Up board model paper 2023 class 12th Sociology chapter 9// यूपी बोर्ड मॉडल पेपर 2023 कक्षा 12 समाजशास्त्र अध्याय 9

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Up board model paper 2023 class 12th Sociology chapter 9// यूपी बोर्ड मॉडल पेपर 2023 कक्षा 12 समाजशास्त्र अध्याय 9

 Up board model paper 2023 class 12th Sociology chapter 9// यूपी बोर्ड मॉडल पेपर 2023 कक्षा 12 समाजशास्त्र अध्याय 9

यूपी बोर्ड कक्षा 12 समाजशास्त्र अध्याय 9 ग्रामीण समाज में परिवर्तन एवं विकास


बहुविकल्पिक प्रश्न

प्रश्न 1- निम्न में से भूमंडलीकरण का क्या प्रभाव हुआ है?

(अ) किसानों में ॠणग्रस्तता की वृद्धि

(ब) किसानों द्वारा आत्महत्या की दर में वृद्धि

(स) संविदा खेती का प्रचलन

(द) उपर्युरक्त सभी

उत्तर- उपर्युक्त सभी


प्रश्न 2 - प्रवासी कृषि श्रमिकों को जॉन ब्रेमन ने कहा है- 

(अ) पिछड़े श्रमिक

(ब) संपन्न श्रमिक

(स) मजबूर श्रमिक

(द) घुमक्कड़ श्रमिक

उत्तर- घुमक्कड़ श्रमिक


प्रश्न 3 कृषि श्रमिकों में प्रवसन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई है-

(अ) भ्रमन की इच्छा से

(ब) कृषि कार्यों में लागत बढ़ने से

(स) कृषि के व्यापारीकरण से

(द) औपनिवेशिक प्रभाव से

उत्तर- कृषि के व्यापारीकारण से


प्रश्न 4 स्वतंत्र भारत में भू-स्वामी हैं-

(अ) भूमिधर

(ब) सिरदार

(स) आसामी

(द) उपर्युक्त सभी

उत्तर- उपर्युक्त सभी


प्रश्न 5 स्वतंत्र भारत में भू-सुधार का प्रथम उदाहरण है-

(अ) कीटनाशक उपलब्ध कराना

(ब) कृषि ऋण का प्रावधान

(स) जमींदारी उन्मूलन

(द) सिंचाई की व्यवस्था

उत्तर- जमींदारी उन्मूलन


प्रश्न 6 लगाने का तरीका ने की किस व्यवस्था में कर सकता सबसे अधिक शोषण होता था- 

(अ) जमींदारी व्यवस्था

(ब) रैयतवाड़ी व्यवस्था

(स) महालवाड़ी व्यवस्था

(द) उपर्युक्त सभी

उत्तर- जमींदारी व्यवस्था


प्रश्न 7 भूस्वामित्व की यह व्यवस्था जिसमें भूमि का स्वामित्व बिचौलियों के हाथ में होता है क्या कहते हैं?

(अ) जमींदार व्यवस्था

(ब) रैयतवाड़ी व्यवस्था

(स) महालवाड़ी व्यवस्था

(द) इनमें से कोई नहीं

उत्तर- जमींदारी व्यवस्था


प्रश्न 8 स्वतंत्रता पूर्व भू-स्वामित्व की व्यवस्था थी-

(अ) महालवाड़ी व्यवस्था

(ब) जमींदारी व्यवस्था

(स) रैयतवाड़ी व्यवस्था

(द) उपर्युक्त सभी

उत्तर- उपर्युक्त सभी 


प्रश्न 9 'जाति' एवं वर्ग में कौन सा गुण समान है?

(अ) श्रेणीक्रम

(ब) उपलब्धि

(स) जन्मजात सदस्यता

(द) इनमें से कोई नहीं

उत्तर- श्रेणीक्रम


प्रश्न 10 भारत में हरित क्रांति किस वर्ष में लागू किया गया?

