Up board model paper 2023 class 12th Sociology chapter 11// यूपी बोर्ड मॉडल पेपर 2023 कक्षा 12 समाजशास्त्र अध्याय 11

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Up board model paper 2023 class 12th Sociology chapter 11// यूपी बोर्ड मॉडल पेपर 2023 कक्षा 12 समाजशास्त्र अध्याय 11

Up board model paper 2023 class 12th Sociology chapter 11// यूपी बोर्ड मॉडल पेपर 2023 कक्षा 12 समाजशास्त्र अध्याय 11

               यूपी बोर्ड मॉडल पेपर 2023 

कक्षा 12 समाजशास्त्र 

अध्याय 11 सामाजिक आंदोलन


Up board model paper 2023 class 12th Sociology chapter 11// यूपी बोर्ड मॉडल पेपर 2023 कक्षा 12 समाजशास्त्र अध्याय 11

बहुविकल्पी प्रश्न 


प्रश्न 1 सुंदरलाल बहुगुणा का संबंध निम्न में से किससे है?

(क)चिपको आंदोलन 

(ख)उत्तराखंड की राजनीति 

(ग)कौशल विकास 

(घ)आयुष्मान भारत

उत्तर (क)चिपको आंदोलन


प्रश्न 2 निम्न में से कौन पारिस्थितिकी अवक्रमण का कारण है? 

(क)जल स्रोतों की कमी 

(ख)हानिकारक उद्योग 

(ग)वनों का विनाश तथा भूमि कटाव 

(घ)उपर्युक्त सभी


उत्तर(द) उपयुक्त सभी


प्रश्न 3 पर्यावरण के जैविक एवं अजैविक  सभी कारकों के परस्पर संबंधों को कहते हैं- 

(क)जल मण्डल 

(ख)पारिस्थितिकी तंत्र 

(ग)जल मण्डल

 (घ)वायु मण्डल 


उत्तर (ख)पारिस्थितिकी तंत्र


प्रश्न 4 भारत में जनजाति आंदोलन का प्रमुख कारण है-

(क)आर्थिक शोषण 

(ख)सभ्य समाजों में संपर्क 

(ग)दोषपूर्ण वन नीति 

(घ)उपर्युक्त सभी 


उत्तर(घ) उपरोक्त सभी


प्रश्न 5 सामाजिक आंदोलन समाज अथवा इसके सदस्यों में परिवर्तन लाने अथवा उसका विरोध करने का सामूहिक प्रयास है यह कथन निम्न में से किसका है?

(क)हॉर्टन एंड हण्ट 

(ख)एल्ड्रिज एवं मैरिल 

(ग)हरबर्ट ब्लूमर 

(घ)उपयुक्त सभी 


उत्तर (घ) उपरोक्त सभी


प्रश्न 6 निम्न में से कौन सामाजिक आंदोलन की विशेषता है 

(क)यह अकारण होते है 

(ख)यह असंगठित होते हैं 

(ग)यह संगठित होते है

(घ) इन में कोई सुधार संभव नहीं है 


उत्तर(ग) यह संगठित होते हैं


प्रश्न 7 सामाजिक आंदोलन को नेतृत्व प्राप्त होता है 

(क)समाज के प्रबुद्ध व्यक्तियों का 

(ख)समाज विरोधी व्यक्तियों का 

(ग)समाज के निर्धन व्यक्तियों का

(घ) रोजगार तथा अशिक्षित व्यक्तियों का 


उत्तर (क)समाज के प्रबुद्ध व्यक्तियों का


अति लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1 रूपांतरणीय आंदोलन क्या है? उत्तर- रूपांतरणीय आंदोलन का लक्ष्य व्यक्तिगत सदस्यों को निजी जागरूकता तथा क्रियाकलापों में परिवर्तन लाना है।


प्रश्न 2 वर्ग आधारित आंदोलन से आप क्या समझते हैं? 

उत्तर- वर्ग आधारित आंदोलन समानता स्थानीय क्षेत्रीय अथवा राष्ट्रीय होते हैं इसमें वैसे लोग शामिल होते हैं जो व्यवस्था, नीतियों तथा कार्यक्रमों पर दबाव डालते हैं।


प्रश्न 3 दलित आंदोलन के दो उदाहरण दीजिए 

उत्तर 1-झारखंड आंदोलन ।

2-तथा पूर्वोत्तर आंदोलन।


प्रश्न 4 सामाजिक आंदोलन क्या है? उत्तर- एक सामाजिक आंदोलन में किसी औपचारिक अथवा अनौपचारिक संगठन के द्वारा सामूहिक गतिशीलता सतत्  तत्व समाहित होते हैं तथा इसका संबंध संबंधों के वर्तमान स्वरूप के परिवर्तन से होता है विचारधारा किसी भी सामाजिक आंदोलन का एक प्रमुख कारक है।


प्रश्न 5 डांडी मार्च से आप क्या समझते हैं? 

