प्रगतिवाद की विशेषताएं प्रवृत्तियां ।। Pragativad ki visheshtayen
प्रगतिवाद की परिभाषा pragativadi kavita ki vichardhara pragativad kya hai pragativadi Yug in Hindi प्रगतिवादी छायावाद की विशेषताएं प्रगतिवाद के प्रवर्तक प्रकृतिवाद का अर्थ प्रगतिवादी युग की विशेषता प्रगतिवाद का अर्थ परिवार की परिभाषा प्रगतिवाद के प्रवर्तक प्रगतिवाद का परिचय प्रगतिवाद की विशेषताएं प्रगतिवाद के प्रमुख कवि प्रगतिवाद की प्रमुख प्रवृत्तियां-जो विचारधारा राजनीतिक क्षेत्र में समाजवाद और दर्शन में द्वंदात्मक भौतिकवाद है वही साहित्य क्षेत्र में प्रगतिवाद के नाम से अभिहित की जाती है। मार्क्सवादी या शाम में वादी दृष्टिकोण के अनुसार निर्मित काव्यधारा प्रकृतिवाद है। व्यक्तिवाद की जो व्यापक चेतना, लोक संग्रह, आशा और उल्लास का जो स्वर प्रसाद, महादेवी, निराला और पंथ में मिलता है, नए कवियों में उसका प्राय लोप सा हो गया है। उत्तर छायावाद युग में अनेक कवि प्रगतिवाद के जीवन आदर्श से प्रेरित हुए इसमें प्रमुख हैं।-- नरेंद्र शर्मा, शिवमंगल सिंह सुमन, केदारनाथ अग्रवाल, नागार्जुन, रांगेय राघव, प्रगतिवाद के तरुण कवि हैं--शंभूनाथ सिंह, गिरिजाकुमार माथुर।
प्रगतिवाद की विशेषताएं प्रवृत्तियां ।। Pragativad ki visheshtayen |
प्रगतिवाद-जन्म, कवि, विशेषताएं-प्रवृत्तियां प्रगतिवादी काव्यधारा
प्रगतिवाद
प्रगतिवाद एक राजनैतिक एवं सामाजिक शब्द है। प्रीति शब्द का अर्थ है आगे बढ़ना उन्नति। समाज साहित्य आदि की निरंतर उन्नति पर जोर देने का सिद्धांत। प्रगतिवाद छायावादोत्तर युग के नवीन का विधारा का एक भाग है।
यह उन विचारधाराओं एवं आंदोलनों के संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता है जो आर्थिक एवं सामाजिक नीतियों में परिवर्तन या सुधार के पक्षधर हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से अमेरिका में प्रकृतिवाद बीसवीं सदी के आरंभ में अपने शीर्ष पर था जब गृह युद्ध समाप्त हुआ और बहुत तेजी से औद्योगिकरण आरंभ हुआ।
प्रगतिवाद का जन्म
प्रगतिवाद (1936 ईस्वी से..) - संगठित रूप में हिंदी में प्रकृतिवाद का आरंभ प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा 1936 ईस्वी में लखनऊ में आयोजित इस अधिवेशन से होता है जिसकी अध्यक्षता प्रेमचंद ने की थी इसमें उन्होंने कहा था ,"साहित्य का उद्देश्य दबे कुचले हुए वर्ग की मुक्ति का होना चाहिए।"
1935 ईस्वी में एम फोस्टर ने प्रोग्रेसिव राइटर एसोसिएशन नामक एक संस्था के ने पेरिस में रखी थी। इसी की देखा देखी सज्जाद जाहिर और मुल्क राज आनंद ने भारत में 1936 ईस्वी में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना की।
मुख्य तथ्य
एक साहित्यिक आंदोलन के रूप में प्रगतिवाद का इतिहास मोटे तौर पर 1936 से लेकर 1956 ईस्वी तक का इतिहास है।
जिस के प्रमुख कवि हैं-केदारनाथ अग्रवाल, नागार्जुन, रामविलास शर्मा, शिवमंगल सिंह सुमन, त्रिलोचन, रागेय राघव आदि
