Up board class 12th Sociology chapter 8// यूपी बोर्ड कक्षा 12 समाजशास्त्र अध्याय 8

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Up board class 12th Sociology chapter 8// यूपी बोर्ड कक्षा 12 समाजशास्त्र अध्याय 8

 Up board class 12th Sociology chapter 8// यूपी बोर्ड कक्षा 12 समाजशास्त्र अध्याय 8

अध्याय 8 भारतीय लोकतंत्र की कहानी

 

Up board class 12th Sociology chapter 8// यूपी बोर्ड कक्षा 12 समाजशास्त्र अध्याय 8

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1 दबाव समूह अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु निम्न में से क्या करते हैं?

(अ) प्रचार करना

(ब) जनमत को प्रभावित करना

(स) हड़ताल और प्रदर्शन करना

(द) उपयुक्त सभी

उत्तर- उपयुक्त सभी


प्रश्न 2 राजनीतिक दलों का कार्य निम्न में से क्या है?

(अ) शासन के विभिन्न अंगों में समन्वय 

(ब) सरकार का गठन

(स) जनता व प्रतिनिधियों के बीच प्रत्येक्ष संपर्क की व्यवस्था

(द) उपर्युक्त सभी

उत्तर- उपर्युक्त सभी


प्रश्न 3 संविधान तथा सामाजिक परिवर्तन में संबंध है-

(अ) कोई संबंध नहीं है

(ब) सामाजिक परिवर्तन से संविधान निर्धारित होता है

(स) संविधान सामाजिक परिवर्तन का एक प्रभावशाली यंत्र है

(द) उपर्युक्त सभी असत्य है

उत्तर- सविधान सामाजिक परिवर्तन का एक प्रभावशाली यंत्र है।


प्रश्न 4 संविधान के प्रथम संशोधन में

(अ) सामाजिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए प्रावधान हुए

(ब) जमीदारी प्रथा पर चोट की गई

(स) सामंतवादी परंपराओं को समाप्त किया गया

(द) उपर्युक्त सभी परिवर्तन किए गए

उत्तर- उपर्युक्त सभी परिवर्तन किए


प्रश्न 5 लोकतांत्रिक शासन प्रणाली का गुण है

(अ) व्यक्तित्व के विकास में सहायक

(ब) क्रांति से सुरक्षा

(स) समानता की पोषक प्रणाली

(द) उपर्युक्त सभी

उत्तर- उपर्युक्त सभी


प्रश्न 6 निम्न में से कौन लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली का दोष है-

(अ) पूँजीपतियों को प्रोत्साहन

(ब) मतदाताओं की उदासीनता

(स) सभ्यता तथा संस्कृति के विकास में बाधक

(द) उपर्युक्त सभी

उत्तर- उपर्युक्त सभी


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अति लघु उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न 1 पंचायती राज क्या है?

उत्तर- शाब्दिक रूप से पंचायती राज का अर्थ होता है- पाँच लोगों का शासन। यह विचारधारा लचीले लोकतंत्र की स्थापना पर बल देते हैं। तीव्र असमानताओ वाले समाज में लोकतांत्रिक भागीदारी को लिंग, जाति और वर्ग के आधार पर बाधित किया जाता है। गांव में पारंपरिक रूप से जातीय पंचायतें रही है, किंतु इन पर प्रभुत्वसंपन्न लोगों का ही आधिपत्य रहा है। इसका दृष्टिकोण प्रायः रूढ़िवादी रहा है और यह लगातार लोकतांत्रिक मानदंडों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के विपरीत निर्णय लेते हैं।


प्रश्न 2 ग्राम पंचायत की चार दायित्व बताइए- 

उत्तर- (i) गांव के लिए कृषि योजना का निर्माण करना, (ii) पशुधन कुक्कुट तथा शुगर पालन का विकास करना, (iii) गांव के प्रत्येक सदस्य के लिए स्वस्थ पीने का पानी, कपड़ा धोने तथा नहाने के लिए जल की पूर्ति करना, सार्वजनिक को और तालाबों का निर्माण, मरम्मत और उनको अच्छी दशा में रखना। (iv) गांव में रात्रि के समय रास्तों पर प्रकाश की व्यवस्था करना।


प्रश्न 3  `संदर्भ समूहʼ किसे कहते हैं?