(अ) 1960 से 1970

(ब) 1970 से 1980

(स) 1980 से 1990

(द) 1990 से 2000

उत्तर 1960 1970


अति लघु उत्तरीय प्रश्न 


प्रश्न-1 किसान आत्महत्या क्यों करते हैं?

उत्तर- किसान आत्महत्या इसलिए करते हैं क्योंकि वे अपने उत्पादन हेतु लिए गए ऋण को लौट आने में असमर्थ हो जाते हैं।


प्रश्न -2 समर्थन मूल्य क्या है?

उत्तर- किसानों के उत्पादों का न्यूनतम मूल्य जो किसी निश्चित फसल वर्ग के लिए सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है समर्थन मूल्य कहलाता है।


प्रश्न 3 हरित क्रांति के किन्हीं दो नकारात्मक प्रभावों को बताइए 

उत्तर-

1- ग्रामीण भारत में अवमानना में 


2-वृद्धि क्षेत्रीय मतभेदों में वृद्धि


प्रश्न-4 जजमानी पद्धति क्या है?

 उत्तर- किसी भी व्यक्ति का व्यवसाय उसकी जाति से निर्धारित किया जाता है प्रत्येक जाति अपनी सेवाएं दूसरी जातियों को देती है। ग्रामीण समाज में इसी प्रकार की व्यवसायिक सेवाओं के आदान-प्रदान को जनमानी पद्धति कहा जाता है।


प्रश्न 5 ग्रामीण समाज क्या है? 

उत्तर- ग्रामीण समाज से संबंधित अथवा असंबंधित लोगों का समूह है जो एक दूसरे के साथ बड़े ही निकटता से जुड़े होते हैं।


प्रश्न-6भूमि सुधार से आप क्या समझते हैं? 

उत्तर- कृषि अथवा भूमि के स्वामित्व से संबंधित किसी भी तरह के सुधार को भूल सुधार कहा जाता है यह सरकार के द्वारा दो तरह के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया जाता है ।


1-भूमि से संबंधित तथ्यों का पता लगाना 


2-गरीब ग्रामीणों की भूमि स्वामित्व में वृद्धि करना


प्रश्न 7 जमीदारी पद्धति क्या है? 

उत्तर-1- जमीदारी पद्धति का स्थान अच्छा अंग्रेजो के द्वारा किया गया


2- जमीदार क्रषिको तथा राज्यों के बीच बिचौलिए का काम करते थे


3- अंग्रेजों ने भू स्वामियों का एक वर्ग बनाया जो प्रश्न उचित कर संग्रह कर सरकार को प्रदान करता था


प्रश्न 8 महालवाड़ी तथा रैयतवाड़ी व्यवस्था किस प्रकार से भिन्न है?

 उत्तर- महालवाड़ी पद्धति के अंतर्गत ग्रामीण समुदाय संयुक्त रूप से राजस्व प्रदान करता है जबकि रैयतवाड़ी पद्धति के अंतर्गत प्रत्येक रतिया पनेट्टा के द्वारा कर का भुगतान किया जाता है।


लघु उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न 1 वर्ग तथा जातीय संरचना ने किस प्रकार से ग्रामीण लोगों को प्रभावित किया?

उत्तर- जाति तथा वर्ग को आमतौर से इस प्रकार समझा जाता है कि उच्च तथा माध्यम जातियों के पास अधिक भूमि बिना संसाधन है तो वे अधिक व्यक्ति एवं विशेषाधिकार को धारण करती हैं। इस तरह की प्रभुत्वसंपन्न जातियां अधिकार साधनों पर कब्जा जमाए रहती हैं तथा श्रमिकों को काम करने हेतु अपने नियंत्रण में रखती हैं।

(i) निचले श्रेणियों की जातियों को प्रतिवर्ष दैनिक मजदूरी के आधार पर जमींदारों को मजदूर उपलब्ध करवाना पड़ता था।