उत्तर- 12 मार्च 1930 को गांधी जी ने अपने 79 सहयोगियों के साथ साबरमती आश्रम से डांडी नमक के कानून को तोड़ने के नियमित रवाना हुए 24 दिनों के बाद उन्होंने 6 अप्रैल 1930 को नमक कानून तोड़ा।


प्रश्न 6 सामाजिक परिवर्तन तथा सामाजिक आंदोलन के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।

 उत्तर- सामाजिक परिवर्तन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है यह पूर्व की स्थिति तथा जो वर्तमान की स्थिति है इस के बीच के अंतर को स्पष्ट करता है जबकि सामाजिक आंदोलन आमतौर पर किसी निश्चित परिवर्तन अथवा किसी सामाजिक परिवर्तन के विरोध में चलाए जाते हैं।


प्रश्न 7 सापेक्षिक वंचन के सिद्धांत को स्पष्ट कीजिए 

उत्तर- सापेक्षिक वंचन का सिद्धांत लोगों की अवस्था पर प्रकाश डालता है। सामाजिक संघर्ष तथा उत्पन्न होता है जब एक सामाजिक समूह यह महसूस करता है कि वह अपने आसपास के अन्य लोगों से खराब स्थिति में है। उनका क्षोभ तथा गुस्सा सामाजिक आंदोलन को उभार सकता है।


प्रश्न 8 संसाधन गतिशीलता का सिद्धांत सामाजिक आंदोलनों के विषय में क्या करता है?

 उत्तर- संसाधन गतिशीलता का सिद्धांत उस पद्धति की तरफ संकेत करता है जिसके अंतर्गत कोई सामाजिक आंदोलन संसाधनों का प्रयोग अपनी सफलता के लिए करता है।


प्रश्न 9 तिभागा आंदोलन के पीछे मुख्य कारण क्या था? 

उत्तर- तिभागा आंदोलन के पीछे मुख्य बात यह थी कि भूस्वामियों को किसानों के द्वारा 1/2 हिस्सा उपज ना देकर ⅓ हिस्सा दिया जाए। तिभागा आंदोलन का नेतृत्व भुवानी सेन ने किया।


प्रश्न 10 19वीं सदी में सामाजिक आंदोलन के मुख्य मुद्दे क्या थे? 

उत्तर-19वीं शताब्दी के सामाजिक आंदोलनों का मुख्य मुद्दा महिलाओं के अधिकारों को समान रुप लागू करवाना था इसे नारीवाद भी कहा जाता है।


लघु उत्तरीय प्रश्न

 

प्रश्न 1 दलितों तथा अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों को उभरता हुआ देखकर उच्च जाति की क्या प्रतिक्रिया रही है?

उत्तर-1 उच्च जातियों के कुछ वर्गों में यह धारणा उत्पन्न हो गई है कि उनकी उपेक्षा हो रही है। उन्हें लगता है कि उनके अल्पसंख्यक होने के कारण सरकार उनकी कोई परवाह नहीं करती।


2- समाजशास्त्र के एक छात्र के रूप में हमें यह पता लगाना चाहिए कि ऐसी भावनाओं का अस्तित्व है और हम उसे किस सीमा तक परीक्षण कर सकते हैं तब हमें यह विवेचना करनी चाहिए कि ऐसा आभास किस सीमा तक प्रयोग से तथ्यों पर आधारित है। हालांकि छोटे तथा तिरस्कृत व्यवसायो में बहुमत निम्नतम जातियों का ही है।


प्रश्न 2 क्या हम पुराने तथा नए सामाजिक आंदोलन के बीच के अंतर को भारतीय संदर्भ में लागू कर सकते हैं? 

