Class 12th Hindi Shravan Kumar Khand kavya Saransh Chapter 6 / श्रवण कुमार खंड काव्य का सारांश

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Class 12th Hindi Shravan Kumar Khand kavya Saransh Chapter 6 / श्रवण कुमार खंड काव्य का सारांश

Class 12th Hindi Shravan Kumar Khand kavya Saransh Chapter 6 / श्रवण कुमार खंड काव्य का सारांश

Class 12th Hindi Shravan Kumar Khand kavya Chapter 6 Saransh Charitra Chitran Kathavastu / श्रवण कुमार खंड काव्य चरित्र चित्रण

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प्रश्न .श्रवण कुमार के (चतुर्थ सर्ग) श्रवण सर्ग की कथा /कथानक/ कथावस्तु सारांश को संक्षेप में लिखिए।


अथवा


'श्रवण कुमार' खंडकाव्य की प्रमुख घटना का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।


अथवा


'श्रवण कुमार' खंडकाव्य की किसी घटना का उल्लेख कीजिए ।


उत्तर- श्रवण कुमार सर्ग का प्रारंभ श्रवण कुमार के मार्मिक विलाप से होता है। उसकी समझ में यह नहीं आता कि उसका कोई शत्रु नहीं, फिर भी उस पर किसने बाण छोड़ दिया? बाण लगने पर भी उसे अपनी चिंता नहीं, वरन् अपने वृद्ध एवं प्यासे माता-पिता की चिंता है-


मुझे बाढ़ की पीड़ा सम्प्रति इतनी नहीं सताती है।

पितरों के भविष्य की चिंता जितनी व्यथा बढ़ाती है।।


दशरथ आहत श्रवण कुमार को देखकर तथा उसके मार्मिक क्रदंन को सुनकर व्याकुल हो जाते हैं।


श्रवण कुमार के आंखें खोलने पर सारथी बताता है कि ये अज पुत्र दशरथ है और (मृगया शिकार) के भ्रम में आज इनसे भयंकर भूल हो गई है। श्रवण कुमार कहता है कि राजन! मुझे मार कर आपने एक नहीं वरन एक साथ तीन प्राणियों के प्राण लिए हैं। मेरे अंधे माता- पिता आश्रम में प्यासे बैठे हुए मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। आप यह जल का पात्र लेकर वहां जाइए और उन्हें मेरे प्राण त्याग की सूचना दे दीजिए। यह कहकर श्रवण कुमार प्राण त्याग देता है। उसके शव को सारथी की देखभाल में छोड़ अत्यंत दुखी मन से दशरथ जल पात्र लेकर आश्रम की ओर चल देते हैं।


इस सर्ग में कवि ने श्रवण कुमार के सात्विक जीवन, उसके कारुणिक अंत और दशरथ के मन में उत्पन्न आत्मग्लानि एवं शोकाकुलता का बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है।


प्रश्न- 'श्रवण कुमार' खंडकाव्य के 'दशरथ खंड' (पंचम सर्ग) की कथा का सार लिखिए।


उत्तर- पंचम सर्ग- पंचम सर्ग का प्रारंभ दशरथ के अंतर्द्वंद ,विषाद ,आत्मग्लानि और अपराध- भावना से होता है। दशरथ दुखी एवं चिंतित भाव से सिर झुकाए आश्रम की ओर जा रहे थे और सोच रहे थे कि इस घटना के कारण हृदय पर लगे घाव का प्रसिद्ध हुए किस प्रकार करें- 


हाय चलेगी युग- युगांत तक अब मेरी यह पाप कथा।

जो मुझको ही नहीं वंशजों को भी देगी मर्म व्यथा।।


इसी प्रकार के मानसिक उद्वेगों से आकुल -व्याकुल दशरथ आश्रम पहुंच जाते हैं।


प्रश्न- 'श्रवण कुमार' खंडकाव्य कथावस्तु को अपने शब्दों में लिखिए। 


या 


श्रवण कुमार खंडकाव्य के अभिशाप सर्ग की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।