(ii) संसाधनों की कमी तथा भू-स्वामित्व पर आर्थिक सामाजिक तथा राजनीतिक समर्थन की निर्भरता के कारण बहुत से गरीब मजदूर इनके यहां पीढ़ियों से बंधुआ मजदूर की तरह काम कर रहे हैं। इसका उदाहरण गुजरात की हलपति की व्यवस्था तथा कर्नाटक की जोता व्यवस्था है।

(iii) यद्यपि इस तरह के काम अब अवैध घोषित कर दिए गए हैं किंतु अभी भी बहुत सारे क्षेत्र में इसका प्रचलन है।


प्रश्न 2 औपनिवेशक काल में पूर्व भारतीय किसानों की स्थिति पर चर्चा कीजिए।

उत्तर– (i) हालांकि प्रभुत्व संपन्न जातियां ही संभवत पूर्व औपनिवेशिक काल में कृषक वर्ग में थी किंतु उन्हें जमीन पर सीधा अधिकार नहीं था। शासक वर्ग जैसे राजा या जमींदारों (वैसे भू-स्वामी जो राजनीतिक रूप से भी ताकतवर है तथा सामान्य क्षत्रिय या उच्च जातियों से जाते थे) का ही भूमि पर नियंत्रण था।

(ii) कृषक उनकी भूमि पर खेती करते तरह तथा उनकी उपज का एक प्रमुख भाग जमींदारों को प्रदान कर देते था।


प्रश्न 3 बड़े पैमाने पर श्रमिकों के संचरण में किस प्रकार से ग्रामीण समाज को प्रभावित किया?

उत्तर-1. इन पिछड़े कार्य क्षेत्रों में जहां कि पुरुष सदस्य वर्ष भर में ज्यादातर अपना समय अपने गांव से बाहर ही काम में व्यतीत करते हैं खेती का काम महिलाओं के जिम्मे होता है।

2.महिलाएं कृषि श्रमिक के एक प्रमुख स्त्रोत के रूप में उभरकर सामने आ रही है। इससे कृषि श्रमिकों की सेना का महिलाकरण हो रहा है।

3.महिलाओं में असुरक्षा की भावना अधिक है, क्योंकि उन्हें पुरूषों के मुकाबले कम मजदूरी मिलती है।

4.कृषि में महिलाएं कठिन मेहनत कर अर्जुन करती है किंतु पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था तथा अन्य सांस्कृतिक क्रियाकलापों में पुरुषों को प्राथमिकता मिलती है। कृषि के स्वामित्व के अधिकार से महिलाओं को वंचित रखा जाता है।


प्रश्न 4 कृषि उत्पादकता तथा ग्रामीण संरचना किस प्रकार से एक दूसरे से अंतर संबंधित है?

उत्तर- कृषि की उत्पादकता तथा ग्रामीण संरचना के बीच सीधा संबंध है। सिंचित क्षेत्रों में, जहां पर्याप्त वर्षा होती है या सिंचाई के साधन उपलब्ध है जैसे कि नदियों के डेल्टा क्षेत्रों के चावल उत्पादक क्षेत्र या तमिलनाडु का कावेरी नदी का तटीक इलाका, वँहा गहन कृषि के लिए अधिक श्रमिकों की आवश्यकता पड़ी। यहां सबसे अधिक असमानतापूर्व ग्रामीण संरचना का विकास हुआ। इन क्षेत्रों की ग्रामीण संरचना को बड़े पैमाने पर भूमिहीन श्रमिकों, जो आमतौर पर निम्न जाति के बंधुआ मजदूर होते थे, के रूप में समझा जा सकता है।


प्रश्न 5 विभेदीकरण की प्रक्रिया पर चर्चा कीजिए।

उत्तर- धनी और धनी तथा गरीब और गरीब होते गए। हालांकि कई क्षेत्रों में श्रमिकों की मांग में वृद्धि के कारण कृषि श्रमिकों के वेतन तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई। किंतु कीमतों में वृद्धि तथा कृषि श्रमिकों के भुगतान के तरीकों में बदलाव अनाज के बदले पैसा ना वस्तुतः ग्रामीण क्षेत्रों के श्रमिकों की स्थिति को और भी दयनीय बना दिया।