उत्तर- टी• डी• कैम्पर के अनुसार एक संदर्भ समूह का एक ऐसा समूह अथवा संग्रह अथवा व्यक्ति होता है जिसे कर्ता व्यवहारों के विकल्प समूह में से अपने लिए व्यवहार के रूप में चुनते हुए या किसी समस्या के संबंध में निर्णय लेते हुए ध्यान में रखता है ऐसे समूह व्यक्ति के व्यवहार आचरण मनोवृत्ति के निर्धारण में अहम् भूमिका निभाते हैं।


प्रश्न 4 समूह की विशेषता लिखिए- 

उत्तर- (i)समूह व्यक्तियों का समूह होता है,(ii) समूह के सदस्य में कार्य विभाजन की व्यवस्था होती है, (iii) किसी भी समूह की स्थापना उन्हीं व्यक्तियों द्वारा होती है जिनकी रूचि एवं हित सामान्य हो, (iv) कोई भी समूह, समूह के रूप में किसी समय तक कायम रह सकता है जब तक उसके सदस्यों में एकता की भावना पाई जाती है, (v) समूह की सदस्यता ऐच्छिक होती है।


प्रश्न 5 सामाजिक परिवर्तन को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- सामाजिक परिवर्तन उन परिवर्तनों को कहते हैं जो मानवीय संबंधों, व्यवहारों, संस्थाओं, प्रथाओं, परस्थितियों, कार्यविधियों, मूल्यों, सामाजिक संरचनाओं एवं प्रकारों में होते हैं।


प्रश्न 6 दबाव समूह का क्या अर्थ है?

उत्तर- दबाव समूह उसे कहते हैं, जो शासकीय गतिविधियों द्वारा या उसके बिना ही राजनीतिक परिवर्तन लाने का प्रयत्न करें जो उस स्वयं किसी विधायिका में प्रतिनिधित्व प्राप्त राजनीतिक दल के रूप में न हो ।


प्रश्न 7 पंचायत के तीन कार्यों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- (i) ग्राम पंचायतें के ग्राम की स्वच्छता, प्रकाश, सड़कों, औषधालयों, कुओं की सफाई और मरम्मत, सार्वजनिक भूमि, बाजार तथा मेलो और चरागाहों को व्यवस्था करती है।

(ii) जन्म मृत्यु का लेखा रखती है, (iii) वृक्षारोपण, पशुवंश का विकास, ग्राम सुरक्षा के लिए ग्राम सेवक दल का गठन, सहकारिता का विकास तथा अकाल पीड़ितों की सहायता का कार्य करती है।


लघु उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न 1 औपनिवेशिक भारत अपनी संस्कृति में किस प्रकार भिन्न हुआ?

उत्तर- औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के अलोकतांत्रिक व भेदभाव पूर्ण प्रशासनिक व्यवहार तथा उसके द्वारा प्रचारित-प्रसारित और पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त भारतीयों द्वारा पढ़े गए पाश्चात्य लोकतांत्रिक सिद्धांतों में तीव्र अंतर्विरोध मिलता है। हमारे अपने महाकाव्य, लोककथा की समानता तथा लोकतंत्र की बातें करते हैं। भारत में फैली  निर्धनता तथा बड़े पैमाने पर सामाजिक भेदभाव लोकतंत्र के ऊपर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हैं। एवं अपने मूल्यों की सफल व्याख्या पाश्चात्य विचार तथा लोगों की दशा को ध्यान में रखते हुए इन मूल्यों पर गहन विश्लेषण करके ही हम कोई बड़ा परिवर्तन करने तथा लोकतंत्र को सफल बनाने में सक्षम हो सकते हैं।


प्रश्न 2 हित प्रतिस्पर्द्धा संविधान और सामाजिक परिवर्तन की चर्चा कीजिए।

उत्तर- भारत का अस्तित्व कई स्तरों पर है जो निम्न है-

(i) अलग-अलग महत्वपूर्ण आदिवासी संस्कृतियों में साथ-साथ अनेक धर्मो तथा संस्कृतियों से निर्मित यहां की जनसंख्या भारत की बहुलता का एक आस आयाम है।

(ii) संस्कृति, धर्म तथा जाति के विविध प्रभाव ग्रामीण-नगरीय धनी-निर्धन और साक्षर-निरक्षर विभाजन पर आधारित है।


(iii) ग्रामीण निर्धनों के बीच, ऐसे समूह एवं उपसमूह है, जो बड़ी गहराई से जाति एवं निर्धनता के आधार पर स्त्तरीकृत किए गए हैं।