उत्तर- सप्तम सर्ग- अभिशाप-  श्रवण कुमार खंडकाव्य के सप्तम सर्ग में ऋषि दंपति का करुण विलाप चित्रित हुआ है सरयू -तट पर अपने मृतक पुत्र के शरीर का स्पर्श कर उनके धैर्य का बांध टूट जाता है। वे विलाप करते करते अचेत हो जाते हैं। कुछ देर बाद सचेत होते हैं तो पुनः विलाप कर उठते हैं- 


कौन हमारे लिए विपिन से कंदमूल फल आएगा।

कौन अतिथि सा हमें खिलाने में सच्चा सुख पायेगा।।


इस प्रकार श्रवण कुमार के माता-पिता उसके गुणों और कर्मों का स्मरण कर करके हृदय विदारक विलाप करते हैं। अंत में श्रवण कुमार के पिता दशरथ से कहते हैं कि यद्यपि आपने यह पाप अनजाने में किया है, परंतु पाप तो पाप ही है इसलिए-


पुत्र -शोक से कलप रहा हूं जिस प्रकार मैं अजनंदन।

पुत्र -वियोग में प्राण करोगे इसी भांति करके क्रंदन।


प्रश्न -श्रवण कुमार खंडकाव्य की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए।


या


श्रवण कुमार खंडकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखें।


या 


श्रवण कुमार खंडकाव्य के आखेट सरकी कथा अपने शब्दों में लिखिए।


उत्तर- डॉक्टर शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित खंडकाव्य 'श्रवण कुमार' की कथा 'बाल्मीकि रामायण' के 'अयोध्या कांड' के श्रवण कुमार प्रसंग पर आधारित है इस खंडकाव्य का सर्गानुसार कथानक निम्नवत है-


                प्रथम: सर्ग अयोध्या


प्रथम सर्ग में श्रवण कुमार खंडकाव्य के कथानक की पृष्ठभूमि तैयार की गई है इसमें अयोध्या नगरी की स्थापना, उसका नामकरण, राज्यपाल के वैभव एवं उसके गौरवमयी विशेषताओं का वर्णन किया गया है यथा-


हरि सरयू के पावन तट पर है साकेत नगर छवि मान।

जिसमें श्री शोभा वैभव के कभी तने थे विपुल वितान ।।

मनु- वंशज इक्ष्वाकु भूप की कीर्ति- पताका लोक- ललामा।

अनुपम शोभाधाम अयोध्या चित्ताकर्षक अति अभिराम।।


कभी ने यह भी बताया कि अयोध्या में सर्वत्र नैतिकता और सदाचार विद्यमान है। इस नगरी में सभी वस्तुओं का विक्रय उचित मूल्य पर होता है। यहां के नर- नारी परस्पर यथोचित सम्मान करते हैं। इस प्रकार अयोध्या का जीवन सहज और आनंद से परिपूर्ण है। इस सर्ग में अयोध्या की रम्य - प्रकृति का चित्रण भी किया गया है।


ऐसी अयोध्या के शब्द- वेध- निपुण राजकुमार दशरथ एक दिन शिकार करने की योजना बनाते हैं-


ऐसे वातावरण भव्य में दशरथ उर में उठी उमंग।

देखे सरयू -वन में मृगया आवाज दिखाती है क्या रंग।।


                 द्वितीय सर्ग :आश्रम


द्वितीय सर्ग के आरंभ में सरयू नदी के वन प्रांतर के रमणीक आश्रम का मनोहारी चित्रण हुआ है, जिसमें श्रवण कुमार और उसके नेत्रहीन माता - पिता सानंद निवास कर रहे हैं। इस आश्रम में सर्वत्र -सुख शांति है जहां सदैव शरद एवं वसंत का वैभव प्राप्त रहता है। स्वच्छ जल से भरे तालाबों में कमल खिले हुए हैं। यहां मनुष्य ,पशु -पक्षी, कीट पतंग सब परस्पर सहेज प्रेम - भाव से रहते हैं। यहां द्वेश और कटुता नाम मात्र को भी नहीं है। आश्रम के वर्णन में कवि ने भारतीय दर्शन का चिंतन प्रस्तुत किया है। आश्रम के शांत - सौंदर्यमय प्राकृतिक एवं आध्यात्मिक वातावरण में ही युवक श्रवण कुमार के चरित्र का विकास होता है। वह माता पिता की आज्ञा अनुसार ही नित्य - प्रति कार्य करता है। तथा उनकी सेवा में लगा रहता है।