प्रश्न 6 स्वतंत्रता के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक संबंधों की प्रगति में हुए गंभीर परिवर्तनों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर– 1- खेती के लिए कृषि श्रमिकों का प्रयोग अधिक गहन हुआ।


2- अनाज के बदले पैसे के रूप में भुगतान किया जाने लगा।


3- किसानों या भूस्वामियों तथा कृषि श्रमिकों के बीच जिन्हें बंधुआ मजदूर कहा जाता है परंपरागत संबंधों का क्षरण।


4- स्वतंत्र मजदूरी वाली श्रमिकों के वर्ग का उद्भव।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 


प्रश्न -1 कृषक संरचना में ग्रामीण भारत में जाति और वर्ग को स्पष्ट कीजिए।


उत्तर- कृषिक संरचना ग्रामीण भारत में जाति एवं वर्ग

कृषि योग्य भूमि ही ग्रामीण समाज में लोगों की जीविका का एकमात्र महत्वपूर्ण साधन और संपत्ति का एक प्रकार है। किंतु किसी विशेष गांव अथवा किसी क्षेत्र में आदिवास करने वालों के बीच इसका उचित विभाजन नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र में सभी प्रकार की भूमि नहीं होती है। यथार्थ में लोगों के बीच भूमि का विभाजन बहुत ही असमान ढंग से होता है। देश के कुछ भागों में जाकर लोगों के पास कुछ ना कुछ भूमि होती है प्रायः लोगों के पास बहुत छोटा सा भूखंड होता है देश के कुल भागों में 40 से 50% परिवारों के पास को कोई भूमि नहीं होती है। इसका आशय यह है कि उनकी जीव का या तो कृषि मजदूरी से या अन्य प्रकार के कार्यों से चलती है इसका सामान अर्थ यह है कि देश में कुछ थोड़े से परिवारों के पास भूमि का बड़ा हिस्सा है देश में बड़ी संख्या में लोग गरीबी की रेखा से ऊपर या नीचे होते हैं।


कृषक समाज को उसकी वर्ग समझना सही पहचाना जाता है यह जाति व्यवस्था के द्वारा संरचित होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जाति और वर्ग के संबंध बड़े जटिल होते हैं यह संबंध हमेशा राष्ट्रवादी नहीं होती। हम प्राय यह सोचते हैं कि ऊंची जाति वाले के पास अधिक भूमि और आमदनी होती है और यह की जाति और वर्ग में पारस्परिकता है उनका संस्करण नीचे की ओर होता है। उदाहरण के लिए कई स्थानों पर सर्वाधिक ऊंची जात के ब्राह्मण बड़े भूस्वामी नहीं है अतः कृषिक संरचना से भी बाहर हो गए यद्यपि वे ग्रामीण समाज के अंग है। देश के ज्यादातर क्षेत्रों में भू स्वामित्व वाले समूह के लोग शूद्र या क्षत्रिय वर्ण के हैं। प्रत्येक क्षेत्र में समानता एक या दो जातियों के लोग ही भूस्वामी होते हैं वह संख्या के आधार पर भी बहुत महत्वपूर्ण है समाजशास्त्री एम.एन श्रीनिवास ने ऐसे लोगों को प्रबल जाति का नाम दिया। प्रत्येक क्षेत्र में प्रबल जाति समूह अत्यंत शक्तिशाली होता है आर्थिक और राजनीतिक रूप से वह स्थानीय लोगों पर प्रभुत्व बनाए रखता है। उत्तर प्रदेश के जाट और राजपूत कर्नाटक के वोक्कालिगास और लिंगायत आन प्रदेश के कंपास और रेड्डी और पंजाब के जाट से प्रबल भूस्वामी समूह के उदाहरण है।