(iv) नगरों में कामगार वर्ग की विस्तृत पैमाने पर है।

(v) यहां पर एक सुव्यवस्थित घरेलू और धनी वर्ग व्यवसायिक एवं वाणिज्य वर्ग भी हैं


प्रश्न 3 लोकतंत्र में विभिन्न स्वरूपों की चर्चा कीजिए।

उत्तर- (i)प्रत्यक्ष लोकतंत्र - प्रत्यक्ष लोकतंत्र में सभी नागरिक बिना किसी चयनित अथवा माननीय पदाधिकारी की मध्यस्थता के सार्वजनिक निर्माण हो में भाग ले सकते हैं किंतु यह पद्धति केवल उन्हीं व्यवहार यूके है जहां लोगों की संख्या सीमित है उदाहरणार्थ कोई सामूहिक संगठन अथवा आदिवासी परिषद आधुनिक समाज में इसकी विशालता तथा जटिलता के कारण प्रत्यक्ष लोकतंत्र संभव नहीं है

(ii) प्रतिनिधिक लोकतंत्र - इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक निर्णय लेने, कानून बनाने तथा सार्वजनिक हित में कार्यक्रमों को लागू करने के लिए नागरिक स्वयं अधिकारियों को चुनते हैं। हमारे देश में प्रतिनिधि लोकतंत्र के यहां प्रत्येक नागरिक को अपनी प्रतिनिधि के पक्ष में मतदान करने का अधिकार है लोग पंचायत नगर पालिका बोर्ड विधानसभा तथा संसद के लिए अपना प्रतिनिधि चुनते हैं।

(iii) सहभागी लोकतंत्र- सहभागी लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए किसी समूह या समुदाय के सभी सदस्य एक साथ भाग लेते हैं। विकेंद्रीकृत तथा जमीनी लोकतंत्र का सबसे उपयुक्त उदाहरण पंचायती राज है।


प्रश्न 4 भारतीय लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- भारतीय लोकतंत्र के मूल्य तथा प्रक्रियाएं भारतवर्ष के दीर्घकालीन उपनिवेश-विरोधी संघर्ष के परिणाम रहे हैं। अंग्रेजों ने बहुत सारे परिवर्तन किए। इनमें से कुछ जानबूझकर किया गया परिवर्तन था तो कुछ अनैच्छिक रूप से किया गया परिवर्तन। पाश्चात्य शिक्षा का प्रचार अंग्रेजी के द्वारा किया गया एक अनैच्छिक परिवर्तन था। अंग्रेजों ने पाश्चात्य शिक्षा का प्रचार-प्रसार इसलिए किया, ताकी वे पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त भारतीयों का एक मध्य वर्ग बना सकें और उनकी सहायता से यहां अपने औपनिवेशिक शासन को निरंतर चलाते रहें। इससे पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त भारतीयों का एक वर्ग बन गया। किंतु इस वर्ग ने अंग्रेजी शासन के सहयोग देने की अपेक्षा लोकतंत्र सामाजिक न्याय तथा राष्ट्रवाद जैसे पाश्चात्या उदार विचारों का प्रयोग औपनिवेशिक शासन को चुनौती देने के लिए किया।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1 भारतीय लोकतंत्र में केंद्रीय मूल्य का विवेचन कीजिए।

उत्तर-        भारतीय लोकतंत्र में केंद्रीय मूल्य

ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने भारत में पाश्चात्य शिक्षा का प्रचार इसलिए किया जिससे वह पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त भारतीयों का एक मध्य वर्ग तैयार कर सकें और उसकी सहायता से यहां औपनिवेशिक उपनिवेशी शासन को निरंतर चलाते रहे। इससे यहां पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त भारतीयों का एक वर्ग बन गया पुलिस टॉप इस वर्ग ने ब्रिटिश शासन में सहयोग देने की अपेक्षा लोकतंत्र सामाजिक न्याय और राष्ट्रवाद जैसे पाश्चात्य उदार विचारों का प्रयोग औपनिवेशिक शासन को चुनौती देने के लिए किया। इसका आशय यह नहीं है कि भारत में लोकतांत्रिक मूल्य और लोकतांत्रिक संस्थाएं विरुद्ध रूप से पश्चिम की ही देन है। देश में एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक फैले हुए हमारे प्राचीन महाकाव्य कृतियां व विविध लोककथाओं, संवादों, विचार-विमर्शों और अंतर्विरोधों से परिपूर्ण है।

आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन का कारण न केवल भारतीय अथवा पाश्चात्य विचार हैं, बल्कि एक भारतीय और पाश्चात्य विचारों का सहयोग व उनकी पुण्य व्याख्या है।

औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के लोकतांत्रिक व भेदभाव पूर्ण  प्रशासनिक व्यवहार तथा उनके द्वारा प्रचारित-प्रसारित और पाश्चात्य शिक्षा-प्राप्त भारतीयों द्वारा पढ़े गए पाश्चात्य लोकतांत्रिक सिद्धांतों में तीव्र अंतर्विरोध मिलता है। भारत में फैली निर्धनता और सामाजिक भेदभाव की प्रबलता लोकतंत्र के अर्थ पर गंभीर प्रश्न चिन्ह है।

आज समाज नए रूप में स्थापित होने की ओर अग्रसर है जैसा कि फ्रांसीसी क्रांति ने तीन शब्दों बंधुता, स्वतंत्रता और समानता जैसे शब्दों में अभिव्यक्त किया था। इसी नारे के कारण फ्रांसीसी क्रांति का स्वागत किया गया था, लेकिन यह समानता लाने में असफल रहा। हमने रूसी क्रांति का स्वागत किया क्योंकि उसका उद्देश्य भी समानता लाना ही था। किंतु इस बात पर बहुत बल देने की आवश्यकता नहीं है कि समानता उत्पन्न करने के लिए समाज और बंधुत्व स्वतंत्रता का बलिदान कर दें। बंधुता और स्वतंत्रता समानता के अभाव में मूल्यहीन है। इसका तात्पर्य यह है कि इन तीनों का सहअस्तित्व तभी संभव है जब युद्ध के मार्ग का अनुसरण किया जाए।

इस प्रकार के अनेक मुद्दों पर भारत के स्वतंत्र होने से बहुत पहले विचार हुआ था। भारत में स्वतंत्रता की न्यू ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौरान ही पड़ गई थी। 1928 में मोतीलाल नेहरू और आठ अन्य कांग्रेसी नेताओं ने भारत के लिए संविधान का ड्राफ्ट तैयार किया गया था। 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन में एक संकल्प पारित किया गया, जिसमें स्वतंत्र भारत का संविधान कैसे होना चाहिए की रचना की गई थी। कांग्रेश के कराची अधिवेशन का प्रस्ताव एक ऐसे लोकतंत्र की परिकल्पना करता है जिसका आशय मात्र चुनाव करवाने की औपचारिकता पूरा करना ही नहीं बल्कि एक यथार्थ वह प्रारंभिक लोकतांत्रिक समाज की स्थापना के लिए भारतीय सामाजिक संरचना पर पुनः यथेष्ट कार्यकर्ता करना भी है। कराची प्रस्ताव उन मूल्यों का उल्लेख करता है कि आगे चलकर भारतीय संविधान में पूर्णतः अभिव्यक्त हुए।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना मात्र राजनीतिक न्याय ही नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय को भी सुनिश्चित करने का प्रयास करती है। समानता का आशय केवल राजनीतिक अधिकारों से संबंधित नहीं है बल्कि इसका आशय सामान परिस्थिति और अवसर लोकतंत्र के लिए कई अवसरों पर कार्य करता है। भारतीय संविधान भारतीय लोकतंत्र का मूलाधार है। संविधान सभा में मुक्त विचार-विमर्श और उसके मत से संविधान उत्पन्न हुआ। ऐसे में भारतीय संविधान का दृष्टिकोण और उसकी वैचारिक अंतर्वस्तु इसके निर्माण की प्रक्रिया पूरी तरह से लोकतांत्रिक है।


प्रश्न 2 संविधान सभा में वाद-विवाद का विवेचन कीजिए।

उत्तर-  संविधान सभा का वाद विवादः एक इतिहास

गांधीजी ने 1939 में `हरिजनʼ नामक पत्र में एक लेख लिखा `द ओनली वेʼ जिसमें उन्होंने कहा, ….. संविधान सभा के लिए ही जनता की इच्छा का प्रतिनिधित्व करने वाले एक पूर्ण, सत्य तथा स्वदेशी संविधान का निर्माण कर सकती है जो महिलाओं तथा पुरुषों दोनों के लिए भेदभाव रहित वयस्क मताधिकार पर आधारित है।

1939 मैं एक संविधान सभा की मांग हुई थी जिसे अनेक उतार-चढ़ाव के बाद साम्राज्यवादी ब्रिटिश ने 1945 में मान लिया। जुलाई 1946 में चुनाव हुए। अगस्त 1946 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की विशेषज्ञ सभा ने विधानसभा में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसमें घोषणा की गई थी कि भारत एक गणतंत्र होगा जहां सभी के लिए सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित होगा।