जननी और जनक को श्रद्धा सहित नवाकर शीश।

अन्हिक क्रिया-  निवृत्ति - हेतु जाता सरयू तट पा आशीष।।


                    तृतीय सर्ग :आखेट


तृतीय सर्ग में एक ओर दशरथ मृग - शावक के वध का स्वप्न देखते हैं। दूसरी ओर श्रवण कुमार जब जल लेने जाता है तो उसकी बाई आंख फड़कने लगती है। शकुन - अपशकुन तथा स्वप्न विचार से दोनों ही अशुभ है। स्वप्न में मृग -शावक- वध से दशरथ व्याकुल हो जाते हैं। वह ब्रह्म मुहूर्त में जागकर आखेट हेतु 1 की ओर चल देते हैं।


दूसरी ओर; उसी समय श्रवण कुमार के माता-पिता को बहुत अधिक प्यास लगती है और वह माता-पिता की आज्ञा अनुसार नदी से जल लेने चल देता है। जल में पात्र डूबने की ध्वनि को किसी हिंसक पशु की ध्वनि समझकर दशरथ शब्दभेदी बाण चला देते हैं, जो सीधे श्रवण कुमार के हृदय में जाकर लगता है। श्रवण कुमार का चीत्कार सुनकर दशरथ विस्मय, चिंता और शोक में डूब जाते हैं। उन्हें हतप्रभ एवं किंकर्तव्यविमूढ़ देख उनका सार्थी उन्हें सांत्वना देता है। प्रस्तुत सर्ग में श्रवण कुमार की मात्र- पित्र- भक्ति शकुन -अपशकुन तथा दशरथ की आखेट - रुचि पर प्रकाश डाला गया है।


                  षष्ठ सर्ग: संदेश


षष्ठ सर्ग में श्रवण कुमार के माता पिता की असहाय दशा दशरथ के क्षोभ का बड़ा ही मार्मिक चित्रण हुआ है। श्रवण कुमार के माता -पिता उसके आने की प्रतीक्षा में व्याकुल है। दशरथ की पदचाप सुनकर वेज पूछते हैं- 


श्रवण -पिता ने कहा, " आज प्रिय क्योंकर तुमने किया विलंब?

करती रही विविध आशंका अब तक वत्स तुम्हारी अम्ब।"


ऋषि दंपति पर्याप्त समय तक अपने पुत्र के गुणों का वर्णन करते रहते हैं। तत्पश्चात दशरथ उन्हें जल- ग्रहण करने के लिए कहते हैं तो वह संकित होकर उनका परिचय पूछते हैं। अंत में दशरथ उन्हें वह ह्रदय विदारक दुर्घटना का समाचार सुना देते हैं, जिसे सुनते ही वे करुण विलाप कर उठते हैं और हाहाकार करते अपने मृतक पुत्र के स्पर्श के लिए दशरथ के साथ चल देते हैं।


अष्टम सर्ग : निर्वाण


इस सर्ग में शाप के कारण दशरथ बहुत दुखी हैं ।पर्याप्त विलाप करने के बाद श्रवण कुमार के पिता को यह आत्मबोध होता है कि मेरे उदार एवं शांत हृदय में क्रोध कैसे आ गया? मैंने तो व्यर्थ ही दशरथ को शाप दे दिया। मेरे पुत्र का वध तो नियति के विधान के अनुसार दशरथ के हाथों ही होना था। फिर इसमें किसी का क्या दोष?