प्रायः बड़े भूस्वामियों के समूहों में मध्य और ऊंची जाति समूह के लोग आते हैं। ज्यादातर सीमांत किसान और भूमिहीन लोग निम्न जाति समूह के होते हैं कार्यालयीय वर्गीकरण के अनुसार के लोग अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों अथवा अन्य पिछड़े वर्गों के होते हैं। भारत के कई भागों से पहले ज्यादातर प्रभु जाति के भूस्वामी समूह के लोगों के यहां कृषि मजदूर रहते थे। इसमें मजदूरों का एक बड़ा वर्ग बना जिससे भू स्वामियों ने खेत जोत वाकर खेती करवाई और अधिक मुनाफा कमाया।


भारतीय समाज में जाति और वर्ग का अनुपात संतुलित नहीं था। क्योंकि विशेष अर्थ में सबसे अच्छा भूमि खंड और साधन समाज के मध्य एवं उच्च जातियों के पास थे ऐसे में शक्ति और विशेषाधिकार भी उन्हीं के पास था। इसका ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता था। भारत के अधिकांश भागों में एक स्वत्वाधिकारी जाति के पास समस्त महत्वपूर्ण साधन थे। ऑल समस्त मजदूरों पर उनका नियंत्रण था जिससे वे उनके लिए काम करें उत्तर भारत के अनेक भागों में आज भी बेगार प्रथा और मुफ्त मजदूरी पद्धति अस्तित्व में है। गांव के जमीदार या भूस्वामी के यहां निम्न जाति के सदस्य वर्ष के कुछ निश्चित दिनों तक मजदूरी करते हैं इसी तरह संसाधनों की कमी और भू स्वामियों की आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक सहायता प्राप्त करने के लिए बहुत निर्धन कामगार कई पीढ़ियों से उनके यहां बंधुआ मजदूर की तरह काम कर रहे हैं। गुजरात में इस प्रथा को दलपति और कर्नाटक में जीता के नाम से जाना जाता है। देश में प्रचलित संविधान के माध्यम से यद्यपि यह व्यवस्थाएं समाप्त कर दी गई है किंतु देश के कई भागों में आज भी उनका अस्तित्व है उत्तरी बिहार के एक गांव के जातर भूस्वामी भूमिहार जाति के हैं और इस क्षेत्र में यह एक प्रभु प्रबल जाती है।


प्रश्न-2 भूमि सुधार के परिणामों का विवेचन कीजिए


 उत्तर -भूमि सुधार के परिणाम-

स्वतंत्र भारत स्वतंत्रता के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू और उनके नीति कारों ने भूमि सुधार के साथ-साथ औद्योगिकरण को केंद्र में रखते हुए नियोजित विकास की एक नई राष्ट्रीय नीत की रूपरेखा तैयार की जिसके तहत प्राचीन यानी उस प्रचलित भूमि संरचना को तत्काल प्रभाव से समाप्त करने का प्रस्ताव रखा गया क्योंकि प्राचीन भूमि संरचना जहां उत्पादन की कमी का सूचक थी वही खाद्यान्न आयात पर निर्भर निर्भरता को भी दर्शाती थी। परिणाम स्वरूप कृषि प्रधान देश की बहुसंख्यक आबादी उस समय गरीबी में गिरी हुई थी। इसलिए उन्होंने सोचा कि यदि कृषक समाज की संरचना विशेषकर भू धारण व्यवस्था और वितरण में एक बड़ा सुधार किया जाए तो कृषि व्यवसाय प्रगट की राह पकड़ लेगी। इसी योजना क्रम में 1950 के दशक से लेकर 1970 के दशक तक ना केवल राष्ट्रीय स्तर पर अपितु प्रदेश स्तर पर भी भूमि सुधारों की एक श्रंखला शुरू की गई और आशा की गई की यह मुहिम आशातीत परिवर्तन लाएगी। यह योजना भूमि कानूनों से भूमि सुधार लाने से संबंधित थी। 

भूमि सुधारों के लिए सभी राज्यों में कानून लागू किए गए इन भूमि सुधारों के प्राथमिक उद्देश्य इस प्रकार थे-


