्ष पूर्व पृथ्वी की सतह के अन्दर पेड़-पौधे तथा पशु-पक्षी जो दफन हो गए। पृथ्वी के केन्द्र पर अधिक ताप तथा दाब के कारण, जीवाश्म ईंधन में परिवर्तित हो गए। उदाहरण कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि।



 (ii) ताप विद्युत संयन्त्र इन संयन्त्रों में जीवाश्म ईंधन द्वारा ऊष्मा उत्पन्न की

जाती है। इस ऊष्मा का रूपांतरण विद्युत ऊर्जा के रूप में प्राप्त किया जाता है।


 (iii) जल विद्युत संयन्त्र वह संयन्त्र जिनमें बहते पानी की स्थितिज ऊर्जा का रूपांतरण विद्युत ऊर्जा में किया जाता है, जल विद्युत संयन्त्र कहलाते हैं। इनसे उत्सर्जित विद्युत जल विद्युत कहलाती है।


यन्त्र विज्ञान में सुधार यन्त्र विज्ञान में निम्न स्रोतों की सहायता से सुधार किए जा सकते हैं।


(a) जैव मात्रा जीवित प्राणियों का अपशिष्ट जैसे- पशुओं का गोबर, पौधों की सूखी पत्तियों शाखाएँ तथा मृत जानवर, इनसे ऊर्जा प्राप्त की जाती है। इनसे प्राप्त ऊर्जा जैव-मात्रा या बायो- मात्रा कहलाती है। उदाहरण-लकड़ी, फसलों के अवशेष, गाय का गोबर इत्यादि।


(b) पवन ऊर्जा बहती वायु की गतिज ऊर्जा पवन ऊर्जा कहलाती है। यह सौर ऊर्जा से सम्बन्धित होती है।


प्रश्न 7. महासागर से ऊर्जा उत्पादन की दो प्रमुख विधियाँ कौन-सी हैं?


उत्तर महासागर से ऊर्जा दो रूपों में प्राप्त की जाती है।


(i) ज्वारीय ऊर्जा घूर्णन गति करते हुए पृथ्वी पर मुख्य रूप से चन्द्रमा के गुरुत्वीय खिंचाव के कारण सागरों में जल का स्तर चढ़ता व गिरता रहता है। इस परिघटना को ज्वार भाटा कहते हैं। ज्वार भाटे में जल के स्तर के चढ़ने तथा गिरने से हमें ज्वारीय ऊर्जा प्राप्त होती है। ज्वारीय ऊर्जा को सागर के किसी संकीर्ण क्षेत्र पर बाँध का निर्माण करके प्राप्त किया जाता है। बांध पर स्थित टरबाइन द्वारा ज्वारीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित कर दिया जाता है।


(ii) महासागरीय तापीय ऊर्जा महासागरों के पृष्ठ पर जल, सूर्य द्वारा प्राप्त हो जाता है, जबकि इनकी गहराई वाले भाग का जल अपेक्षाकृत ठंडा होता है। सागर के पृष्ठ पर जल तथा 2 किमी की गहराई पर जल के ताप में कम से कम 20°C का अन्तर होता है, तब तापीय ऊर्जा रूपांतरण विद्युत संयन्त्र द्वारा इस अंतर का उपयोग करके विद्युत ऊर्जा प्राप्त की जाती है। पृष्ठ के तप्त जल का उपयोग अमोनिया जैसी वापशील द्रवों को उबालने में तथा टरबाइन को घुमाने में किया जाता है।




प्रश्न 8. नाभिकीय ऊर्जा क्या है? नाभिकीय ऊर्जा के उपयोग तथा दुरुपयोग को समझाइए और नाभिकीय ऊर्जा हेतु प्रयुक्त होने वाले दो तत्वों के नाम लिखिए।


उत्तर नाभिकीय ऊर्जा एक भारी नाभिक के दो लगभग बराबर हल्के नाभिकों में टूटने अथवा दो हल्के नाभिकों के संयुक्त होने पर भारी नाभिक बनाने की क्रिया में नाभिक के द्रव्यमान के कुछ भाग का क्षय हो जाता है। यह द्रव्यमान क्षय, ऊर्जा के रूप में प्राप्त होता है। जिसे नाभिकीय ऊर्जा कहते हैं। 



नाभिकीय ऊर्जा हेतु प्रयुक्त होने वाले दो तत्व यूरेनियम तथा प्लूटोनियम आदि है।


 प्रश्न 9. दिल्ली सरकार तथा दिल्ली परिवहन निगम (DTC) ने सभी यात्री बसों को CNG में रूपांतरित कर दिया है। इस निर्णय के कारण बताइए। क्या आपके अनुसार CNG एक आदर्श ईंधन है? व्याख्या कीजिए। 