किंतु व्यापक अर्थ में प्रगतिवाद ना तो स्थिर मतवाद है और ना ही इस पर काव्य रूप बल्कि यह निरंतर विकासशील साहित्य धारा है।
प्रगतिवाद के विकास में अपना योगदान देने वाले परवर्ती कवियों में केदारनाथ सिंह, धूमिल, कुमार विलास, अरुण कमल, राजेश जोशी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
प्रतिवादी कब का मूसलाधार मार्क्सवादी दर्शन है। पर्र यह मार्क्सवाद का साहित्यिक रूपांतर मात्र नहीं है। प्रगतिवादी आंदोलन की पहचान जीवन और जगत के प्रति नए दृष्टिकोण में निहित है।
प्रवृतियां
प्रगतिवाद वैसे साहित्य प्रवृत्ति है जिसमें एक प्रकार की इतिहास चेतना, सामाजिक यथार्थ दृष्टि, वर्ग चेतन विचारधारा, प्रतिबद्धता या पक्षधरता, गहरी जीवन की शक्ति, परिवर्तन के लिए सजगता और एक प्रकार की भविष्योन्मुखी दृष्टि मौजूद हो।
प्रगतिवादी काव्य एक सीधी-सहज-तेज प्रखर, कभी व्यंग पूर्ण आक्रामक काव्य शैली का वाचक है।
प्रगतिवाद साहित्य को सोद्देश्य मानता है और उसका उद्देश्य है 'जनता के लिए जनता का चित्रण करना'दूसरे शब्दों में, वह कला'कला के लिए'के सिद्धांत में यकीन नहीं करता बल्कि उसका यकीन तो 'कला जीवन के लिए 'के फलसफे में हैं। मतलब कि प्रगतिवाद आनंदवादी मूल्यों के बजाय बहुत एक उपयोगितावादी मूल्यों में विश्वास करता है।
राजनीति में जो स्थान समाजवाद का है । वहीं स्थान साहित्य में प्रकृतिवाद का है।
प्रगतिवादी काव्य की विशेषताएं
समाजवादी यथार्थवाद/सामाजिक यथार्थ का चित्रण,
प्रकृति के प्रति लगाव
नारी प्रेम
राष्ट्रीयता
सांप्रदायिकता का विरोध
बोधगम्य भाषा (जनता की भाषा में जनता की बातें) व व्यंग्यात्मक
मुक्त छंद का प्रयोग (मुक्त छंद का आधार कजरी, लावनी, ठुमरी जैसे लोकगीत)
मुक्त काव्य रूप का प्रयोग।
रुढ़ियो का विरोध
क्रांति की भावना
रुढ़ियो का विरोध --
प्रगतिवादी साहित्य विविध सामाजिक एवं सांस्कृतिक रुढ़ियो एवं मान्यताओं का विरोध प्रस्तुत करता है। उसका ईश्वरीय विधान, धर्म, स्वर्ण, नरक आदि पर विश्वास नहीं है। उसकी दृष्टि में मानव महत्व सर्वोपरि है।
शोषण का विरोध
इस की दृष्टि में मानव शोषण एक भयानक अभिशाप है। साम्यवादी व्यवस्था मानव शोषण का हर स्तर पर विरोध करती है। यही कारण है कि प्रगतिवादी कवि मजदूरों, किसानों ,पीड़ितों की दीन दशा का कारूणिक खींचता है। निराला की भिक्षुक कविता में यही ईश्वर है। बंगाल के आकार का दुखद चित्र खींचे हुए निराला जी लिखते हैं:-
बाप बेटा भेचता है भूख से बेहाल होकर ।
________________________________
शोषण कर्ताओं के प्रति घृणा का स्वर:-
प्रगतिवादी कविता में पूंजीवाद व्यवस्था को बल प्रदान करने वाले लोगों के प्रति घृणा का स्वर है। 'दिनकर' का आक्रोश भरा स्वर देखिए -
श्वानों को मिलता दूध-वस्त्र, भूखे बालक अकुलाते हैं
______________________________
क्रांति की भावना :-
