महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय//Maharshi Valmiki Biography in hindi

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महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय//Maharshi Valmiki Biography in hindi

महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय//Maharshi Valmiki Biography in  hindi


महर्षि वाल्मीकि जयंती 20 अक्टूबर को मनाई जाती है।


रामायण के लेखक -महार्षि वाल्मीकि

रामायण के लेखक का नाम -महार्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय//Maharshi Valmiki Biography in  hindi



महर्षि बाल्मीकि कौन थे?

महर्षि बाल्मीकि रामायण के लेखक थे जो भगवान राम के जीवन पर आधारित हैं जो हमें हमारे कर्तव्य और जीवन की सच्चाई के बारे में बताती है बाल्मीकि ने पहले संस्कृत महाकाव्य की रचना की। जिसे रामायण के नाम से जाना जाता है। इसीलिए वाल्मीकि को आदिकवि के नाम से भी जाना जाता है।


महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय


अन्य नाम

रत्नाकर

धर्म

हिंदू धर्म

पिता

प्रचेता

माता

बाल्मीकि की माता का कोई वर्णन नहीं है।

के लिए जाना जाता है

रामायण

आंदोलन

वाल्मीकि वाद नामक धार्मिक आंदोलन वाल्मीकि शिक्षाओं पर आधारित है।

सम्मान

आदि कवि त्रिकालदर्शी भगवान महर्षि और गुरुदेव

महोत्सव

वाल्मीकि दिवस


महर्षि बाल्मीकि की कहानी यह कहानी हिंदू धर्म में प्रचलित है।


महर्षि वाल्मीकि का इतिहास 


रत्नाकर डाकू से बाल्मीकि कैसे मिले?


वाल्मिक प्रचेता ऋषि के पुत्र थे जो आश्रम में बच्चों को पढ़ाते थे बाल्मीकि का असली नाम रत्नाकर था एक दिन रत्नाकर अपने कुछ दोस्तों के साथ जंगल में गये वहां रत्नाकर खेलते खेलते जंगल में भटक गए उस समय रत्नाकर बहुत छोटी थे रास्ता ना खोज पाने के कारण वे वहां बैठ कर रोने लगे।


रचनाकार को रोता देख एक शिकारी रत्नाकर को अपने घर ले आया और उसे अपने बेटे की तरह पाला रत्नाकर जब बड़े हुए तो उनकी शादी हो गई रत्नाकर के तीन बेटे हुए रत्नाकर भी अपने परिवार का पेट पालने के लिए पिता की तरह शिकार करते थे।


पहले तो सब ठीक चल रहा था लेकिन कुछ साल बाद शिकार ना मिलने के कारण रत्नाकर को अपने परिवार का पेट भरने में परेशानी होने लगी इसके बाद रत्नाकर ने अपने परिवार को बताए बिना डकैती शुरू कर दी।


 एक दिन रत्नाकर नारद मुनि को लूटने जा रहे थे लेकिन नारद मुनि के समझाने के बाद रत्नाकर को अपने पापों का बोध हो गया। फिर नारद मुनि ने रत्नाकर से पूछा कि तुम्हारा परिवार जिसके लिए तुम दूसरों को लूट रहे हो तुम्हारे बाबू में भी भाग लेगा यह प्रश्न रत्नाकर अपने परिवार से पूछने गए और उनके परिवार के सभी सदस्यों ने मना कर दिया वेद ऋषि नारद के पास वापस आए।


रचनाकार को अपने किए का पर पछतावा होता है और नारद फिर उन्हें राम नाम जपने के लिए कहते हैं लेकिन रत्नाकर राम का नाम ठीक से नहीं बोल पा रहे थे यह देखकर नारद ने उन्हें मार बोलने के लिए कहा कई वर्षों तक मार शब्द बोलने के बाद उनके मुख से राम शब्द निकलने लगा फिर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई ज्ञान प्राप्ति के बाद रत्नाकर महर्षि बाल्मीकि बने।


महर्षि वाल्मीकि प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों की श्रेणी में प्रमुख स्थान प्राप्त करते हैं। इन्होंने संस्कृत में महान ग्रंथ रामायण महान ग्रंथ की रचना की थी इनके द्वारा रचित रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाती है I हिंदू धर्म की महान कृति की रामायण महाकाव्य श्रीराम के जीवन और उनसे संबंधित घटनाओं और पर आधारित है जो जीवन के विभिन्न कर्तव्यों से परिचित कराती है ।  


रामायण के रचयिता के रूप में वाल्मीकि की प्रसिद्धी है । 

इनके पिता महर्षि कश्यप के पुत्र वरुण या आदित्य माने गए हैं । 

एक बार ध्यान में बैठे हुए उनके शरीर को दीमक ने अपना ढूंढ ( बांबी ) बनाकर ढक लिया था। साधना पूरी करके जब ये दीमक से जिसे वाल्मीकि कहते हैं बाहर निकलते तो उन्हें वाल्मीकि कहा जाने लगा । 


महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय

महर्षि वाल्मीकि बनने से पूर्व वाल्मीकि रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे तथा परिवार के पालन हेतु दस्युकर्म करते थे  । एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले तो रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया तब नारदर्जी ने रत्नाकर से पूछा कि तुम यह निम्न कार्य किस लिए करते हो, इस पर रत्नाकर ने जवाब दिया कि अपने परिवार को पालने के लिए इस पर नारदजी ने प्रश्न किया कि तुम जो भी अपराध करते हो और जिस परिवार के पालन के लिए तुम इतने अपराध करते हो क्या वह तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार हैं यह जानकर वह स्तंब्ध रह जाता है । 


नारद मुनि ने कहा कि हे रत्नाकर यदि तुम्हारे परिवार वाले इस कार्य में तुम्हारे भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों उनके लिए यह पाप करते हो। इस बात को सुनकर उनसे नारद के चरण पकड़ लिए और डाकू का जीवन छोड़कर तपस्या में लीन हो गए हो और तब नारदजी ने उन्हें यह सत्य के ज्ञान से परिचित करवाया तो उन्हें राम नाम की जब का उद्देश भी दिया परंतु वह राम नाम का उच्चारण नहीं कर पाते तब नारद जी ने विचार करके उनसे मरा मरा जपने के लिए कहा और मरा रटते-रटते यही राम हो गया और निरंतर जप करते-करते उन्हें ऋषि वाल्मीकि बन गए । 


वाल्मीकि रामायण 

एक बार महर्षि वाल्मीकि नदी के किनारे पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे, वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी एक व्याध ने पक्षी के एक जोड़े में से एक को मार दिया, नर पक्षी की मृत्यु से व्यथित मादा पक्षी विलाप करने लगती है। उनके  इस विलाप को सुन कर वाल्मीकि के मुख से स्वत: ही मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: सरस्वती शाश्र्वतीः समाः । यत्कौंचामिथुनादेकम्  अवधीः काममोहितं ।। नामक इस लोक फूट पड़ाः और जो महाकाव्य रामायण का आधार बना।


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