चौरी-चौरा कांड पर निबंध || chauri chaura incident in Hindi

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चौरी-चौरा कांड पर निबंध || chauri chaura incident in Hindi

चौरी-चौरा कांड पर निबंध || chauri chaura incident in Hindi

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नमस्कार दोस्तों, आज की इस पोस्ट में हम आपको चौरी-चौरा कांड पर निबंध लिखना सिखाएंगे और इसके साथ ही हम आपको इस घटना को गहराई से समझाने का प्रयास करेंगे। तो आइए देखते हैं कि चौरी-चौरा कांड पर निबंध किस प्रकार से लिखा जाएगा। दोस्तों अगर आपके लिए यह post useful हो तो अपने सभी दोस्तों के साथ भी शेयर करिएगा।


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Table of contents –


प्रस्तावना

चौरी चौरा कांड का इतिहास

यह घटना घटित क्यों हुई?

घटना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?

तात्कालिक परिणाम

स्मारक

उपसंहार 


"अपने लहू से सींचा है, इस देश को उन परवानों ने,

यूंही नहीं ये वादियां लहराती और गाती नाम उन दीवानों की।

अभी कतार बहुत लंबी है खुदा, कमी नहीं है मेरे मुल्क में सरहद पर मिट जाने वालों की।"


प्रस्तावना –


भारतीय इतिहास की नीव की सभी ईंटों को हिला देने वाली घटना जिसे 'चौरी चौरा कांड' के नाम से जाना जाता है। 4 फरवरी 1922 में घटित हुई इस घटना ने अंग्रेजी हुकूमत की पैरों तले जमीन खिसका दी। इस महान क्रांतिकारी घटना को इतिहास के सुनहरे अक्षरों में अंकित किया गया।


चौरी चौरा कांड का इतिहास –


भारत के इतिहास की पृष्ठभूमि को बदलने वाली यह घटना 4 फरवरी 1922 को 'उत्तर प्रदेश' में 'गोरखपुर' के पास 'चौरी चौरा' नामक स्थान पर गुस्से से भरी किसानों की भीड़ ने पुलिस स्टेशन में आग लगा दी, जिसमें 22 पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गई।


यह घटना घटित क्यों हुई ?


जब 'जकड़ी थी ये भारत मां, यूंही अंग्रेजों के हाथों में। फिर खड़े हुए वे महान देशभक्त, लेके तलवार अपने हाथों में।

घटना से 2 दिन पहले, 2 फरवरी 1922 को भगवान अहीर नामक ब्रिटिश भारतीय सेना के एक सेवानिवृत्त सैनिकों के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले स्वयंसेवकों ने गौरी बाजार में उच्च खाद्य कीमतों और शराब की बिक्री का विरोध किया। प्रदर्शनकारियों को स्थानीय दरोगा गुप्तेश्वर सिंह और अन्य पुलिस अधिकारियों ने पीटा। कई नेताओं को गिरफ्तार कर चौरी-चौरा थाने की हवालात में डाल दिया गया। इसके जवाब में 4 फरवरी को बाजार में पुलिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया गया।


4 फरवरी को, 2000 से 2500 प्रदर्शनकारी इकट्टे हुए और चौरी-चौरा के बाजार लेन की ओर मार्च करना शुरू किया। वे गौरी बाजार शराब की दुकान पर धरना देने के लिए एकत्र हुए थे। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सशस्त्र पुलिस भेजी गई, जबकि प्रदर्शनकारियों ने ब्रिटिश विरोधी नारे लगाते हुए बाजार की ओर मार्च किया। भीड़ को डराने और तितर-बितर करने के प्रयास में, गुप्तेश्वर सिंह ने अपने 15 स्थानीय पुलिस अधिकारियों को चेतावनी देने के लिए हवा में गोलियां चलाने का आदेश दिया। इससे भीड़ भड़क गई और पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया।