उत्तर-1 भारत में महिलाओं, कृषिको, दलितों, आदिवासियों तथा अन्य सभी प्रकार के सामाजिक आंदोलन हुए हैं।


2- गेल आँनवेट ने अपनी पुस्तक 'रीइन्वेन्टिग रिवॉल्यूशन' में दर्शाया है कि सामाजिक असमानता तथा संसाधनों के असमान वितरण के बारे में चिंताएं इन आंदोलनों में भी आवश्यक तत्व बचे हुए हैं।


3- कृषक आंदोलनों ने अपने उत्पादन हेतु बेहतर मूल्य तथा कृषि संबंधी सहायता के हटाए जाने के विरुद्ध लोगों को गतिशील किया है।


4- दलित मजदूरों ने सामूहिक प्रयास करके सुनिश्चित किया है कि उच्च जाति के भूस्वामी तथा महाजन उनका शोषण ना कर पाए।


5- महिलाओं के आंदोलनों ने लिंग भेद के मुद्दे पर कार्य स्थल तथा परिवार के अंदर जैसे विभिन्न सीमाओं में काम किया है।


प्रश्न 3 समाजशास्त्र के लिए सामाजिक आंदोलन के अध्ययन के महत्व पर चर्चा कीजिए।

 उत्तर- समाजशास्त्र की शाखा सामाजिक आंदोलनों में रुचि लेती रही है। फ्रांसीसी क्रांति राजतंत्र को उखाड़ फेंकने तथा स्वतंत्रता समानता तथा बंधुता स्थापित करने के उद्देश्य चलाई गए अनेक सामाजिक आंदोलनों की एक हिंसात्मक परिणति थी। ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति के दौरान बहुत से सामाजिक उतार-चढ़ाव हुए गांव से नगरों में काम की तलाश में आए  गरीब मजदूरों तथा कारीगरों ने उन अमानवी जीवन स्थितियों का विरोध किया, जिन में रहने के लिए उन्हें बाद किया जाता था। ब्रिटेन के खाघ दंगों को प्रायः सरकार ने दबाया। कुलीन वर्ग के द्वारा इन विरोधो को स्थापित व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती के रूप में देखा जाता है। सामाजिक आंदोलनों को अव्यवस्था फैलाने वाले शक्तियों के रूप में देखा जाता था। शोध में दर्शाया की नगरी क्षेत्रों में गरीब लोगों के पास विरोध करने के लिए उपयुक्त कारण होते हैं। वे प्रायः सार्वजनिक रूप से विरोध करते हैं क्योंकि उनके पास वचन के विरुद्ध अपना क्रोध और क्षोभ प्रकट करने का कोई दूसरी विधि नहीं होता।


प्रश्न 4 सामाजिक परिवर्तन तथा सामाजिक आंदोलन के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए  

उत्तर- सामाजिक परिवर्तन एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। सामाजिक परिवर्तन की वृहद ऐतिहासिक प्रक्रियाएँ असंख्य व्यक्तियों तथा सामूहिक गतिविधियों का परिणाम होती है। सामाजिक आंदोलन किसी विशिष्ट उद्देश्य और निर्देशित होते हैं।

इसमें लंबा तथा निरंतर सामाजिक प्रयास एवं लोगों की गतिविधियां शामिल होती हैं हम संस्कृति करण तथा पाश्चात्यीकरण को सामाजिक परिवर्तन के रूप में तथा 19वीं सदी के समाज सुधारकों द्वारा समाज में परिवर्तन के प्रयासों को सामाजिक आंदोलन के रूप में देख सकते हैं सामाजिक आंदोलन विरोध के विभिन्न साधनों को भी विकसित करता है यह मोमबत्ती अथवा मशाल, जुलूस ,काले कपड़े का प्रयोग, नुक्कड़ नाटक, गीत, कविताएं आदि के रूप में हो सकते हैं।


प्रश्न 5 पारिस्थितिकी आंदोलन का स्पष्ट कीजिए 

उत्तर-1- आधुनिक काल के अधिकांश समय में सर्वाधिक जोर विकास पर दिया गया है।


2- दशकों से प्राकृतिक संसाधनों के अनियंत्रित उपयोग तथा विकास के ऐसे प्रतिरूप के निर्माण में जिससे पहले से ही यह तो प्राकृतिक संसाधनों के अधिक शोषण की मांग बढ़ती है, के विषय में बहुत चिंता प्रकट की जाती रही है।


3- विकास के इस प्रतिरूप की इसलिए भी आलोचना हुई, क्योंकि यह मानना है कि विकास को उनके वर्गों के लोग लाभान्वित होंगे।