वे श्रवण कुमार को जलांजलि देने के लिए उठते हैं, कभी दिव्यरूपधारी श्रवण कुमार कहता है- 


मैं प्रतिकृत हो गया आपकी सेवा परिचर्या कर तात।

मुझे श्रेष्ठ पद मिला आज है पा आशीष तुम्हारा मात।।


पुत्र सुख में व्याकुल ऋषि दंपत्ति रुदन करते-करते प्राण त्याग देते हैं और सारथी द्वारा तैयार की गई चिता में श्रवण कुमार एवं उसके माता-पिता तीनों के नश्वर शरीर भस्म हो जाते हैं।


प्रश्न . 'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य के आधार पर उसके नायक श्रवणकुमार का चरित्र चित्रण कीजिए। (2011, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18, 19, 20)


या


'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य के नायक श्रवणकुमार की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2020)


उत्तर- श्रवणकुमार प्रस्तुत खण्डकाव्य का प्रमुख पात्र है। 'श्रवणकुमार' की कथा आरम्भ से अन्त तक उसी से सम्बद्ध है; अतः इस खण्डकाव्य का नायक श्रवणकुमार है। उसकी प्रमुख चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-


1. मातृ-पितृभक्त श्रवणकुमार अपने माता-पिता का एकमात्र आदर्श पुत्र है। वह प्रातः काल से सायंकाल तक अपने वृद्ध एवं नेत्रहीन माता-पिता की सेवा में लगा रहता है। दशरथ के बाण से बिद्ध होकर भी श्रवणकुमार को अपने प्यासे माता-पिता की ही चिन्ता सता रही है-


मुझे बाण की पीड़ा सम्प्रति इतनी नहीं सताती है । पितरों के भविष्य की चिन्ता जितनी व्यथा बढ़ाती है ।

2. निश्छल एवं सत्यवादी- श्रवणकुमार के पिता वैश्य और माता शूद्र वर्ण की थीं। जब दशरथ ब्रह्म-हत्या की सम्भावना व्यक्त करते हैं, तो श्रवणकुमार उन्हें सत्य बता देता है-


वैश्य पिता माता शूद्रा थी मैं यों प्रादुर्भूत हुआ ।

 संस्कार के सत्य भाव से मेरा जीवन पूत हुआ ।


श्रवणकुमार स्पष्टवादी है। वह किसी से कुछ नहीं छिपाता। वह सत्यकाम जाबालि आदि के समान ही अपने कुल, गोत्र आदि का परिचय देता है।


3. क्षमाशील एवं सरल स्वभाव वाला— श्रवणकुमार का स्वभाव बहुत ही सरल है। उसके मन में किसी के प्रति ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध एवं वैर नहीं है। दशरथ के बाण से बिद्ध होने पर भी वह अपने समीप आये सन्तप्त दशरथ का सम्मान ही करता है।


4. भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी-श्रवणकुमार भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी है। धर्म के दस लक्षणों को वह अपने जीवन में धारण किये है-


दम अस्तेय अक्रोध सत्य धृति, विद्या क्षमा बुद्धि सुकुमार । 

शौच तथा इन्द्रिय-निग्रह हैं, दस सदस्य मेरे परिवार ।।


 वेद के अनुसार माता, पिता, गुरु, अतिथि तथा पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति ये पाँच 'देवता' कहलाते हैं तथा ये ही पूजा के योग्य हैं। श्रवणकुमार भी माता, पिता, गुरु और अतिथि की देवतुल्य पूजा करता है।


5. आत्मसन्तोषी - श्रवणकुमार को किसी वस्तु के प्रति लोभ-मोह नहीं है। उसे भोग एवं ऐश्वर्य की तनिक भी चाह नहीं है। वह तो सन्तोषी स्वभाव का है-


वल्कल वसन विटप देते हैं, हमको इच्छा के अनुकूल । 

नहीं कभी हमको छू पाती, भोग ऐश्वर्य वासन्न-धूल ॥


6. संस्कार को महत्त्व देने वाला-श्रवणकुमार समदर्शी है। वह कर्म, शील एवं संस्कारों को महत्त्व देता है। उसके जीवन में पवित्रता संस्कारों के प्रभाव के कारण ही है-


विप्र द्विजेतर के शोणित में अन्तर नहीं रहे यह ध्यान । नहीं जन्म के संस्कार से, मानव को मिलता सम्मान ।। 


