महावीर स्वामी का जीवन परिचय//Mahavir Swami ka jivan prichay

Ticker

महावीर स्वामी का जीवन परिचय//Mahavir Swami ka jivan prichay

महावीर स्वामी का जीवन परिचय//Mahavir Swami ka jivan prichay


जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ऐसा के मूर्तिमान प्रत्येक थे प्रोग्राम उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। एक लंगोटी तक का परिग्रह नहीं था उन्हें हिंसा पशु बलि जाति-पाति के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए उसी युग में पैदा हुए महावीर और बुद्ध। दोनों ने इन चीजों के खिलाफ आवाज उठाई। दोनों ने ऐसा का भरपूर विकास किया।


करीब ढाई हजार साल पुरानी बात है। ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के क्षेत्रिय कुंडलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के यहां तीसरी संतान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस को बुर्द्धमान का जन्म हुआ। यही बुर्द्धमान बाद में स्वामी महावीर बना। महावीर को वीर अतिवीर और सन्मति भी कहा जाता है। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का आज का जो बरसात गांव है वही उस समय का वैशाली था।


 बुर्द्धमान को लोग संज्जस (श्रेयांस) भी करते हैं और जसस यशस्वी भी। वे ज्ञातृ वंश के थे। गोत्र था कश्यप। बुर्द्धमान के बड़े भाई का नाम था नंदिवर्धन वा बहन का नाम सुदर्शना था। बुर्द्धमान का बचपन राजमहल में बीता वे बड़े निर्भीक थे। 8 बरस के हुए, तो उन्हें पढ़ाने, शिक्षा देने, धनुष आदि चलाना सिखाने के लिए शिल्पशाला में भेजा गया।


श्वेतांबर संप्रदाय की मान्यता है कि बुर्द्धमान ने यशोदा से विवाह किया था। उनकी बेटी का नाम था अयोज्जा (अनवधा)| जबकि दिगंबर संप्रदाय की मान्यता है बुर्द्धमान का विवाह हुआ ही नहीं था। वे बाल ब्रह्मचारी थे।


राजकुमार बुद्धिमान के माता-पिता जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे जो महावीर से 250 वर्ष पूर्व हुए थे। कि अनुयाई थे बुद्धिमान महावीर ने  चातुयार्म धर्म में ब्रह्माचार्य जोड़कर पंच महाव्रत रूपी धर्म चलाया। बुर्द्धमान सबसे प्रेम का बिहार करते थे उन्हें इस बात का अनुभव हो गया था की इंद्रियों का सुख, विषय वासनाओं का सुख, दूसरों को दुख पहुंचा करके ही पाया जा सकता है।


महावीर जी की 28 वर्ष की उम्र में इनके माता-पिता का देहांत हो गया। ज्येष्ठ बंधु नंदिवर्धन के अनुरोध पर वे 2 बरस तक घर पर रहे। बाद में 30 वर्ष की उम्र में बुर्द्धमान श्रामणी दीक्षा ली। वे समण बन गई। उनके शरीर पर परिग्रह के नाम पर एक लंगोटी भी नहीं रही। अधिकांश समय भी ध्यान में ही मग्न रहते। हाथ में ही भोजन कर लेते ग्रहस्थो से कोई चीज नहीं मांगते थे। धीरे-धीरे उन्होंने पूर्ण आत्मसाधना प्राप्त कर ली।



बुर्द्धमान महावीर ने 12 साल तक मौन तपस्या की और तरह तरह के कष्ट झेले अंत में उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। केवल ज्ञान प्राप्त होने के बाद भगवान महावीर ने जनकल्याण के लिए उपदेश देना शुरू किया। अर्धमगधी भाषा में भी उपदेश करने लगी ताकि जनता उसे भली-भांति समझ सके।


भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम प्रेम और करुणा सील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था। भगवान महावीर ने श्रमण और श्रमणी श्रावक और श्राविका, सब को लेकर चतुर्विध संघ की स्थापना की। उन्होंने कहा जो जिस अधिकार का हो वह उसी वर्ग में आकर सम्यक्त पाने के लिए आगे बढ़े जीवन का लक्ष्य समता पाना धीरे-धीरे संघ उन्नति करने लगा। देश के विभिन्न भागों में घूम कर भगवान महावीर ने अपना पवित्र संदेश फैलाया।


भगवान महावीर ने 72 वर्ष की अवस्था में ईसा पूर्व 527 में पावापुरी बिहार में कार्तिक अश्विन कृष्ण अमावस्या को निर्वाण प्राप्त किया। इनके निर्वाण दिवस पर घर-घर दीपक जलाकर दीपावली मनाई जाती है।


हमारा जीवन धन्य हो जाए यदि हम भगवान महावीर के इस छोटे से उपदेश का ही सच्चे मन से पालन करने लगे कि संसार के सभी छोटे बड़े जीव हमारी ही तरह हैं हमारी आत्मा का ही स्वरूप है।  



भगवान महावीर का आदर्श वाक्य


मित्ती में सव्य भूएसू।

सब प्राणियों से मेरी मैत्री है।



महावीर स्वामी का जीवन परिचय//Mahavir Swami ka jivan prichay


इसे भी पढ़ें

👉UP board model paper 2023 class-12th sychology











👉तत्व किसे कहते हैं।


👉बल किसे कहते हैं बल कितने प्रकार के होते हैं।


👉छायावाद किसे कहते हैं छायावादी काव्य की मुख्य विशेषताएं।


👉पंडित जवाहरलाल नेहरू का जीवन परिचय


👉मीराबाई पर निबंध।


👉नंबी नारायणन का जीवन परिचय।












Post a Comment

और नया पुराने

inside

inside 2