4- इस प्रकार से बड़े बांध उनके घरों और जीवन यापन के स्रोतों से तथा उद्योग कृषकों को उनके घरों और अजीविका से अलग देते हैं।


5- पारिस्थितिकी आंदोलन का एक उदाहरण चिपको आंदोलन से हमें पर्यावरण से जुड़ी सभी समस्याओं का पता चल जाता है।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 


प्रश्न-1 सामाजिक आंदोलन के लक्षणों का वर्णन कीजिए।


 उत्तर सामाजिक आंदोलन के लक्षण

हम देखते हैं कि जब एक बस किसी बच्चे को कुचल देती है तो लोग बस को क्षति पहुंचा सकते हैं तथा उसके चालक पर भी लोग हमला कर सकते हैं। यह विरोध एक एकलौती घटना है। क्योंकि यह भावना भड़क उठती और फिर कुछ समय बाद शांत हो जाती है इसलिए यह एक सामाजिक आंदोलन नहीं है। सामाजिक आंदोलन में एक दीर्घकालिक निरंतर सामूहिक गतिविधियों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार की गतिविधि प्रायः राज्य के विरुद्ध होती है तथा राज्य की नीति तथा व्यवहार में परिवर्तन की मांग करती है हम स्वतः स्फूर्त

तथा असंगठित विरोध को भी सामाजिक आंदोलन नहीं कर सकते हैं। निश्चय ही सामूहिक गतिविधियों में कुछ हद तक संगठन का होना अत्यावश्यक है। सामाजिक आंदोलन के संगठन में नेतृत्व तथा संरचना होती है जिसमें सदस्यों का पारस्परिक संबंध निर्णय प्रक्रिया तथा उनका अनुपालन परिभाषित होता है। सामाजिक आंदोलन में भाग लेने वाले लोगों के उद्देश्य तथा विचारधाराओं में भी समानता होती है। सामाजिक आंदोलन में एक समान अभी मुक्ता अथवा किसी परिवर्तन को लाने की विधि होती है। यह विशेष लक्षण स्थाई नहीं होते हैं। ये सामाजिक आंदोलन की जीवन अवधि में परिवर्तन कर सकते हैं।


प्रायः सामाजिक आंदोलन किसी जनकल्याण के विषय में परिवर्तन लाने के उद्देश्य उत्पन्न होते हैं जैसे कि जनजाति लोगों के लिए जंगल के उपयोग का अधिकार या विस्थापित लोगों के पुनर्वास तथा क्षतिपूर्ति के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए। सामाजिक आंदोलन सामाजिक परिवर्तन लाना चाहते हैं कभी-कभी यथा पूर्व स्थिति बनाए रखने के लिए प्रतिरोधी आंदोलन जन्म लेते हैं। ऐसे प्रतिरोधी आंदोलनों के कई उदाहरण हैं जब राजा राममोहन राय ने सती प्रथा का विरोध किया तथा ब्रह्म समाज की स्थापना की तो सती प्रथा के प्रतिरक्षकों ने धर्म सभा स्थापित की तथा अंग्रेजों को क्षति के विरुद्ध कानून नाम बनाने के लिए याचिका दी। जब सुधार वादियों ने बालिकाओं के लिए शिक्षा की मांग की तो बहुत से लोगों ने यह कहकर इसका विरोध किया कि यह समाज के लिए अहितकर होगा। जब सुधारको ने विधवा पुनर्विवाह का प्रचार किया तो उनका सामाजिक बहिष्कार किया गया। जब तथाकथित निम्न जाति के बच्चों ने स्कूल में नाम खुलवाया तो कुछ तथाकथित उच्च जाति के बच्चों को उनके परिवारों द्वारा स्कूलों से निकाल लिया गया। किसान आंदोलनों को भी प्राया क्रुरता से दमन किया गया। हाल में हमारे देश में पूर्व में बहिष्कृत समूह जैसे कि दलितों के सामाजिक आंदोलनों से उनके विरुद्ध बदले की कार्रवाई का उदय हुआ इसी तरह शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण देने के प्रस्तावों से उनका विरोध करने वाले प्रतिरोधी आंदोलनों का जन्म हुआ। सामाजिक आंदोलन सरलता से सामाजिक को नहीं बदल सकते क्योंकि यह संरक्षित हितों तथा मूल्यों दोनों के विरुद्ध होते हैं इसलिए इनका विरोध तथा प्रतिकार होना स्वाभाविक है लेकिन कुछ समय के बाद परिवर्तन होते भी हैं।


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