संविधान सभा में सामाजिक न्याय के प्रश्न पर व्यापक विचार विमर्श हुआ तथा यह निर्धारित हुआ कि जो सरकारी कार्य निर्धारित होंगे उन्हें राज्य अनिवार्य रूप से लागू करेगा। संविधान सभा में रोजगार का अधिकार सामाजिक सुरक्षा का अधिकार भूमि-सुधार व संपत्ति का अधिकार और पंचायतों के आयोजन पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ। संविधान में विभिन्न विषयों पर हुई बहस के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं- 

  1. के.टी. शाह ने कहा कि लाभदायक रोजगार को श्रेणीगत बाध्यता के द्वारा वास्तविक बनाया जाना चाहिए और राज्य की यह जिम्मेदारी है कि यह वह सभी समर्थ वह योग्य नागरिकों को लाभदायक रोजगार उपलब्ध कराएं।

  2. बी.दास ने सरकार के कार्यों को अधिकार क्षेत्र व अधिकार क्षेत्र से बाहर की श्रेणियों में वर्गीकृत करने का विरोध किया, "मैं समझता हूं कि भुखमरी को समाप्त करना सभी नागरिकों को सामाजिक न्याय देना और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है….. लाखों लोगों की सभा युवा मार्ग नहीं ढूंढ पाई कि संघ का संविधान उनकी भूख से मुक्ति सुनिश्चित करेगा, सामाजिक न्याय, न्यूनतम मानव जीवन-स्तर और न्यूनतम जन-स्वास्थ्य सुनिश्चित करेगा।

  3. अंबेडकर का उत्तर इस प्रकार था—-- सविधान का जो प्रारूप बनाया गया है वह देश के शासन के लिए केवल एक प्रणाली उपलब्ध कराएगा। इसकी योजना बिल्कुल नहीं है कि कोई विशेष दल सत्ता में लाया जाए जैसा कि कुछ देशों में हुआ है। अगर व्यवस्था लोकतंत्र को संतुष्ट करने की समीक्षा में खरी उतरती है तो यह जनता द्वारा निश्चित किया जाएगा कौन सत्ता में होना चाहिए। लेकिन उसके हाथ में सत्ता है वह मनमानी करने के लिए स्वतंत्र नहीं है। उसे निदेशक सिद्धार्थ कहे जाने वाले उद्देश्यों का सामना करना पड़ेगा। जिन्हें वह अनदेखा नहीं कर सकता है। जहां इसके उल्लंघन के लिए वह न्यायालय में उत्तरदाई नहीं होगा । लेकिन चुनाव के समय निर्वाचकों सामने उसे इन बातों का उत्तर देना होगा । निर्देशक सिद्धांत जिन महान मूल्यों से संपन्न है उन्हें तभी अनुभव किया जा सकता है जब सत्ता पाने के लिए सही योजना क्रियान्वयन किया जाए।

  4. भूमि-सुधार के विषय में नेहरू ने कहा कि सामाजिक शक्ति इस तरह की है कि कानून इस संदर्भ में कुछ नहीं कर सकता जो इन दोनों की गतिशीलता का एक रोचक प्रतिबिंब है। अगर कानून और संसद स्वयं को बदलते परिदृश्य के अनुकूल नहीं करते तो यह स्थितियों पर नियंत्रण नहीं कर पाएंगे।

  5. संविधान सभा की बहस के समय आदिवासी हितों की रक्षा के मामले में जयपाल सिंह जैसे नेता नेहरू के निम्नलिखित शब्दों द्वारा आश्वस्त किए गए- यथासंभव उसकी सहायता करना हमारी अभिलाषा और निश्चित इच्छा है यथा संभव उन्हें कुशलतापूर्वक उन के लोभी पड़ोसियों से बचाया जाएगा और उन्हें उन्नत किया जाएगा।

  6. संविधान सभा ने ऐसे अधिकारों को जिन्हें न्यायालय को लागू नहीं करवा सकता है, राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों के शीर्षक के रूप में स्वीकार किया तथा इसमें सर्व-स्वीकृति से कुछ अतिरिक्त सिद्धांत जोड़े गए। इनमें से संथानम का वह अखंड भी सम्मिलित है जिसके अनुसार राज्य को ग्राम पंचायतों की स्थापना करनी चाहिए तथा स्थानीय स्वशासन के लिए होने अधिकार व शक्ति भी देनी चाहिए।

  7. टी.ए. रामालिंगम चेट्टियार ने ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी कुटीर उद्योग के विकास से संबंधित खंड जोड़ा। अनुभवी वरिष्ठ सांसद ठाकुरदास भार्गव ने यह खंड जोड़ा कि राज्य को कृषि व पशुपालन को आधुनिक प्रणाली से व्यवस्थित करना चाहिए।


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