स्थिति नियंत्रण से बाहर होने पर, सब इंस्पेक्टर पृथ्वीपाल ने पुलिस को आगे बढ़ रही भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें 3 लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए। पुलिस के पीछे हटने के कारणों पर रिपोर्ट अलग-अलग है। कुछ ने सुझाव दिया कि कांस्टेबल गोला बारूद से बाहर भाग गए, जबकि अन्य ने दावा किया कि भीड़ की गोलियों की अप्रत्याशित प्रतिक्रिया का कारण था। आगामी अराजकता में, भारी संख्या में पुलिस बापस पुलिस चौकी की शरण में आ गई, जबकि गुस्साई भीड़ आगे बढ़ गई। उनके रैंको में गोलियों से प्रभावित भीड़ ने चौकी में आग लगा दी, जिससे स्पेक्टर गुक्तेश्वर सिंह सहित अंदर फंसे सभी पुलिसकर्मियों की मौत हो गई।


जब भारत मां को ब्रिटिश हुकूमत ने अपने पंजों में जकड़ा हुआ था। तब भारत के महान क्रांतिकारियों से भारत मां की यह पीड़ा सहन नहीं हुई और भारत मां को बंधनों से मुक्त करने के लिए स्वयंसेवकों एवं देशभक्तों ने 'खिलाफत आंदोलन 1919' तथा 'असहयोग आंदोलन 1920' प्रारंभ किया। और इसी कारण असहयोग आंदोलन के जुलूस को 'मुंडेरा बाजार' से होकर ले जाने का निश्चय किया।


घटना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?


गांधी जी ने 1 अगस्त, 1920 को सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन (NCM) शुरू किया। इसमें स्वदेशी को नियोजित करना और विदेशी वस्तुओं, विशेष रूप से मशीन से बने कपड़े, साथ ही कानूनी, शैक्षिक और प्रशासनिक संस्थानों का बहिष्कार करना शामिल था, "जो दुरुपयोग करने वाले शासक की मदद करने से इनकार करते हैं।

1921-22 की सर्दियों में कांग्रेस और खिलाफत आंदोलन के स्वयंसेवकों ने एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक दल का गठन किया। खिलाफत आंदोलन एक भारतीय पैन-इस्लामिक बल था जो 1919 में ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय मुस्लिम समुदाय के बीच एकता के प्रतीक के रूप में ओटोमन खलीफा को उबारने के प्रयास में विकसित हुआ था। कांग्रेस ने पहल का समर्थन किया, और महात्मा गांधी ने इसे असहयोग आंदोलन से जोड़ने की मांग की।


तात्कालिक परिणाम –


इस घटना के तुरंत बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को समाप्त करने की घोषणा कर दी। बहुत से लोगों को गांधी जी का यह निर्णय उचित नहीं लगा। विशेषकर क्रांतिकारियों ने इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष विरोध किया। 1922 की गया कांग्रेस में प्रेमकृष्ण खन्ना व उनके साथियों ने राम प्रसाद बिस्मिल के साथ कंधे से कंधा भिड़ाकर गांधीजी का विरोध किया।

चौरी-चौरा कांड के अभियुक्तों का मुकदमा पंडित मदन मोहन मालवीय ने लड़ा और अधिकांश का बचा ले जाना उनकी एक बड़ी सफलता थी। इनमें से 151 लोग फांसी की सजा से बच गए। बाकी 19 लोगों को 2 से 11 जुलाई, 1923 के दौरान फांसी दे दी गई। इस घटना में 14 लोगों को आजीवन कैद और 19 लोगों को 8 वर्ष सश्रम कारावास की सजा हुई।


ब्रिटिश राज्य ने क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाकर सत्र अदालत ने 225 क्रांतिकारियों में से 172 कोमोर्सकी सजा सुनाई परंतु उनमें से केवल 19 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा दी गई।


गांधीजी ने इस घटना से प्रभावित होकर असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया और 'चौरी चौरा' सहायता कोष स्थापित किया।


असहयोग आंदोलन के अचानक समाप्ति से 'खिलाफत आंदोलन' के नेताओं का 'कांग्रेस' द्वारा टूट गया था। जिससे कांग्रेस और मुस्लिम नेताओं में फूट पड़ गई थी।


स्मारक –


अंग्रेज सरकार ने मारे गए पुलिस वालों की याद में एक स्मारक का निर्माण किया था, जिस पर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जय हिंद और जोड़ दिया गया।