वर्गहीन समाज की स्थापना प्रगतिवाद का पहला लक्ष्य है इसलिए वह आर्थिक परिवर्तनों के साथ सामाजिक मान्यताओं में भी परिवर्तन की अपेक्षा करता है। इसके लिए भाई क्रांति का आवाहन करता है। जीर्ण - शीर्ष रुढ़िय हमेशा के लिए समाप्त हो जाए।
________________________________
मार्क्सवाद का प्रचार:-
प्रगतिवाद साहित्यकार जीवन के भौतिक पक्ष का उत्थान करना चाहते हैं इसलिए मानवता के प्रतिष्ठा उनका मूल लक्ष्य है। सामाजिकता की प्रधानता के कारण प्रगतिवादी जीवन की स्थूल समस्याओं का विवेचन साहित्य में करते हैं।
________________________________
नारी भावना:-
प्रगतिवादी कवियों का विश्वास है कि मजदूरों और किसानों की तरह साम्राज्यवादी समाज में नारी भी शोषित हैं। वह पुरुष की दासता जन्य लौह श्रृंखला बंदिनी है। वह आज अपना स्वरूप खोकर वासना पूर्ति का उपकरण मात्र रह गई है अतः कभी कहता है--
मुक्त करणारी तन
प्रगतिवादी कवि नरेंद्र शर्मा ने वेश्या के प्रति सहानुभूति जताते हुए लिखा है --
गृह सुख से निर्वासित कर दो,हाय मानवी बनी सर्पिणी।
_______________________________
यथार्थ चित्रण:-
लौकिक और यथार्थ धरातल पर स्थित होने के कारण प्रगतिवाद जनजीवन कैसे क्या है। सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण प्रगतिवाद में दो धरातल पर प्रकट हुआ है।- सामाजिक जीवन का यथार्थ, चित्रण और सामान्य प्राकृतिक परिवेश का चित्र। डॉ नामवर सिंह के अनुसार---
सामाजिक यथार्थ दृष्टि प्रगतिवाद की आधारशिला है।
________________________________
समसामयिक चित्र:-
प्रगतिवादी कवियों में देश विदेश में उत्पन्न समसामयिक समस्या और घटनाओं की अनदेखी करने की दृष्टि नहीं है। संप्रदायिक समस्याओं, भारत पाकिस्तान विभाजन, कश्मीर समस्या, बंगाल का अकाल, बाढ़, अकाल, दरिद्रता, बेकारी, चरित्र हीनता, आदि का कवियों ने बड़े पैमाने पर चित्रण किया है।
इस प्रकार हम क्या कह सकते हैं कि प्रगतिवादी साहित्य का जीवन के भौतिक पक्ष का उत्थान करना चाहते हैं। चाय स्वयं प्रकृतिवाद ने कोई विशेष महत्व रचना ना दी हो, पिंटू इसके प्रभाव से प्रायः सभी वर्गों के साहित्यकारों के दृष्टिकोण में प्राप्त विकास हुआ है।
प्रमुख प्रगतिवादी कवियों के नाम--
यह भी पढ़ें
👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇
NCERT solution for class 10th English lesson 1 Dust of snow
NCERT solutions for class 10th English lesson 2 fire and ice
NCERT solution for class 10th English poem lesson 3 a tiger in the zoo
NCERT solution for class 10th English lesson 4 how to tell wild animals
👇👇👇👇👇👇👇👇
1 January ko hi kyu manaya jata hai New year
👇👇👇👇👇👇👇👇
👇👇👇👇👇👇👇👇👇
10 line 0n makara Sankranti 2022
कक्षा 12 वीं अर्थशास्त्र प्री बोर्ड पेपर सम्पूर्ण हल
साहित्य समाज का दर्पण है पर निबंध
भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण संशोधन
एक टिप्पणी भेजें