उत्तर डीजल की तुलना में CNG एक साफ ईंधन है। यह जलने पर धुआँ या नाइट्रोजन तथा गंधक ऑक्साइड उत्पन्न नहीं करता है। दूसरा यह डीजल की तुलना में बहुत सस्ता है, लेकिन CNG आदर्श ईंधन नहीं माना जा सकता है।




इसके कारण निम्न हैं


(i) CNG स्वयं अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है। अतः यह ऊर्जा समस्या का स्थायी समाधान नहीं है।


(ii) CNG जलने पर कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) गैस उत्पन्न करती है, जो एक हरित गृह प्रभाव गैस है। यह गैस विश्व में तापवृद्धि का मुख्य कारण है।


(iii) डीजल की तुलना में CNG की क्षमता कम है।


विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 7 अंक


प्रश्न 1. सौर कुकर के बारे में बताइए। इसके लाभ तथा सीमाएँ भी बताइए। अथवा सौर कुकर का उपयोग करने के क्या लाभ व हानियाँ हैं? क्या ऐसे भी क्षेत्र हैं, जहाँ सौर कुकरों की सीमित उपयोगिता है?



उत्तर इस युक्ति में सूर्य की ऊर्जा का उपयोग करके खाना पकाया जाता है, इसलिए इसे सौर चूल्हा भी कहते हैं।


इसमें एक पृथक्कृत धातु का बक्सा या लकड़ी का बक्सा होता है, जिसको अन्दर से काला पेंट कर दिया जाता है, जिससे यह अधिकतम सूर्य के विकिरणों का अवशोषण कर सके। इस बॉक्स के ऊपर एक काँच की पतली परत होती है। बॉक्स में एक समतल दर्पण को परावर्तक के रूप में लगा दिया जाता है। कुछ सोलर कुकर में अवतल दर्पण का उपयोग करके सूर्य की किरणों को फोकस किया जाता है। 


सौर कुकर के लाभ निम्न है


1.यह ईंधन बचाता है।


2.इससे प्रदूषण नहीं होता है।


3.इसमें खाना पकाने की क्रिया धीमी होती है, अत: खाने में पोषक तत्व नष्ट नहीं होते हैं।



4.यह एक समय में चार प्रकार के व्यंजन पका सकता है।


 सौर कुकर की सीमाएँ निम्न हैं


1.  इसका उपयोग आकाश में बादल होने पर या रात्रि में नहीं किया जा सकता है। 


2• इसका उपयोग रोटियाँ बनाने या किसी खाने को तलने के लिए नहीं किया जा सकता है।


3.सौर कुकर की दिशा समय-समय पर परिवर्तित करनी पड़ती है, जिससे यह अधिकतम समय तक सूर्य की ओर रहे। 


4• भोजन पकाने में समय अधिक लगता है।



प्रश्न 2. निम्न के बारे में बताइए।


(i) सौर सैल (ii) सौर पैनल (iii) हरित गैस प्रभाव 



उत्तर 



(i) सौर सैल यह सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने की युक्ति है। यह सेल अर्द्धचालकों जैसे-सिलिकन, जर्मेनियम तथा गेलियम से बने होते हैं। इन सेलों को फोटोवोल्टिक सेल भी कहते है। सौर सेल में फोकस की कोई आवश्यकता नहीं होती है। इनको कही भी इस प्रकार के क्षेत्र में जहाँ विद्युत का पहुँचना सम्भव नहीं हो, लगाया जा सकता है। सौर सेल बनाने के लिए सिलिकन अर्द्धचालक का उपयोग किया जाता है। यह वातावरण के अनुकूल है तथा कोई प्रदूषण उत्पन्न नहीं करता है। इसको बनाने की प्रक्रिया बहुत महँगी होती है।



(ii) सौर पैनल जब बहुत सारे सौर सेलों को एक क्रम में संयोजित कर दिया जाता है, तो यह संयोजन सौर पैनल कहलाता है। इससे प्राप्त अधिक होता है तथा धारा का मान भी अधिक प्राप्त होता है। यह व्यवस्था सौर पैनल कहलाती है। इससे प्राप्त विद्युत शक्ति का उपयोग व्यवहारिक रूप से किया जाता है लेकिन सेलों को -एक-दूसरे से संयोजित करने के लिए चाँदी की आवश्यकता होती है। 