इस प्रकार श्रवणकुमार उदार, परोपकारी, सर्वगुणसम्पन्न तथा खण्डकाव्य का नायक है। 


प्रश्न . 'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य के आधार पर दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

(2011, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18, 19)


या 'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य के आधार पर 'दशरथ' का चरित्रांकन कीजिए। (2020)


उत्तर- रघुवंशी राजा अज के पुत्र दशरथ 'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य में आरम्भ से अन्त तक विद्यमान हैं। मूल रूप से दशरथ इस खण्डकाव्य के प्राण है। दशरथ की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-


1. उत्तम कुलोत्पन्न- राजा दशरथ उत्तम कुलोत्पन्न हैं। उनका वंश 'इक्ष्वाकु' नाम से प्रसिद्ध है। पृथु, त्रिशंकु, सगर, दिलीप, रघु, हरिश्चन्द्र और अज; दशरथ के इतिहासप्रसिद्ध पूर्वज रहे हैं। उन्हें अपने वंश पर गर्व है-


क्षत्रिय हूँ मम शिरा जाल में रघुवंशी है रक्त प्रवाह ।

हस्ति पोत अथवा मृगेन्द्र के पाने की है उत्कट चाह ॥ 


2. लोकप्रिय शासक - राजा दशरथ प्रजावत्सल एवं योग्य शासक हैं। उनके राज्य में सबको न्याय मिलता है, चोरी कहीं नहीं होती है, प्रजा सब प्रकार से सुखी व सन्तुष्ट है तथा विद्वज्जनों का यथोचित् सत्कार होता है-


सुख समृद्धि आमोदपूर्ण था कौशलेश का शुभ शासन ।

दुःख था केवल एक दुःख को, जिसे मिला था निर्वासन ||


3. धनुर्विद्या में निपुण - कुमार दशरथ धनुर्विद्या में निपुण और शब्दभेदी बाण चलाने पारंगत है। आखेट में उनकी विशेष रुचि है। इसीलिए श्रावण मास में वर्षा के अनन्तर जब चारों ओर हरियाली छाई रहती है सब वे आखेट का निश्चय करते हैं।


4. विनम्र एवं दयालु — दशरथ में तनिक भी अहंकार नहीं है। दूसरे का दुःख देखकर ये बहुत अधिक व्याकुल हो जाते हैं। स्वप्न में मृगशावक के वध से ही वे दुःखी हो उठते हैं।


5. संवेदनशील एवं पश्चात्ताप करने वाले — दशरथ अपने किये अनुचित कार्य पर आत्मग्लानि से भर उठते हैं तथा उसका प्रायश्चित्त करते रहते हैं। श्रवणकुमार की हत्या पर उनके एवं आत्मग्लानि उनके सच्चे पश्चात्ताप पर किया गया आर्तनाद है- 


फटो धरणि, मैं समा सकूँ तुम करो ग्रहण, मम भाग्य जगे । पर वसुन्धरे! मुझे शरण दे—तुम्हें न कहीं कलंक लगे ।।


6. आत्म-तपस्वी— दशरथ न्यायप्रिय होने के साथ-साथ आत्म-तपस्वी भी हैं। वे अपने अपराध को स्वयं अक्षम्य मानते हैं-


 करें मुनीश क्षमा वे होंगे, निस्पृह करुणा सिन्धु अगाध । पर मेरे मन न्यायालय में क्षम्य नहीं है यह अपराध ।।


7. तेजस्वी – दशरथ एक तेजस्वी राजकुमार हैं। जब वह श्रवणकुमार के पास पहुँचते हैं तो वह उनके रूप से प्रभावित हो उठता है। उनके प्रत्येक अंग से तेज मानो फूटा पड़ता है।


निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि दशरथ का चरित्र महान गुणों से विभूषित है जो कि प्रायश्चित्त और आत्मग्लानि की अग्नि में तपकर और भी शुद्ध हो गया है। कवि दशरथ का चरित्र-चित्रण करने में पूर्ण सफल रहा है।


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