1- प्राचीन काल से चली आ रही वंशानुगत भूमि व्यवस्था को समाप्त करना। 


2-भूमि व्यवस्था के अंतर्गत सामाजिक अन्याय और शोषण के तत्वों को खत्म करना ताकि सभी लोगों में समान स्थिति और हर क्षेत्र में समान अवसर सुनिश्चित किया जा सके।

भूमि संबंधी अर्थव्यवस्था में कृषि के आधुनिकीकरण और असमानताओं का निराकर ही भूमि सुधार के उद्देश्य थे। इन्हें उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा निम्नलिखित कार्यक्रम चलाए गए-


बिचौलियों का उन्मूलन- पूरे देश में जमीदारी रैयतवाड़ी महालवाड़ी और अन्य भूमि प्रथाओं या व्यवस्थाओं को समाप्त करने के लिए प्रभावशाली विधेयक लागू किए गए यह सभी प्रथाएं बूंद सुधारों के उद्देश्य में मुख्य रूप से बाधक थी। 1954 से 55 तक लगभग सभी राज्यों में विभिन्न भूमि सुधार कानून द्वारा बिचौलियों या मध्यस्थों को समाप्त कर दिया गया था। इन सभी प्रथाओं के उन्मूलन से आधुनिक भूमि व्यवस्था में उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है।


काश्तकारी सुधार- काश्तकारी व्यवस्था भारत में एक लंबे समय से चली आ रही व्यवस्था है। इस व्यवस्था के अंतर्गत किसान (जमीदार अपनी कृषि योग्य भूमि एवं स्वयं खेती ना करके किसी अन्य व्यक्ति काश्तकार पट्टेदार या जोतदार) को खेती करने के लिए अपनी भूमि किराया पट्टे पर देने की व्यवस्था को काश्तकारी व्यवस्था कहते हैं। फसल का बंटवारा एक निश्चित फसल उगाना एक निश्चित मजदूरी प्रथा इस काश्तकारी प्रथा के विभिन्न रूप हैं। यह प्रथा उन सभी क्षेत्रों में प्रचलित थी जहां जमीदारी और रिया तिवारी प्रथा का फैलाव था प्रथा में भूमिहीन और छोटे किसान बड़े धनी किसानों या जमीदारों की भूमि किराए पर लेकर खेती किया करते थे। यह भूमिहीन किसान जमीदार को भूमि उनकी भूमि पर खेती करने के एवज में भुगतान के स्वरूप में उपज का बड़ा हिस्सा या नकद के रूप में देते थे। साधारण शब्दों में काश्त कार कहलाते थे।


प्रश्न 3 -हरित क्रांति और इसके सामाजिक परिणामों का विवेचन कीजिए।


 उत्तर- हरित क्रांति और इसके सामाजिक परिणाम

समान्य रूप से हरित क्रांति का अभिप्राय कृषि व्यवस्था में क्रांतिकारी नीतियों द्वारा सर्वागीण विकास से होता है और इसका अंतिम लक्ष्य कृषि फसलों का अधिकतम उत्पादन लेना होता है। इसलिए हरित क्रांति कृषि व्यवस्था में अधिकाधिक अच्छा और अधिक अनूप जाने का एक संपूर्ण व कारगर आंदोलन है।कृषि व्यवस्था में सर्वांगीण विकास की दृष्टि से विभिन्न प्रकार की योजनाओं को गांव में लागू किया जा रहा है। किसानों को अधिक उपज देने वाले बीजों (HYVS) एवं रासायनिक खाद तथा कीटनाशक दवाओं का प्रयोग किया जा रहा है। अधिकाधिक सुविधाएं उपलब्ध कराने पर बल दिया जा रहा है। कृषि खाद्यान्नों को भारी मात्रा में निर्यात करने का लक्ष्य है जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो। आपने भूमि सुधार के अंतर्गत देखा है कि अनेक क्षेत्रों में भूमि सुधार प्रक्रिया का ग्रामीण समाज तथा भूमि संरचना पर केवल एक सीमित प्रभाव ही पड़ा है जबकि इसकी तुलना में 1960 और 1970 के दशकों की हरित क्रांति ने उन क्षेत्रों में जहां-जहां इसे लागू किया गया कृषि उत्पादन के मामले में एक अभूतपूर्व क्रांति ला दी थी।