(iii) हेरित गैस प्रभाव वायुमण्डल में CO₂ द्वारा अवरक्त किरणों के अवशोषण के कारण ऊष्मा का उत्पन्न होना, हरित गृह प्रभाव कहलाता है। सूर्य का ताप बहुत अधिक होता है। अत: सूर्य निम्न तरंगदैर्ध्य की अवरक्त किरणों का उत्सर्जन करता है। पृथ्वी इन विकिरणों का अवशोषण कर लेती है तथा इनका पुनः उत्सर्जन करती है। इनका अवशोषण कुछ गैसें; जैसे-कार्बन डाईऑक्साइड, पानी की वाष्प तथा मेथेन इत्यादि द्वारा कर लिया जाता है, जिसके कारण पृथ्वी से ऊष्मा बाह्य वातावरण में नहीं जा पाती व पृथ्वी का ताप बढ़ने लगता है। यही प्रभाव हरित गृह प्रभाव कहलाता है तथा गैसे हरित गृह गैसें कहलाती है। इनके कारण ही वायुमण्डल तप्त होता है।


प्रश्न 3. नाभिकीय ऊर्जा प्राप्त करने में नाभिकीय विखण्डन एवं नाभिकीय संलयन को स्पष्ट कीजिए। 


उत्तर नाभिकीय विखंडन में एक भारी नाभिक का विखंडन दो या दो से अधिक छोटे भागों में हो जाता है। इस विखंडन में असीम ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह विखंडन धीमी गति के न्यूट्रॉनों का उस पदार्थ के नाभिक से टकराने पर होता है।


प्रश्न 4. ऊर्जा की बढ़ती माँग के पर्यावरणीय परिणाम क्या हैं? ऊर्जा की खपत को कम करने के उपाय लिखिए। 


उत्तर ऊर्जा की बढ़ती माँग का पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, जो इस प्रकार है 


(i) प्रकृति से संसाधनों के अधिक मात्रा में दोहन से कई प्राकृतिक चक्रों में व्यवधान आ जाता है।


(ii) अधिक मात्रा में ऊर्जा स्रोतों के उपयोग तथा अवशेषों के द्वारा प्राकृतिक संसाधन; जैसे- वायु, जल, मृदा आदि प्रदूषित होते हैं।


(iii) ग्रीन हाउस गैसों की बढ़ती मात्रा ग्लोबल वार्मिंग उत्पन्न करती है।


 (iv) पवन फार्म, बाँध, नाभिकीय संयन्त्र आदि के लिए भूमि तैयार करने के लिए वनों व खेतों को नष्ट करना पड़ता है, जिससे प्रदूषण नियंत्रण में भी कठिनाई होती है। साथ ही लोगों के रोजगार तथा वन्य जीवों के आवास नष्ट हो जाते हैं, अत: प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है।


ऊर्जा की खपत कम करने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए


 (i) व्यक्तिगत वाहनों का कम उपयोग तथा जन वाहनों (बस आदि) का अधिक उपयोग।


(ii) ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों (जैसे-सौर ऊर्जा) का उपयोग।


(iii) भोजन पकाने के लिए प्रेशर कुकर आदि जैसी युक्तियों का उपयोग।


(iv) घरों में सभी व्यक्ति निश्चित समय पर साथ बैठ कर भोजन करें।


 (v) कम दूरी पर जाने के लिए पैदल जाना या साइकिल आदि का उपयोग करें।


ईंधन उपयोग करने वाले वाहनों का उपयोग कम करें। 


(vi) अच्छी दक्षता वाली युक्तियाँ (स्टोव आदि) व अच्छी क्वालिटी का ईंधन उपयोग करें।


(vii) अधिक पेड़-पौधे लगाएँ।


(viii) कचरे का भली-भाँति निस्तारण करें।




प्रश्न 5. पवन चक्की का कार्य-सिद्धान्त क्या है? पवन चक्की का विवरण चित्र सहित समझाइए ।


उत्तर- 


पवन चक्की – पवन चक्की एक ऐसी युक्ति है, जिसमें वायु की गतिज ऊर्जा ब्लेडों को घुमाने में प्रयुक्त की जाती है। यह बच्चों के खिलौने 'फिरकी' जैसी होती है। पवन चक्की के ब्लेडों की बनावट विद्युत पंखे के ब्लेडों के समान होती है। इनमें केवल इतना अन्तर है कि विद्युत पंखे में जब पंखे के ब्लेड घूमते हैं तो पवन अर्थात् वायु चलती है। इसके विपरीत, पवन चक्की में जब पवन चलती है, तो पवन चक्की के ब्लेड घूमते हैं। घूमते हुए ब्लेडों की घूर्णन गति के कारण पवन चक्की से गेहूँ पीसने की चक्की को चलाना, जल-पम्प चलाना, मिट्टी के बर्तन के चाक को घुमाना आदि कार्य किए जा सकते हैं। पवन चक्की ऐसे स्थानों पर लगाई जाती है, जहाँ वायु लगभग पूरे वर्ष तीव्र वेग से चलती रहती है। यह पवन ऊर्जा को उपयोगी यान्त्रिक-ऊर्जा के रूप में बदलने का कार्य करती है।