स्थानीय लोग उन 19 लोगों को नहीं भूले जिन्हें मुकदमे के बाद फांसी दे दी गई थी। 1971 में उन्होंने 'शहीद स्मारक समिति' का निर्माण किया। 1973 में समिति ने झील के पास 12.2 मीटर ऊंची एक त्रिकोणीय मीनार निर्मित की जिसके तीनों फलकों पर गले में फांसी का फंदा चित्रित किया गया।


बाद में सरकार ने उन शहीदों की स्मृति में एक स्मारक बनवाया। इस स्मारक पर उन लोगों के नाम खुदे हुए हैं जिन्हें फांसी दी गई थी (विक्रम, भगवान, अब्दुल्लाह, कालीचरण, लाल मोहम्मद, रघुवीर, रामलगन, राम रूप, सहदेव, मोहन, श्याम सुंदर और सीताराम) इस स्मारक के पास ही स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित एक पुस्तकालय और संग्रहालय भी बनवाया गया है।


क्रांतिकारियों की याद में कानपुर से गोरखपुर के मध्य में 'चौरी-चौरा एक्सप्रेस' नामक एक रेलगाड़ी चलाई गई।


उपसंहार –


इस घटना ने भारत को आजाद कराने में 'आग में घी' का काम किया। घटना के बाद स्वतंत्रता की याद देशप्रेमियों के हृदय में और भी प्रज्वलित हो गई। और इस घटना ने भारत देश को अंग्रेजी हुकूमत के अंधेरे साम्राज्य से बाहर लाने में प्रमुख भूमिका निभाई।


Frequently asked questions –


प्रश्न - चौरी चौरा कांड क्यों हुआ था?

उत्तर - चौरी चौरा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले का एक कस्बा है। इस शहर में 4 फरवरी, 1922 को एक हिंसक घटना हुई, जब किसानों की एक बड़ी भीड़ ने एक पुलिस थाने में आग लगा दी, जिसमें लगभग 22 पुलिसकर्मियों और तीन नागरिकों की मौत हो गई। इस घटना के परिणाम, महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन (1920- 22) को वापस ले लिया।


प्रश्न - चौरी चौरा कांड का नया नाम क्या है?

उत्तर - उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने गोरखपुर जिले की नगर पालिका परिषद ने इन नामों में बदलाव किया है। अब 'मुंडेरा बाजार' को 'चौरी-चौरा' और देवरिया जिले के 'तेलिया अफगान' गांव को 'तेलिया शुक्ला' के नाम से जाना जाएगा।


प्रश्न - असहयोग आंदोलन में चौरी-चौरा का क्या महत्व है?

उत्तर - जब चौरी-चौरा की घटना 4 अप्रैल 1922 में हुई तब प्रदर्शनकारियों ने मार्केट लेन चौरा की तरफ अपना रुख मोड़ लिया तब उनपर और असहयोग आंदोलन कर रहे लोगों पर गोलियों की बौछार कर दी गई। इसके परिणामस्वरूप उन्होंने कई पुलिस स्टेशनों को आग के हवाले कर दिया। इसके बाद 14 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई और 19 लोगों की मृत्यु हो गई।


प्रश्न - चौरी-चौरा की घटना से क्या अभिप्राय है?

उत्तर - चौरी-चौरा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले का एक कस्बा है। 4 फरवरी 1922 को इस शहर में एक हिंसक घटना हुई किसानों की भीड़ ने एक पुलिस थाने में आग लगा दी, जिसमें 22 पुलिसकर्मी मारे गए। इस घटना के कारण महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया था।


प्रश्न - चौरी-चौरा घटना कब हुई थी?

उत्तर - चौरी-चौरा घटना 4 फरवरी 1922 को हुई थी।


प्रश्न - चौरी-चौरा कांड के नेता कौन थे?

उत्तर - भीड़ को डराने और तितर-बितर करने के प्रयास में गुक्तेश्वर सिंह ने अपने 15 स्थानीय पुलिस अधिकारियों को चेतावनी देने के लिए हवा में गोलियां चलाने का आदेश दिया।


प्रश्न - चौरी-चौरा स्मारक का शिलान्यास कब हुआ?

उत्तर - चौरी-चौरा स्मारक का शिलान्यास 6 फरवरी 1982 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने चौरी-चौरा विद्रोह की 60वीं वर्षगांठ पर किया था।


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Reference –

hi.m.wikipedia.org

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