हरित क्रांति कृषि आधुनिकीकरण का एक सरकारी कार्यक्रम था 1958 में इंडियन सोसायटी आफ एग्रोनॉमी की स्थापना के बाद भारत ने परंपरागत खेती में सुधार के लिए विदेशी एजेंसियों से सहयोग मांगा। अंतरराष्ट्रीय एग्रो एजेंसी नो ने इस कार्य में भारत को भरपूर योगदान दिया एजेंसियों ने ऊंची उपज देने वाले बीजों के साथ-साथ कीटनाशकों और वर्ग को और अन्य आवश्यक सुविधाएं किसानों को उपलब्ध कराएं। परंतु हरित क्रांति कार्यक्रम केवल उन्हीं क्षेत्रों में लागू किया जा सका जहां सिंचाई की व्यवस्था उपलब्ध थी। क्योंकि नए उन्नत किस्म के बीजों की रोपाई खेती में पर्याप्त मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। गेहूं और चावल उत्पादक क्षेत्रों को ही हरित क्रांति का प्रमुख लक्ष्य  बनाया गया। परिणाम स्वरूप केवल कुछ ही राज्यों जैसे पंजाब पश्चिमी उत्तर प्रदेश तटीय आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ भागों में ही हरित क्रांति अभियान अधिक फला फूला। 


समाज वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनो में भूमि सुधार और हरित क्रांति जैसे अभियानों को जहां यह लागू किए गए सामाजिक एवं आर्थिक रूपांतरण का आधार माना है। इन दोनों प्रक्रियाओं का ग्रामीण समाज और कृषि अर्थव्यवस्था पर बहुत सघन और तीव्र प्रभाव देखने में आया।

भूमि सुधार और हरित क्रांति ने ना केवल कृषि उत्पादों की झोली भरी है अपितु उत्पादन की प्रक्रिया में नई प्रौद्योगिकी को भी गले से लगाया है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रयोग से मध्यमवर्ग शक्ति संपन्न हुआ है। उन्हें प्रगति उन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक परिवर्तनों को एक नई दिशा प्रदान की है। साथ ही जहां नई शक्ति संरचना का उदय हुआ है वही दलित वंचित वर्गों के प्रति शोषण उत्पीड़न की घटनाओं में भी वृद्धि हुई है जिससे ग्रामीण समाज में नए अंतर विरोधी का सिलसिला भी शुरू हुआ है। यहां पर हम हरित क्रांति के कुछ मिले-जुले सामाजिक आर्थिक परिणामों की क्रमवार चर्चा करेंगे-


1- नई प्रौद्योगिकी से मुक्ता मध्यम एवं बड़े किसान ही लाभान्वित हुए-

हमारे देश में जिन जिन क्षेत्रों में हरित क्रांति अभियान के अंतर्गत नई प्रौद्योगिकी अपनाया गया उसका अधिकतर लाभ मध्यम एवं बड़े किसानों ने ही उठाया क्योंकि उत्पादन बढ़ाने में प्रयोग किए जाने 

वाले हाइब्रिड बीजों उर्वरकों कीटनाशकों और सिंचाई पर बहुत अधिक निवेश करना पड़ता था।


2- हरित क्रांति का लाभ केवल उन्हें बड़े किसानों ने उठाया जिन्होंने अपने अतिरिक्त उपज को बाजार में बेचा-

हरित क्रांति का लाभ उठाने में बड़े और मध्यम किसान ही आगे रहे क्योंकि नई उत्पादन प्रणाली को अपनाकर वे अधिकाधिक उप जाने में समर्थ हुए और इस प्रकार वे अपने अतिरिक्त उपज खाद्यान्नों को बाजार में बेचकर मालामाल हो गए। उन्होंने खेती को एक व्यवसाय का रूप दिया और आज भी पूंजीपति किसानों में गिने जाते हैं।

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