रचना – पवन चक्की की रचना को चित्र में प्रदर्शित किया गया है। इसमें ऐलुमिनियम के पतले- चपटे आयताकार खण्डों के रूप में, बहुत-सी पंखुड़ियाँ लोहे के पहिये पर लगी रहती हैं। यह पहिया एक ऊर्ध्वाधर स्तम्भ के ऊपरी सिरे पर लगा रहता है तथा अपने केन्द्र से गुजरने वाली लौह शाफ्ट (अक्ष) के परितः घूम सकता है। पहिये का तल स्वतः वायु की गति की दिशा के लम्बवत् समायोजित हो जाता है, जिससे वायु सदैव पंखुड़ियों पर सामने से टकराती है। पहिये की अक्ष एक लोहे की क्रैंक से जुड़ी रहती है। क्रैंक का दूसरा सिरा उस मशीन अथवा डायनमो से जुड़ा रहता है, जिसे पवन-ऊर्जा द्वारा गति प्रदान करनी होती है।


कार्य-विधि चित्र में पवन चक्की द्वारा पानी खींचने की क्रिया का प्रदर्शन किया गया है। पवन चक्की की क्रैंक एक जल-पम्प की पिस्टन छड़ से जुड़ी है। जब वायु, पवन चक्की की पंखुड़ियों से टकराती है तो चक्की का पहिया घूमने लगता है और पहिये से जुड़ी अक्ष घूमने लगती है। अक्ष की घूर्णन गति के कारण क्रैंक ऊपर-नीचे होने लगती है और जल-पम्प की पिस्टन छड़ भी ऊपर-नीचे गति करने लगती है तथा जल-पम्प से जल बाहर निकलने लगता है।



 कार्य-सिद्धान्त तेजी से बहती हुई पवन जब पवन चक्की के ब्लेडों से टकराती है तो वह उन पर एक बल लगाती है जो एक प्रकार का घूर्णी प्रभाव उत्पन्न करता है और इसके कारण पवन चक्की के ब्लेड घूमने लगते हैं। पवन चक्की का घूर्णन उसके ब्लेडों की विशिष्ट बनावट के कारण होता है जो विद्युत के पंखे के ब्लेडों के समान होती है। पवन चक्की को विद्युत के पंखे के समान माना जा सकता है जो कि विपरीत दिशा में कार्य कर रहा हो, क्योंकि जब पंखे के ब्लेड घूमते हैं तो पवन चलती है। इसके विपरीत, जब पवन चलती है तो पवन चक्की के ब्लेड घूमते हैं। पवन चक्की के लगातार घूमते हुए ब्लेडों की घूर्णन गति से जल पम्प तथा गेहूं पीसने की चक्की चलाई जा सकती है। पवन चक्की की भाँति 'फिरकी' भी पवन ऊर्जा से ही घूमती है।



प्रश्न 6. किसी नाभिकीय रिऐक्टर के प्रमुख घटकों के नाम लिखिए तथा उनके प्रकार्यों का वर्णन कीजिए।,


अथवा


नाभिकीय रिऐक्टर के प्रमुख भागों का उल्लेख करते हुए इसकी प्रक्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए।

 

अथवा


समझाइए कि नाभिकीय रिऐक्टर में विमन्दकों तथा नियन्त्रकों की सहायता से श्रृंखला अभिक्रिया को किस प्रकार नियन्त्रित किया जाता है?



उत्तर - नाभिकीय रिटेक्टर के प्रमुख घटक नाभिकीय रिऐक्टर एक ऐसा उपकरण है, जिसके भीतर नाभिकीय विखण्डन की नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया द्वारा ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। इसके निम्नलिखित मुख्य भाग हैं


1. ईंधन (Fuel) विखण्डित किए जाने वाले पदार्थ (U²³⁵ अथवा Pu²³⁹  ) को रिऐक्टर का ईंधन कहते हैं।


2. मन्दक (Moderator) विखण्डन में उत्पन्न न्यूट्रॉनों की गति (ऊर्जा) को कम करने के लिए मन्दक प्रयोग किए जाते हैं। इसके लिए भारी जल, ग्रेफाइट अथवा बेरिलियम ऑक्साइड (BeO) प्रयोग किए जाते हैं। भारी जल सबसे अच्छा मन्दक है।


3. परिरक्षक (Shield) नाभिकीय विखण्डन के समय कई प्रकार की तीव्र किरणें (जैसे—y-किरणें) निकलती हैं, जिनसे रिऐक्टर के पास काम करने वाले व्यक्ति प्रभावित हो सकते हैं। इन किरणों से उनकी रक्षा करने के लिए रिऐक्टर के चारों ओर कंक्रीट की मोटी-मोटी (सात फुट मोटी) दीवारें बना दी जाती हैं।


4. नियन्त्रक (Controller) रिऐक्टर में विखण्डन की गति पर नियन्त्रण करने के लिए कैडमियम की छड़ें प्रयुक्त की जाती हैं। रिऐक्टर की दीवार में इन छड़ों को आवश्यकतानुसार अन्दर-बाहर करके विखण्डन की गति को नियन्त्रित किया जा सकता है।


5. शीतलक (Coolant) विखण्डन के समय उत्पन्न होने वाली ऊष्मा को शीतलक पदार्थ द्वारा हटाया जाता है। इसके लिए वायु, जल अथवा कार्बन डाइऑक्साइड को रिऐक्टर में प्रवाहित करते हैं। ऊष्मा प्राप्त कर जल अतितप्त हो जाता है और जलवाष्प में परिवर्तित हो जाता है, जिससे टरबाइन चलाकर विद्युत उत्पादित की जाती है।


रचना नाभिकीय रिएक्टर का सरल रूप चित्र में दिखाया गया है। इसमें ग्रेफाइट की ईंटों से बना एक ब्लॉक है, जिसमें निश्चित स्थानों पर साधारण यूरेनियम की छड़ें लगी रहती हैं। इन छड़ों पर ऐलुमिनियम के खोल चढ़ा दिए जाते हैं जिससे इनका ऑक्सीकरण न हो। ब्लॉक के बीच-बीच में कैडमियम की छड़ें लगी होती हैं, जिन्हें 'नियन्त्रक-छड़ें' कहते हैं। इन्हें इच्छानुसार अन्दर अथवा बाहर खिसका सकते हैं। ग्रेफाइट मन्दक का कार्य करता है तथा कैडमियम न्यूट्रॉनों का अच्छा अवशोषक होने के कारण नाभिकीय विखण्डन को रोक सकता है। कैडमियम छड़ों के अतिरिक्त इसमें कुछ सुरक्षा छड़ें भी लगी रहती हैं जो दुर्घटना होने पर स्वतः रिऐक्टर में प्रवेश कर जाती हैं और अभिक्रिया को रोक देती हैं। रिऐक्टर के चारों ओर सात फुट मोटी कंक्रीट की दीवार बना दी जाती है, जिससे कर्मचारियों को हानिकारक विकिरणों से बचाया जा सके।




कार्य-विधि – रिऐक्टर को चलाने के लिए किसी बाह्य स्रोत की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि इसमें सदैव कुछ न्यूट्रॉन उपस्थित रहते हैं; अतः जब रिऐक्टर को चलाना होता है तो कैडमियम की छड़ों को बाहर खींच लेते हैं, तब रिऐक्टर में मौजूद न्यूट्रॉन यूरेनियम नाभिकों का विखण्डन प्रारम्भ कर देते हैं। जब रिऐक्टर में उपस्थित न्यूट्रॉनों द्वारा U²³⁵ का विखण्डन होता है तो इससे उत्पन्न तीव्रगामी न्यूट्रॉनों का ग्रेफाइट के साथ बार-बार टकराने से मन्दन हो जाता है, जिससे ये अगले U²³⁵ के नाभिक का विखण्डन करने लगते हैं। इस प्रकार, विखण्डन की श्रृंखला-अभिक्रिया शुरू हो जाती है। जब कभी अभिक्रिया अनियन्त्रित होने लगती है, तब कैडमियम की छड़ों को अन्दर खिसका देते हैं। कैडमियम की छड़ें कुछ न्यूट्रॉनों को अवशोषित कर लेती हैं, जिससे विखण्डन दर कम हो जाती है और इस प्रकार, उत्पन्न ऊर्जा पर नियन्त्रण हो जाता है और विस्फोट नहीं हो पाता। रिऐक्टर में श्रृंखला .अभिक्रिया चलाने के लिए यूरेनियम की छड़ों का आकार, क्रान्तिक आकार से बड़ा रखते हैं।


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